मूल्य ₹50 RNI क्र. 50309/85 डाक पंजीयन क्र. म. प्र./भोपाल/261/2018-20/पृष्ठ संख्ा 44/प्रकाशन तिथि 26 मई 2020/ पोस्टंग तिथि 29 मई 1तरबूज़ बड़ा-स़ा ऱावेन्द्रकुम़ार रवव क़ाले-क़ाले आसम़ान में, जब सफेद त़ारे मुस़्ाए उन्ें देखकर मैंने सोच़ा, क़ाश, अगर ऐस़ा हो ज़ाए... ल़ाल रंग हो ज़ाए क़ाल़ा, फफर सफेद क़ाल़ा हो ज़ाए आध़ा कट तरबूज़ बड़ा-स़ा, मेरे मुँह में रस टपक़ाए तरबूज़ आइसक्रीम जुग़ाड: दो कप तरबूज़ के कटे हुए टुकडे, शक्कर य़ा शहद स़्ाद़ानुस़ार, दो चम्मच नींबू क़ा रस और आइसक्रीम क़ा स़ाँच़ा। • कटे हुए तरबूज़ों से बीज अलग कर लो। • एक भगोने में तरबूज़ लो और हाथ से मसलकर लुगदी बना लो। • छन्ी से जूस को अचछे-से छान लो। • शककर या शहद और नींबू का रस ममला लो। • अब इस जूस को आइसक्ीम के साँचे में डालकर 6-7 घणटे के मलए फ्ीज़र में रख दो। साँचा नहीं हो तो मकसी कप में भी इसे जमा सकते हो। लो बन गई तुमहारी आइसक्ीम। जून 2020 2इस बार एकलवय फाउंडेशन, जाटखेडी, फॉचयूयून कसतूरी के पास, भोपाल, मधय प्रदेश 462 026 फोन: +91 755 2977770 से 3 तक; ईमेल: chakmak@eklavya.in, circulation@eklavya.in वेबसाइट : https://www.eklavya.in/magazine-activity/chakmak-magazine एकलव्य चनदा (एकलवय के नाम से बने) मनीऑडयूर/चेक से भेज सकते हैं। एकलवय भोपाल के खाते में ऑनलाइन जमा करने के मलए मववरण: बैंक का नाम व पता - सटेट बैंक ऑफ इंमडया, महावीर नगर, भोपाल खाता नमबर - 10107770248 IFSC कोड - SBIN 0003867 कृपया खाते में रामश डालने के बाद इसकी पूरी जानकारी accounts.pitara@eklavya.in पर ज़रूर दें। मवतरणमवतरण झनक राम साहू एक प्रमत : ₹ 50 वाम्यूक : ₹ 500 तीन साल : ₹ 1350 आजीवन : ₹ 6000 सभी डाक खचयू हम देंगे समपादनसमपादन मवनता मवशवनाथन सह समपादकसह समपादक कमवता मतवारी समजता नायर कनक शमश मवज्ान सलाहकार मवज्ान सलाहकार सुशाील जोशाी मडज़ाइनमडज़ाइन कनक शामश सलाहकार सलाहकार सी एन सुब्रणयम् शमश सबलोक सहयोगसहयोग अमभ्ेक दूबे आवरण चचत्र: अनुज़ात ससन्ु ववनयल़ाल, नौवीं, वत्रशूर, केरल अंक 405 अंक 405 • जून 2020जून 2020 तरबूज़ बडा-सा - रावेन्द्रकुमार रवव - 2 तुम भी बनाओ - तरबूज़ आइसक्रीम - 2 मेरी माँ और पड़ोसी माँएँ - सजिता नायर - 4 ऐसा क्यों लगता है वक यह पहले भी ह़ो चुका है? - 6 असली अननल कपूर - मुदित श्ीवास्तव - 7 एक निी के मुहाने पर - सी एन सुब्रह्मण्यम् -11 भूलभुलैया - 13 बच्ा रस़ोईघर - ननघत - 14 गममी के दिन - प्रतीक ततवारी - 17 जिस दिन मैं बनी... - ववनता ववश्वनाथन - 18 हाम़ोन्ु - इज्ता िेबनाथ बबस्ास - 21 िामुन - रामकरन - 24 तुम भी िाऩो - 25 स़ोहम भी िलपरी - हर्षवर्षन कुमार - 26 मंज़ूर - गीता रुववे - 27 ब़ोरेवाला - ियश्ी कलातथल - 30 मेरा पन्ा - 34 माथापच्ी - 38 जचत्रपहेली - 40 भारतीय वन्यिीव वीदिय़ो कॉन्फरेंस - ऱोहन चक्वतमी - 43 बुब़िया के बाल - मेराि रज़ा - 44 3 जून 2020 मुल़ाक़ात चचत्रक़ार अनुज़ात के स़ाथ अनुजात ने ग्ारह साल की उम्र में एक ऐसी पेंटिंग बनाई जजसक े जलए वह अब दुनन्ा भर में पहचाना जा रहा है। पेंटिंग थी — ‘माइ मदर एण्ड द मदस्स इन द नेबरह ु ्ड’। मेरी म़ाँ और पडोसी मॉंएँ पनद्रह साल का अनुजात अभी दसवीं में पढ़ता है। जब वह एलकेजी में था तभी उसने पेंमटंग की दुमनया में कदम रख मदया था। खुद से ड्ाइंग करते-करते वह सीखता गया। उसने मकसी मासटर से मशक्ा नहीं ली। उसके मममी-पापा को उस पर बहुत भरोसा था और यही उसकी सबसे बडी ताकत थी। महज़ नौ-दस साल की उम्र से ही वह अपनी कला के मलए पहचाना जाने लगा। अनुजात के मलए सबसे खास पल वो था जब माँओं पर उसकी बनाई एक पेंमटंग को केरल सरकार ने अपने 2020- 2021 के जेंडर बजट डॉकयूमेंट का आवरण मचत्र बनाया। अनुजात के साथ फोन पर हुई मेरी बातचीत का कुछ महससा तुम यहाँ पढ़ सकते हो... अपनी बनाई हुई पेंमटंगस में से तुमहारी सबसे पसनदीदा पेंमटंग कौन-सी है? मैंने बकमरयों की पेंमटंग की एक सीरीज़ बनाई थी — ‘माइ गोटस एणड देयर लाइफ’। मुझे वो बहुत पसनद है और उसमें से सबसे ज़यादा पसनद तरबूज़ों के साथ बकरी का मचत्र है। कारण है मचत्र में उभरते हुए रंग। इस सीरीज़ को बनाने का खयाल तुमहें कैसे आया? मैंने सबसे पहले एक प्रदशयूनी (एमकज़मबशन) के मलए बकरी की एक पेंमटंग बनाई थी। उसके बाद हमें लगा मक कयों न इसकी एक सीरीज़ बनाई जाए। बस मफर वहीं से मैंने ऐसी कई और पेंमटंग बनानी शुरू कीं। माँओं को लेकर तुमने जो पेंमटंग बनाई है उसके बारे में कुछ बताओ। हम हमेशा अपने आसपास अपनी माँओं को देखते हैं — काम करते हुए और कई परेशामनयाँ झेलते हुए। कपडे धोते हुए, खाना बनाते हुए। मैंने भी अपने आसपास हमेशा यही देखा और इसे पेंमटंग में उतार मदया। हम इन चीज़ों को अपने आसपास होते हुए देखते तो हैं, मफर भी अनदेखा कर देते हैं। तुमहारे पसनदीदा मचत्रकार कौन हैं और उनका काम तुमहें कयों पसनद है? मुझे माइकल एंजलो और दा मवनची की पेंमटंग पसनद हैं। उनकी पेंमटंग का सटाइल मुझे पसनद है और जब भी मैं उनकी पेंमटंग देखता हूँ तो मुझे प्रेरणा ममलती है। अनुजात का मानना है मक हम जो भी अपनी आँखों से देखते हैं उसका हमें मचत्र बनाना चामहए। हमारे आसपास कया हो रहा है उसको अपने मचत्रों में उतारना चामहए। काममपमटशन या माककेट वकयू को मदमाग से हटाकर मसफयू जो मदख रहा है उसे बनाना चामहए। जब अनुजात पेंमटंग नहीं कर रहा होता है तो फुटबॉल और वीमडयो गेमस खेलना बेहद पसनद करता है। ससजत़ा ऩायर जून 2020 45 जून 2020 स्ोत फरीचस्स से स़ाभ़ार कया