Cover - A poem by Suntaro Tanikawa, Illustration by Chandra Mohan Kulkarni
कवर - माँ नदी हँसती क्यों है? इस कविता को पहली बार पढ़ने पर लग सकता है कि यह एक नदी की कविता है। इसमें उसके हँसने, गाने की बात है, उसकी उम्र और उसके लगातार बहने की बात है। दूसरी बार पढ़ने पर शायद वो माँ-बेटी की कविता लगेगी। बच्ची माँ से सवाल पूछती रहती है, माँ अपने अनुभव से अर्जित बूझ से जवाब देती रहती है। तीसरी बार पढ़ने पर वो आपको यकीनन एक अलग ऊँचाई पर ले जाएगी। क्या यह स्त्री विमर्श की गाथा है? आपको क्या लगता है? एक बेहद सुन्दर कविता, बेहद भावपूर्ण चित्र के साथ।
Kele - A poem by Anware Islam, Illustration by Nilesh Gehlot
केले- कितने ही फेरीवाले हमारी गलियों में सुबह से चक्कर लगाना शुरू कर देते हैं। हमारी ज़रूरतें उनसे पूरी होती हैं। पर उनकी भी तो ज़रूरतें हमीं से पूरी होती हैं। इस हिसाब से देखा जाए तो दोनों को दर्जा बराबर का मिलना चाहिए। पर मिलता है क्या? अनवारे इस्लाम की छोटी-सी कविता पर नीलेश गहलोत का बहुत सुन्दर चित्र।
Pyare Bhai Ramsahay - A story by Swayam Prakash, Illustrations by Atanu Roy
प्यारे भाई रामसहाय - अगर हम अमरूद तोड़ने की गरज से चोरी-छिपे पेड़ पर चढ़ जाएँ और हालात कुछ ऐसे बन जाएँ कि अमरूद खुद हमारे हाथों में आ जाए तो हमें खुशी होगी या दुख? सोचो...
स्वयंप्रकाश का एक और बेहद मीठा किस्सा...
Purano se bhi purane ped - An introduction of a book “ Ancient Trees Portrait of Time” by Beth Moon
पुस्तक परिचय - पुरानों से भी पुराने पेड़ - जब हम पुराने बोलते हैं तब ध्यान हमारे पिता या दादा के समय तक जाता है। और पुराने कहें तो परदादा तक पहुँच सकते हैं। पर इस किताब में जिन पेड़ों का ज़िक्र है वो इतने पुराने हैं कि जब उन में कोंपलें आई होंगी तब या तो सुमेर में लोग पहली लिपि लिख रहे थे या रोम में जूलियस सीज़र का राज चल रहा था। इतनी सदियाँ देख चुके पेड़ों की तस्वीर देख आपका सिर श्रद्धा से झुक जाता है। पर गर्व से ऊँचा भी होता है। इतनी सदियों से मौसम की मार, इंसान की मार झेलते ये बचे रहे...। इस किताब में ऐसे कई पेड़ हैं। बेथ मून को तकरीबन चौदह साल लगे इनकी तस्वीरें खींचने में। इस दौरान वे कितने ही देश, कितने ही महाद्वीप गई। वे कहती हैं कि ये तस्वीरें तब भी रहेंगी जब ये पेड़ नहीं रहेंगे...। एक संग्रहणीय किताब।
Khatam - A poem by Shamli, 12 years, Illustrations by Soumya Shukla
खत्म - हर गुज़रा वक्त स्मृति नहीं बनता। स्मृति वही बनता है जो दर्ज होता है। 12 साल की शामली ने इस कविता को रचा है। उसने अपने होने को दर्ज किया है। एक बेहद खूबसूरत कविता और उतना ही अनूठा उसका प्रस्तुतिकरण सौम्या शुक्ला द्वारा।
Gadariye - A poem by Prabhat, Illustration by Jagdish Joshi
