Cover Illustration by Dilip Chinchalkar
कवर - चकमक का इस बार का कवर चर्चा के पर्याप्त बिन्दु शामिल किए आया है। इसमें लगभग मध्यमवर्गीय परिवार के जीवन का चित्रण है। यह बात चर्चा का विषय हो सकती है कि क्या यह चित्र सचमुच मध्यवर्गीय जीवन का प्रतिनिधित्व करता है? आज करता है? नहीं करता तो हम उसे क्यों याद कर रहे हैं? यह चित्र पेश करने का उद्देश्य क्या हो सकता है?
यह चित्र कई सूक्ष्म विवरण पेश करता है। और इसकी ड्राइंग बहुत सधी है। चित्र की रेखाओं पर गौर करें। क्या किसी चित्र की रेखाएँ आपको तनावग्रस्त दिखती हैं? किसी चित्र की सांगीतिक, किसी की उदार या लचीली, किसी की दृढ़ रेखाएँ? इस चित्र की रेखाओं के बारे में आपका क्या ख्याल है?
इस चित्र को दो भागों में देखा जा सकता है। एक खिड़की का हिस्सा (बालकनी) है। जो चित्र का सबसे प्रमुख हिस्सा है। जब आप चित्र को देखने आते हैं तो आपकी नज़र सबसे ज़्यादा और सबसे पहले इसी खिड़की में खड़े एक लड़के पर ठहरती है। चित्र की लगभग सारी ऊर्जा इसी खिड़की के इर्द-गिर्द है। इस खिड़की में दो विलोम दृश्य भी हैं। एक है आज़ादी का, खुले पन का। जो लड़के के इर्द-गिर्द रचा गया है। लड़का एक हाथ फैलाए शायद बारिश को महसूस कर रहा है। आमतौर पर बच्चे दोनों हाथों से बारिश के पानी को रोकते हैं। रोकते हैं तो उसके छींटे उनके चेरहे पर और मन पर आते हैं। यह मुद्रा विनम्र होती है। पर यहाँ खिड़की में खड़े लड़के का शरीर सौष्ठव चित्रकार ने दिखाया है। बालकनी में लड़के के कपड़े भी सूख रहे हैं। (लड़कियों के कपड़े सूखते दिखाना तो वर्जित विषय है) शायद थोड़ी देर पहले स्कूल से आते वक्त वह भीग गया होगा। इस पूरी खिड़की में उसके संसार का बारीक विवरण है। एक छाता है। उसके जूते हैं। जिस तौलिए से उसने खुद को सुखाया होगा वह सूखने के लिए पड़ा है। इसी खिड़की में एक पिंजरा है। जिसके लिए खिड़की के खुलेपन में होना कोई विशेष अर्थ नहीं रखता है। पिंजरा बनाकर चित्रकार पिंजरे की सिफारिश करता है? या वह उस पर सवाल उठाता है? यथार्थ दिखाकर। क्या दोनों स्थितियों के चित्रण में कोई फर्क होता होगा? खिड़की से बची जगह में घर की अन्य झलकियाँ हैं। बची हुई जगह में एक लड़की है। जो एक बर्तन में पानी भरकर नाव तैराने का सुख पा रही है। बाहर की बारिश में भीगने के आनंद और खुलेपन से बेखबर? इस बर्तन में जो पानी है वह भी सम्भवतया पानी की टंकी आदि से खींचकर निकाला गया पानी है। उसके पास एक बाल्टीनुमा डिब्बा और रस्सी सम्भवतया इसी की कहानी कह रहे हैं। इसी बची हुई जगह में एक पटिए पर किताबें और एक गेंद तथा पतंग रखी हुई है। पटिया इस ऊँचाई पर लगा है कि शायद इस पर रखा सामान लड़के का होगा। कुल मिलाकर यह कवर आपको बातचीत के लिए पर्याप्त कच्चा माल देता है।
यह एक यथार्थपरक चित्र है। (हालाँकि यथार्थ खुद एक बेहद जटिल शब्द है।) चित्रकार ने इसी दृश्य को क्यों पेश किया होगा? रचनात्मक सामग्री में सर्जक कुछ न कुछ क्रिएट करता है। तो इस चित्र में चित्रकार ने क्या चीज़ निर्मित की है जो असल में नहीं होती है? एक पुराने समय के किसी एक घर के जीवन के एक क्षण को उसने पुनर्जीवित किया है। क्या यह खासतौर पर बच्चों के लिए बनाया गया चित्र है? क्यों?
