< Previousबाद में मुझे समझ आया मक नाले के मकनारे पर कोई बडा रीछ नहीं था, बम्क एक छोटा रीछ था। मेरे मदमाग ने मुझसे ऐसा खेल कयों खेला, पता नहीं। वैसे यह इतनी भी अनोखी बात नहीं थी — सब इस तरह से कभी न कभी बहक जाते हैं। लेमकन मेरे मलए यह खतरे की बात हो गई थी। पास वाली रीछ उस छोटे रीछ की माँ थी मजसे मैंने देखा नहीं था। मेरी खुशमकसमती थी मक उसने मुझे कुछ दूरी से ही देख मलया था (कहते हैं मक रीछ की आँखें कमज़ोर होती हैं इसीमलए वे इनसानों के काफी करीब पहुँच जाते हैं और मफर हादसे होते हैं)। पता नहीं उस मदन उस रीछ ने मुझे कयों बखशा लेमकन मेरा बचना उसका मनणयूय था मजसके मलए मैं शुक्गुज़ार हूँ। जानवरों को पकडना जोमखम भरा काम होता है, खास कर जानवरों के मलए। शोध के मलए मबना नुकसान पहुँचाए उनहें पकडना और थोडी देर बाद सही-सलामत वापस उनके इलाके में छोडना अकसर हमारे मलए एक चुनौती होती है। जानवरों को पकडने के अनेक तरीके हैं। महरण, रीछ या हामथयों को पकडने के मलए उनहें दूर से ही बेहोश करने वाली दवा की एक सुई बुलेट की तरह मारी जाती है। बाघ, शेर को अकसर मपंजरे में रखी बकरी से आकम्यूत कर पकडने की कोमशश की जाती है। मसयार, भेमडया को पैर के ट्ैप (लैग ट्ैप) से पकडते हैं। और छोटे पमक्यों को पकडने का सबसे आसान तरीका है — जामलयाँ (ममसट नैट)। ममसट नैट का तरीका 1950 के दशक से इसतेमाल में है। अगर तुमहें कभी इस तरीके को अपनाने का मौका ममले तो तुम देखोगे मक इस तरीके में पक्ी और शोधकतना दोनों तनावग्सत होते हैं। मच्लाते- उछलते पक्ी को सावधानी से जाल से मनकालकर, शानत करके, उसका नाप वगैरह लेकर वामपस छोडना बडे-बडों के मलए मुमशकल होता है। कभी- कभी पक्ी को चोट पहुँचती है और वे मर भी जाते हैं। आशचययू की बात है मक लगभग दस साल पहले तक ऐसा कोई शोध नहीं हुआ था मजससे यह पता चले मक ममसट नैट का तरीका आमखर मकतने पमक्यों को त्रसत करता है, मारता है। मफर एक शोध से पता चला मक सौ में से एक से भी कम पक्ी को चोट पहुँचती है और इससे भी कम मर जाते हैं। सबसे ज़यादा चोट पंखों पर लगती है और ऐसा तनाव के कारण होता है। पमक्यों का वज़न मजतना कम होता है उनको उतनी कम चोट लगती है, और जो पक्ी बार-बार पकडा जाता है उसे कम चोट लगती है। वैसे इस तरह के मकसी भी शोध प्रसताव को बहुत ही बारीकी से पढ़ा जाता है — कया शोध इतना महतवपूणयू है मक जानवरों को तनाव पहुँचाना ज़रूरी है, कया कम जानवरों को पकडकर काम चल सकता है और कया मकसी अनय तरीके से शोध सवाल का जवाब हामसल कर सकते हैं। अगर मफर भी जानवरों को पकडना ज़रूरी लगता है तभी इसके मलए अनुममत दी जाती है। हमारे देश में यह अनुममत वन मवभाग देता है। जून 2020 20हमारे आसपास की दुमनया पैटनयू से भरी हुई है। बादल, घास, ईंट की दीवारें, अलामयू घडी, कुत्े का भौंकना, कौवे की काँव-काँव, हमारे मजसम के बाल, पेड की डामलयाँ, तालाब में बनी लहरें, मौसम, घूमता