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Cover poem by Anshu Kumari, Illustration by Shobha Ghare
कवर - इस बार कवर पर जानी-मानी चित्रकार शोभा घारे की एक पेंटिंग है। कवर पर ही मछली शीर्षक से एक कविता है। अंशु कुमारी की यह पहली कविता है। बेहद सरल-सी लगने वाली यह कविता अपने भीतर अनकहे का एक पूरा संसार सहेजे है। यह एक कविता है जो बच्चों के साहित्य और बड़ों के साहित्य को एक ही ज़मीन पर लाकर खड़ा कर देती है। इस तरह की कविताएँ ही शायद पाठकों को नई उमर में ही साहित्य की तरफ चले आने के लिए प्रेरित करती होंगी। इस कविता को पढ़कर आपको यह भी लग सकता है कि यह कविता एक लड़की ही लिख सकती है। शोभा घारे की पेंटिंग इस कविता की जुड़वाँ कृति लगती है। इसमें मछली की उछाल दिखती है। सारे रंग या तो मछली में हैं या उस पानी में जहाँ वह रहती है। अकेले पानी का कोई रंग नहीं होता होगा पर जो पानी मछली के साथ रहता है उसमें रंग हैं, एक तिलिस्म है। जैसा तिलिस्म कविता में है। पानी मछली के लिए आज़ादी है। मछली पानी से बाहर जाएगी तो मर जाएगी। पर कवि को उसके मर जाने की चिंता नहीं है। उसे आज़ादी की चिंता है। कि मछली मरे तो पानी में मरे। पानी न छूटे।
इस तरह की कविताएँ चर्चा के कितने ही झरोखे खोलती हैं। नए पाठकों की तरफ एक सवाल यह भी उछाला जा सकता है कि दूसरे जीव क्या-क्या सोचते होंगे। कितनी बार ऐसा होता है कि हम अपना कोई वाकया किसी और के नाम से सुनाते हैं। इससे दो चीज़ें होती हैं - एक तो हम अपने साथ ही घटे एक वाकए को एक आउटसाइडर की तरह देख पाते हैं। और दूसरे, किसी वाकए को व्यक्ति से झराकर, अलगाकर हम व्यक्ति को गौण बना देते हैं। (जब हम चालू भाषा में कहते हैं कि नफरत व्यक्ति से मत करो बुराई से करो। तो असल में हम इन चीज़ों को ही अलग करके देखने की बात करते हैं।) यह कविता भी इसी स्वभाव की है। इसमें मछली से कुछ लेना-देना नहीं है। किसी की बात मछली को निमित्त बनाकर कवि कह रहा है। भाषा का यह स्वभाव कितना कमाल का है कि हम टिकिट कहीं की लेकर बैठते हैं और पहुँच कहीं और जाते हैं।
Index - A folktale “Chamatkaar”, Illustration by Dileep Chinchalkar
एक लोककथा है। लोककथाएँ गुज़रे ज़माने के जीवाश्म नहीं होतीं। उनमें साँस चल रही होती है। जुबाँ पर आते ही वो बोलने लगती हैं। चमत्कार नाम की यह लोककथा बड़े पते की बात करती है। दिलीप जी के दिलकश चित्र के साथ।
Boli rangoli - A column on children’s Illustration on Gulzar’s Couplet
बोली रंगोली / कविता-चित्रकला की जुगलबन्दी
इस बार बोली रंगोली की पंक्ति थी
यहीं खड़ा था दोस्त मेरा
मेरी कॉपी में लिखता था