तुमको कभी ऐसा लगा है मक जो दृशय तुम अभी देख रहे हो वह पहले भी देख चुके हो या जो घटना अभी तुमहारे साथ घट रही है हूबहू वही घटना तुमहारे साथ पहले भी घट चुकी है? इस आभास को देजा वयू कहते हैं। देजा वयू फ्ेंच शबद हैं मजनका मतलब है ‘पहले देखा गया’। सवाल यह है मक देजा वयू का एहसास होता कयों है? आम तौर पर इस एहसास को रहसयमयी और असामानय माना जाता है। अलबत्ा, इसे समझने के मलए वैज्ामनकों ने कई अधययन मकए हैं। प्रयोग के मलए सममोहन (महपनोमसस ) और आभासी यथाथयू (वचुयूअल मरएेमलटी ) के इसतेमाल से ऐसी मसथमतयाँ उतपन् की गई हैं मजनमें देजा वयू का एहसास हो। इन प्रयोगों से वैज्ामनकों का अनुमान था मक देजा वयू एक सममृमत आधामरत घटना है। यानी देजा वयू में हम एक ऐसी मसथमत का सामना करते हैं जो हमारी मकसी वासतमवक सममृमत के समान होती है। लेमकन उस सममृमत को हम पूरी तरह याद नहीं कर पाते हैं तो हमारा ममसतषक हमारे वतयूमान और अतीत के अनुभवों के बीच समानता पहचानता है। और हमें एहसास होता है हम इस मसथमत से पमरमचत हैं। कुछ अनय प्रयास भी हुए हैं यह बात समझाने के मलए मक हमारी सममृमत ऐसा वयवहार कयों करती हैं। कुछ लोग कहते हैं मक यह हमारे ममसतषक के कनेकशन में घालमेल का नतीजा है जो लघुकालीन सममृमत (शॉटयू टमयू मेमोरी) और दीघयूकालीन सममृमत (लाॅनग टमयू मेमोरी) के बीच गडबड पैदा कर देता है। यानी मक पुरानी यादों और हाल ही में हुई घटनाओं की यादों में गडबड। इस कारण बनने वाली नई सममृमत लघुकालीन सममृमत में बने रहने की बजाय सीधे दीघयूकालीन सममृमत में चली जाती है। जबमक कुछ लोगों का कहना है मक हमारा ममसतषक मकसी सममृमत के नदारद होने पर भी कभी-कभी इसके होने के संकेत देता है। एक अनय मसद्ानत के अनुसार देजा वयू झूठी यादों से जुडा मामला है, ऐसी यादें जो वासतमवक महसूस होती हैं लेमकन होती नहीं। ठीक सपने और वासतमवक घटना की तरह। एक अनय अधययन में लोगों को देजा वयू का एहसास कराया गया और उस समय उनके ममसतषक को MRI की मदद से सकैन मकया गया। इस अधययन में मदलचसप बात यह पता चली मक देजा वयू के वकत ममसतषक का सममृमत के मलए मज़ममेदार महससा समक्य नहीं था बम्क ममसतषक का मनणयूय लेने वाला महससा समक्य था। वैज्ामनक अब तक देजा वयू को सममृमत से जोडकर देख रहे थे। हमें अभी भी पता नहीं मक देजा वयू का कया फायदा हो सकता है। लेमकन हमें इतना तो पता है मक यह शायद सभी लोगों को नहीं होता। कुछ लोगों का मानना है मक ऐसे लोगों के ममसतषक शायद ज़यादा सशकत हैं। जून 2020 6मजसे देखो वो आज काम पर लगा हुआ था। वैसे तो रोज़ ही सकूल की साफ-सफाई सब ममलकर मकया करते थे पर आज सबके हाथों में एक अलग ही तेज़ी थी और चेहरों पर चमक भी। सबसे पहले महेश सकूल आया। चार दोसतों की चाणडाल