मरती हुई मधुमक्खी की गंध इत्र-फुलैल तो नहीं है मगर हाल में हुए अध्ययन से लगता है कि एक पौधे ने इस गंध का उपयोग अपने फायदे के लिए करना सीख लिया है।
फूलधारी पौधों के लिए बहुत ज़रूरी होता है कि वे अपने फूलों के पराग कणों को किसी दूसरे फूल के स्त्रीकेसर तक पहुंचाएं ताकि उस फूल में निषेचन की क्रिया सम्पन्न हो सके और फल व बीज बन सकें। पौधों के प्रजनन में परागण का बहुत महत्व है। कई पौधों के पराग कण हवा या पानी के माध्यम से दूर-दूर तक फैलते हैं और अन्य फूलों पर पहुंचते हैं। कई पौधे इसी काम के लिए कीटों, पक्षियों और जंतुओं की मदद लेते हैं। इन्हें परागणकर्ता कहते हैं।
परागणकर्ता को आकर्षित करने हेतु फूलों के रंग, गंध और उनमें मकरंद की उपस्थिति मददगार होती है मगर कम से कम 5 प्रतिशत पौधे ऐसे भी हैं जो परागणकर्ताओं को लुभाने के लिए धोखाधड़ी का सहारा लेते हैं। एक किस्म की धोखाधड़ी में पौधे के फूल किसी मादा कीट के समान नज़र आते हैं और जब नर कीट इस ‘मादा’ के साथ संभोग करने पहुंचता है तो यह फूल के पराग कण उसके शरीर से चिपक जाते हैं और कीट के साथ अन्य फूलों पर पहुंच जाते हैं।
मगर पैराशूट पौधा (Ceropegia sandersonii)) तो अति कर देता है। इसके फूल एक कीट (Desmometopa) की मादा के व्यवहार का ज़बर्दस्त फायदा उठाता है। यह मादा कीट मधुमक्खियों का रस चूसती है और वह भी ऐसी मधुमक्खियों का जो किसी कीटभक्षी पौधे के जाल में फंसकर मरणासन्न हालत में हो। करंट बायोलॉजी में प्रकाशित शोध पत्र में बताया गया है कि पैराशूट पौधा चार रसायनों के एक मिश्रण का उपयोग इन मधुमक्खियों की नकल उतारने के लिए करता है। ये चार रसायन मिलकर ऐसी गंध पैदा करते हैं जैसी कोई मधुमक्खी तब पैदा करती है जब वह डंक मारती है।
तो पैराशूट पौधे के फूल में से ऐसी ही गंध निकलती रहती है। मादा कीट इससे आकर्षित हो जाती है कि चलो, रस चूसने को मिलेगा, मगर होता यह है कि पैराशूट पौधे के पराग कण उस पर चिपक जाते हैं और वह अनजाने में ही उन्हें अन्य फूलों तक पहुंचाती रहती है। (स्रोत फीचर्स)