< Previousमूल तेल ु गू कह़ानी: जयश्ी कल़ालथल चचत्ऱांकन: ऱाखी पेशव़ानी अँग्ेज़ी से अनुव़ाद: शसश सबलोक बोरेवालाबोरेवाला यह कह़ानी अन्ेरी द़्ाऱा ववकससत करी गई रडफरेंट टेल्स क़ा रहस़्ा है। रडफरेंट टेल्स क्ेत्रीय भ़ाऱा करी कह़ालनय़ाँ ढ ू ँढ़-ढ ू ँढ़कर लनक़ालत़ा है, ऐसी कह़ालनय़ाँ जो सज़न्गी करी ब़ातें करती हैं — ऐसे समुद़ायों के बच्ों करी कह़ालनय़ाँ सजनके ब़ारे में बच्ों करी वकत़ाबों में बहुत कम पढ़ने को लमलत़ा है। अनु करी गलममियों करी छ ु रटिय़ाँ शुरू हो गई हैं। च़ार महीने पहले ही उसकरी सजीचेची करी मौत हो ज़ाती है। तब से अम्म़ा उद़ास रहने लगती हैं और अच्न भी घर में कम ही फदख़ाई देते हैं। वे देर ऱात घर लौटते हैं। एक फदन पीछे के दरव़ाज़े पर कुछ आव़ाज़ होती है। अनु खखडकरी से झ़ाँकती है तो वह़ाँ च़ाकप्ऱान्न खड़ा होत़ा है। वो ज़ानती है वक च़ाकप्ऱान्न भूख़ा होग़ा पर डर के म़ारे उसे कुछ नहीं देती। फटी- पुऱानी बोररयों के थेगडों को ससलकर पहनने व़ाल़ा च़ाकप्ऱान्न क़ाफरी अजीब लगत़ा है। थोडी देर में च़ाकप्ऱान्न वहॉं से चल़ा ज़ात़ा है और अनु स़ाेचती है वक अगर वह कल भी आय़ा तो वह थोडी रहम्मत करके उसे कुछ ख़ाने को दे देगी। अब आगे... उस रात मैं अचछे से सो नहीं पाई। एक मचछर लगातार मेरे कानों में मभनमभनाता रहा। और बीच-बीच में जब झपकी लगी भी तो एक ही सपना चलता रहा। वो यह मक फामतमा टीचर ने मुझ अकेली को कलास में रोक मलया है और कह रही हैं मक जब तक मेरी मलखाई नहीं सुधरती वो मुझे छोडेंगी नहीं। पर जब मैं एक सीधी लकीर में मलखने की कोमशश करती मेरी लाइन “मत्रशूर से मटमबकटू” की ओर चल देती। सजीचेची ऐसा ही कहती थी। नीचे से आवाज़ें आ रही थीं। मैं नीचे गई तो देखा मक व्यअममा नीचे रसोई में थीं। व्यअममा मेरी बडी मौसी हैं – मुझे वो सबसे ज़यादा पसनद हैं। वो कहती थीं मक सजीचेची और मैं बडे होकर व्यअममा और अममा जैसे ही होएँगे। पर अब सजीचेची के चले जाने के बाद पता नहीं मैं बडी तो कैसे होऊँगी। अममा सटूल पर बैठी थीं। व्यअममा तौमलए से उनके बाल सुखा रही थीं। और उन पर गुससा हो रही थीं। “थोडी कोमशश तो करनी ही पडेगी न शारदा,” व्यअममा बोल रही थीं। “कह नहीं सकती इतनी तेज़ धूप में खेतों से होते-होते रोज़-रोज़ तुमहारे पास कब तक आ सकूँगी। यहाँ आने के मलए ऑटो भी तो नहीं ममलता।” अममा कुछ नहीं बोलीं। बस मसर झुकाए बैठी रहीं। “कल तुमने अपनी दवाई ली?” व्यअममा ने पूछा। “ठेके में शामें मबताने की बजाय काश रामू अपनी थोडी मज़ममेदारी समझता। तुम दोनों शायद भूल गए हो मक तुमहारी एक बचची भी भाग – 2 जून 2020 30है, जो अभी मज़नदा है। वो आवारा मबम्लयों की तरह सारा मदन यहाँ-वहाँ भटकती रहती है। तुम दोनों ने कभी मफक् की है मक उसने खाया-मपया है मक नहीं, सकूल टाइम पर जा रही है मक नहीं?” व्यअममा का इस तरह बोलते जाना मुझे मबलकुल अचछा नहीं लगता। मैं जानती थी मक वो अघा गई हैं। पर इससे अममा और भी उदास और मडप्रैस हो जाती हैं। सो मैं अनदर चली गई और मुझे देखकर वो चुप हो गईं। “अनु, नींद अचछी आई? कॉफी चामहए?” मैंने कॉफी ली और अममा के बगल में बैठ गई। उनहोंने मेरे मसर पर हाथ फेरते हुए कहा, “तो आज तो सकूल नहीं है। कया सोचा है...