Cover - Illustration by Shrey Bhagnani
चकमक मार्च के कवर पर एक बच्चे का चित्र लिया गया है। इस चित्र के सिर्फ रंग देखकर भी अगर कोई लौटता है तो खाली हाथ नहीं लौटेगा। यह मान्यता है कि बच्चों को चटख रंग ही पसंद हैं। इसलिए बच्चों की किताबों में रंग दोनों हाथों से उड़ेल दिए जाते हैं। यह चित्र इस मान्यता पर सवाल उठाता है। इसके रंग मद्धिम हैं। फीके हैं। इस चित्र में एक आदमी खड़ा है। हाथ-पैर फैलाए। पर ज़रा दाहिने हाथ पर गौर कीजिए। यहाँ से देखने पर चित्र एकदम बदल जाता है। कोई आदमी है जो देख एक तरफ रहा है और कदमताल की स्थिति में है। जिसका बायाँ हाथ आगे है और दायाँ हाथ पीछे। कितनी कष्टकारी पोजीशन है यह। बच्चे बड़ों से भरी इस दुनिया में लगभग इसी स्थिति में रहते हैं। इस चित्र में कुछ है जो इसे आदमी बनाता है। पर इसमें ऐसी सौ चीज़ें होंगी जो आदमी जैसी नहीं हैं। क्या आदमियों की चार अँगुलियाँ होती हैं? क्या आदमी की आँखें उसके मुँह से बड़ी होती हैं? पर इन सबके बावजूद चित्र पर पहली नज़र पड़ते ही हम समझ जाते हैं कि यह किसी आदमी का चित्र है। जैसे-जैसे इसमें प्रवेश करते चले जाते हैं हमें पता चलता जाता है कि यह किस तरह के आदमी का चित्र है। क्या चित्र में दिख रहे आदमी ने कपड़े पहने हैं? हाँ, उसके पेट पर तीन बटन नज़र आ रहे हैं।
कवर पर ही आठ साल की बीहू की एक कविता है। चिड़िया उड़ गई...। इस कविता में चिड़िया को उड़ जाने का प्रसंग है। कवि चिड़िया के उड़ जाने का जैसे गान कर रहा है। वह इस प्रसंग से जुड़ी हर चीज़ को बार-बार याद करता है। और हर बार वहीं पहुँचता है कि चिड़िया उड़ गई है। जैसे वह चिड़िया के उड़ जाने से उबर नहीं पाता। वह उस घटनाक्रम को टुकड़े-टुकड़े में याद करके जैसे उससे उबर जाना चाहता है। यह कविता उन सारे कामों का प्रतिनिधित्व करती है जिन्हें कर लेने का समय अभी-अभी गुज़रा गया है। शायद कवि किसी ऐसे समय में रह रहा है जहाँ उसे यह भरोसा नहीं है कि ये जो चिड़िया अभी उड़ कर गई है वह वापिस आ जाएगी। पर कवि उसके इस बार उड़ जाने को आखिरी बार उड़ जाने की तरह देखता है। इसलिए तो वह उसे बार-बार याद करके बार-बार देख लेना चाहता है।
Index - A short rhyming poem on Kabutar
कबूतर - एक बेहद खूबसूरत कविता। किसी भी उमर के बच्चों के लिए। ऐसी कविताओं के पोस्टर पढ़ना सीख रहे बच्चों को भी शायद भाएँ।
जुड़े कबूतर
मुड़े कबूतर
आसमान में
उड़े कबूतर
जुड़े यानी कहीं कहीं से आकर कबूतर इतने पास उड़ रहे हैं कि लगता है कि वे आपस में जुड़े हैं। या सिर्फ पास जाने के अर्थ में जुड़े का उपयोग हुआ है। जुटने के अर्थ में।
कबूतर इतना लोचदार होता है कि वह ऐसी-ऐसी मुद्राएँ बना लेता है कि कवि को लगता है कि उसे कई सारे टुकड़ों को जोड़ कर बनाया गया हो। यानी जिन कबूतरों को कवि देख रहा है उनमें लोच इस कमाल की है। इसी लोच की वजह से ही वे जहाँ चाहे जैसे चाहे मुड़ जाते हैं। दिलीप जी के बेहद खूबसूरत चित्र।
Boli Rangoli - A column of illustrations of children on Gulzar’s couplet
बोली रंगोली
इस दफे गुलज़ार साब ने एक पहेली लिखी है। चित्रों में बूझने के लिए।