हुआ टायर वगैरह ज़यादातर चीज़ों में एक पैटनयू होता है। और हर पैटनयू में एक लय होती है। इसका मतलब है मक पैटनयू समयबद् होते हैं। है न ये मज़ेदार बात? मकसी भी पैटनयू की सबसे खास बात यह होती है मक उसमें मकसी खास चीज़ का दोहराव होता है। अगर मैं रात को देर-देर तक टीवी देखने लगूँ और अगले मदन देर से उठने लगूँ तो यह मेरे सोने का एक पैटनयू बन जाएगा। अगर मैं बहुत तेज़ कदमों से चलने लगूँ तो यह मेरे चलने का पैटनयू बन जाएगा। और मैं चलते वकत भी पैटनयू बना सकती हूँ। ममसाल के मलए, कीचड में मेरे कदमों के मनशान ममलकर एक पैटनयू बनाएँगे। अलग-अलग लोगों के हँसने का भी एक पैटनयू होता है। मेरी एक दोसत है जो हँसते समय चूहे की तरह मचमचयाने जैसी आवाज़ मनकालती है, वो भी एक लय में। कभी-कभार उसके हँसने से ग्ुप के दूसरे लोग भी एक-एक कर ऐसे हँसने लगते हैं मानो कोई चेन मरएकशन शुरू हो गई हो। यह भी एक पैटनयू ही है! कुछ मदन पहले मैं एक तालाब के मकनारे बैठकर पानी की सतह पर थोडी-थोडी देर में मगर रहे सूखे पत्ों और छोटी-छोटी डामलयों को देख रही थी। कभी-कभार खाने के मलए कोई मतनका या घोंसला बनाने के मलए छोटी-छोटी डामलयाँ ले जा रहे पक्ी भी मतनका या डाली पानी में मगरा देते। पानी की सतह पर जब भी पत्े या मतनके मगरते तो मकसी चेन मरएकशन की तरह लहरों का पैटनयू बन जाता। उस मदन मुझे लहरों के बारे में कुछ बातें समझ में आईं। जैसे मक, लहरें हमेशा गोलाई में होती हैं — तुमहें मतकोन या मसतारे जैसे आकार की लहर कभी नहीं देखने को ममलेगी। हर पैटनयू में दो लहरों के बीच की दूरी एक जैसी होती है और वो बढ़ते क्म में होती है। मजतनी भारी चीज़ पानी की सतह पर मगरेगी लहरों का पैटनयू उतना ही बडा होगा। यह सब देखकर मेरी उतसुकता बढ़ गई। संयोग से उसी दौरान इंटरनेट पर एक बडी मज़ेदार चीज़ मेरे हाथ लगी। हामोन्शुहामोन्शु इसशत़ा देबऩाथ वबस़्ास अनुव़ाद: लोकेश म़ालती प्रक़ाश 21 जून 2020 हामोनशु। इस शबद का मतलब कया होता है यह तो मुझे नहीं मालूम लेमकन यह मकताब लहरों की आकृमतयों के मचत्रों का एक बेहतरीन संकलन है। 1903 में छपी इस मकताब के मचत्र जापानी कलाकार मोरी युज़ान ने बनाए हैं। इनके बारे में ज़यादा जानकारी उपलबध नहीं है। ऐसा कहा जाता है मक ये जापान के कयोटो शहर के रहने वाले थे और जापानी कला की मनहोंगा शैली में काम करते थे। हामोनशु तीन खणडों की पुसतक शंखला है मजनका नाम है वेव मडज़ाइन ए, बी एंड सी। इन पैटनयू को देखना मकतना मज़ेदार है ना? कया तुमने पानी को कभी इस तरह से देखा है? पैटनयू का यही तो जादू है। काली सयाही से बनाए गए इन मचत्रों का इसतेमाल जापान में तलवारों, लकर व दूसरे सजावटी सामानों पर मडज़ाइन उकेरने के मलए मकया जाता था। मचत्र. हामोनशु पैटनयू से सजा जापानी तलवार का गाडयू मचत्र – लाख द्ारा उकेरी गई मडज़ाइन से सजा जापानी बॉकस जून 2020 22लेमकन मुझे लगता है मक हमें