गडरिए - घुमन्तुओं का क्या ठिकाना - आज यहाँ, कल कहाँ। गडरियों की क्या बिसात कि इस पृथ्वी पर रहनेवाले घड़ीभर को उन्हें देखें। इस सदियों के अनदेखे ने गडरियों को इतना शर्मीला बना दिया कि अब कोई देखें तो असहज हो जाते हैं वो। पर कोई देखे भी तो क्यों? इस पृथ्वी पर इतनी बड़ी-बड़ी चमकीली चीज़ें हैं देखने के लिए - गडरिए कि क्या बिसात कि कोई उसके लिए रुके। पर इसी पृथ्वी के ऊपर आकाश है - आकाश जो सब को सिर झुका के देखता है। वो गडरिए को भी देखता है। औऱ उसे इस पृथ्वी की सबसे चमकीली चीज़ ये गडरिए ही लगती है। प्रभात की कविताओं में टँके बिम्ब उसी खूबसूरत को चौगुना कर देते हैं। और इस कविता की खूबसूरती को कई गुना कर गए हैं जगदीश जोशी के चित्र।
Dhwani - An article by Arun Kamal, Illustrations by Shobha Ghare
ध्वनि- ध्वनि से कहाँ तक बचा जा सकता है? अगर किसी तरह बाहरी ध्वनियों से बच भी गए तो भीतर की आवाज़ों का क्या करेंगे। और अगर भीतर की आवाज़ों से बच गए तो क्या जी पाएँगे? और फिर एकान्त का शोर। कितना खौफनाक होता होगा वो? उस शोर को सुनने के बाद हमें शायद आवाज़ को फिर से परिभाषित करना पड़ जाए। अरुण कमल ने इससे पहले चकमक में प्रकाश, जल, मिट्टी, हवा के बारे में लिखा है। अगर नहीं पढ़ा है तो उसे भी ज़रूर पढ़ें। शोभा घारे के चित्र की ध्वनि सुन पाए क्या आप?
Ijod- bijod - A story by Sushil Shukl, Illustrations by Kanak
इजोड़-बिजोड़ - हम हमेशा एक-से की खोज में लगे रहते हैं। एक-सी भाषा, एक-सी शक्लें, एक-से विचार, एक-सी बातें, एक-सा समाज, एक-से लोग...। पर जब सब कुछ एक-सा हो जाएगा तो दुनिया कितनी रंगहीन हो जाएगी यह हमें आज एहसास नहीं होगा। एक छोटी-सी बच्चे इजोड़-बिजोड़ जूतों में कितना मज़ा पाती है। देखें...सोचें एक खूबसूरत कहानी, खूबसूरत चित्रों में सजी।
Ladaai Ki Khel - A story by Chandan Yadav, Illustration by Taposhi Ghoshal
लड़ाई का खेल - बच्चे खेल खेलते हैं। बड़े भी खेल खेलते हैं। बच्चों के खेल घण्टा-डेढ़ घण्टा चलते हैं। बड़ों के खेल चलते रहते हैं। एक छोटी सी लेकिन बहुत बड़ी कहानी। तापोशी के सुन्दर चित्र।
Agar Sabhi Kuch Ek- sa Hota - A Poem by Ramesh Upadhyay, Illustrations by Nilesh Gehlot
अगर सभी कुछ एक-सा होता
अगर सभी कुछ एक-सा होता
तो दुनिया में चित्र न होते,
नृत्य न होते, गीत न होते।
नाटक और संगीत न होते।
तब तो यह दुनिया ही न होती।
तब तो यह जीवन ही न होता।
रमेश उपाध्याय की यह कविता किसी भी समय, किसी भी काल के लिए एकदम मौजूँ। युवा चित्रकार नीलेश गहलोत के कमाल के चित्र के साथ जिसमें रंग बहुत न हों व कितनी छटाएँ हैं।
Batuni - A satire by Harishakar Parsai, Illustrations by Mayukh Ghosh
बातूनी - खब्त कितनी ही तरह की हो सकती है। चुप रहना। हँसते ही रहना। इधर की उधर करना। या बोलते ही जाना। सुना नहीं कि बोलना शुरू। हरिशंकर परसार्इ का एक बेहद चुटीका व्यंग्य।
Chakmak Poetry cards