इस चित्र में बारिश के किसी एक दिन के बारे में कितना कुछ कहा गया है। पर सब सुना सुनाया लगता है। खिड़की के बाहर हो रही बारिश ने चित्रकार के सामने चित्र में एक खुलापन लाने की एक गुंजाइश पैदा की थी। पर सघन बारिश के दृश्य ने उस खुलेपन पर एक परदा डाल दिया है।
Index - A Poem “Suno Mere Bhai” by a 7th class student Pradeep kumar
गाँव की तो बात ही कुछ और है। शुद्ध हवा, पीपल की छाँव, हरे भरे खेत। बैलों के गले में घुघरूँ आदि। गाँव की ऐसी छवियाँ आम हैं। पर गाँव ऐसे होते नहीं हैं। होते तो कौन उन्हें छोड़ कर जाता। न सड़क न बिजली, न अस्पताल और न बारह महीने का रोजगार। गाँव की असल छवि पर लिखी एक बच्चे की कविता।
Boli Rangoli - A column on children’s Illustration on Gulzar’s couplet
बोली रंगोली
कलाई पर इसे बाँधा
मगर फिर भी ये उड़ता है
बदल जाता है ये लेकिन
न रुकता है न मुड़ता है
वक्त के बारे में कवि गुलज़ार की बेहद खूबसूरत दो पंक्तियों पर उतने ही कल्पनाशील चित्र। रामबाबू, जयपुर ने एक चित्र बनाया है। वक्त का। चूजा अण्डे को तोड़कर मुर्गी के सामने खड़ा है। इस कविता में वक्त के बारे में कहा है- बदल जाता है ये लेकिन/ न रुकता है न मुड़ता है.....इसका कितना खूबसूरत चित्र गढ़ा है रामबाबू ने। वक्त मुड़ता नहीं है - अण्डे से चूज़े निकल सकते हैं पर वापिस मुड़कर अण्डे में नहीं जा सकते हैं। अक्षितारा के चित्र में एक तितली भी है। जिसका एक पंख कल है और दूसरी पंख परसों। वक्त ऐसा ही है। उससे आज को या कल को या परसों को काटकर अलग नहीं किया जा सकता है। वह कल और आज और परसों के परों से मिलकर उड़ता है।
Haji-Naji - Fun Stories by Swayam Prakash, Illustrations by Atanu Roy
दो बहुत ही मज़ेदार किस्से। और उनके हँसोड़ चित्र। क्या आपने कभी सोचा है कि एक हास्य कथा में हँसी किस बात से आती है? यानी उसमें हास्य का स्त्रोत क्या होता है? अकसर ही एक परिस्थिति होती है। तब हम उस स्थिति पर हँस रहे होते हैं। ऐसी हास्य कथाओं में उनके किसी पात्र पर कोई आँच नहीं आती। पर कई हास्य कथाओं में कई बार किसी पात्र को निशाना बनाया जाता है। मसलन, किसी के हकलाने पर आने वाली हँसी। या किसी के मोटापे पर आने वाली हँसी। कई बार किसी समुदाय विशेष को मूर्ख साबित करने में आने वाली हँसी। महिलाओं के बारे में तो हज़ारों-हज़ार चुटकुले होते हैं। जब लोग इन पर हँसते हैं तो सोचता हूँ कि उनकी हँसी का स्त्रोत क्या है? उन्हें यह जो आनंद आ रहा है उसकी तह में क्या है?