एक पेड़ है जिससे
एक ही पत्ता
रोज़ ज़मीं पर गिरता है
सदियों से ये रीत है उसकी
गिरता है तब खिलता है।
यह पहेली एक सुन्दर कविता भी है। इसमें एक पेड़ की कल्पना है जो पेड़ के ठीक उलट है। पेड़ में पत्ते जब तक डाल पर लगे रहते हैं तब तक वह खिलता है पर यहाँ उल्टा हो रहा है। पत्ता गिरता है तब खिलता है। तो यहाँ सिर्फ एक कविता के आधार पर या समानांतर चित्र बनाने भर का मसला नहीं है। यहाँ पहले एक पहेली को बूझने का मौका भी है। यूँ तो यह पहेली असल में दिन के बारे में है। समय का एक पेड़ है जिससे रोज़ एक दिन गिरता है। और जब दिन आता है तभी वह खिलता है। पर बच्चों ने इसे कई-कई तरह से बूझा। कई बच्चों ने इंसान ने बचपन से लेकर बूढ़ापे और अंत में मृत्यु को चित्रित किया। कुछ ने गिरने और खड़े हो जाने को चित्रित किया है। कुछ ने बारिश बूझा है। कुछ ने पत्ते के गिरने और उससे ज़मीन पर एक नया पौधा उगने के चक्र को दिखाया है। पर कई बच्चों ने चित्र के केंद्र में सूर्य को रखा है। यानी शायद वे इसे समझ पाए हैं।
तो इस कालम में आपको एक ही पहेली के इर्द-गिर्द इक्कीस बेहतरीन चित्र देखने को मिलेंगे।
Haji-Naji - A short comic story by Swayam Prakash, Illustration by Atanu Roy
हाजी नाजी - एक हास्य का कॉलम है। हर बार जाने-माने कथाकार एक चिरपरिचित चुटकुले या प्रसंग को नए रूप में पेश करते हैं। इस बार है मल्लाह और शास्त्री जी की कहानी। यह कहानी एक तरफ किताबी ज्ञान को कोरा मानती है। और मल्लाह के कौशल को तरजीह देती है। यह एक कहानी है जो एक तरह से हमारे समाज में किताब को किस तरह से देखा जाता है उस तरफ भी एक संकेत करती है। अतनु का एक बढ़िया कैरीकेचर।
Facebook Se… Some interesting pieces from Facebook
फेसबुक से - इस कालम में इस बार एक बच्चे की होमवर्क कॉपी के दो बेहद खूबसूरत नमूने।
Bhasha Sekhna - An article on how we learns language by Indrani Roy
भाषा सीखना - भाषा विज्ञानी इंद्राणी राय ने इस बार बच्चों के लिए एक बेहद सरल आलेख में इस तरफ सोचने के लिए कहा है कि हम भाषा असल में सीखते कैसे हैं।
इसी पेज पर बारहवीं की छात्र रिद्धि जैन का एक बढ़िया चित्र पेश है। यह चित्र एक ढाबे का सजीव वर्णन है। इसमें ढाबे पर एक छोटा सा बच्चा काम करता दिखाया गया है। दो लोग टेबिल कुर्सी पर बैठकर चाय पी रहे हैं। पर एक और आदमी भी है जो वहीं पड़े एक टायर पर बैठ कर चाय पी रहा है।
Langda gudde ki chalang - A story by Anil Singh, Illustration by Atanu Roy
लँगड़ा गुड्डा की छलाँग - आमतौर पर साहित्य में शारीरिक चुनौती झेल रहे बच्चों के वृत्तांत कम आते है। और जो आते भी हैं तो उनके किरदार लिजलिजे और सहानुभूति जगाने वाले होते हैं। बेचारगी से भरे हुए। पर इस कहानी का गुड्डा एक बेहद मज़बूत किरदार है। कहानी पढ़कर पाठक उससे सहानुभूति नहीं प्यार करने लगने लग जाता है। उसमें आग है। होली की पृष्ठभूमि पर लिखी गई इस कहानी को पाठक को अपने में डुबा लेने हुनर हासिल है। इस कहानी के बेहद खूबसूरत चित्र अतनु राय ने पेस्टल कलर से बनाए हैं।
Mera Panna - Children’s Creativity Corner