हामोनशु को महज़ सजावटी इसतेमाल की चीज़ नहीं मानना चामहए। मोरी युज़ान की कृमत इससे कहीं ज़यादा महतवपूणयू है। उनके मचत्र पानी के पैटनयू की उनकी खास कलातमक समझ को दशनाते हैं। यह सही है मक वे ऐसा ही काम करने वाले दूसरे जापानी मचत्रकारों की तरह मशहूर नहीं हुए। लेमकन ये रेखामचत्र जयामममत और तरलता के ममश्रण का अदभुत नमूना हैं। इनको देखकर आप सोचने लगते हैं मक हमारे आसपास ऐसी और कौन-सी चीज़ें हैं मजनको इस तरह से देखा जा सकता है? तुम इन पैटनयू के मचत्र बनाने की कोमशश कयों नहीं करते? पैटनयू की नकल उतारना बडा मज़ेदार काम है। हो सकता है इनको बनाते समय तुमहें अपने आसपास की ऐसी चीज़ों का धयान आए मजनमें ऐसे ही पैटनयू हों। या हो सकता है तुमहें कुछ नए पैटनयू ही मदखने लगें! कया पता? तुम इन मकताबों को इंटरनेट आकनाइव (archive.org) से डाउनलोड कर खुद भी इनका लुतफ उठा सकते हो। स्ोत - https://archive.org/search.php?query=creator%3A%22Mori%2C+Yu%CC%84zan%2C+-1917%22 https://publicdomainreview.org/collection/hamonshu-a-japanese-book-of-wave-and-ripple-designs-1903 23 जून 2020 पडोसी का जामुन हुआ जब बडा, थोडा उधर बढ़ा थोडा इधर बढ़ा। डालें गदराईं पेड झबराया, बौरा वह खूब मौसम जब आया। काले-काले जामुन लटके पडे, कभी इधर मगरे कभी उधर मगरे। बीन-चुन खाया भूना न तला, बडा मज़ा आया जो जामुन फला। जामशुनजामशुन ऱामकरन चचत्र: नीलेश गेहलोत जून 2020 24ऩाक में अटके चुम्बक लनकलव़ाने ये पहुँचे अस्पत़ाल व्योम लमत्र: एक म़ानव-रोबोट भारत का पहला मानवयुकत अनतमरक् ममशन गगनयान 2021- 22 के दौरान उडान भरेगा। अनतमरक् में मनुषय को भेजने से पहले भारतीय अनतमरक् अनुसनधान संगठन (इसरो) ट्ायल के तौर पर दो मानवरमहत ममशन भेजेगा। इस ममशन पर वयोम ममत्र शाममल होगा जो मूल रूप से मानव की सूरत वाला एक रोबोट है। उसके पास मसफयू मसर, दो हाथ और धड है। मनचले अंग नहीं हैं। मकसी भी रोबोट की तरह मानव- रोबोट के काययू भी उससे जुडे कमपयूटर मससटम द्ारा संचामलत मकए जाते हैं। कृमत्रम बुमद् (आमटयूमफमशयल इंटेमलजेंस) और रोबोमटकस के मवकास के साथ ऐसे काययों के मलए मानव-रोबोट का तेज़ी-से इसतेमाल मकया जा रहा है मजनमें बार-बार एक-सी मक्याएँ करनी होती हैं, जैसे मक रेसतरां में बैरा। पूरी तरह से मवकमसत होने के बाद, वयोम ममत्र मानवरमहत उडान के मलए ग्ाउंड सटेशनों से भेजे गए सभी मनदकेशों को अंजाम देने में सक्म होंगे। इनमें सुरक्ा तंत्र और मसवच पैनल का संचालन करने की प्रमक्याएँ शाममल होंगी। वे प्रक्ेपण, लैंमडंग और मानव ममशन के कक्ीय चरणों के दौरान अनतमरक् यान की सेहत जैसे पहलुओं से समबमनधत ऑमडयो जानकारी प्रदान करने में अनतमरक् यात्री के कृमत्रम दोसत की भूममका मनभाएँगे। यह बात तो अब हम सबको पता है मक चेहरे को बार-बार छूने से कोमवड-19 से संक्ममत होने की समभावना बढ़ती है। यह इसमलए मक अगर चेहरा छूने