Matiaburz - An interesting article by students of Vikramsheela school, Illustration by Dilip Chinchalkar
मटियाबुर्ज- कोलकाता के बच्चों द्वारा इकट्ठा किया मटियाबुर्ज़ का इतिहास। कलकत्ता के एक स्कूल के कुछ बच्चों ने मटियाबुर्ज का दौरा किया। और वहाँ के लोगों से बातचीत करके मटियाबुर्ज के इतिहास और वर्तमान पर सामग्री जुटाई। वाजिद अली शाह और मटियाबुर्ज़ की एक खूबसूरत यात्रा पर ले जाएगा यह लेख। इतिहास में दिलचस्पी न रखने वालों को भी शायद यह लेख आकर्षक लगे।
Lomdi ko dekhte hi - A Short story by Ravi, Illustration by Atanu Roy
लोमड़ी को देखते ही - एक लघुकथा, मलयालम पत्रिका युरेका से साभार । मलयालम भाषा से अनूदित यह छोटी सी हास्य कथा है। इसके बेहद खूबसूरत चित्र अतनु राय ने बनाए हैं।
Chalti hui pahadi hai - A poem by Prabhat, Illustration by Atanu Roy
चलती हुई पहाड़ी है:
हाथी मेरे साथी,
तू बगीचा है कि बाड़ी है
चूहे कहते हैं -
ये चलती हुई पहाड़ी है।
हाथी की विशालता के इर्द-गिर्द रची कवि प्रभात की एक और मज़ेदार कविता। साथ में अतनु राय का जीवंत चित्र।
Kyon ho gayi kuch dawaiyan bekaar - An article by Sushil Joshi on Antibiotic
क्यों हो गर्इं कुछ दवाइयाँ बेकार: डॉ सुशील जोशी का यह लेख एंटीबायोटिक कैसे काम करते हैं? कैसे एंटीबायोटिक असरहीन होते जा रहे हैं पर मुख्य तौर पर बात करता है।
Mera Panna - Children’s Creativity column
मेरा पन्ना - बच्चों की 12 रचनाएँ
Naam mein kya rakha hai - An article on the names of Cyclones by Indrani Roy
नाम में क्या रक्खा है - भाषाविद् इंद्राणी राय का एक विचारोत्तेजक लेख। खूब लड़ी मर्दानी कहकर हम झाँसी की रानी की प्रशंसा करते हैं। यानी जैसे पुरूष लड़ते हैं वे वैसे ही लड़ीं। पर जब किसी पुरूष का मज़ाक उड़ाना हो तो हम कहते हैं कि वह स्त्रियों जैसा है। पुरूष को कायरता कि लिए कहते हैं - चूड़ियाँ पहन लो। भाषा में कैसे हमारे समाज में फैले लिंग आधारित भेदभाव के निशान मिलते हैं इसी बात पर केंद्रित एक संक्षिप्त लेख। और इस लेख के साथ चित्रकार दिलीप चिंचालकर का एक बहुत ही कल्पनाशील चित्र।
Langda shehar Tallinn - A travelogue by Rustam
लँगड़ा शहर ताल्लिन्न - कवि रुस्तम इस्टोनिया की यात्रा पर गए। इस्टोनिया की राजधानी ताल्लिन्न ने उन्हें खूब प्रभावित किया। खासतौर पर शहर के पुराने हिस्से ने। इस शहर की यात्रा का मनमोहक वृत्तांत। ताल्लिन्न की बेहद आकर्षक तसवीरों के साथ।
Shankar’s weekly - “Wo ghar jahan mai janma tha” by Ashok K. Nagrani, 11 years, Illustrations by Dilip Chinchalkar
