eklavyabooks की गपशप ...

जुलाई-अगस्त 2017

इस बार बात कुछ नई किताबों की। इनमें शुरुआती पाठकों के लिए चित्रकथाएं भी हैं और किशोर उम्र के पाठकों के लिए किताबें भी।

अकाल और उसके बाद

नागार्जुन की चर्चित कविता ‘अकाल और उसके बाद’ चित्रकथा के रूप में प्रस्‍तुत है। कविता पन्‍ना दर पन्‍ना गहरे उतरती है। और दृश्‍य आपको दिखाते हैं अकाल। इसी तरह जब अकाल का दौर खत्‍म होता है तब वह कितना उम्‍मीद भरा वक्‍त होता है। कविता को कैरन हेडॉक के चित्रों ने सजीव कर दिया है।

चलो, चलें पक्षी देखने...

क्‍वेस्‍ट द्वारा विकसित यह किताब बच्‍चों को आसपास के पक्षियों से रूबरू होने का मौका देती है। गौरेया, दयाल, ठीकरी और भी कई पंछियों को इसमें दर्शाया गया है। श्रद्धा किरकिरे के चित्रों ने पंछियों को खूबसूरती से दर्शाया है।

जंगली सरसों के उपहार

क्‍या जंगली सरसों का फूलगोभी और पत्‍तागोभी से कोई सम्‍बन्‍ध है? क्‍या एक फसल से दूसरी किस्‍म की फसल पैदा हो सकती है? कृत्रिम चयन और प्राकृतिक चयन क्‍या हैं? किस तरह से फसलों का विकास हुआ? इन सब सवालों पर बात करती है यह किताब। इसे कैरन हेडॉक ने लिखा और चित्रित किया है।

खत

अदिति ने दद्दू को उनके जन्‍मदिन पर भेजी चिट्ठी। चिट्ठी अदिति के हाथों से डाक के डिब्‍बे में, फिर डाकखाने में और वहां से ट्रेन पर सवार होकर आखिरकार पहुंची दद्दू तक। आज जब चिट्ठी का दौर खत्‍म हो रहा है ऐसे में यह चित्रकथा बच्‍चों को डाक की दुनिया से जुड़ने का मौका देती है। इसके चित्र सुमित पाटिल और रूपाली बर्गे ने बनाए हैं।

कहानियों का पेड़

चार कहानियों का संग्रह। जिसमें हर कहा‍नी सबरी, उसके गांव, उसके दोस्‍तों, जंगल-ज़मीन के संघर्षों को साझा करती है। सबरी झूठ नहीं बोलती इसलिए अपने मास्‍टर को चुनौती देने का साहस रखती है। वह शंकर की कहानियों पर सवाल उठाती है। कागज़ों पर चित्र बनाना उसे पसन्‍द है और उन्‍हें सहेजने की उसकी चिन्‍ता भी कमाल की है। इन कहानियों को रिनचिन ने लिखा है और चित्र कनक शशि ने बनाए हैं।

लेखन कार्यशाला

हिन्दी भाषा में बच्चों के लिए अच्छी किताबों की कमी से हम सब वाकिफ हैं। एकलव्य का सरोकार रहा है कि बच्चों के लिए हिन्दी व अन्य भाषाओं में बेहतरीन किताबें विकसित हों। इसके लिए हम सतत् प्रयास करते रहे हैं। इस बार ओरिजनल कहानियों के निर्माण के लिए 28 से 31 जुलाई के बीच सांची में एक कार्यशाला आयोजित की गई। इसमें 25 प्रतिभागियों ने कहानियां लिखीं और उन पर आपस में चर्चा की। कार्यशाला में अच्छे साहित्य के मानकों पर विमर्श हुआ। भागीदारों ने अपनी पसंदीदा किताबों के अनुभवों को भी साझा किया। कार्यशाला को शिक्षाविद् व साहित्‍यकार सुबीर शुक्‍ला ने फेसिलिटेट किया।।

We will miss you dearly, Professor Yashpal

On July 24, our country lost one of its doyens in science popularisation and its education, Professor Yashpal. He was 91 years old. We in Eklavya will always remember him as a truly special personality. He had played a major role in supporting the formation of the organisation, first while working in the Department of Science & Technology (DST) and then in the University Grants Commission (UGC). This was in addition to the part he had played in the Hoshangabad Science Teaching Programme ever since the first 1972 teacher training in Rasulia (given inside this link is his ‘Foreword’ for the Bal Vaigyanik series of books). For some of our senior members he was even more - a guide, a mentor, a pillar of support that one could go to anytime. Every time we had approached him to come out in our support he was eager and ready, even if it had meant travelling to Hoshangabad or Bhopal or Ujjain or anywhere else.

And in a tragic twist of chance, on that same day we lost former chairman of the Indian Space Research Organisation (ISRO), UR Rao, and then on August 1, the renowned molecular biologist and founder of the Centre for Cellular and Molecular Biology (CCMB), PM Bhargava.

पिटारा से...

आज़ादी की नुक्‍ती

15 अगस्‍त को स्‍कूल में मिलने वाले बूंदी के लड्डू पाने के लिए की गई मशक्‍क्‍त को एक बच्‍चे ने क्‍या खूब लिखा है इस किताब में। उसकी कुछ झलकियां पेश हैं:

15 अगस्‍त के कारण हमने एक दिन पहले से कपड़े धो रखे थे।...भा पे भाषण भये। भाषण सुन-सुनकर हमरो दिमाग पच गओ।...हम लाइन में लगे नुक्‍ती बंट रही थी।...और नुक्‍ती खात-खात घर आ गए ...

वैसे इस पूरी किताब में बच्‍चों की लिखी रचनाएं और चित्र हैं।

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