चौकडी में महेश ही था जो समय का बडा पाबनद था। फौजी बनना चाहता था। सबसे पहले उसी ने गौर मकया मक टीचसयू और बचचे बडी ही लगन के साथ लगे हुए हैं। थोडी देर में आननद और लखन भी आ गए। वो भी यह सब देखकर हैरान थे। दोनों ने आँखों ही आँखों में महेश से पूछा, “भैया जो का चल रओ?” महेश ने कनधे उचकाकर आँखों ही आँखों में जवाब मदया, “मुझे का पतो?” चौकडी के तीन मेमबर तो साथ थे और तीनों को ही लगा था मक ममसटर इंमडया यानी मक चौकडी के चौथे मेमबर को तो पता ही होगा मक आमखर ये हो कया रहा है। दरअसल ग्ुप में वह एक ऐसा बनदा था मजसे हर बात की खबर होती थी। वो ममयाँ पता नहीं कहाँ से खबर जुगाड के लाते थे और खबर पुखता भी होती थी। ऐसा नहीं था मक ममयाँ फेंक रहे होते थे। इसमलए तीनों इस चौथे मेमबर का इनतज़ार बेसब्री से करने लगे। प्राथयूना की घणटी बजी और सब लोग काम छोडकर लाइन में लग गए। इतने में ही ममसटर इंमडया आया और लाइन में महेश के पीछे लग गया। महेश के आगे लखन और पीछे आननद लगा हुआ था। अब चाणडाल चौकडी पूरी हो चुकी थी। ममसटर इंमडया ने धीरे-से महेश के कान में फुसफुसाकर कहा, “अमनल कपूर।” महेश के होश उड गए। वो बोला, “कया? अमनल कपूर?” ममसटर इंमडया बोला, “अबे अमनल कपूर आ रओ है। अपने गाँव में शूमटंग है...” दरअसल लककी, मट्लू, तोपमसंह और सलीम ये चारों अमनल कपूर के दीवाने थे। बात कुछ यूँ थी मक ये चौकडी मजस गाँव में रहती थी वहाँ ना तो मबजली सही से हुआ करती थी और ना ही हर घर में टीवी था। लेमकन गाँव के लोग मसनेमा के दीवाने थे। मसनेमा देखने शहर जाया करते और मफर लौटकर हफतों तक उस मसनेमा की बातें बाकी गाँववालों को सुनाया करते। जैसे मक फलाँ मफ्म में हीरो ने ऐसे कपडे पहने थे और फलाँ मफ्म में मवलेन की हेयर सटाइल वैसी थी। लेमकन एक बार पटेल सुरजन मसंह गाँव में वीसीआर नाम की बला लेकर आए। तो अब हफते में एक बार, ज़यादातर शमनवार को इस वीसीआर पर मफ्में देखी जातीं। गाँव के बीचोंबीच चौपाल पर जैसे-तैसे मबजली के तारों की ऐंठा-मुररी करके टीवी को सेट मकया असली अननल कपूर मुफदत श्ीव़ास्तव चचत्र: शुभम लखेऱा 7 अप्रैल 2020 जाता। शहर से कैमसट मकराए पर लाई जातीं और मफर शुरू होता मसनेमा। रात भर यह महमफल जमी रहती। बचचे-बूढ़े, सास-बहू, बाप-बेटा, मामलक-नौकर, गाय-बछडे सब साथ ममलकर मसनेमा देखते। एक मदन सुरजन भैया अमनल कपूर की चार मफ्में ले आए — तेज़ाब, मत्रमूतरी, राम लखन और ममसटर इंमडया । अपनी चाणडाल चौकडी भी मसनेमा की दीवानी थी। एक ही रात में अमनल कपूर की चार मफ्में देखकर ये चारों अमनल कपूर के जबरा फैन हो चुके थे। अब इन लोगों ने मकरदारों के महसाब से अपने- अपने नाम बदल मलए। चूँमक लककी को फौज में जाने का बडा मन था तो तेज़ाब देखने के बाद उसने