चकमक कविता कार्ड - चकमक में आप कविताएँ पढ़ते ही रहते हैं। उनमें से कुछ चुनिन्दा और कुछ नई कविताओं को बेहद खूबसूरती से सजा कर हमने निकाले हैं चार गुच्छे कविताओं के। हर गुच्छे में हैं 12-12 कविताएँ। कीमत एकदम वाजिब। 50 रुपए में 12 कविताएँ।
Mere Padosi ka jana - A memoir by Ajay Gadikar
मेरे पड़ोसी का जाना - लेखक के पड़ोस में रहने आया एक उल्लू। दिन भर घर में पड़ा रहने के बाद हर शाम वो काम-धन्धे पर निकलता। पड़ोसी है तो उस पर ख्याल तो जाता ही है। लेखक का भी गया। फिर एक दिन वो नहीं आया। उसके बाद किसी भी दिन नहीं आया। लेखक अब भी सोच रहा है कि क्या जो घायल उल्लू उसे चिड़ियाघर में मिला था वही तो नहीं।
Bhasha Bhawnk se Arth ankh se - A memoir by Dilip Chinchalkar, Illustrations by Dilip Chinchalkar
भाषा भौंक से अर्थ आँख से - हमेशा से नई-नई भाषाएँ सीखने का चलन रहा है। फ्रेंच, जर्मन, बंगाली, मलयालम...। क्या समय निकालकर हम कुत्ते, बिल्लियों, गिलहरियों की भाषा भी सीखना चाहेंगे। यह भाषा सीखने के लिए हमें बस उनके साथ रहना है। वो हमारी-हम उनकी भाषाएँ सीख ही जाएँगे।
Zero - A short memoir by Yamuna Keshwani, Illustration by Ananya Khare, 13 years
ज़ीरो - अकसर शिक्षकों को लगता है कि बच्चे बदमाश होते हैं। अंक पाने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। यमुना जी को भी शायद यही लगा। पर जब उन्होंने बच्चों को खुद अपने आप को अंक देने को कहा तो अनके भ्रम टूटे। एक शिक्षक की कहानी...
Kahaniyon ka Shehar - A book excerpt of Kahaniyon ka shehar, story by Rukmani Banerjee, Illustrations by Bindiya Thapar
कहानियों का शहर - एक था शहर जिसमें किसी के पास कहानियाँ सुनाने के लिए वक्त नहीं था। पर जब उस शहर को कहानियों की लत लग गई तो कमाल हो गया। सारा का सारा शहर कहानियों में डूब गया। सब ठप्प पड़ गया। पर ऐसे कैसे जहान चल सकता है। और एक जुगत ढूँढी गई कि कहानियाँ भी हों औऱ काम भी। बिन्दिया थापर के चित्र इतने सुन्दर है कि वो अपने आप में एक अलग कहानी कहने लग जाते हैं।
Dhoop - A short piece on Dhoop by Udayan Vajpeyi
धूप - जब बारिश होती है तो धूप कहाँ चला जाती है? नहीं मालूम! दरअसल तब धूप बाहलों के ऊपर जाकर लेट जोती है और वहाँ से छमाछम बरसती बारिश का आनन्द लेती है। धूप को इस अन्दाज़ में कईयों ने पहले कभी न देखा होगा।
एंड्रू वेथ की दुनिया - An article by Atreyee Day, Illustrations by Andrew Wreath
एक पूरी ज़िन्दगी घर के भीतर गुज़ार देना कैसा लगता होगा? खिड़की-दरवाज़ों से जितना बाहर अन्दर आता है बस उतनी ही बाहर में रहे आए एंड्रू वेथ के इतनी जीवन्त चित्र देखना अपने आप में एक उत्सव की तरह है।
Raat - A short piece by Rustam Singh on night, Illustrations by Dileep Chinchalkar