से पहले हमने कोई ऐसी चीज़ या सतह छुई हो मजस पर ये वायरस थे तो अब हम इनहें ज्द ही अपने शरीर में पहुँचा देंगे। तो ज़रूरी है मक हम अपने चेहरे से अपने हाथों को दूर रखें। लॉकडाउन में ऑसट्ेमलया के तारा भौमतकमवद (एसट्ोमफमजमससट) डॉ मरयडयून डैमनयल अकेले घर पर बैठे बोर हो रहे थे। तभी उनहें सूझा मक कयों न कुछ चुमबकों से ऐसा कडा बनाएँ मजसे अपनी कलाई पर पहन सकें और जैसे ही हमारा हाथ चेहरे के पास जाए तो एक बज़र बजने लगे। लेमकन गलती से उनहोंने ऐसी चीज़ बना दी जो तब तक बजती रहती है जब तक हमारा हाथ हमारे चेहरे को छू ना ले! मनराश होकर वो इन ज़बरदसत चुमबकों को कानों और नाक के अनदर व बाहर लगाकर बैठ गए। कानों से इनहें मनकालना तो आसान था। लेमकन जब नाक के बाहर वाले चुमबकों को हटाया तो अनदर वाले चुमबक एक-दूसरे से यों मचपके मक असपताल जाकर ही मनकल पाए। असपताल जाने से पहले चुमबकों को मनकालने की कोमशश में उनहोंने दो और चुमबक नाक में घुसा मदए और वो पलायर भी मजससे वे चारों को मनकालने की कोमशश कर रहे थे। 25 जून 2020 सोहम भी जलपरी हर्सवर््सन कुम़ार कावया पापा के लैपटाॅप पर चकमक का अप्रैल अंक पढ़ रही थी। कोरोना वायरस के कारण तीन सपताह का लाॅकडाउन था और इसमलए चकमक इस बार डाक से नहीं बम्क ईमेल से आई थी। इस बार की चकमक में जलपरी के बारे में मववाद पढ़कर कावया को बहुत बुरा लगा। जलपरी के अमभनय के मलए चुनी गई अमभनेत्री के गोरे न होने पर बहस मकया जाना उसे मबलकुल भी अचछा नहीं लगा। उसने यह बात अपने मममी-पपपा को भी बताई। पापा ने कहा, “अरे! नाराज़ मत हो। कोई कुछ भी कहे, मेरे मलए तुमसे अचछी जलपरी कोई और हो ही नहीं सकती।” पापा की बात सुनकर कावया का चेहरा मखल उठा। उसने मममी से कहा, “देखा माँ! पापा ने कया कहा?” मममी ने भी हँसते हुए हामी भरी। बात अभी पूरी भी नहीं हुई थी मक कावया के छोटे भाई सोहम ने टोकते हुए कहा, “कावया सबसे अचछी जलपरी तो तभी बन सकती है जब मैं जलपरी न बनूँ!” सोहम की बात सुनकर सब हँसने लगे। कावया बोली, “जा, जा! तू तो लडका है। कोई लडका कैसे जलपरी बन सकता है?” सोहम पापा की ओर मुडते हुए बोला, “पापा आप तो हम लोगों से कहते हैं मक लडके और लडकी दोनों बराबर हैं। मफर ये तो ठीक बात नहीं है मक केवल दीदी जलपरी बन सकती है और मैं नहीं।” अब सबकी हँसी गायब थी। मामला गमभीर हो गया था। पापा- मममी समझ ही नहीं पा रहे थे मक मामला कैसे सुलझाएँ। उनकी बहस देर तक मकसी नतीजे पर नहीं पहुँची। बात तो सोहम की भी सही थी मगर कावया बेहद नाराज़ हो गई। कहने लगी, “मछली जल की रानी होती है मगर कोई मछला जल का राजा नहीं होता।” उसने तो गुससे में यह तक कह मदया मक जैसे कोई लडकी उ्लू नहीं हो सकती, कोई लडका भी जलपरी नहीं हो सकता। इस बहस के मलए कावया और सोहम लगातार नए-नए तकयू दे रहे थे। समझौते की कोई सूरत नज़र नहीं आ रही थी। कया तुम बता सकते हो मक इस बहस को कैसे सुलझाया जा