कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के स्टेम कोशिका शोधकर्ताओं ने बचपन की एक गंभीर बीमारी के लिए जीन-आधारित उपचार विकसित करने में सफलता प्राप्त की है। अब इसे नियामक संस्थाओं (जैसे यूएस के खाद्य व औषधि प्रशासन) के समक्ष स्वीकृति के लिए पेश किया जाएगा।
कुछ बच्चे एडीनोसिन डीअमीनेज़ के अभाव के कारण होने वाली गंभीर प्रतिरक्षा गड़बड़ी के साथ पैदा होते हैं। इसे संक्षेप में ADA-SCID कहा जाता है मगर डॉक्टर इसे ‘बबल शिशु’ रोग कहते हैं क्योंकि इस विकार से पीड़ित बच्चे को इनक्यूबेटर में रखना होता है। इन बच्चों का प्रतिरक्षा तंत्र ठीक से काम नहीं करता और छोटे-मोटे संक्रमण भी इनके लिए जानलेवा साबित हो जाते हैं। यदि उपचार न किया जाए तो बच्चा एक साल भी जीवित नहीं रह पाता।
बबल शिशु रोग के लिए यह जीन-उपचार डॉ. डोनाल्ड कोन ने विकसित किया है। तीन साल तक प्रयोग करने के बाद कोन उपचार का पूरा क्रम विकसित कर पाए हैं। अब तक क्लीनिकल जांच के दौरान 18 बच्चों का इलाज इस तकनीक से किया जा चुका है।
आम तौर पर च्क्क्ष्क़् से पीड़ित बच्चों में रोग की पहचान 6 माह की उम्र से पहले नहीं हो पाती। ये बच्चे संक्रामक रोगों के प्रति बहुत दुर्बल होते हैं। यहां तक कि साधारण जुकाम भी जानलेवा साबित हो सकता है। इस रोग में कोशिकाएं एक एंज़ाइम - एडिनोसिन डीअमीनेज़ नहीं बना पातीं। यह एंज़ाइम स्वस्थ श्वेत रक्त कोशिकाओं के निर्माण के लिए अनिवार्य होता है। श्वेत रक्त कोशिकाएं प्रतिरक्षा तंत्र का आधार हैं।
फिलहाल एकमात्र उपचार यह है कि ऐसे व्यक्तियों को हफ्ते में दो बार उक्त एंज़ाइम का इंजेक्शन दिया जाए। यह उपचार जीवन भर चलता रहता है और काफी महंगा है। दूसरा विकल्प है अस्थि मज्जा का प्रत्यारोपण जो अपने आप में एक मुश्किल प्रक्रिया है।
लिहाज़ा 2009 से कोन व उनके दल ने दो क्लीनिकल परीक्षण किए। इनमें 18 ऐसे बच्चे शामिल किए गए थे जिनमें एडिनोसिन डीअमीनेज़ का अभाव था। खुद मरीज़ की अस्थि मज्जा से खून की स्टेम कोशिकाएं निकाली गईं और जेनेटिक इंजीनियरिंग की मदद से उन्हें दुरुस्त किया गया। ये कोशिकाएं फिर से उनके शरीर में डाल दी गईं। सारे 18 बच्चे रोगमुक्त हो गए।
यह बहुत प्रसन्नता की बात है क्योंकि एक ओर तो च्क्क्ष्क़् ग्रस्त बच्चों का इलाज संभव हो गया, मगर उससे भी ज़्यादा खुशी की बात है कि जीन-उपचार की दिशा में हम एक कदम आगे बढ़े हैं। उदाहरण के लिए, अब एक अन्य जेनेटिक रोग - सिकल सेल एनीमिया - के संदर्भ में इस तकनीक का क्लीनिकल परीक्षण संभव हो गया है। (स्रोत फीचर्स)