कावेरी जल विवाद राज्यों के बीच टकराव का सबब बना है। मगर कई संवेदनशील नागरिकों ने विचार विमर्श के बाद पाया कि यह मामला सिर्फ राज्यों के बीच का नहीं है। वर्तमान समय में पानी का उपयोग ज़्यादा व्यापक नज़रिए की मांग करता है। इसी नज़रिए को एक वक्तव्य के रूप में जारी किया गया है। इस वक्तव्य पर हस्ताक्षर करने वालों में विभिन्न संस्थाओं, संगठनों से जुड़े लोग शामिल हैं। इनके नाम वक्तव्य के अंत में दिए गए हैं।
हम कुछ नागरिक हैं जो कावेरी के पानी के बंटवारे को लेकर बढ़ते टकराव और सार्वजनिक विमर्श में आई गिरावट के प्रति चिंतित हैं। हम मानते हैं कि पूरी नदी घाटी के पानी के प्रबंधन के लिए एक वैकल्पिक दृष्टि और तरीके की ज़रूरत है। जब हम समूची नदी घाटी की बात करते हैं तो यह सिर्फ नदी के दिखने वाले बहाव या सिर्फ राज्यों के बीच बंटवारे की बात नहीं है।
नदी घाटी में एकीकृत जल प्रबंधन की यह दृष्टि संसाधनों के समतामूलक व टिकाऊ उपयोग तथा प्रजातांत्रिक प्रशासन के सार्वभौमिक लक्ष्य से सराबोर होगी, प्राथमिकता के श्रेणीबद्ध सोपानों पर टिकी होगी और घाटी में वर्तमान इकॉलॉजिकल व सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों की बारीक समझ पर आधारित होगी।
पानी के बंटवारे की क्रमिक प्राथमिकताएं
प्रथम, जीवन के लिए पानी - घाटी में समस्त मनुष्यों व पशुओं के लिए पीने, खाना पकाने व स्वच्छता व्यवस्था के लिए पर्याप्त पानी का प्रावधान।
द्वितीय, इकोसिस्टम के लिए पानी - जलीय जीवन व अन्य इकोसिस्टम भूमिकाओं के लिए नदी में पर्याप्त पानी का प्रवाह।
तृतीय, जीविका के लिए पानी - समतामूलक उपयोग व जन स्वास्थ्य को सुरक्षित रखते हुए उत्पादक गतिविधियों के लिए पानी।
चतुर्थ, परिवर्तन के लिए अनुकूलन हेतु पानी - भावी जनांकिक, आर्थिक तथा भूमि उपयोग सम्बंधी परिवर्तनों तथा जलवायु परिवर्तन के लिहाज़ से पानी का आरक्षित भंडार तथा गुंजाइश।
सामाजिक जल विज्ञान की गहन वैज्ञानिक समझ
सतही व भूमिगत जल संसाधन परस्पर एकीकृत तंत्र है, इसलिए उन्हें एकीकृत रूप में ही देखा जाना चाहिए।
भूमि उपयोग में परिवर्तन, भूजल का पंपिंग और अन्य कार्यों में उपयोग, ये सब नदी के प्रवाह को प्रभावित करते हैं, इसलिए समस्त पानी के समतामूलक बंटवारे पर ध्यान दिया जाना चाहिए, न कि सिर्फ नदी के सतही बहाव पर।
साल-दर-साल पानी की उपलब्धता में बदलाव और घाटी में स्थान के अनुसार उतार-चढ़ाव (जैसे दक्षिण-पश्चिम व उत्तर-पूर्वी मानसून में अंतर) का तकाज़ा है कि संकट के वर्षों की नई परिभाषा विकसित की जाए और इन सालों से निपटने की रणनीतियां विकसित की जाएं। यह काम एक पूर्व निर्धारित ढर्रे के आधार पर नहीं किया जा सकता।
