< Previousबाकायदा एकशन हो रहा था। लेमकन इन सब में अमनल कपूर कहीं नहीं था। अब अपनी चौकडी इस शूमटंग से मनराश हो रही थी। चारों का मदल टूटा लेमकन शोर इतना था मक आवाज़ बाहर मनकली ही नहीं। जब डायलॉग बोले जाने लगे तो समझ में आया मक मफ्म भोजपुरी है। चार-पाँच मदन तक यही होता रहा। रोज़ अपनी चौकडी शूमटंग की लोकेशन पर टाइम से पहले पहुँच जाती और गामडयों से उतरते हुए लोगों में अमनल कपूर को तलाशती और मनराश होती। ममसटर इंमडया एक मदन मफर एक खबर लेकर आया मक इस मफ्म में अमनल कपूर हीरो नहीं है। वह हीरो के बडे भाई का मकरदार मनभा रहा है। इसमलए वह शहर में मकसी होटल में ही रुका है। चौकडी को अब यहाँ ज़रा भी मज़ा नहीं आ रहा था। तभी एक और वैन वहाँ पर आई और उसमें से बडी-सी हैट लगाए एक आदमी बाहर मनकला। मनकलते ही बोला, “ए मबड़ू एक कडक चाय लेके आना। अदरक जासती माँगता, हाँ?” उसके लमबे, घने बाल उसकी टोपी से बाहर झाँक रहे थे। दाढ़ी भी थी। उसके आते ही शूमटंग रुक गई। सब उसकी तरफ भागे। दंगल रुक गया। शोर भी बनद हो गया। उसने टोपी उतारी और हवाएँ चलने लगीं। उसके लमबे बाल सलो मोशन में लहराने लगे। उसने ढीली शटयू पहनी थी और गले में एक लमबा-सा लॉकेट था। अपनी चौकडी का मुँह खुला का खुला था। “कया यही है अमनल कपूर? ऐसे ही मदखता है?” तोपमसंह बोला। तभी लककी ने कहा, “अबे जेई है बे, अपना हीरो। यार, मकतना गोरा है और लमबा भी!” मट्लू बोला, “यार, जो तो मफमलम में एकदम एसई मदखत है, मडटटो।” तीनों ने ममसटर इंमडया की ओर रुख करके देखा… लेमकन ममसटर इंमडया चुप था और मुसकरा रहा था। उसको पता था लेमकन उसने उन तीनों को नहीं बताया मक वो असली अमनल कपूर नहीं, उसका डुपलीकेट था। नमसिर इंट्ड्ा ने धीरे-से महेश के कान में िुसिुसाकर कहा, “अननल कपूर।” महेश क े होश उड़ गए। वो बोला, “क्ा? अननल कपूर?” नमसिर इ ं ट्ड्ा बोला, “अबे अननल कपूर आ रओ है। अपने गाँव में शूटिंग है...” जून 2020 10सर आथयूर कॉटन की मूमतयू जो डे्टा की शुरुआत में लगी हुई है। कुछ महीनों पहले मैं और मेरे कुछ दोसत कावेरी नदी के मुहाने की यात्रा करने मनकले। यह नदी शुरू होती है कननाटक के कोडगु मज़ले की ब्रमगरी पहामडयों से और बहते-बहते तममलनाडु के समुद्र तट पर पहुँचती है। वहाँ यह एक मवशाल डे्टा बनाकर समुद्र में जा ममलती है। डे्टा — यानी नदी का वह महससा जहाँ इसका बहाव बहुत धीमा हो जाता है और यह कई शाखाओं में बँटकर बहने लगती है। अनत में नदी कुछ मामूली नालों के रूप में समुद्र से जा ममलती है। भूगोल की मकताबों में ये सब बातें पढ़-पढ़कर मुझे यही लगता था मक डे्टा नदी, ज़मीन और सागर के बीच एक प्राकृमतक खेल है। कावेरी नदी के डे्टा पर जाकर और कई मदनों तक नदी के साथ चलकर मुझे समझ आया मक यह डे्टा दरअसल प्राकृमतक नहीं हैं। चपपे-चपपे पर सरकार का मनयंत्रण है और सरकार की अनुममत के बगैर एक बूँद भी इधर से उधर नहीं जा सकती है। अजीब बात है ना! नदी और सागर का ममलना हमें उतना ही सवाभामवक लगता है मजतना मक बादलों का बरसना। मगर नदी के डे्टा के मामले में बात कुछ और ही है। टूटा हुआ बाँध और अस था ई व य वस था नदी पर मनयंत्रण इस तरह से