नवनीत कुमार गुप्ता
भोजन की थाली में विभिन्न पोषक तत्वों का होना स्वास्थ्य के लिए अहम होता है। इसलिए सदियों से, अनजाने में ही सही, कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, विटामिन, वसा एवं अन्य सूक्ष्म पोषक तत्व युक्त खाद्य सामग्रियों को आहार में शामिल किया गया है। हर देश में चाहे भोजन का स्वरूप एवं स्वाद अलग हो लेकिन कोशिश यही रहती है कि शरीर के पोषण के लिए आवश्यक हर तत्व आहार में शामिल हो सके।
भारतीय थाली में दाल अभिन्न रूप से जुड़ी रही है। चाहे बात दाल-रोटी की हो या दाल-चावल की, हर भारतीय का खाना दाल के बिना अधूरा होता है। असल में दाल प्रोटीन का अहम स्रोत है। इसलिए दाल को प्राचीन काल से हमारी थाली में शामिल किया गया है। इसके अलावा कृषि प्रधान देश होने के कारण भी हमारे यहां सदियों से दालों का उत्पादन और उपभोग किया जाता रहा है। हमारे यहां अरहर, उड़द, मूंग, चना, मटर, मसूर, मोठ, राजमा आदि दालें काफी पसंद की जाती है। दालों से बने व्यंजनों जैसे दाल-मखनी, दाल-तड़का, गुजराती दाल आदि के भी सैकड़ों प्रकार होंगे। हमारे देश में अलग-अलग क्षेत्रों में दाल बनाने के बर्तन भी अलग-अलग मिल जाएंगे। कहीं पर हांडी मिलेगी तो कहीं पर कड़ाही। यानी दालें हमारी विविधता में एकता का प्रतीक है। और हां, मीठे के शौकीनों के लिए दालों से बनने वाले विभिन्न प्रकार के लड्डू भी काफी पसंद किए जाते हैं।
विकसित और विकासशील दोनों तरह के देशों में दलहनी फसलें किसानों के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। विश्व का आधे से अधिक दलहन उत्पादन विकासशील देशों द्वारा किया जाता है। अकेला भारत ही कुल वैश्विक उत्पादन में लगभग एक चौथाई की हिस्सेदारी रखता है।
दालें विकासशील देशों में निम्न-वसा, उच्च रेशा युक्त प्रोटीन का अहम स्रोत हैं। ये उन स्थानों में अति महत्वपूर्ण प्रोटीन स्रोत हैं जहां अजैविक उत्पादों से प्रोटीन की पूर्ति की जाती है। इसके अलावा दालों से कैल्शियम, लौह और लायसिन जैसे महत्वपूर्ण सूक्ष्म पोषक तत्व भी मिलते हैं।
दलहन उत्पादन का 60 प्रतिशत मानवीय उपयोग के काम आता है। लेकिन दालों के बारे में महत्वपूर्ण बात यह है कि मानव आहार में इनकी मात्रा और इनका प्रकार हर क्षेत्र के हिसाब से अलग-अलग देखा गया है। विकासशील देशों में जहां कुल आहार में दालों की मात्रा 75 प्रतिशत है वहीं विकसित देशों में इनकी मात्रा केवल 25 प्रतिशत है। कुल उत्पादन में से कुछ प्रतिशत मात्रा का उपयोग जानवरों के आहार के रूप में किया जा रहा है।
दलहनी फसलें कई प्रकार से धारणीय विकास में योगदान देती हैं। फसल चक्रण की दृष्टि से दलहनी फसलें महत्वपूर्ण हैं। इन फसलों को अधिक उर्वर मिट्टी की आवश्यकता नहीं होती है। अनेक दालें मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने में भी अहम योगदान देती हैं। मिट्टी में नाइट्रोजन स्थिरीकरण करने के कारण दालें मृदा उर्वरता में अहम भूमिका निभाती हैं। इनसे मिट्टी में ऐसे सूक्ष्मजीवों की वृद्धि होती है जो फसल की उपज को बढ़ाने में सहायक होते हैं। इसके अलावा दालें प्रोटीन का ऐसा स्रोत है जिनसे कार्बन फुटपिं्रट में कम वृद्धि होती है। अन्य प्रोटीन स्रोतों की तुलना में इन्हें पानी भी कम चाहिए होता है। एक किलोग्राम मांस, चिकन, सोयाबीन का उत्पादन करने में दालों की तुलना में क्रमश: 18, 11 और 5 गुना अधिक पानी लगता है। इसी तरह प्रोटीन के अन्य स्रोतों की तुलना में इनके उत्पादन में होने वाला कार्बन उत्सर्जन भी काफी कम होता है।
