भारत डोगरा
हाल के समय में आकाशीय बिजली गिरने या व्रजपात की आपदा (लाइटनिंग) का बढ़ना चिंता का विषय बना है। विशेषकर जून के तीसरे सप्ताह में तो यह आपदा राष्ट्रीय स्तर पर चिंता का विषय बन गई जब मात्र दो दिनों (21-22 जून) में देश के विभिन्न भागों से बिजली गिरने से 117 मौतों के समाचार मिले। ये मौतें चार राज्यों बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश में हुईं। केवल बिहार में मात्र 24 घंटों में विभिन्न ज़िलों में 57 मौतों के समाचार मिले। इसके अतिरिक्त बहुत से लोग घायल भी हुए।
संभवत: हाल के समय की सबसे चिंताजनक स्थिति ओडिशा में देखी गई है जहां 1 अप्रैल से 23 जून के बीच वज्रपात से 155 मौतों के समाचार प्राप्त हुए हैं। वर्ष 2015 में भी ओडिशा में लगभग ऐसी ही चिंताजनक स्थिति देखी गई थी जब 5 महीनों में इस कारण होने वाली 240 मौतों के समाचार मिले थे। वर्ष 2010 से 2015 के बीच इस एक राज्य में ही व्रजपात से 1630 मौतें हो चुकी हैं।
ओडिशा के कुछ मौसम वैज्ञानिकों ने कहा है कि दिन के समय जब असामान्य रूप से अधिक तापमान रहता है या असामान्य रूप से अधिक गर्मी होती है तो गर्जन वाले तूफान की संभावना बढ़ जाती है। अप्रैल से जून के बीच यह प्रवृत्ति बढ़ जाती है।
कई वैज्ञानिकों ने पहले भी विश्व स्तर के अध्ययनों में बताया है कि जलवायु बदलाव व ग्लोबल वार्मिंग के दौर में वज्रपात की आपदाएं बढ़ जाएंगी। ऐसा एक अध्ययन कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में डेविड रांपस के नेत्तृत्व में हुआ है व दूसरा अध्ययन इस्राइल में प्रो. कालिन राइस के नेत्तृत्व में हुआ है। इन अध्ययनों में बताया गया है कि औसत तापमान में 1 डिग्री सेल्सियस वृद्धि से बिजली गिरने में 10 से 12 प्रतिशत की वृद्धि हो सकती है।
सरकारी आंकड़े बताते हैं कि भारत में प्रति वर्ष लगभग दो-ढाई हज़ार लोग बिजली गिरने की घटनाओं में मारे जा रहे हैं। पिछले एक दशक में लगभग 25,000 लोग इन आपदाओं में मारे गए जो काफी त्रासद है। उचित बचाव कार्यों से व सावधानियों से इस त्रासदी को काफी कम किया जा सकता है।
संयुक्त राज्य अमेरिका हमसे साइज़ में काफी बड़ा देश है व वहां बिजली गिरने की काफी घटनाएं होती हैं, पर वहां इस कारण मात्र 51 मौतें एक वर्ष में होती हैं जबकि हमारे देश में इस कारण एक वर्ष में 2500 मौतें होती हैं।
अत: यह ज़रूरी है कि भारतीय स्थिति के अनुकूल विभिन्न सावधानियों की सूची तैयार की जाए व इनका पर्याप्त प्रचार-प्रसार किया जाए।
हाल के एक अध्ययन में पिछले 45 वर्षों के दौरान (1967-2012) भारत में पांच बड़ी प्राकृतिक आपदाओं से होने वाली मौतों के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया है। फैसल इलियास, केशव मोहन, शिबु मणि व ए.पी. प्रदीप कुमार द्वारा किए गए इस अध्ययन में बताया है कि इन आपदाओं में से 39 प्रतिशत मौतें वज्रपात से, 18 प्रतिशत बाढ़, 15 प्रतिशत भू-स्खलन, 15 प्रतिशत लू लगने व 13 प्रतिशत ठंड से हुईं।
वज्रपात सम्बंधी वैज्ञानिक अनुसंधान व ज़रूरी जानकारियां एकत्र करने के कार्य को आगे बढ़ाना चाहिए। इस आपदा से होने वाली क्षति को कम करने का एक महत्वपूर्ण उपाय तो यही है कि जिन भवनों में बड़ी संख्या में लोग एकत्र होते हैं, वहां अच्छी गुणवत्ता के तड़ित चालक ज़रूर लगने चाहिए। ऐसे उपकरण पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होने चाहिए व इनका समुचित उत्पादन अपने देश में होना चाहिए। विशेषकर स्कूलों व अस्पतालों में ये उपकरण अवश्य लगने चाहिए। झारखंड में वज्रपात के सबसे दर्दनाक हादसे स्कूलों में ही हुए हैं।
जो क्षेत्र बिजली गिरने की आपदा से प्रभावित हो रहे हैं वहां के अस्पतालों में इस आपदा से प्रभावित लोगों के उपचार की बेहतर व्यवस्था करनी चाहिए। ऐसी आपदाओं में जो लोग घायल होते हैं उन्हें शीघ्र अस्पताल पहुंचाकर इलाज ठीक से होना बहुत ज़रूरी है।
यह स्थिति वास्तव में चिंताजनक है कि प्रांतीय व राष्ट्रीय स्तर पर जो आपदा राहत सहायता प्रावधान हैं उनमें वज्रपात को स्थान नहीं मिला है। इसका अर्थ यह है कि सबसे बड़ी जानलेवा आपदा से प्रभावित लोगों को इन कोशों से सहायता नहीं मिल पाती है। हालांकि प्राय: मुख्यमंत्री राहत कोश से तो सहायता दी जाती है, पर यह आवश्यक है कि सबसे बड़ी जानलेवा आपदा के लिए राज्य व राष्ट्र स्तर के आपदा राहत कोशों से भी ज़रूरी क्षतिपूर्ति व मुआवज़े की व्यवस्था शीघ्र से शीघ्र की जाए। (स्रोत फीचर्स)