होता है... जहाँ से डे्टा शुरू होता है उससे कुछ सैकडों मकलोमीटर ऊपर सरकार ने बाँध बना रखा है। तो नदी में मकतना पानी कब आएगा, यह सरकारी अमधकारी तय करते हैं। पानी डे्टा के मसरे पर जहाँ पहुँचता है वहाँ रेगुलेटर बने होते हैं यह तय करने के मलए मक मकस नदी में मकतना पानी छोडा जाए। इस मसरे पर दो ही शाखाएँ थीं — कावेरी और कोम्लडम। दोनों पर रेगुलेटर बने हैं, अँग्ेज़ों के समय के। मगर यह कया? कोम्लडम नदी पर बने रेगुलेटर- बाँध का एक महससा तो टूटा हुआ था। एकाध साल पहले वह बामरश के पानी के साथ बह गया था। और अब वहाँ पानी को रोकने के मलए एक असथाई भराई की गई थी। मसंचाई मवशे्ज्ों की चेतावनी को नज़रअनदाज़ करके सरकार ने इसके पास के ही नदी तट से रेत खनन की अनुममत दी थी। इतनी रेत ट्कों में भर-भरकर ले जाई गई मक अगली बामरश में पानी बाँध को ही बहाकर ले गया। हम पहले कावेरी नदी पर बने रेगुलेटर को पार करके ज़मीन के टुकडे पर पहुँचे, और मफर एक बार कोम्लडम नदी पार करके उसके दूसरे मकनारे पर पहुँचे। हमारे साथ एक इमतहासकार थे। उनहोंने हमें बताया मक पास में ही एक जगह से हज़ार साल पुरानी एक नहर शुरू होती है। नदी के एक नदी के मुहाने पर.. शहीद शहीद होती होती मछललय़ाँ मछललय़ाँ सी एन सुब्र�ण्यम् 11 जून 2020 मकनारे पतथर का नाला बना है मजससे पानी को दूर तक ले जाकर खेतों की मसंचाई की जाती है। नहर में एकदम तेज़ी-से पानी बह रहा था और बचचे उसमें कूद-कूदकर तैर रहे थे। बाकी लोग नहा रहे थे। वहाँ से हम चले कोम्लडम नदी के साथ-साथ अगली कडी तक। इस जगह को क्लणै (यानी पतथर का बाँध) कहते हैं। यहाँ कोम्लडम और कावेरी इतने पास आ जाती हैं मक दोनों के मफर से ममल जाने का खतरा पैदा हो जाता है। इसे रोकने के मलए सैकडों साल पहले, दोनों नमदयों के बीच न जाने मकसने यहाँ पतथर का बाँध बनाया था। यहाँ से कुछ आगे जाकर कावेरी नदी दो और शाखाओं में बँट जाती थी। अँग्ेज़ इंजीमनयरों ने तय मकया मक यह शाखाओं में बँटना क्लणै में ही हो तो अचछा है। उनहोंने इसे और मवसतमृत मकया। कई बदलाव मकए। इस तरह अब यहाँ से तीन नमदयाँ बहने लगीं — कावेरी, वेणणार और कोम्लडम। मफर अँग्ेज़ों ने यहाँ से एक मवशाल नहर बनाई, नहर कया समझ लो एक नई नदी ही बना डाली। इस नहर को पुत्ार या नई नदी कहते हैं। यह सूखे इलाकों से बहती हुई, वहाँ के खेतों को सींचती जाती है। मछमलयों पर मनयंत्रण कैसे हो? खैर मैं तो मछमलयों की बात करने चला था। और मछमलयाँ कया जाने सरकार कया है, उसकी ताकत कया है। हम झुककर पानी को देख रहे थे। पानी बाँध-रेगुलेटर से छूटकर बहुत तेज़ बहाव के साथ मनकल रहा था, बाँध-रेगुलेटर और उनसे मनकलने वाली शाखाएँ (एक माॅडल) एक हज़ार साल पुरानी नहर यहाँ से शुरू होती है। क्लणै बॉंध जून 2020 12इतना तेज़ मक चटटान को भी बहाकर ले जाए। वहीं हमने देखा मक लाखों छोटी मछमलयाँ बहाव के मवपरीत बाँध की सीमढ़यों पर कूदे जा रही थीं। पानी के बहाव के साथ नीचे बह रही थीं। तैरकर मफर बाँध पर चढ़ने की कोमशश में छलाँग मार रही थीं। इस कोमशश में हज़ारों मछमलयाँ मरकर एक तरफ पडी थीं, तो हज़ारों और इसी प्रयास में लगी हुई थीं। उनका साहस