रात- रात को अमूमन हम अन्धेरे से जोड़ते हैं। अन्धेरा यानी काला। काला यानी अपशकुन, बुरा। पर रात क्या सचमुच काली ही होती है। आप को भी तो अपनी कितनी रातें याद होंगी जो दिन के उजाले से ज़्यादा उजली हैं।
Ek Gatividhi - An activity on “Preparation of toilet cleaner by Lemon or Vinegar” by Ankush Gupta
एक गतिविधि - हारपिक, एसिड से टॉयलेट साफ तो हो जाता है पर इसके बुरे प्रभाव कई जगह से हमीं को सहने पड़ते हैं। सीवर लाइन में जाकर वो कहीं भूजल में ही मिलता है या नदियों, तालाबों में। तो इसके प्राकृतिक विकल्प क्या सम्भव हैं? पुराने-सड़े-गले फलों से बना सिरका या सोडा या कुछ और।
Haji Naji - Fun stories by Swayam Prakash, Illustrations by Atanu Roy
एक था हाजी एक था नाजी - हर बार की तरह हाजी-नाजी इस बार भी कमाल कर रहे हैं। पढ़ना ज़रूर।
Pariksha na ho…An article by Sushil Joshi, Illustration by Divyanshi, 5th Class
परीक्षा न हो, तो क्या तुम सीखोगे-पढ़ोगे नहीं - आजकल स्कूलों में इम्तिहान चल रहे हैं। आए दिन टीवी अखबारों में खबरें छपती हैं स्कूलों में होती बड़े पैमाने पर नकलों की। अगर इस तरह पास होना है तो पास होने को इतनी अहमियत क्यों? साथ ही खबरें छपती हैं इम्तिहान का दबाव न झेल पाने वाले बच्चों की आत्महत्या की। पास होना अगर सीखने का ही पर्याय है तो फिर इसका इतना दबाव क्यों? दबाव में क्या सीखना हो सकता है? ज़रूरी सवाल उठाता लेख।
Boli Rangoli - A column on children’s illustrations on Gulzar’s Couplet
बोली रंगोली - इस बार भी बोली रंगोली के लिए ढेरों चित्र मिले। इसमें दिलचस्पी लेने के लिए सभी का शुक्रिया। अगले महीने की गुलज़ार साब की पंक्तियाँ हैं -
रख ढेले पर ढेला और हिसाब लगा
खोल नया खाता और नई किताब लगा
आप सभी से आग्रह है कि अपने आसपास के, स्कूल के बच्चों से कहें कि वो इन पंक्तियों को जैसा भी समझे हैं उसपर चित्र बनाएँ और 14 मार्च तक हम तक भेज दें।
Ujjala - A story by Sewakram Yatri, Illustrations by Habib Ali
उजाला - एक 7-8 साल की बच्ची मेरे पास बैठी एक किताब पढ़ रही थी। हम बीच-बीच में बात भी करते जा रहे थे। मैं किसी बात पर बोली कि कितने ही बच्चे हैं जो पढ़ नहीं पाते हैं। इस पर वो हैरान हुई। और बोली, इसका मतलब उनकी आँखें नहीं हैं? अब हैरान होने की मेरी बारी थी। वही हैरानी मुझे इस कहानी को पढ़कर हुई। रात में कोई लालटेन लेकर जा रहा है। पास जाकर देखा तो वो देखा वो अन्धा था। पूछा कि क्यों ये लालटेन फिर। तो उसका जवाब था कि सामने आता कोई आँखवाला मुझसे टकरा न जाए।
Kuch Kabutar aur Ek kaue ki Dosti - A memoir by Poonak Trikha
कुछ कबूतर और एक कौए की दोस्ती - छत पर चुगने आए थे कबूतर। बीच में एक कौआ भी था। उस कौए से कबूतरों की दोस्ती का एक बेहद सुन्दर संस्मरण।
Cheenti Ki Chhaya mein February - February through the eyes of Sushil Shukl, Illustrations by Nilesh Gehlot