मेरा पन्ना - मेरा पन्ना में भी कुछ रचनाएँ आपको चौकाएँगी। खासतौर पर चित्र। एक मछली का चित्र है। जैसी मछली दिखती है ठीक वैसी मछली बना देना उतना बड़ा कमाल नहीं है। यह काम तो कैमरा सबसे अच्छे से करता है। पर मछली और मन की मछली को मिलाकर एक मछली बना देना ज़रूर कमाल का काम है। उसे दोहराया नहीं जाता। पूरे ब्राम्हाण्ड में वह सिर्फ एक ही बार होता है। किसी खास समय और मन की किसी खास स्थिति में। विद्याभारती छुट्टियों में घर के कामों में हाथ बँटाती हैं। जंगल से लकड़ी बीनते समय गिलहरियों के साथ दौड़भाग कर लेने के किस्से। बेहद संघर्षों में भी गिलहरियों के साथ दौड़भाग करने वाले बच्चों को कोमल-नाजुक, कोरी स्लेट आदि-आदि कई चश्मों से देखते हैं।
Mathapachchi - Brain Teasers
माथापच्ची - कुछ सवाल जो आपको दिमागी कसरत के लिए मज़बूर कर देंगे।
Vigyan Prayogo ka kamaal - Prof. Jayant Narlikar telling about an interesting experiment
विज्ञान प्रयोगों का कमाल - प्रो. जयन्त नार्लीकर का एक अनुभव। अपने शिक्षक का। कि कैसे एक दिन उन्होंने कक्षा में एक प्रयोग करके दिखाया। एक मज़ेदार प्रयोग की कहानी जो कोई भी बड़े आराम से आज़मा कर देख सकता है। दिलीप चिंचालकर के बढ़िया चित्र से सजा।
Chitron mein aam bachhe - Ashok bhowmik writing about his favourite paintings on child labour
चित्रों में आम बच्चे - चित्रकार अशोक भौमिक ने अपने पसंदीदा चित्रों के बारे में लिखा है। इसमें चित्तप्रसाद के तीन चित्रों की चर्चा है। ये तीनों चित्रों का विषय बालश्रमिक है। चित्तप्रसाद के ये चित्र उन इक्के-दुक्के चित्रों में से हैं जो आम बच्चों के जीवन पर केन्द्रित हैं। अशोक भौमिक का यह लेख पाठक को चित्तप्रसाद के चित्रों में प्रवेश के लिए कई खिड़कियाँ खोल देता है। चित्रों के छोटे छोटे विवरण जो अकसर अनदेखे रह जाते हैं अशोक जी पाठक का ध्यान उस तरफ ले जाते हैं।
Jungle mein mor naacha - A memoir by Dileep Chinchalkar, Illustration by Dileep Chinchalkar
जंगल में मोर नाचा....चित्रकार दिलीप चिंचालकर का एक संस्मरण। मोर किसी शाख में अपना पैर उलझा बैठा है। नीचे एक कुत्ता उस पर झपटने को तैयर बैठा है। मोर मदद के लिए चिल्ला रहा है। लेखक किसी तरह पेड़ पर चढ़कर मोर की टाँग निकाल देता है। उस दिन से मोर लेखक को पहचानने लगता है। लेखक उसे जहाँ कहीं दिखता वह उसे पुकार देता। बार-बार पुकारता और बार बार शुक्रिया अदा करता। बेहद खूबसूरत चित्राकंन।
Eravikulam ki Chidiya - A poem by Varun Grover, Illustration by Dileep Chinchalkar
एर्विकुलम की चिडिया - एक कविता। नई कविता। इस किस्म की कविता लगभग गद्य सी लगती हैं। पर कभी ज़रा गौर से देखो तो पता चलता है कि नहीं गद्य में किसी बात को ऐसे नहीं कहते। कभी-कभी इस तरह की यात्रा में यह भी समझ में आता है कि कविता को गद्य में उधेड़ लेना सम्भव नहीं होता है। इस कविता में कवि एक साथ दो यात्राएँ कर रहा है। एक यात्रा मुम्बई से एर्विकुलम की। और एक यात्रा मन में चल रही है - चिड़ियों को देखते हुए। कवि से बेखबर चिड़ियाँ अपनी दुनिया में व्यस्त हैं। और अपने से बेखबर कवि चिड़ियों की दुनिया में चला जाता है। सजीव चित्रों से सजी एक उम्दा कविता।