जलवायु परिवर्तन की वजह से होने वाले उतार-चढ़ावों और अनिश्चितताओं के चलते पानी के प्रबंधन में ज़्यादा उच्च स्तर की विश्वसनीयता (कम से कम 75 प्रतिशत) ज़रूरी है। और विश्वसनीयता का पैमाना सिर्फ वार्षिक आधार पर नहीं बल्कि ज़्यादा सूक्ष्म समय के स्तर पर बनाना होगा।
पानी के बंटवारे की सहभागितापूर्ण व पारदर्शी प्रक्रिया
कावेरी के पानी का बंटवारा सिर्फ किसी केंद्रीकृत राजनैतिक अथवा नौकरशाही प्रक्रिया के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता; पानी का प्रशासन/प्रबंधन प्रजातांत्रिक, विकेंद्रीकृत और सहभागितापूर्ण होना चाहिए।
सार्वजनिक धन की मदद से किसी भी एजेंसी द्वारा एकत्रित पानी से सम्बंधित सारी जानकारी व आंकड़े - वर्षा, बहकर निकल जाने वाला पानी, वाष्पन, सतही व भूजल भंडार के आंकड़े, भूमि उपयोग, फसलें - सार्वजनिक रूप से उपलब्ध होना चाहिए।
नागरिकों, सिविल सोसायटी संस्थाओं, अकादमिक व राजकीय संस्थाओं के ऐसे संयुक्त नेटवर्क्स को बढ़ावा देना होगा जो इस तरह की सूचनाओं के विश्लेषण व हर स्तर - गांव, कस्बों, तालुका, ज़िला, राज्य व नदी घाटी स्तर - के निर्णयकर्ताओं के बीच प्रसार का काम करते हों।
हम मानते हैं कि ऐतिहासिक रूप से पानी-प्रचुर पर्यावरणों - चाहे वे घाट के अधिक वर्षा वाले क्षेत्र हों या डेल्टा या मुहाने हों - के हिसाब से ढलीं जीविकाएं और कृषि के तौर-तरीके आसानी से बदले नहीं जा सकते। मगर कावेरी घाटी में पिछली सदी के दौरान तकनीकी, आर्थिक व सामाजिक परिवर्तन सामान्य बात रही है। नदी पर पड़ रहे ज़बर्दस्त दबाव का नतीजा पानी के गैर-समतामूलक व गैर-टिकाऊ उपयोग के रूप में सामने आ रहा है और यह जारी नहीं रह सकता। इसलिए पानी के प्रबंधन, संरक्षण, पुन:उपयोग और पुन:आवंटन के प्रयास अनिवार्य हैं।
इस वक्तव्य पर हस्ताक्षर करने वाले हम लोग विभिन्न पृष्ठभूमियों के हैं - समाज विज्ञान व प्राकृतिक विज्ञान, इंजीनियरिंग, नीतिगत पैरवी और कानून, सामुदायिक संगठन, पत्रकारिता तथा विज्ञान लोकप्रियकरण। मगर हम मानते हैं कि कावेरी के पानी का बंटवारा मात्र राजनैतिक, प्रशासनिक या तकनीकी चुनौती नहीं है बल्कि इसके लिए पूरी नदी घाटी को लेकर एक वैकल्पिक दृष्टि और एक ऐसे जानकारी-आधारित सार्वजनिक विमर्श की आवश्यकता है जो टकराव को सहयोग में तबदील कर सके। हम गंभीरता से उम्मीद करते हैं कि कावेरी के पानी के बंटवारे सम्बंधी राजनैतिक, कानूनी और प्रशासनिक कार्रवाइयों में इस वक्तव्य में प्रस्तुत वैकल्पिक दृष्टि, सिद्धांतों व प्रक्रियाओं को अपनाया जाएगा और प्रजातांत्रिक व पारदर्शी ढंग से व्यापक नेटवर्क्स से संवाद बनाया जाएगा। साथ ही इन सिद्धांतों को अन्य नदी घाटियों में भी लागू किया जाएगा। (स्रोत फीचर्स)
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Srote - December 2016
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