अपना नाम महेश रख मलया। मट्लू मतकडमबाज़ी में मामहर था और गाँव के राशनवाले की लडकी उसे पसनद थी तो वो बन गया लखन। ऐसे ही मत्रमूतरी का आननद, तोपमसंह बन गया और इन तीनों ने ममलकर सलीम को ममसटर इंमडया बना मदया कयोंमक वह ज़यादातर गायब ही रहता था और पता नहीं कहाँ से खबरें ले आता था। मानो वह ममसटर इंमडया की तरह गायब होकर सारी खबरें सुन लेता हो। तो ममसटर इंमडया ने बताया मक अमनल कपूर, बोले तो अपना अमनल कपूर अपने गाँव आने वाला है। और शूमटंग भी अपने सकूल के सामने वाले मैदान में ही होगी। इसीमलए इतनी साफ-सफाई चल रही है। मैदान में जो हनुमानजी का छोटा-सा ममनदर है उसके सामने दंगल के मलए मैदान बनाया जाना है। शूमटंग में दंगल की फाइट का सीन मफ्माया जाना है। बाकी तीनों को इस खबर पर मवशवास ही नहीं हो रहा था। तभी प्राथयूना खतम होने के बाद मप्रंमसपल सर ने इस बात को और मवसतार से बताया मक अगले 15-20 मदनों में जून 2020 8हमारे सकूल के मैदान में एक मफ्म की शूमटंग होनी है। इसमलए कक्ाएँ अलग समय पर लगेंगी और हो सकता है मक न भी लगें। चारों की बाँछें तो तब मखल गईं जब उनहोंने यह सुना मक आप लोगों को भी मफ्म में शाममल मकया जा सकता है तो अचछे-से तैयार होकर सकूल आया करें। लेमकन उनकी बातों में कहीं भी अमनल कपूर का मज़क् नहीं था… चारों को रात भर नींद नहीं आई। अगले मदन सुबह से ही गाँव में बहुत चहल-पहल थी। सकूल के मैदान में भीड जमा थी। दो-चार बसें, एक-दो जीपें, बडे-बडे कुछ सामान, कैमरा, ट्ाॅली और भी पता नहीं कया-कया तो मौजूद था वहाँ पर। एक गोल टोपी वाला आदमी माइक मलए बार-बार कह रहा था, “हमें आप सभी का सहयोग चामहए। पलीज़ आप सब लोग शामनत से शूमटंग देखें। यहाँ पर एक दंगल का सीन तैयार मकया जा रहा है। मबना आप लोगों के सहयोग के हम ये नहीं शूट कर पाएँगे...” थोडी ही देर में एक गाडी आई। उसमें से एक बनदा बाहर मनकला मजसके मलए एक छतरी तुरनत आ गई कयोंमक धूप थी। गाडी से उतरते ही उसने यहाँ-वहाँ देखा और “इटस टू हॉट महयर” ऐसा कुछ बोला। वो बनदा कौन था, पता नहीं। लेमकन वो अमनल कपूर नहीं था यह अपनी चौकडी को पता चल चुका था। अरे! अपनी चौकडी अमनल कपूर की इतनी दीवानी थी मक उसकी शकल देखे मबना उसकी चाल-ढाल और आवाज़ से ही पहचान ले मक वो अमनल कपूर है या नहीं। शूमटंग चल रही थी। टेक पर टेक हो रहे थे। दंगल- दंगल खेला जा रहा था। लाइटस थीं, कैमरा था, गाँव के बीचोंबीच चौपाल पर जैस े -तैस े नबजली के तारों की ऐंठा-मुररी करक े िीवी को सेि टक्ा जाता। शहर से क ै जसि टकराए पर लाई जातीं और टिर शुरू होता जसन े मा। रात भर ्ह महटिल जमी रहती। बचच े -बूढ़ े , सास-बह ू , बाप-बेिा, माजलक-नौकर, गा्-बछड़े सब साथ नमलकर जसनेमा देखते। 9 जून 2020 Next >