आँख खुली तो कहीं नहीं है
बंद आँखों से दिखता था
ये पंक्तियाँ सपने के बारे में रही होंगी। कई बच्चों ने इसे सपने के अर्थ में बूझा है। कुछ ने इसे अलग तरह से भी समझा है। जैसे एक बच्चे ने इसे चाँद और सूरज के रूप में बूझा है। कि जब सूरज रहता है तो चाँद नहीं रहता। और वही ज़मीन और आसमान है जहाँ सूरज रोशनी लिखता है वहीं चाँद लिखता है। जैसे ये पंक्तियाँ कोई चौराहा है जहाँ से बच्चे अपने-अपने अर्थों को ढूँढने चले जाएँगे। आमतौर पर बच्चे आकाश और ज़मीन को बैकग्राउण्ड कलर से अलग कर देते हैं। पर एक चित्र है जिसमें आकाश और ज़मीन को एकमेक कर दिया है। बैकग्राउण्ड पूरे चित्र में एक सा है। पर चित्र के एक कोने में वह आकाश का आभास देता है और एक कोने में ज़मीन का। इस बात पर गौर करना कि यदि उस चित्र में पंखा न होता तब भी क्या चित्र में यह खासियत होती? चुनिन्दा पाँच चित्रों में से एक चित्र रिजुल का बनाया गया है। उसमें भी पार्श्र्व कमाल से बुना गया है। ज़मीं को कुछ टाइलें दिखाकर बनाया गया है और उस पर एक आसमान टिका दिया गया है। बिस्तर ज़मीन पर कम आसमान में ज़्यादा लगा दिखता है। जैसे सपने जब दिखते हैं तब वे आसमान के ज़्यादा होते हैं और उन्हें ज़मीन पर लाना पड़ता है। चाँद का रंग खुशनुमा पीला है। और सिर के बालों को भी लगभग चाँद की तरह से ही बनाया गया है। सोनेवाला सपने देख रहा है। सपने देखने के लिए आँखों की ज़रूरत नहीं होती। पर जिसके बारे में सपना देखा जा रहा है उसकी बहुत बोलती आँखें बनाई गई हैं। करीने से।
Haji Naji - Fun stories by Swayam Prakash, Illustrations by Atanu Roy
एक था हाजी और एक था नाजी - कहानीकार स्वयंप्रकाश द्वारा किए जा रहे इस हास्य कॉलम में इस बार दो बेहद मज़ेदार चुटकियाँ पेश हैं। हास्य में भी भाषा अपने तमाम छरहरेपन के साथ आती है। ये कैसे होता है (जैसे कि इस कहानी में होता है) कि एक व्यक्ति बस मरने ही वाला है पर उसके सम्वाद हमें हँसा जाते हैं। क्या हम भीतर ही भीतर यह समझ रहे होते हैं कि यह कहानी की दुनिया है। और हमें यहाँ कहानी के चुटीले सम्वादों से ही होकर लौट आना है। उसके भीतर प्रवेश नहीं करते जैसे एक कविता में करते हैं। लेकिन कहते हैं कि करुण रस के आधार वाली कहानी को एक लेखक सबसे अच्छा हास्य रस में डील कर सकता है। व्यंग्य में ये बात सच होती दिखती है। जैसे भोलराम का जीव में (परसाई का मशहूर व्यंग्य) दिखता है। कैसे पेंशन पाने के लिए भोलाराम मरने के बाद भी उन्हीं फाइलों में भटकता रहता है। भोलाराम के परिवार का गुज़ारा इसी पेंशन पर टिका है। एक तरफ मन में गुदगुदी होती है दूसरी तरफ जब पाठक भोलाराम के परिवार के बारे में सोचता हुआ भोलाराम के किरदार तक आता है तो यह एक बेहद मार्मिक कहानी में बदल जाती है।