इतना था मक उनमें से कई मछमलयाँ कूद-फाँदकर बाँध के दूसरी तरफ पहुँच भी रही थीं। दरअसल बहाव के मवपरीत जाने का मछमलयों का यह प्रयास उनकी प्रजनन यात्रा का एक महससा है। कुछ खास महीनों में वे प्रजनन के मलए नदी के ऊपरी महससे में आती हैं। मगर इन रेगुलेटरों व बाँधों के कारण इस यात्रा में रुकावट आ गई। मछमलयाँ तो मूखयू हैं। वे लगी हुई हैं, बाँध को पार करके अपने प्रजनन सथान पहुँचने। उनहें कौन समझाए मक बाँध पार करने के मलए सरकार से अनुममत लेनी पडती है, वरना... प्रजनन यात्रा पर जातीं सै्मोसटोमा, लैमबयो और मसहनाइनस जामत की मछमलयाँ मछली को समुद्र तक पहुँच़ाने क़ा ऱास़्ा ढ ू ँढ़ो। 13 जून 2020 बच़्ा रसोईघर लनघत, बच़्ा रसोईघर क़ाय्सकत़ा्स जब लॉकडाउन हुआ तो ये देखा गया मक यहाँ बमसतयों में सरकार की तरफ से कोई मदद नहीं आई। इसमलए यहाँ ज़मज़म पर एक कमयुमनटी मकचन शुरू मकया गया। मफर यहाँ से बमसतयों में खाना बाँटा जाने लगा। इन बमसतयों में गरीब से गरीब तबके के लोग हैं। अभी ये शुरू ही हुआ था मक तभी सरकार का ऐलान हुआ मक अब ये लॉकडाउन लमबे समय तक रहेगा। तो अब खाना देने के मलए बमसतयों में जा भी नहीं सकते थे। तो मफर यहीं से हम लोगों को खयाल आया मक जब माँ-बाप को खाना नहीं ममल रहा है तो बचचों को पो्ण कैसे ममलेगा? कयोंमक उनकी हे्थ के महसाब से भी उनको खाना ममलना चामहए। जहाँ से भी खाना आ रहा था बडों के महसाब से ही आ रहा था। तीखा और ऐसा खाना जो बचचे नहीं खा सकते। तब हमने सोचा मक बचचों को बेहतर से बेहतर खाना कैसे दे सकते हैं। और मफर बचचा रसोईघर की शुरुआत हुई। 14इसका नाम हमने बचचा रसोईघर इसमलए रखा कयोंमक यह मसफयू मकचन नहीं है, बम्क बचचों के मलए एक घर है। बचचे इस घर में आएँ, खाना लें और अपना मजतना समय यहाँ दे सकते हैं, दें। अभी हम तकरीबन 70 बचचों को खाना दे रहे हैं। हर हफते मेनयू के महसाब से खाना बनता है। जैसे कभी बचचों को अणडा मबरयानी देते हैं तामक उनहें अणडे का पो्ण भी ममले और बाकी खाने का भी। ऐसे ही हम लोग सोयाबीन की बडी की मबरयानी भी देते हैं। जब से लॉकडाउन हुआ है आँगनबाडी सब बनद पडी हैं। इस वजह से कुपोम्त बचचों तक खाना नहीं पहुँच पा रहा है। बचचों को टीका भी नहीं लग पा रहा है। लॉकडाउन की वजह से पूरे दो महीने से ये सारी चीज़ें छूट रही हैं। तो हम लोग दो साल तक की उम्र के बचचों को दूध देते हैं। साथ में रोज़ एक पारले-जी मबसकुट का पैकेट भी देते हैं। तीन से पनद्रह साल के बचचों को हम लोग खाना देते हैं। अभी इतना बजट नहीं है मक हम लोग सबकी मदद कर सकें। लेमकन उन बचचों की खास तौर से मदद करते हैं मजनके मसंगल पैरेंट हैं या मजनके माँ-पापा यहाँ नहीं हैं और वे अपने नाना-नानी/दादा-दादी के साथ रहते हैं। हमने ये भी देखा मक इस वकत बचचों की पढ़ाई भी पूरी तरह बनद हो रखी है तो मफर हमने लाइब्रेरी की शुरुआत करी। जो भी बचचे खाना लेने आते हैं वो थोडा एक-दो घणटे पहले ही आ जाते हैं। आकर हाथ धोते हैं और मफर लाइब्रेरी में या तो मकताबें पढ़ते हैं या मचत्र बनाते हैं। सुरक्ा का धयान रखते हुए बचचों को एक-दूसरे से थोडा दूर ही बैठाते हैं। जो बचचे मकताब नहीं पढ़ पाते वे मकताब के मचत्र देखकर अपनी नई कहानी बना लेते हैं। बचचे आपस में और हमसे भी अलग-अलग बातों पर चचना करते हैं। अभी यहाँ पर पनद्रह वालंमटयर काम कर रहे हैं। बच़्ा रसोईघर भोप़ाल के जनसम्पक्स समूह, पररऩ्ा, ज़मज़म होटल और अन्य युव़ा स़ालथयों क़ा प्रय़ास है। 