कया करोगी पूरे मदन?” “मैं रशीदा से ममलने जाऊँगी। मफर हम इंमगलश सकूल के मैदान में खेलेंगी।” “धूप में न खेलना। लू लग जाएगी।” अममा सटूल से उठते हुए बोलीं। “नाशता नहीं करोगी?” व्यअममा ने अममा से पूछा। “करूँगी। पर थोडा लेट लूँ पहले,” कहती हुई अममा सीमढ़याँ चढ़ने लगीं। व्यअममा कुछ कहने को हुईं, पर रुक गईं। मफर मेरी तरफ देखती हुई बोलीं, “मंजन कर लो। मफर नाशता कर लेना। मैंने उपमा बनाया है।” अचचन काम पर जा चुके थे। नाशते के बाद व्यअममा ने अममा को ज़बरदसती दूध के साथ दवाइयाँ दे दीं। अममा को दवा लेना पसनद नहीं था। वो कहती थीं मक दवाओं से उनहें नींद आती है। कभी-कभी मुझे लगता था यह सही भी है। व्यअममा जब नहीं होतीं तब दवा लेने के मलए मुझे अममा के पीछे नहीं पडना चामहए। व्यअममा के जाने के बाद मैंने मफ्ज खोलकर देखा। उनहोंने बहुत सारा खाना बना रखा था। चलो, अममा को इस बारे में तो नहीं सोचना पडेगा। तो अब कया मकया जाए? कुछ सूझा नहीं तो सोचा चलो कुछ मलखती हूँ। हो सकता है कहानी मलख लूँ तो अचचन उसे पढ़ने, उसे ठीक करने के बहाने एक शाम मेरे साथ गुज़ार लें। मैंने एक छोटी लडकी डेज़ी के बारे में मलखा मजसके पास जादुई शमकतयाँ थीं। वो पेडों, पशुओं और मचमडयों से बात कर सकती थी। उनकी बातें सुन सकती थी। इसमलए उसे कभी अकेलापन नहीं महसूस होता था। पर अब इसके आगे कया मलखूँ... कुछ सूझ नहीं रहा था। उससे कया कारनामे करवाऊँ — कुछ सोच नहीं पा रही थी। मफर मैंने सोचा चलो रशीदा के घर चलती हूँ। अममा को बोलने गई तो देखा वो दीवार की ओर मुँह मकए सो रही हैं। मैंने धीरे-से कहा, “जा रही हूँ।” कोई जवाब नहीं ममला तो मैं यूँ ही चल दी। रशीदा मेरे घर से गयारह घर दूर रहती थी। इंमगलश सकूल के पास। वो भी बोर हो रही थी। उसे भी कुछ सूझ नहीं रहा था। हमने थोडी देर मक्केट खेला। मफर धूूप तेज़ हो गई तो हम उसके घर गए और साँप-सीढ़ी खेलने लगे। रशीदा ने बताया मक वो दो हफतों के मलए अपने कमज़न के घर एननाकुलम जा रही है। “हम वहाँ वॉटर व्डयू जाएँगे, नाव में बैठेंगे और खूब सारी मफ्में देखेंगे,” वो बोली। “तुम भी कहीं जा रही हो कया?” “नहीं। मैं बस टीवी में मफ्में देखूँगी और वीमडयो देखूँगी।” रशीदा ने कहा उसके पास “बालरमा” की नई सीरीज़ है। वो मुझे पढ़ने के मलए दे देगी। लौटते वकत मैंने सोचा कयों न डेज़ी से वॉटर व्डयू के कुछ कारनामे करवा मलए जाएँ। अममा अभी भी मबसतर पर थीं। वो लेटी थीं, सो नहीं रही थीं। “रशीदा के घर अचछा लगा?” उनहोंने पूछा। मैंने बताया मक रशीदा अपने कमज़न के घर एननाकुलम जा रही है। अममा ने कहा मैं चाहूँ तो मैं भी अपने कमज़न के घर कालीकट जा सकती हूँ। मैंने मना कर मदया। अममा और अचचन को इस तरह अकेले छोड जाना कोई नेक खयाल नहीं था। और मफर कालीकट में मेरे साथ खेलने वाला कौन होगा! वहाँ मेरे सारे कमज़न तो कॉलेज में पढ़ते हैं। 