अतनु राय के बनाए चित्र इस मज़े को थोड़ा और बढ़ा देते हैं। हम किसी का किस्सा सुनते हैं और उससे मिलने का भी मन हो जाता है। चित्र शायद हमारी इसी इच्छा का सम्मान करने जैसे आते हैं। कहानी के बारे में कहा जाता है कि वह सौ-सौ झूठ बोलकर एक सच को ज़ाहिर करती है। चित्र एक तरह से किसी कहानी का एक सौ एक वाँ झूठ होते हैं। शायद ही कोई पाठक यह मानता होगा कि चित्र में दिख रहा किरदार वही है जिसकी कहानी हमने पढ़ी। असल में पाठक को पता होता है कि कहानी में सच जैसी कोई शय नहीं होती। तो उस पर आधारित चित्रों में वह उन्हें क्यों तलाश करेगा? कहानी में भाषा एक ऐसी स्पेस रचती है जहाँ सब कुछ सम्भव लगता है। वहाँ चित्र ऐसे आते हैं जैसे कहानी के ही बारे में थोड़ा और बताने कोई और व्यक्ति आ गया हो। मौका देखकर तुम ये बात कह देना ....यह वाक्य कितना सुनने में आता है। यह मौका असल में लगभग वही स्पेस का सम्भव हो जाना है जो कहानी में हुआ करती है। तब वह व्यक्ति वह नहीं होता जैसा कि वह होता है। वह थोड़ी देर के लिए अपनेपन से बाहर आ जाता है। इसलिए तो उसमें यह सम्भावना पैदा हो जाती है कि वह कोई बात मान जाएगा। साहित्य भी थोड़ी देर के लिए व्यक्ति को उसके वजूद से बाहर ले आता है। जहाँ वह कुछ भी मानने को तैयार हो जाता है।
O Andhekhe O Anjane - A Memoir by Chandan Gomes
ओ अनदेखे... ओ अनजाने - बच्चों के लिए यह एक बेहद दिलचस्प संस्मरण हो सकता है। इसलिए भी कि उन्हें बहुत छोटी उमर से ही तथाकथित कैरियर की दौड़ में शामिल हो जाना पड़ता है। एक व्यक्ति को अस्पताल में एक बच्ची की डायरी मिलती है। इस डायरी में उसने तरह-तरह के पहाड़ों के चित्र बनाए हैं। वह इस बच्ची से मिलना चाहता है। पर वह तो अस्पताल से जा चुकी है। वह तय करता है कि डायरी के चित्रों के पहाड़ असल पहाड़ों में ढूँढ निकालेगा। और वह पहाड़ों की खाक छानने निकल पड़ता है। एक-एक चित्र के पहाड़ को ढूँढता है उसकी फोटो निकालता है और अगले चित्र के पहाड़ को ढूँढऩे निकल पड़ता है। चकमक में पाठक बच्ची के बनाए चित्रों के साथ पहाड़ों के फोटो भी देख सकेंगे। इस संस्मरण में बातचीत करने के अथाह मौके हैं। मसलन, फोटोग्राफर ने ऐसा क्यों किया होगा? बच्ची की डायरी में पहाड़ों के चित्र थे। क्या उसने वे सब पहाड़ देखे होंगे? उसने पहाड़ों के ही चित्र क्यों बनाए होंगे? यह कहानी किसकी है ...फोटोग्राफर की या बच्ची की? या दोनों की? कैसे? बच्ची के घर वालों ने फोटोग्राफर को उसकी गुड़िया, टूटे क्रेयान और उसकी पासपोर्ट साइज की फोटो क्यों दे दी होगी?