वो घर जहाँ मैं जन्मा था- 1950 में कार्टूनिस्ट शंकर ने अलग-अलग देशों के बच्चों की कुछ बेहद सुन्दर रचनाओं का एक संग्रह बनाया। इसी गुच्छे की एक कहानी। इसमें एक बच्चा कराची को याद कर रहा है। जिसे बँटवारे का समय हिन्दुस्तान आ जाना पड़ा।
Panna Tiger Reserve mai guzare wo khubsurat din… A memoir by Ajay Gadikar
पन्ना रिजर्व में गुज़रे वो खूबसूरत दिन: पक्षी अध्येता अजय गाडिकर पन्ना के अनुभवों के बारे में बता रहे हैं जहाँ वे गिद्धों की गिनती के लिए गए हैं। गिद्धों की गिनती? क्यों? कैसे करते होंगे? गिद्ध कोई एक जगह तो टिककर नहीं रहते? इन सब बातों पर रोशनी डालता यह अनुभव। और इस दौरान के चित्र।
Mathapacchi - Brain teasers
माथापच्ची - बर्फ में बदलने पर पानी सिकुड़ता है कि फैलता है? इसी किस्म के छह सवाल इस दफे की माथापच्ची में।
Shezari - "Andar ke aur bahar ke" by Vinda Karindikar, Illustration by Dilip Chinchalkar
शेजारी: अन्दर के और बाहर के, लेख, विन्दा करन्दीकर। इस बार मराठी के महान लेखक विन्दा करंदीकर की एक बहुचर्चित रचना अन्दर के बाहर के का एक अंश। कैसे बाहर से अन्दर पहुँचते ही सारे समीकरण बदल जाते हैं। आप की जाने कितनी स्मृतियों को जगा जाएगा से लेख...
Ek Kahani - A story by Vinod Kumar Shukl, Illustrations by Atanu Roy
एक कहानी: हिन्दी के विलक्षण कवि-कथाकार-उपन्यासकार विनोद कुमार शुक्ल की ताज़ा कहानी। विनोद जी के लेखन का लुत्फ कथा के स्तर तो उठाया जाता ही है वे कथा कहते हुए भाषा के साथ खेल करते चलते हैं। जैसे, हर शब्द की उनसे व्यक्तिगत पहचान है और वह शब्द उनसे रुककर मिले बिना आगे नहीं बढ़ता। पाठक उनकी रचनाओं को बार-बार पढ़ना चाहते हैं कि कभी खेल में शामिल होने के लिए। तो कभी कहानी सुनने के लिए। अब इस कहानी में एक लड़की नदी किनारे खड़ी है। नदी में उसकी परछाई बन रही है। नदी में धारा तेज़ होती है और उसकी परछाई बह जाती है। अतनु राय के बेहद सुन्दर - जलरंग से बने चित्र।
Activity Corner - Tum Bhi banao “Kakbhagoda” by Saumya Shukla
तुम भी बनाओ - कागभगोड़ा या बिजूका खेतों में खड़े रहते हैं। किसान खेत और घर में एक साथ नहीं हो सकता है। पर खेत बिना किसान के कैसे रहे। तो बिजूके या कागभगोड़े बनाए जाते हैं। चिड़ियों से खेत बच जाता है। एक बहुत सुन्दर कागभगोड़ा बनाने की सचित्र विधि इस बार चकमक में पेश है।
Chitrapaheli - चित्रों के सुरागों से शब्द तक पहुँचने की पहेली।
Jabaaz Irena - A story of a brave lady Irena, Illustration by Kanak
जाँबाज़ इरीना - एक जाँबाज़ महिला की कहानी। जिसने यातना शिविरों से 2500 बच्चों को एक-एक कर बाहर निकाला। चोरी से। पर एक दिन वे पकड़ीं गर्इं। कनक के कल्पनाशील चित्रों से सजी एक महिला के हौंसले की कहानी।