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Cover - Illustration by Taposhi Ghoshal
कवर - केदारनाथ सिंह की कविता- कपास के फूल, चित्र - तापोशी घोषाल
क्या कभी सोचा है आपने
वह जो आपकी कमीज़ है
किसी खेत में खिला
एक कपास का फूल है
जिसे पहन रखा है आपने
केदारनाथ सिंह की कविता कपास के फूल पर चित्रों से लिखी तापोशी की कविता। चित्र-कविता में कपास कमीज़ भी बनी और रेशा-रेशा बादल भी बन गई। कमीज़ हमें ढाँपे रहती है और बादल पूरी दुनिया को। पर न कमीज़ पहनते हुए न कमीज़ पहनकर बाहर निकलते हुए हमें याद रहता है कपास का फूल न आसमान। जीवन की आपाघापी इन बुनियादी चीज़ों पर सोचने का कोई अवकाश नहीं देती। क्या एक सुर नीचे जीवन बसर करना कमतरी समझी जाती है... आज के जीवन में?
Boli Rangoli - A column on children’s Illustration on Gulzar’s couplet.
बोली रंगोली - बोली रंगोली में इस बार की पंक्तियाँ थीं-
लम्बी-चौड़ी चौरस गोल
खोल कोई तो खिड़की खोल
बारिश में इसके शीशों पर
बूँदें लिख जाती हैं बोल।
इन बेहद खूबसूरत पंक्तियों को बच्चों ने अपनी कूची से लिखा।
Swaad - An article by Udayan Vajpeyi , Illustrations by Jagdish Joshi, Atanu Roy, Shobha Ghare
स्वाद - इन्द्रियों हमें अपने आसपास का अहसास दिलाती हैं। विज्ञान की पुस्तक हमें इसी तरह से इन्द्रियों से परिचित कराती है। पर यह सरासर नाकाफी है। स्वाद से पहले उदयन ने गन्ध, स्पर्श, देखना, सुनना को भी विज्ञान की किताब से बाहर निकालकर देखा था। इस बार स्वाद की बारी है - हरेक के स्वाद का अनुभव एक-दूसरे से थोड़ा-थोड़ा अलग होता है। यह कहा जा सकता है कि स्वाद हमारे अकेलेपन का एक और उदाहरण है।
साथ में हैं पिछले अंकों में छपे गन्ध, स्पर्श, सुनना की कुछ झलकियाँ।
Haji-Naji - Fun Stories by Swayam Prakash, Illustrations by Atanu Roy
हास्यकथा - हमेशा की तरह बच्चों का पसन्दीदा पन्ना - हाजी-नाजी के मज़ेदार किस्से। ये पन्ने सभी को गुदगुदाते हैं। पर कभी हमने हम के सोचा है कि इन किस्सों में क्या चीज़ होती है जिस पर हमें हँसी आती है। कक्षा में इस तरह की चर्चा रोचक हो सकती है।
Dibiya - A story by Uday Prakash, Illustrations by Atanu Roy
डिबिया - उदयप्रकाश की बेहद सुन्दर कहानी। धूप के एक टुकड़े को मुट्ठी में कैद करने की कोशिश हम सबने की होगी। यह भी सोचा होगा कि जब बन्द मुट्ठी के ऊपर धूप होती है तो क्या उसके भीतर भी होती है? जब हल्के से मुट्ठी खोली होगी तो धूप वहाँ हल्की-सी दिखी होगी। यकीन हो गया होगा कि हाँ, है वहाँ धूप। तसल्ली हुई होगी। ..पर कब तक मुट्ठी में रखा जाए उसे। क्यों न डिबिया में हमेशा के लिए रख दिया जाए उसे...। ऐसी ही कोशिश लेखक ने की। और तसल्ली में रहा कि धूप डिबिया में बन्द है। और है। धूप का डिबिया में न होने का डर, डिबिया खोलने भी नहीं देता। यह कहानी अनायास ही हमारे भीतर की डिबियाओं में बन्द धूप के बारे में सुचवाएगी। अतनु राय के सुन्दर चित्र कहानी का जुड़वाँ लगते हैं।
Bantwara - A puzzle by Manish Jain and its answer by Sushil Joshi
बँटवारा - पहेली - मनीष जैन, जवाब - सुशील जोशी एक पहेली और उसका जवाब। और फिर जवाब पर एक और जवाब। बड़ा मज़ेदार सिलसिला है यहाँ। यहाँ सवाल को कहानी का रूप देकर उसे रुचिकर तो बना दिया पर उसमें कई पेंच रह गए, अनसुलझे....