Gabriel Garcia Marquez - Udayan Vajpeyi remembers Marquez
ग्रेब्रिायल गार्सिया माक्र्वेज़ - माक्र्वेज़ हमारी दुनिया के अद्भुत लेखक थे। बीते माह वे नहीं रहे। उनके एक गहरे प्रशंसक लेखक उदयन वाजपेयी ने माक्र्वेज़ को याद किया है। कैसे माक्र्वेज़ लेखन की तरफ आए होंगे आदि। उनके बचपन के किस्से आदि।
Gaon mein kuch bura hone wala hai - An interesting story by Marquez, Illustration by Atanu Roy
गाँव में कुछ बुरा होनेवाला है - माक्र्वेज़ की एक बेहद दिलचस्प कहानी। इस कहानी में एक महिला को सुबह-सुबह ऐसा आभास होता है कि कुछ बुरा होनेवाला है। यह बात वह अपने बच्चों से साझा करती है। यह छोटी-सी बात का बतंगड़ बन जाता है। ऐसा बतंगड़ कि शाम होते-होते गाँव वालों को पूरा गाँव खाली करना पड़ जाता है। इस छोटी-सी बात में कुछ लोग अपने फायदे के लिए और कुछ अज्ञानवश घी डालते रहते हैं। और आखिर में गाँव जल जाता है। यह कहानी इस तरह बुनी गई है कि वह अपने किसी पात्र को गुनाहगार नहीं ठहराती। इस कहानी के लिए मशहूर चित्रकार अतनु राय ने एक चित्र बनाया है। यह चित्र बेजोड़ है। पर इसका विचार कहानी के विचार से मेल खाता नहीं लगता है। इस चित्र के साथ पाठकों के लिए कुछ सवाल हैं जो न सिर्फ चित्र को पढ़ने में उनकी मदद करेंगे बल्कि कहानी को समझने के लिए प्रेरित करेंगे।
Mera Panna
मेरा पन्ना - हर बार की तरह बच्चों की लिखी कुछ कथाएँ-कविताएँ तथा उनके बनाए चित्र।
Bole To Bhasha - An article on acquisition of language by Indrani Roy
बोले तो भाषा - भाषा विज्ञानी इंद्राणी रॉय ने इस बार भाषा के इस कालम में इस बात पर विचार किया है कि भाषा आखिर आई कैसे?
Paglaya Hua Ghar - A story by Iravati Karve and translation by Alaknanda Sane, Illustrations by Dileep Chinchalkar
पगलाया हुआ घर - मराठी साहित्य की यह खिड़की शेज़ारी नाम से अब हर महीने चकमक में खुला करती है। इस बार जानी-मानी लेखिका इरावती कर्वे की एक कहानी। कहानी में घर बच्चों को चोट से बचाने के लिए इधर-उधर खिसक जाया करता है। इस कहानी में पाठक इस उलझन में पड़ जाएगा कि क्या सचमुच घर इधर-उधर खिसक जाया करता है या यह माँ का मन की रचना है। इस कहानी में माँ का किरदार लगभग वैसा ही है जैसा एक आम मध्यमवर्गीय परिवार में होता है। उसके सिर एक ही समय कई-कई काम होते हैं। बच्चे खेल में लगे हैं। घर में बच्चों के पिता हैं पर वे अखबार में खोए हुए हैं। उनका ध्यान घर की तरफ नहीं है। पर माँ...उसका ध्यान र्इंट-गारे से बने घर तक पर है। कोई उसका हाथ नहीं बँटाता। माँ के अवचेतन में भी अगर कोई उसका हाथ बँटाने आता है तो वह घर आता है।
Mawlynnong evam live route bridge - A beautiful travelogue by Anita Saxena, photographs by Shushruta Shrivastava
मायलिनोंग एवं लाइव रूट ब्रिज - एक सुन्दर यात्रा वृतान्त। उत्तर पूर्वी राज्य मेघालय से 75 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है मायलिनोंग, इस गाँव को ऐशिया का सबसे साफ गाँव होने का दर्जा प्राप्त है। यह जगह प्राकृतिक सुन्दरता से भरी हुई है चाहे वो पहाड़ों के बीच से निकलती नदी हो, या फिर बाँस के कॉटेज या ट्री हाउस। वहाँ के घर, लोगों का रहन-सहन, खाना-पीना, फल-फूल लेख हमें सभी चीज़ों से वाकिफ करता है या ये कहें कि हमें सीधे मायलिनोंग ही ले जाता है। सुश्रुता श्रीवास्तव के फोटो लेख को और सजीव बना रहें हैं।
Chichadi - An article on a life of an insect Tick. Translation by Vinatha Vishwnathan