सकता है? अगर तुमहें इस मसले को सुलझाना हो तो तुम कया तकयू रखोगे? chakmak@eklavya.in पर अपने मवचार हमें मलख भेजो या 9753011077 पर हमें वहाटसऐप भी कर सकते हो। हो सकता है अगले अंक में तुमहारे मवचारों को पढ़कर कावया और सोहम का झगडा खतम हो जाए। जून 2020 26मंज़ूर को तैयार होना बहुत पसनद है, खास तौर से काजल लगाना। आईने के छोटे टुकडे को एक हाथ से पकडकर बहुत बारीकी से वह आँखों में ऊपर-नीचे दोनों तरफ काजल लगाता और अपनी आँखों को नचाता। ठीक वैसे ही जैसे लोग कुमचपुडी नमृतय करते हुए अपनी आँखें मटकाते हैं। मफर खुद को आईने में देख बहुत खुश होता। कभी-कभी वह अपने माथे पर छोटी-सी टीकी भी लगा लेता। उसकी बहुत सारी सहेमलयाँ हैं। एक मदन उसने अपनी सहेली चाहत का घाघरा-चोली पहना और लाली लगाकर उससे पूछा, “मैं सुनदर मदख रहा हूँ ना? चल अपन फोटो मखंचवाकर आते हैं।” मंज़ूर गीत़ा धुववे चचत्र: शेफ़ाली जैन 27 जून 2020 चाहत ने कहा, “हट! तेरी मममी देखेंगी तो तुझे तो मारेंगी ही, मुझे भी मारेंगी। मैं नहीं जाऊँगी।” मंज़ूर चाहत का हाथ पकडते हुए बोला, “चल ना। मेरे पास तो ऐसे कपडे हैं नहीं। और मममी-पापा के सामने पहन भी नहीं सकता ऐसे कपडे। चल ना, ज्दी आ जाएँगे।” चाहत बोली, “ठीक है। चल। लेमकन पहले ये कपडे उतार और लाली पोंछ।” “पर कयों?”, मंज़ूर ने पूछा। चाहत बोली, “यहाँ से तैयार होकर जाएगा तो लोग तुझे देखकर हँसेंगे। मुझे अचछा नहीं लगेगा। इसमलए वहीं जाकर पहन लेना।” मंज़ूर को चाहत का ये सुझाव पसनद आया। वह फट-से तैयार हो गया। “ठीक है चल, मैं वहाँ और अचछे-से तैयार हो जाऊँगा। तू अपनी चूडी भी दे देना। मैं सब पहनना चाहता हूँ।” बचपन से ही मंज़ूर को अपनी सहेमलयों के रंग-मबरंगे सुनदर कपडे पहनना और नाचना बहुत अचछा लगता। उन कपडों को पहनकर वह ऐसे खुश होता जैसे उसे सब कुछ ममल गया हो। जब वो अपनी सहेमलयों के साथ लकडी बीनने जाता तो अकसर उसकी नज़र कबाड में पडे लेडीज़ पसयू पर जाकर मटक जाती। वह लेडीज़ पसयू में लाली, पाउडर और मेकअप का सामान ढूँढ़ता। और कई बार उसे लाली, पाउडर व कंगन के साथ-साथ चूमडयाँ भी ममल जातीं। मफर तो मंज़ूर को तैयार होने में ज़रा भी देर नहीं लगती। लाली-पाउडर लगाकर और कंगन-चूडी पहनकर वह आसपास खडी गामडयों के छोटे-छोटे आईनों में खुद को देख इतराने लगता। मफर अपनी पैंट की जेब में दोनों हाथ डालकर गोल-गोल घूमता। अपनी सहेमलयों से दुपटटा लेकर उसे लहराते हुए नाचता। मंज़ूर बचपन से वही सारे खेल खेलता जो उसकी सहेमलयाँ खेलतीं, जैसे घर-घर, खो-खो, रससीकूद जून 2020 28वगैरह। उसने गोला गुचू और कंचे वाले खेल कभी नहीं खेले। उसे तो घर-घर खेलना पसनद था। इसमें वह अपनी मज़री का मकरदार जो चुन सकता था। वह हमेशा लडकी का मकरदार मनभाता। कभी माँ, कभी बमहन तो कभी बीवी का। मदयों वाला मकरदार मनभाना उसे अचछा नहीं लगता। शुरू में मंज़ूर की सहेमलयाँ उस पर हँसतीं। तब वह बडा दुखी