Jab ek ladki jeetti hai - An interview of Vinesh Phogat
जब एक लड़की जीतती है - खेल बहुत सारी चीज़ें भुला देता है। मिलकर खेलते वक्त जाति, रंग, सामाजिक स्तर, धर्म, किसी का ख्याल नहीं रहता। साथ का, बराबरी का अहसास खेलों में बेहद होता है। और जब बात लड़कियों की कुश्ती की हो और वो भी हरियाणा की तो वो विशेष हो ही जाती है। इसलिए भी कि हर जनगणना में हरियाणा में लड़कियों-लड़कों का अनुपात पिछली बार से ज़्यादा लड़खड़ाया हुआ मिलता है। ऐसे में वहाँ के एक गाँव का एक व्यक्ति अपने परिवार की लड़कियों को कुश्ती के दाँव-पेंच में इस कदर महारत हांसिल करवा देता है कि वो भारत के लिए पदकों की बारिश कर देती हैं - यह एक बड़ी बात है। विनिश फोगट से इंटरव्यू में जानें कि विनिश अपने और खेल से अपने रिश्ते के बारे में क्या कहती हैं...
Ishwar ki kahaniyan - A short interesting story by Vishnu Nagar
ईश्वर की कहानियाँ - ईश्वर को हमीं ने बनाया है, वो हमारा ही ईश्वर है तो फिर वो हमसे बहुत जुदा कैसे हो सकता है। कुछ मज़ेदार बातें ईश्वर की...ईश्वर से...
Bhagoda Chakrawat - A science Fiction by J. C. Basu, Illustration by Atanu Roy
भगोड़ा चक्रवात - कल्पना, किस्सागोई और विज्ञान का जोड़। इसे पढ़ते हुए आप पढ़े जा रहे के समान्तर मन में एक और किस्सा गुनने लगते हैं। कभी-कभी मन के और किताब के किस्से कहीं एक हो जाते हैं और कहीं दूर चले जाते हैं। इस किस्से में भी आपको बाँधे रखने के सभी तत्व हैं। तूफान आनेवाला है पढ़कर आप भी तूफान आने का इन्तज़ार करने लगते हैं। और उसके न आने पर आप भी किस्से के दूसरे वैज्ञानिकों की तरह उसके न आने के कारणों का कयास लगाने लगते हैं। और जब अन्त में असली कारण पता चलता है तो ....
Hamare Khel Massab - A satire by Gyan Chaturvedi, Illustrations by Atanu Roy
हमारे खेल मास्साब - व्यंग्य भी एक तरह से वही काम करते हैं जो लोककथाएँ करती हैं। जैसे लोककथाओं के खलनायकों से आप नफरत नहीं कर सकते वैसे ही व्यंग्य में भी होता है। शायद इन विधाओं की ही यह खासियत होती है। खेल मास्साब के इस कदर मार-कुटाई करने के बावजूद आप हँसते हैं... इसलिए नहीं कि आप संवेदनशील नहीं...फिर किसलिए? यह सवाल सभी के लिए है...अतनु राय के सुन्दर चित्र।
Chitr mein Aawazaai- An article by Devilal Patidar, Illustrations by Swaminathan
चित्र में आवाज़ाई - कलाओं का स्वभाव ही है कि वो एक दूसरे में गुँथी हुई होती हैं। बरगद की जड़ों की तरह। उन्हें अलग करना उन्हें कम करने की कीमत पर ही हो सकता है। जाने-माने चित्रकार जे स्वामीनाथन ने लेखक का ध्यान इस ओर दिलाया कि चित्र में आवाज़ कहाँ होती है। और यह बात उनके ध्यान में रही आई। और कई साल बाद एक दिन डी जे जोशी के चित्रों को देखते समय अचानक उन्हें उन्हें उनके चित्रों से वो आवाज़ सुनाई दी। एक अद्भुत अनुभव। इसे पढ़ने के बाद कोई भी कला हमें इकहरी नज़र नहीं आएगी। हमारी इन्द्रियाँ देखी, सुनी...जा रही कलाकृति की जुड़वाँ तलाशने लगेंगी।
Kurosawa Bachpan ka kuch kuch - A small piece from autobiography of Akira Kurosawa