चिचड़ी - एक विज्ञान का लेख है। इसमें एक जीव चिंचड़ी (टिक) के जीवन के बारे में चर्चा है। एक वैज्ञानिक ने टिक पर एक प्रयोग किया। इस प्रयोग की चर्चा है। पर इस लेख में कई अनुत्तरित सवाल हैं। ये सवाल शायद न सिर्फ इस जीव के बारे में बल्कि दूसरे अन्य जीवों के बारे में बच्चों को सोचने पर मजबूर करेंगे।
Taala - A short story by Chandan Yadav, Illustration by Dileep Chinchalkar
ताला - एक लघुकथा है। ताले के बारे में। एक घर चोरी की कोशिश हुई है। ताला तोड़ दिया गया है। ताला इस बात से परेशान है कि अब वह तो काम का रहा नहीं। वह अपने पुराने वक्त को याद करता है। ताला बच्चों के लिए बड़ी दिलचस्प चीज़ होती है। ताले को वे सुरक्षा से कम उत्सुकता से ज़्यादा जानते हैं। ताले में रखी चीज़ों की उत्सुकता और खुद ताले के भीतर की उत्सुकता। यह रचना कई मामलों में खास है। एक तो यह एक बेहद बुनियादी सवाल उठाने का मौका देती है कि आखिर ताले की ज़रूरत क्यों होती है? ताले बनाने और सुधारने वालों के बारे में। चाबियाँ बनाने वालों के बारे में। कवि राजेश जोशी ने तो एक बेहद खूबसूरत कविता ताले सुधारने वालों पर लिखी है। इस कविता के साथ यह लघुकथा एक कमाल की जुगलबन्दी पैदा कर सकती है। इस लघुकथा में सलीम के घर का ताला टूटने की आवाज़ पर उनका पड़ौसी नंदू शोर मचाकर चोरी रोक लेता है। हमारे जैसे देश में खासकर आज के माहौल में इन नामों और इनकी भूमिकाओं का एक खास मतलब है। कहानी में दो वाक्य बहुत मीठे हैं - एक वाक्य में ताला अपनी नापसंदगी बताते हुए कहता है कि - उसे इंसानों से खाली घर में दरवाज़े पर बन्द होकर लटके रहना नापसंद है। और यह भी कि मेरी एक ही चाबी हो। इसके बाद कहानी का एक और बेहद मीठा वाक्य आता है - आखिर हम ताले घरों की हिफाज़त इंसानों के साथ मिलकर ही तो कर पाते हैं। इस वाक्य का ज़ायका और गहरा हो जाता है जब हमारे सामने ताले का एक दूसरा अर्थ खुलता है। चोर इस कहानी में चोर की तरह गुम रहता है। चोरी यहाँ गौण चीज़ है। कहानीकार ने उस पर एक भी शब्द खर्च नहीं किया है। यहाँ सबसे खास चीज़ एक पड़ोसी की आवाज़ है जिसमें एक दूसरे पड़ोसी के प्रति फिकर है। इसलिए इस ताले को फेंक नहीं दिया गया। इसे सहेज लिया गया है। कि इसमें पड़ोसी की फिकर की याद है। आयशा इसे चूमकर अपनी खिलौनों की डलिया में शामिल कर लेती है।
चोर गुम है पर पाठकों से यह सवाल पूछा जा सकता है कि उस चोर का क्या हुआ होगा जिसे खाली हाथ लौटना पड़ा था। चोर चोरी क्यों करता होगा? चोर के जीवन में कितनी मुसीबतें आती रहती होंगी? इस लघुकथा में कई भाषाई बूटे नज़र आते हैं। मसलन, लोहे का स्वाद। लोहे के स्वाद का क्या मतलब होगा? घर का तेल साझा बाँटना, ठण्डा स्वाद, ताले का कलेजा मुँह को आना। दबे पाँव खिसकना आदि। ताले के जाने कितने मुहावरे होते हैं। वे सब इस लघुकथा के साथ याद किए जा सकते हैं। ताले के बहुत ही कल्पनाशील चित्रांकन चित्रकार दिलीप चिंचालकर ने किया है।
Mathapachchi - Brainteasers
जूझने के लिए कई सवाल। और कुछ पहेलियाँ। कुछ शब्दों के खेल। पहेलियाँ बूझना मज़ेदार काम है। और इन्हें बनाना उससे भी मज़ेदार काम। इसमें कम कसरत नहीं है। मसलन, मकड़ी को ही लो। मकड़ी की पहेली बनाने के लिए उसकी विशेषताओं की सूची बनानी होगी। कोई ऐसी चीज़ पकड़नी होगी जो वह उसमें ही हो। पर पहेली में कुछ पेंच भी तो बनाना है। तो एक या दो खूबियों के इर्द-गिर्द एक जाल बनाना है जिसमें बूझने वाला थोड़ी देर के लिए फँस जाए। न चाबी न ताला फँसता फँसने वाला।
सरपट दौड़े हाथ न आए
कोई उसका नाम बताए। (इस बार की माथापच्ची से)
इस पहेली के क्या एकाधिक अर्थ हो सकते हैं?
