भारत डोगरा
अगले कुछ दशक दक्षिण एशिया क्षेत्र के लिए कितने खतरनाक हो सकते हैं और इन खतरों को कम करने के लिए कितनी तैयारी की ज़रूरत हो सकती है इसका एक अंदाज़ हाल ही में संयुक्त राष्ट्र संघ विकास कार्यक्रम द्वारा जारी की गई ग्लोबल एन्वायरमेंट आउटलुक रीजनल असेसमेंट रिपोर्ट से लगाया जा सकता है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि वर्ष 2050 तक भारत के समुद्र तटीय क्षेत्रों में समद्री जल-स्तर बढ़ जाने के कारण वहां रहने वाले लगभग 4 करोड़ लोगों के संकटग्रस्त होने की संभावना है। इसी तरह बांग्लादेश में समुद्र का जल-स्तर बढ़ जाने से लगभग 2 करोड़ 50 लाख लोगों के संकटग्रस्त होने की संभावना भी है।
पाकिस्तान के बारे में अनेक अध्ययनों ने ध्यान दिलाया है कि यह देश जलवायु बदलाव के अनेक तरह के प्रतिकूल असर के प्रति बहुत संवेदनशील है। जैसे कि ग्लेशियरों का पिघलना, बाढ़ व सूखे के संकट का अधिक उग्र होना आदि। टापूनुमा देशों जैसे श्रीलंका व मालदीव की स्थिति जलवायु बदलाव के दौर में सबसे चिन्ताजनक मानी गई है। मालदीव के सामने तो अस्तित्व मात्र को बचाने का बहुत बड़ा सवाल है। हिमालय क्षेत्र के देशों व क्षेत्रों के लिए भी जलवायु बदलाव का दौर चिन्ताजनक माना गया है।
दक्षिण एशिया में जलवायु बदलाव के दौर में भीषण गर्मी का प्रकोप कहीं अधिक उग्र होने की पूरी संभावना है और इसके साथ ही कई गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं भी जुड़ी हैं। साथ ही खेती, पशुपालन व कई अन्य आजीविकाओं पर भी इस बढ़ते पारे का प्रतिकूल असर पड़ेगा और खाद्य सुरक्षा पर भी। सबसे गंभीर परिणाम समुद्र का जल स्तर बढ़ने से जुड़े हैं।
दक्षिण एशिया का समुद्र तटीय क्षेत्र जहां एक ओर काफी बड़ा है वहीं दूसरी ओर इसकी आबादी भी बहुत घनी है। ग्रामीण आबादी और वह भी काफी घनी आबादी समुद्र तट क्षेत्र में काफी आगे तक है जबकि मुंबई, कोलकता और ढाका जैसे कई बहुत घनी आबादी के तटीय शहर भी मौजूद हैं। डेल्टा का कुछ क्षेत्र अत्यधिक भूजल दोहन के कारण नीचे धंस रहा है। इस स्थिति में समुद्र जल स्तर बढ़ने पर काफी विनाश की संभावना व्यक्त की जा रही है।
विश्व स्तर पर इस बारे में सबसे प्रामाणिक दस्तावेज़ इंटर गवर्नमेंट पैनल ऑन क्लायमेट चेंज की पांचवी और नवीनतम मूल्यांकन रिपोर्ट है जिसके अध्ययन से यह स्पष्ट हो जाता है कि एक ओर तो जलवायु बदलाव की समस्या बहुत गंभीर रूप ले रही है तथा दूसरी ओर इसके बहुत प्रतिकूल परिणाम विशेष तौर से दक्षिण एशिया में नज़र आने की पूरी संभावना है।
इन नई चुनौतियों का सामना करने की दक्षिण एशिया की तैयारी अभी तक बेहद अपर्याप्त है और इस तैयारी को उच्च प्राथमिकता देना बहुत ज़रूरी हो गया है। ज़रूरत है आपसी तनाव और कलह की राह को छोड़कर दक्षिण एशिया के सभी देश आपसी सहयोग की राह को अपनाएं ताकि समय रहते नए उभरते संकटों व चुनौतियों का सामना करने की कहीं बेहतर तैयारी की जा सके। निश्चय ही इस तरह का सहयोग स्थापित होने के अनेक अन्य महत्वपूर्ण लाभ भी मिलेंगे। (स्रोत फीचर्स)
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Srote - August 2016
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