कुरुसावा बचपन का कुछ-कुछ- अकीरा कुरुसावा ने जापान को विश्व सिनेमा के पटल पर ला खड़ा किया। रोशोमन नाम की उनकी फिल्म ने दुनिया का ध्यान खींचा। उनकी आत्मकथा फिल्म की तरह ही सीन दर सीन इस रवानगी से बहती है कि आप चमत्कृत रह जाते हैं। यहाँ दिया किस्सा बच्चों और शिक्षकों दोनों के लिए बहुत खास है। शिक्षक की भूमिका कितनी महत्ती हो सकती है... जानें।
Googli - A cartoon corner by Rajendra Dhodapkar
गुगली- हमेशा की तरह बच्चों की दुनिया में झाँकने की एक और खिड़की।
Bulbule kaise bante hain - An answer of an interesting question by Sushil Joshi
बुलबुले कैसे बनते हैं - इमली-महुआ स्कूल छत्तीसगढ़ के दूरदराज में बसे एक गाँव में है। प्रयाग जोशी नाम के बेहद कर्मठ व्यक्ति इसे बच्चों के साथ बड़े मन और विश्वास के साथ चलाते हैं। इसी स्कूल के बच्चों ने हम से बहुत से सवाल पूछे। बुलबुले कैसे बनते हैं... इस पर सुशील जोशी का बेहद रोचक जवाब पढ़ें।
Various write-ups on children’s illustration
बच्चों के चित्र - हम बड़े फक्र से पिकासो के इस कथन को दोहराते हैं कि - जब मैं बच्चा था तो बड़ों की तरह चित्र बनाने की कोशिश करता था और अब बच्चों जैसे चित्र बनाना चाहता हूँ। और फ्रांस सिज़ेक का यह कथन भी हमें अभिभूत कर सकता है कि - बच्चों के चित्रों की सबसे खूबसूरत चीज़ उनकी गलतियाँ हैं। उनके चित्रों में जितनी ज़्यदा उनकी अपनी गलतियाँ होंगी उनकी रचना उतनी समृद्ध और अनोखी होगी। और उन गलतियों को दूर करने का जितना ज़्यादा शिक्षक का दखल होगा रचना उतनी फीकी, भाव-शून्य हो जाएगी।
पर अधिकांश लोग (शिक्षकों समेत) बच्चों के चित्रों को कैसे देखते हैं? कुत्ते में लाल रंग हो गया तो बच्चे को फटकार दिया। पेड़ गुलाबी हुआ तो उसका मज़ाक बना दिया। उस वक्त हमें सूझ नहीं पड़ता कि काला या भूरा या सफेद कुत्ता तो आसपास दिख ही जाता है। उसे वैसा का वैसा बना लेने में क्या तुक। उसमें कलाकार की सोच उसके भाव कहाँ!
खैर, बच्चों के चित्रों को कैसे देखें? यह सवाल हमारे मन में कई सालों से था। इस बार हमने चकमक में पिछले 30 सालों में छपे कुछ चित्र चुनें और उन्हें विभिन्न लोगों को दिए। यह कहते हुए कि वे लिखें कि इन चित्रों में वे क्या देख पाते हैं। ये चित्र उनमें क्या भाव जगाते हैं? उनके क्या खासियत नज़र आती है - रंगों, कम्पोज़ीशन, पर्सपेक्टिव...जिस भी कोण से वे लिखना चाहें। हमें खुशी है कि लगभग 50 कवियों, कथाकारों, कला समीक्षकों, कला में दिलचस्पी रखनेवालों, शिल्पकारों, फिल्मकारों, शिक्षाविदों ने लिखा। हम तहे दिल से उनका भी आभार मानते हैं जिन्होंने लिखा कि बच्चों के चित्रों पर वे क्यों नहीं लिख पाते हैं।
Ek Baat kaho – A poem by Laltu, Illustration by Chandra Mohan Kulkarni
एक बात कहो - इस कविता की एक खूबसूरती इसके ढाँचे में है। वो आपको साथ लेकर चलती है। वो आपके साथ रहती है इस कविता के खत्म होने के बाद भी। आप इसे बढ़ाते हैं ... अपने अनुभवों से, अपनी स्मृतियों से। बात चलती रहे तो उम्मीद बनी रहती है। कवि यहाँ इस की पुरज़ोर सिफारिश करता है। साथ ही वो बात को कितनी-कितनी चीज़ों से जोड़ता चल रहा है। जह वो धरती की बात करता है तो यह बताना नहीं भूलता कि धरती कितनी बड़ी है...बारिश की गीलापन, माँ की सुन्दरता, आग की गर्माई, पानी की नर्माई....इसमें कितना कुछ चला आता है...एक बात की बहाने। बात कोई भी हो इससे फर्क नहीं पड़ता, फर्क इससे पड़ता है कि बात हो।