Kalakaar - A story by Ramesh Upadhyay, Illustrations by Atanu Roy
कलाकार - कथाकार रमेश उपाध्याय की कहानी है। एक कलाकार के स्वभाव के इर्द-गिर्द बुनी। इस कहानी का पार्श्व हमारा आज का समय है। कैसे पूँजीवाद धीरे-धीरे हमारी आज़ादी खत्म करता हुआ हमारे जीवन में दखल देने लगता है। अतनु राय के बढ़िया चित्रों से सजी कहानी।
Googli - A cartoon strip by Rajendra Dhodapkar
गुगली - मज़ेदार कार्टून का एक कोना।
Paheli Barish ka Geet - A short poem by Malayalam poet M.Jayakrishnan, Illustration by Abeer Ghosh
पहली बारिश का गीत - यह मलयालम की कवि एम जयाकृष्णन की कविता है। और उसके साथ तीसरी कक्षा में पढ़ने वाले अबीर का चित्र प्रकाशित है। पहली बारिश आई है। कवि उसे सुन रहा है। पर शायद उसे यकीन नहीं आ रहा है। यकीन न होना असल में इंतज़ार को बड़ा दिखाता है। तो वह सोचता है कि यदि बारिश होती तो चिड़िया गाती। यानी उसकी आवाज़ भी सुनाई देती। पर वह दुबारा सोचता है तो उसे लगता है कि नहीं ये दो अलग-अलग बातें हैं। बारिश के अलावा भी तो चिड़िया गाती है। वह तीसरी बार सोचता है कि जो आवाज़ वह सुन रहा है असल में वह बारिश की है या कोई चिड़िया गा रही है।
Chal ud ja re panchi - An article on migration of Birds by Jitendra Bhatia
चल उड़ जा रे पंछी - पक्षियों के प्रवासों की चर्चा करता बेहद आकर्षक तथा मौजूँ चित्रों से सजा एक लेख।
Ek Chitthi – A letter by a small girl to her aunty by M. Geetanjali
एक चिट्ठी - एक बच्ची की एक बेहद भोली चिट्ठी। अपनी मौसी को। जिनके घर से वह रेल में बैठकर अभी-अभी अपने घर पहुँची है।
Chitrapaheli
चित्रपहेली - चित्रों के सुरागों को बूझकर किसी शब्द तक पहुँचना और पहेली भरना।
O dharti gadarian re - A poem by Prabhat, Illustration by Atanu Roy
ओ धरती गडरियन रे - कवि प्रभात की एक बेहतरीन कविता। चन्दा, सूरज, सागर और धरती अगर गडरिया होतीं तो किसको चराते और कहाँ? चित्रकार अतनु राय का एक कलात्मक चित्र।
Chakmak - June 2014
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- Parent Category: Chakmak
- Category: Chakmak - 2014