31 जून 2020 मैं “बालरमा” पढ़ने लगी। खेलने और देर तक धूप में रहने से मेरी आँख लग गई। जब मैं उठी तब तक अँधेरा हो गया था। मैं बत्ी जलाए बगैर लेटी रही। तभी पीछे के दरवाज़े पर ज़ोर का शोर हुआ। मैंने रसोई की मखडकी से देखा। चाकुप्रानदन खडा था। हालाँमक मैंने तय कर मलया था मक आज वो आया तो उसे खाना दूँगी, पर मुझे अभी भी डर लग रहा था। मैं ऊपर गई। सोचा अममा को बुला लाऊँ। पर कोई जवाब न ममला। मैं मफर से रसोई में आई और थोडा-सा दरवाज़ा खोल मदया। चाकुप्रानदन ने मुझे देखा और अपनी पलेट मेरी ओर बढ़ा दी। वो जगह-जगह से मुडी-तुडी और मपचकी हुई थी। मैंने उससे इनतज़ार करने को कहा और रसोई में आकर एक पलेट में चावल और सामभर परोस मदया। एक पापड भी रख मदया। मफर वह पलेट रसोई के दरवाज़े के बाहर रखकर ज्दी से पीछे हट गई। चाकुप्रानदन ने पलेट उठाकर अपनी पलेट में पलट दी। मफर वह वहीं बैठकर खाने लगा। मैं उसे खाते देखती रही। उसके बाल धूल से सने थे। दाढ़ी घनी थी। माथे पर ज़खम का एक छोटा-सा मनशान था। दोनों हाथों पर मचछरों के काटने के मनशान थे। उसने अपने बोरे में मुँह घुसाकर कुछ ढूँढ़ा और टीन का एक मगगा मनकाल मलया। यह उसकी पलेट जैसा ही मुडा-तुडा था। मैं मुडी और जग में पानी ले आई। मफर वहीं बैठकर चुपचाप उसे देखने लगी। कोमशश कर रही थी मक उसे घूरती न रहूँ। वह ज्दी-ज्दी खा रहा था, मबना बहुत चबाए। खाने के बाद वो कुछ बोला। “कल” जैसा कुछ। और चला गया। चाकुप्रानदन के जाने के बाद मैं टीवी देखने लगी। सोचा था जब तक अचचन नहीं आते टीवी देखती रहूँगी। वो नौ बजे आए। मसगरेट और रम की बू आ रही थी। सजीचेची के जाने से पहले वो बहुत कम पीते थे। आमरी वाले करुनन मामा जब कभी उनके मलए रम लाते तब या कभी-कभार शामदयों में। पर अब तो वो रोज़ ही पीकर आते थे। यह अचछा नहीं था, पर मैं कर कया सकती थी। ऐसे में सबसे बमढ़या तो यही था मक “कुछ गलत नहीं है” का सवांग रचकर रहा जाए। लुंगी पहनने के बाद अचचन रसोई की तरफ गए। मैं भी उनके पीछे-पीछे हो ली। “तुमने खाना खा मलया?” उनहोंने पूछा। “नहीं, आपका इनतज़ार कर रही थी।” “मैंने तुमहें कहा था ना मक इसकी कोई ज़रूरत नहीं है। अपनी माँ के साथ खा मलया करो। यही ठीक है। उनहोंने खा मलया?” उनकी आवाज़ में कुछ ऐसा था मजससे मैं उखड गई। “आपको इसकी कब से मफक् हो गई? वो ठीक से खाए-मपएँ, इसके मलए आपने तो कुछ नहीं मकया।” उनहोंने मसर झुका मलया और आँखें बनद कर लीं। मैं जानती थी मक मैंने उनका मदल दुखाया है। मुझे बुरा लगने लगा। मैं तुरनत बोल पडी, “पर आज वो उठी थीं। सुबह नहाई भी थीं।” उनहोंने मेरा हाथ पकडा और बोले, “चलो देखते हैं उनहें कया खाना है।” हम उनके कमरे में गए। पर वो दवा लेकर गहरी नींद में सो चुकी थीं। अचचन उनहें देखते वहीं खडे रहे। मफर धीमी आवाज़ में बोले, “बेचारी। काश मक