दलहनी फसल के वैश्विक उत्पादन की मात्रा अलग-अलग है। दलहन का औसत वैश्विक उत्पादन 2010 में 819 किलोग्राम प्रति हैक्टर था जबकि भारत में इसकी मात्रा बहुत कम, 600 किलोग्राम प्रति हैक्टर थी। इसी दौरान अमेरिका और कनाडा में यह दर 1800 किलोग्राम प्रति हैक्टर थी।
हमारे देश में वर्ष 2015 कृषि क्षेत्र के लिए एक चुनौतीपूर्ण साल था। देश के कई हिस्सों में रुखे मौसम और सूखे के कारण किसानों के लिए यह परेशानी भरा साल लगातार दूसरा वर्ष था। दक्षिण-पश्चिमी मानसून 2015 में लंबी अवधि औसत के सामान्य स्तर से 14 प्रतिशत कम रहा, जिसका असर खरीफ फसलों पर पड़ा। इसके बाद जो उत्तर-पूर्वी मानसून आया, वह तमिलनाड़ु एवं आसपास के क्षेत्रों में भारी विनाश का कारण बना। इससे वहां अभूतपूर्व बाढ़ का संकट आया। वैसे दाल एवं तिलहनों का उत्पादन पिछले कई वर्षों से मांग की तुलना में लगातार कम होता रहा है। दालों का उत्पादन 2014-15 में 192.4 लाख टन से कम होकर 172.0 लाख टन रह गया।
इसी के चलते अरहर की कीमतें एक साल पहले के 75 रुपए प्रति किलोग्राम से उछल कर 199 रुपए प्रति किलोग्राम तक पहुंच गई और अभी भी ये कीमतें नियंत्रण के बाहर हैं। न केवल अरहर, उड़द की कीमतें बल्कि खुदरा बाज़ार में लगभग सभी प्रमुख दालों की कीमतें वर्तमान में भी लगभग 140 रुपए प्रति किलोग्राम के आसपास बनी हुई हैं। ऐसी स्थिति को देखते हुए सरकार को दालों की उपलब्धता के लिए बार-बार बाज़ार में हस्तक्षेप करने को बाध्य होना पड़ा है।
किसानों के लिए एक अच्छी खबर यह रही कि पिछले वर्ष सरकार ने प्रमुख दालों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में 275 रुपए प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी की। इसके अलावा दालों के बढ़ते भावों की स्थिति पर नियंत्रण करने के लिए सरकार ने 500 करोड़ रुपए की एक संचित राशि के साथ एक मूल्य स्थिरीकरण कोश की स्थापना की है।
असल में विभिन्न प्रोषक तत्वों की एक निश्चित मात्रा हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए आवश्यक होती है। प्रोटीन भी हमारे स्वास्थ्य के लिए एक अहम तत्व है जिसके स्रोतों में दालें, सोयाबीन, दूध, मांस आदि शामिल है। लेकिन पानी की कम आवश्यकता एवं कम कार्बन फुटपिं्रट के कारण दालों को आहार में शामिल करना धारणीय विकास और प्रकृति दोनों के लिए लाभकारी होगा। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 2016 को अंतर्राष्ट्रीय दलहन वर्ष के रूप में मनाया जा रहा है। 23 जनवरी 2016 को तुर्की में आयोजित कार्यक्रम में इसका औपचारिक शुभारंभ किया गया था। (स्रोत फीचर्स)