होता। कई बार रोता भी। पर वह अपनी सहेमलयों के साथ रहना चाहता था। इसमलए वह खुद भी उनके साथ हँसने लगता। जब मंज़ूर की मममी को पता चलता मक उनके बेटे ने लाली-पाउडर लगाया और कंगन-चूडी पहनीं तो उनका गुससा सातवें आसमान पर होता। वो पूरी बसती में लकडी लेकर घूमतीं मक कब मंज़ूर उनके हाथ लगे और वो वहीं उसकी जमकर मपटाई कर दें। मदन भर तो वह सहेमलयों के साथ खुश रहता। पर घर लौटने का वकत होते ही उदास हो जाता। उसे पता होता था मक आज भी घर पर मार पडेगी। माँ को मनाना तो आसान था, पर पापा...। एक बार उनके हाथ लग गया तो घर में बाँधकर मारते। कहते, “लाली-काजल लगाएगा? लडकी बनने का बडा शौक है? लडमकयों के साथ घूमेगा? मोह्ले में नाक कटवाएगा?” पापा की मार से ज़यादा मंज़ूर उनकी बातों से परेशान होता और बहुत रोता। रोने पर भी उसके मपता कहते मक यह लडमकयों जैसे रोना बनद कर। मंज़ूर अपनी सहेमलयों के साथ रात में भी खेलता। उसकी मममी उसे बुला-बुलाकर ले जातीं और कहतीं, “मकतनी बार समझाया है मक लडमकयों के साथ मत रहा कर। तू लडमकयों की तरह कयों चलता है?” मंज़ूर की मममी उसे बहुत कुछ कहतीं और मफर खुद भी रोतीं। कयोंमक मंज़ूर की वजह से मह्ले के लोग उनहें ताने मारते। लोग मंज़ूर को तरह-तरह की बातें कहते। कडबा (महजडा) बोलते। उसे उनकी बातों पर गुससा तो आता पर वो उन पर ज़यादा धयान नहीं देता। लेमकन जब घर के लोग उसे इस तरह की बातें कहते तो उसे बहुत बुरा लगता। ऐसा लगता जैसे वो अपने माँ-बाप की औलाद ही नहीं हो। चाहत और तमन्ा मंज़ूर की सबसे चहेती सहेमलयाँ थीं। उनहोंने कभी मंज़ूर को खुद से अलग नहीं माना। वह जैसा था उनहोंने उसे वैसा ही अपनाया था। उनके साथ घूमना, काम करना मंज़ूर को बहुत सुकून देता। अपनी सहेमलयों के साथ उसने खाना बनाना, गोबर लीपना, झाड़ू-पोंछा करना जैसे कई काम सीखे। उसे दो-तीन घरों में झाड़ू लगाने और कचरा फेंकने का काम भी ममल गया। दीवाली के समय जब वह लोगों के घर के आँगन में गोबर लीपने-पोतने का काम करता तो मह्ले के लोग उसे “पेडगी-पेडगी” कहकर बहुत मचढ़ाते। पेडगी यानी वह लडका जो लडमकयों के काम में हाथ बँटाता या लडमकयों जैसे काम करता है। मंज़ूर ने कभी मकसी की बात का बुरा नहीं माना। एक मदन चाहत ने मंज़ूर को उसके नाम का मतलब बताया। “गोंडी में मंज़ूर यानी मोर। वही मोर, जो बेहद खूबसूरत है। सुनदर रंगों से सजे उसके पंख उसकी खूबसूरती को बयाँ करते हैं लेमकन उसके पैर बदसूरत हैं। मोर की खूबसूरती को तो लोगों ने अपनाया है लेमकन उसके शरीर के एक ज़रूरी महससे को नकारा है। वैसे मंज़ूर का एक अथयू ‘कबूल करना' या ‘सवीकारना' भी है।” चाहत की बातों को सुनकर मंज़ूर बोला, “मैं मंज़ूर हूँ, कया इसमलए मुझे मकसी ने नहीं अपनाया?” कया मैं बहुत अजीब हूँ? कया मैं मजस पहचान के साथ जीना चाहता हूँ उसको कहीं जगह ममलेगी?” मंज़ूर को अपने सवालों का जवाब अब तक नहीं ममला। 29 जून 2020 Next >