15 अप्रैल 2020 वपछली ब़ार हमने लॉकड़ाउन के फदनों में तुम़्ारे ह़ाल के ब़ारे में पूछ़ा थ़ा। कय़ा कर रहे हो, क़्ा सोच रहे हो, घर में वकस तरह करी ब़ातें हो रही हैं? जब हमने रुम ट ू रीड, ऱायपुर, बच़्ा रसोईघर और भोप़ाल के कुछ अन्य बच्ों से ब़ातचीत करी तो उनसे भी ऐसे ही कुछ सव़ाल वकए। उनके कुछ जव़ाब हम यह़ाँ दे रहे हैं। तुम़्ाऱा मन करे तो तुम भी हमें अपऩा ह़ाल ललख भेजऩा… “कोरोना में सडक सुनसान पडी है और हम मचछी नहीं खा पा रहे। खेलने भी नहीं जा पा रहे। मचछी पकडने भी नहीं जा पा रहे। पुमलस वाले भगा रहे हैं। कह रहे हैं मक ये आपकी भलाई के मलए है। ये बीमारी बहुत खतरनाक है। जेल में भी बैठा रहे हैं। बाहर घूम रहे हैं तो कह रहे हैं मक जेल में बैठो।” “कोरोना एक बहुत खतरनाक बीमारी है। इसमें लोग बेहोश हो रहे हैं। और मजनको कोरोना है उनको हॉमसपटल में भतरी कर रहे हैं। सटेमडयम में जो-जो लकडी की दुकानें थीं उनको भी बनद कर मदया। उनको काम में नहीं आने दे रहे हैं। और जो लोग दुकान खोल रहे हैं उनको पुमलस लाठी से मार रही है और जेलों में भी बनद कर रही है। कह रही है जभी लॉकडाउन खुलेगा तभी आपकी मशीन चालू होगी और पैसे आएँगे।” “उनको मारना नहीं चामहए कुछ और रासते मनकालने चामहए। बेचारे पैदल बहुत दूर-दूर जा रहे हैं। बेचारे बचचे लेकर जा रहे हैं उन लोगों को। ट्ेनें-वेनें भी नहीं हैं। उनके पैर भी दुख रहे हैं।” “हम सकूल जाते हैं। लेमकन अभी सकूल जाने को नहीं ममल रहा। सकूल में मज़ा आता था। अभी तो घर में बैठना पडता है। पापा अब फुगगा बेचने भी नहीं जा पा रहे।” “कोरोना सबको आ-आके लग रही है और लोग बेहोश हो रहे हैं। कोरोना आकर मफर चली जाती है। बाहर लॉकडाउन चल रहा है और डणडे पड रहे हैं।” “हमें पतंग उडाने भी नहीं ममल मरया है। पहले पाकयू में घूमने जाते थे। अब नहीं जा पा रहे। अबबू को पैसे भी नहीं ममल रहे। घर में खाना सही नहीं ममल मरया। दाल-चावल खाते रहते हैं बस। आलू की सबज़ी ही खाना पडता है बस।” अप्रैल 2020 16गममी के दिन प्रतीक वतव़ारी, स्लैम आउट ल़ाउड, नई फदलली गमरी के मदन आते हैं हमको बडा सताते हैं, कहाँ खेलने जाएँ हम? इतनी धूप मक मनकले दम! “मोदीजी को ऐसे एकदम से बनद नहीं करना चामहए था। कुछ और उपाय मनकालना चामहए था तामक मज़दूर अपने- अपने घर पहुँच जाएँ। और उनहें मारना भी नहीं चामहए था। कुछ और उपाय मनकालना था।” “जब कोरोना वायरस के चलते मममी-पापा लॉकडाउन में फँस गए थे तो मुझे बहुत रोना आया मक अब हम तीनों भाई- बहन कया करेंगे? कयोंमक सभी दुकानें बनद होने को आ गई थीं और आने-जाने का कोई साधन नहीं था। अब घर कैसे चलाएँ? कयोंमक सब सामान पापा ही लाते थे और मममी हम लोगों को बनाकर मखलाती थीं। जब-जब खाना बनाते और भाई लोगों के साथ खाते तो याद आती मक मममी-पापा खाए होंगे मक नहीं। और जैसे-जैसे घर का सामान खतम होता तो टेंशन होती मक कहाँ से लायें और कैसे करेंगे। मममी-पापा आ जाएँ तो हम पहले जैसे खुशी-खुशी रहेंगे।” 