भारत डोगरा
इन दिनों विश्व स्तर पर कृषि से जुड़ी कंपनियों में काफी बड़े बदलाव आ रहे हैं। इनमें इस समय सबसे चर्चित यह है कि जर्मनी की विशाल केमिकल कंपनी बेयर विश्व की सबसे बड़ी बीज कंपनी मोनसैंटो को 66 अरब डॉलर में खरीद रही है। अनुमान तो यह है कि यह सौदा इससे कहीं अधिक रकम का है।
यह सौदा पूर्ण तो तभी माना जाएगा जब युरोपीय संघ व संयुक्त राज्य अमेरिका के नियमन संस्थानों की मंज़ूरी मिल जाएगी पर इस विलय से यह स्पष्ट संकेत तो मिल गया है कि बीज व कृषि रसायन क्षेत्र में केंद्रीकरण और ज़्यादा बढ़ सकता है और ये दो क्षेत्र एक-दूसरे के नज़दीक आ सकते हैं।
वैसे यह प्रवृत्ति तो पहले से बढ़ती रही है कि अपना बीज बेचने के साथ-साथ कोई कंपनी उससे सम्बंधित खरपतवारनाशक या कीटनाशक दवा भी बेचने का प्रयास करे। यह प्रवृत्ति जेनेटिक रूप से परिवर्तित (जीएम) फसलों के आने से और तेज़ हुई है क्योंकि इनमें से कई फसलों के बीज विशिष्ट तौर पर किसी विशेष खरपतवारनाशक दवा से जुड़े होते हैं।
बीज के मामले में किसानों की आत्म-निर्भरता कम होने, बीजों के पेटेंट उपलब्ध होने व जीएम फसलों के प्रसार के बाद बीज व कृषि रसायन कंपनियों का व्यवसाय तेज़ी से चंद बड़ी कंपनियों में केंद्रीकृत होने लगा। वर्ष 2011 तक स्थिति यह हो चुकी थी कि विश्व के बीज बाज़ार का 53 प्रतिशत हिस्सा 3 बड़ी बीज कंपनियों के हाथ में सिमट चुका था जबकि कृषि रसायन बाज़ार का 52 प्रतिशत हिस्सा तीन सबसे बड़ी कृषि रसायन कंपनियों के हाथ में आ चुका था।
बेयर-मानसैंटो जैसे विलयों के कारण अब यह केंद्रीकरण और ज़ोर पकड़ रहा है। ऐसा भी नहीं है कि इन सबसे विशाल कंपनियों में मात्र पश्चिमी देशों की ही कंपनियां हैं। इन थोड़ी-सी विशाल कंपनियां के समूह में चीन ने भी डंका बजा कर प्रवेश किया है। इसी वर्ष (2016) के आरंभ में चीन के नेशनल केमिकल कारपोरेशन ने सिनजेंटा एजी को 43 अरब डॉलर में खरीद लिया। संभवत: इससे भी बड़े सौदे में डाऊ केमिकल और ड्यूपांट अपने कृषि व्यवसाय को और विशाल बनाने के समझौते की ओर काफी आगे बढ़ चुकी हैं।
इस बढ़ते केंद्रीकरण से एक बड़ी संभावना यह उत्पन्न हो गई है कि अनेक विकासशील देशों में विशाल कंपनियों के बीजों (विशेषकर जीएम बीजों और कृषि रसायनों) पर आधारित कृषि अपनाने का दबाव बहुत बढ़ जाएगा। यह भारत जैसे कुछ देशों में यह अभी से महसूस होने लगा है जहां जीएम खाद्य फसलों को स्वीकृति देने के लिए दबाव बहुत बढ़ गया है।
इस स्थिति में यह पहले से और ज़रूरी हो गया है कि कृषि को पर्यावरण की रक्षा के अनुकूल बनाने के प्रयासों और साधारण किसानों की हकदारी के प्रयासों को और मज़बूत किया जाए। यदि कृषि तंत्र पर मात्र कुछ विशाल कंपनियों का वर्चस्व छा गया, तो इससे आजीविकाओं और पर्यावरण दोनों की बहुत क्षति होगी। इस संदर्भ में सचेत रहना बहुत ज़रूरी है। (स्रोत फीचर्स)