मैं...” और वे चुप हो गए। मैं सोचने लगी मक वो कया चाहते थे। मैं जानती थी मक मैं कया चाहती हूँ। मैं चाहती थी मक मैं सजीचेची को वापस ले आऊँ। तब सब कुछ पहले जैसा हो जाएगा। अचचन और अममा काम पर जाएँगे और वापस आकर हमारे साथ हँसेंगे, खेलेंगे। अममा मेरी मलखाई सुधारने में मेरी मदद करेंगी। मैं डेज़ी के नए कारनामों पर अचचन से बात कर सकूँगी। और तब गममयूयों की छुमटटयों का पहला मदन यूँ ही बैठे-ठाले उधेडबुन में बीतने की बजाय उतसाह में बीतता। सजीचेची और मैं तय करने में लगे होते मक कब, कया-कया करना है और कहाँ करना है। ये सारे खयाल इस तेज़ी-से आए मक मेरी रुलाई फूट गई। मैं खुद को रोक न सकी। अचचन ने मुझे गोद में उठाया और थपथपाते हुए कुसरी पर बैठ गए। “मेरी जून 2020 32जारी... बचची,” कहते हुए वे देर तक मुझे झुलाते रहे। रोना बनद हुआ तो लगा जैसे मैं वाकई छोटी बचची बन गई हूँ। थोडी शमयू भी आई मक बेकार ही अचचन का मूड खराब मकया। कभी-कभी तो वो शाम को ज्दी घर आते हैं। थोडी देर बाद अचचन ने मुझे मबसतर पर सुला मदया। मैं नींद की चादर ओढ़ ही रही थी मक मसगरेट के धुएँ की गनध आई। शायद वो चाममबकया के पेड के नीचे बैठे होंगे, अकेले, मसगरेट पीते और रोते। 33 जून 2020 मेरी माँ करी रस़ोई प़ाथ्स लमत्तल, स़ातवीं, मैक्सफोट्स स्ूल, रोरहणी, फदल्ी मेरी माँ की रसोई बनद कयोंमक सब खाते खाना मडबबाबनद मेरी माँ बडी खुश हमने मकया दुकानदार को पुश दुकानदार ने मदया खाना उसमें से मनकला कीडा पुराना मेरी माँ को आया मज़ा दुकानदार को ममली सज़ा मेरी माँ की रसोई आई वामपस मडबबे को हमने कहा खुदा हामफज़ खुली मफर एक नई दुकान दुकानदार की आई पुकार पर हमने खाना न खाया दुकानदार को घर से भगाया कुछ मदन बाद मफर मन ललचाया दुकानदार को फोन लगाया दुकानदार ने दी जो दाल लग रही थी बडी कमाल पर देखा जब मडबबा खोल नज़र आया उसमें झोल देखके सबका हुआ बुरा हाल उसमें मदख रहा था एक बाल मवज्ापन हमें ललचाते हैं हम मखंचे चले यूँ जाते हैं मफर दवाइयाँ भर-भर खाते हैं दादी-नानी की बातें मानो माँ की रसोई से अब खालो चचत्र: सशवोम सेठ, नस्सरी, लखनऊ, उत्तर प्रदेश जून 2020 34नगर े रडाम अंजलल, पॉंचवीं, ऱाजकरीय प्ऱाथलमक ववद़्ालय, गणेशपुर, उत्तऱाखण्ड एक मदन एक गाँव में एक बडा सुनदर-सा पेड था। वह पेड कभी उलटा होता तो कभी सुलटा होता। उस पेड से सब लोग डरते थे। डर के मारे कोई भी उस पेड के पास नहीं आता था। उस पेड के नीचे एक खेल का मैदान था। वहाँ सभी बचचे खेलते थे। और वह पेड उनहें देखता था। पेड सोचता मक कोई भी बचचा मुझ पर नहीं बैठता। यह सोचकर पेड उदास हो जाता। एक मदन उस पेड के नीचे कबडडी खेलने बचचे आए। तभी एक बचचा उस पेड पर बैठता है। पेड खुश हो जाता है। बचचे को भी मज़ा आता है। तभी पेड अचानक उलटा हो जाता है और बचचा नीचे मगर जाता है। उसके दोसत भी मच्लाने लगते हैं। तब से सभी बचचे वहाँ जाना बनद कर देते हैं। मफर पेड उदास होकर सोचने लगता है मक अब से मैं उलटा-पुलटा