Antariksh mein ek din - A presentation on video report of an astronaut Garrett Reisman by Vivek Soley
अंतरिक्ष में एक दिन - हम धरती पर दिन बिताने वालों को किसी अंतरिक्ष यात्री से यह जानना बड़ा दिलचस्प लगता है कि उसका एक दिन वहाँ कैसा बीतता होगा। नहाना, मंजन करना, पानी पी लेना जैसे छोटे-छोटे काम जो हम यूँ ही कर लिया करते हैं उन्हें अंतरिक्ष में करना कितना मशक्कत भरा होता है। विवेक सोले की यह प्रस्तुति बड़ी दिलचस्प है।
Meri Pakistan Yatra - A travellouge by Chintan Girish Modi
मेरी पाकिस्तान यात्रा - कितनी ही चीज़ें हैं जिनके बारे में हमारी राय सुनी-सुनाई गढ़ी-गढ़ाई बातों से बनती रहती है। पाकिस्तान उनमें से एक है। पर लेखक की पाकिस्तान यात्रा में उसे एक अलग ही पाकिस्तान मिलता है। प्यार से भरा। उसके अपने देश जैसा।
Ande ka funda - An article on Lineage in Birds by Jitendra Bhatia
पक्षियों की वंशावली - थेरोपोड डाइनासौर पक्षियों के पूर्वज थे। कैसे?
बेहद खूबसूरत फोटो से सजी यह अण्डे के फण्डे की कहानी।
Battuta ka joota - Poetry orientation column, Illustration by Atanu Roy
कविता की खिड़की – बतूता का जूता
इस कालम में हम कविता में प्रवेश करने के लिए पाठकों को न्यौता देते हैं। कैसे एक बंद-सी कविता के हज़ारों हज़ारों दरवाज़े कविता पर रुककर सोचने से खुल जाते हैं। इस यात्रा में यह बात समझ में आती है कि कविता असल में कवि की एक तलाश का नाम है। कविता की यात्रा में यही तलाश पाठक को नसीब होती है। और आनंद देती है।
इस बार बच्चों की सबसे प्रिय कविताओं में से एक बतूता का जूता उर्फ इब्नबतूता पर दो कवियों - प्रभात व नरेश सक्सेना से सुनिए इस कविता के बारे में।
Basant mere gaon ka - Mukesh Nautiyal telling about the spring season of his village, Illustration by Nargis Sheikh
बसंत मेरे गाँव का - बसंत के इस मौसम में हिमालय की तराई में बसंत का स्वागत अनोखे तरीके से होता है। बच्चों के लिए बसंत फूलदेई त्यौहार की सौगात लेकर आता है। नरगिस के सुन्दर चित्र फूलदेई की एक झलक देने की कोशिश करते हैं।
Googli...Cartoon Strip by Rajendra Dhodapkar
गुगली - एक और मज़ेदार कार्टून। जाने-माने कार्टूनिस्ट राजेन्द्र धोड़पकर का।
Chitrapaheli- Children’s Activity corner
चित्रपहेली - चित्रों के सुरागों से किसी शब्द तक पहुँचने की एक मज़ेदार यात्रा। एक चित्र से शब्द तक पहुँचने में आप बार-बार उसके समानार्थी शब्दों तक पहुँचने लगेंगे। कहीं इसका मतलब यह तो नहीं से शुरू होकर सटीक शब्द तक की यह यात्रा बहुत मज़ेदार होती है।
A couplet on exam season by Rajshekhar, Illustration by Indu Harikumar
परीक्षाओं के मौसम में गीतकार राजशेखर ने एक त्रिवेणी लिखी है। एक पतंग है और एक पेपर है। दोनों कागज़ से बने हैं। पर एक उड़ने को कहता है और एक रोक देता है। इन्दु हरिकुमार ने इस कविता को अपने चित्र से सजीव कर दिया है।