17 अप्रैल 2020 उन मदनों मैं होशंगाबाद के बोरी-सतपुडा के जंगलों में सात बहनों (बैबलर) को पकडने की कोमशश कर रही थी। मुझे उनहें पकडकर छोडना ही था लेमकन उससे पहले उनकी एक टाँग पर एलुमममनयम की एक कडी और दूसरी पर तीन रंगीन कमडयाँ पहनानी थीं। यह इसमलए मक उसके बाद मैं जब भी उनहें देखूँ तो पहचान सकूँ। मुझे देखना था मक उनके वयवहार में कया मवमवधता है लेमकन भूरे रंग के ये सारे पक्ी एक जैसे ही मदखते हैं। उनहें पहचान न पाती तो कया पता दो-चार पमक्यों के ही वयवहार को नोट करती रहती और उसे ही दस-बीस पमक्यों का वयवहार बता देती। इनहें पकडना आसान नहीं था। (शायद इसमलए मक मैंने सही तरीका नहीं अपनाया था लेमकन इस बारे में बात मफर कभी करेंगे।) इसके मलए बाँस के दो लमबे लटठ छह मीटर की दूरी पर लगाने थे। उनके बीच एक खास मकसम की जाली बाँधनी थी। 6 मीटर चौडी और लगभग 1 मीटर ऊँची यह जाली चार पटटों की बनी थी और हर पटटे का मनचला महससा जेब की तरह मसला था। इस जाली को ऐसी जगह बाँधना था जहाँ आसपास जाली में अटकने वाले कोई झाड- पत्े न हों लेमकन दोनों तरफ जंगल ज़रूर हो तामक पमक्यों को जाली का पता न चले। अगर एक तरफ भी आसमान मदखता है तो दूसरी तरफ से देखने वाले पक्ी को जाली मदख जाती है। सजस फदन मैं बनी…. द ु लनय़ा करी सबसे तेज़ ध़ावक ववनत़ा ववश्वऩाथन चचत्र: लनह़ाररक़ा शेनॉय जून 2020 18उडते पक्ी या तो इस जाली से टकराकर इसमें फँस जाते हैं या मफर जेब में मगर जाते हैं। कुछ टकराकर उड भी जाते हैं। पमक्यों को पकडने का काम या तो पौ फटने से पहले शुरू होता है या देर शाम को कयोंमक मदन के उजाले में इनहें धोखा देना इतना आसान नहीं है। जाली बाँधने की जगह हर रोज़ बदलनी पडती है, नहीं तो पक्ी सावधान हो जाते हैं। जाली को लगाकर उससे दूर तो बैठना ही पडता है लेमकन हर बीस ममनट में यह देखना भी होता है मक कहीं कोई पक्ी फँसा तो नहीं है। ऐसा करने के दो कारण हैं। एक तो बहुत देर तक फडफडाने से पक्ी को चोट भी लग सकती है, खास कर जाली में ज़यादा उलझने के कारण। और दूसरा अनय जानवर उसे देखकर या तो भाग सकते हैं (इनमें वो पक्ी भी हो सकते हैं मजनहें पकडना है) या मफर फँसे हुए पक्ी को पकडकर खा भी सकते हैं। खैर, तो सात बहनों को पकडने के मलए मैंने रामन और मबसराम को सुबह ही बाँस गाडने भेज मदया था और मैं अकेले ही दूसरी ओर मनकल गई थी। एकाध घणटे बाद मैं उस जगह पहुँची जहाँ उन दोनों को होना चामहए था। उनके ना ममलने पर मुझे लगा मक उनहोंने काम खतम कर मलया होगा। मैं कमरे पर वापस जाने के मलए मुडी ही थी मक दूर एक सूखे नाले के मकनारे पर एक रीछ मदखाई मदया। मैं एक पल रुककर उसे अपनी दूरबीन से देख ही रही थी मक अचानक से गुरनाहट की आवाज़ आई। मुझसे लगभग बीस मीटर की दूरी पर छींदे (एक झाड) के पीछे से एक भयंकर बडा रीछ खडा हुआ और मेरी ओर दौडने लगा। मैं मुडकर तेज़ भागी। कुछ दूर जाने के बाद मैंने देखा तो उसने मेरा पीछा छोड मदया था। उस मदन मैंने और काम नहीं मकया, कमरे में ही बैठी रही। 19 जून 2020 Next >