नहीं होऊँगा। और तब से पेड उलटा-पुलटा नहीं होता था। अब उस पेड के पास सभी बचचे आते हैं और मज़े करते हैं। चचत्र: ररय़ा सोनी, उदयपुर, ऱाजस़्ान 35 जून 2020 हर मदन की तरह एक मदन मैं खेलने के मलए अपने दोसत के घर गया। उसने मुझे बडे पयार से अनदर चलकर सोफे पर बैठने के मलए कहा। मैं सोचने लगा मक आज मेरा दोसत इतना अचछा वयवहार कैसे करने लगा। खैर, मैं अनदर जाकर सोफे पर बैठ गया। अचानक परयूरयू... की आवाज़ से मैं चौंका। मन में सोचने लगा मक आज तो मैंने छोले भी नहीं खाए, मफर यह आवाज़....! तभी मेरा दोसत और उसकी छोटी बहन हँसते हुए कमरे में आए। मेरे दोसत ने कहा मक यह मेरी बहन की शरारत है। उसने सोफे पर ‘फाटयू-पाउच’ रख मदया था। मेहमान नवाज़ी सशसशर श्ीव़ास्व, छठवीं ब, सेंट फ़ांससस स्ूल, गोमती नगर, लखनऊ, उत्तर प्रदेश चचत्र: अकुल भण्ड़ारी, स़ातवीं, फदल्ी पुललस पब्लिक स्ूल, वज़ीऱाब़ाद, फदल्ी जून 2020 36चचत्र: दीवपक़ा, नौवीं, उमंग प़ाठश़ाल़ा, गन्ौर, सोनीपत, हररय़ाण़ा 37 जून 2020 5. 6. नैं सी एक तसवीर को देखकर बोली, “यह तसवीर मेरे पापा की बेटी की है। पर मेरी कोई बहन नहीं है। ” नैंसी झूठ नहीं बोल रही थी। पर यह कैसे हो सकता है? सभी खाली जगहों में एक ही शबद आएगा। बता सकते हो कौन-सा? .......... को ............. बहुत पसनद था। उसने अपने घर में ........ लगाया। शाम की एक ........ में जब वो ....... बजा रही थी तो ऐसा लग रहा था जैसे पूरा आँगन ........ से महक रहा हो। कया तुम इस मचत्र में 5 मसरों वाला मबलकुल ऐसा ही एक मसतारा और बना सकते हो जो इन सभी मसतारों से बडा हो और जो इनमें से मकसी को भी छूता नहीं हो? एक मकसान आलुओं से भरा एक बोरा लेकर चल रहा है। उसका बेटा भी उसी नाप के 5 बोरे लेकर चल रहा है। मकसान अपने बेटे से 50 मकलो ज़यादा वज़न लेकर चल रहा है। यह कैसे हो सकता है? यमद 2+1 = 23, 3+1 = 34, 4+2 = 26, 6+3 = 29 हो, तो 7+1 =? मसकनदर को कहा गया है मक यमद वह केवल 10 सीमढ़याँ चढ़कर खज़ाने तक पहुँच जाए तो खज़ाना उसका हो जाएगा। नहीं तो, उसे मार मदया जाएगा। वो कुछ मुमशकल में पड गया है। कया तुम उसकी कुछ मदद कर सकते हो? 1. 2. 4. 3. जून 2020 387. 8. ििािि बताओििािि बताओ अगर मनया की मुगरी ने मजया के घर अणडा मदया तो अणडा मकसका हुआ? ऐसा कौन-सा शबद है मजसे मलखते हैं पर पढ़ते नहीं हैं? कया है जो हमेशा आने वाला होता है पर आता नहीं है? जादू के डणडे को देखो, मपए नहीं कुछ खाए नाक दबा दो, तुरनत रोशनी चारों और फैलाए हाथ आए तो सौ-सौ काटे, जब थके तो पतथर चाटे 1 1 23 56 4 तसवीर के इन टुकडों को सही क्म में जमाओ। चार पयाले उलटे करके रखे हुए हैं। सभी पयालों के नीचे बराबर संखया में टॉमफयाँ रखी हैं। सभी के ऊपर मचपपी भी लगी है। 5 या 6, 7 या 8, 6 या 7 और 7 या 5। लेमकन इनमें से केवल एक मचपपी सही है। कया तुम बता सकते हो हर पयाले के नीचे मकतनी टॉमफयाँ रखी गई हैं? फोटो: सी एन सुब्र�ण्यम् 39 जून 2020 Next >