फरवरी - फरवरी हमारे जीवन में कई बार आई होगी। पर क्या हमने फरवरी को इस निगाह से देखा है।
An Activity - A puzzle by Vivek Mehta, Illustrations by Vibhuti Pandey
एक गतिविधि- गणित और तर्क की एक मज़ेदार गतिविधि
Tax - A story by Leo Tolstoy, Illustrations by Shashi Shetey
टैक्स- सवाल पूछना हर उस शख्स को खलता है जो लोकतांत्रिक नहीं। उसे अपनी सत्ता का दर हर समय सताता रहता है। नन्ही ग्रूश्का के सवाल से बिदका टैक्स कलेक्टर भी इन्हीं में से एक है।
Badi Imaratein - An article by Uma Sudhir
बड़ी इमारतें - आज हमारे आसपास बड़ी-बड़ी गगनचुम्बी इमारतों का अतिरेक हैं। पर इन सब की शुरुआत बहुत ही चुपचाप हुई थी। कैसे ...बता रही हैं उमा सुधीर।
Sardiyan - A short creative piece by Padmaja Gungun, Illustration by Dilip Chinchalkar
सर्दियाँ- हर सर्दियों में पिछली उससे पिछली सर्दी की छाप रहती है। शायद रज़ाई में छिपी रहती हो जो निकल आती है रज़ाई खुलते ही।
Mera Panna - Children’s creativity column
मेरा पन्ना -बच्चों की रचनात्मकता के पन्ने।
Mathapachhi - Brain Teasers
माथापच्ची - सवाल-जवाब का सिलसिला...
Titu-Titu Urf Double Sapna - A memoir by Tultul Biswas, Illustration by Abhishek Verma
टिटू-टिटू उर्फ डबल सपना - नींद में सपना कोई अजीब बात नहीं। पर उस सपने में एक और सपना - आइने में एक और आइना और उसमें खुद को देखने सरीखा है। एक मज़ेदार वाक्या...
Dost (Part - 8) - A picture story by Sashi Kiran
दोस्त (भाग-8) - शशि के घर एक पिल्ला क्या आया पूरे घर की सूरत ही बदल गई। रात-दिन उसी के हिसाब से तय होने लगे...
Keeto ki duniya - An article on insects by Bharat Poorey
कीटों की दुनिया - हमारी दुनिया इन सबके होने से ही है। ये हर जगह हर काल में मिल जाते हैं। चकमक के अगले कुछ अंकों में हम कीटों के अलग-अलग अंगों के बारे में जानेंगे।
Halki Neeli Duniya - An excerpt from “Pale blue Dot” translation by Arvind Gupta, Illustration by Dilip Chinchalkar
हलकी नीली दुनिया- हमें बहुत गुमान है हमारे होने का। ये दुनिया हमसे है..सोचते हैं हम। पर अगर देखें तो इस पूरे ब्राहृाण्ड में हमारी पृथ्वी एक छोटे से नीले बिन्दु बराबर है। अब सोचे इसमें हमारी क्या हस्ती। फिर इतना गुमान काहे का...
Ji aaya sahib - A story by Sadat Hassan Manto, Illustration by Prashant Soni
जी आया साहब- सआदत हसन मंटो की एक बेहद मार्मिक कहानी। हम यूँ तो बहुत संवेदनशील होते हैं। टीवी अखबार में कुसी बच्चे या स्त्री या दलित पर होते झुल्म को देख हमारा दिल पसीज जाता है। पर जब वो हमारे घर काम करते हैं तब भी क्या हमारी वही संवेदनशीलता कायल रह पाती है?
Ache Bacche - A poem by Naresh Saxena, Illustration by Prashant Soni
अच्छे बच्चे - हमारे हिसाब से काम करनेवाले बच्चे अच्छे बच्चे होते हैं। सिर झुकाकर हमारी बात मानते रहे। हम खुश होकर उन्हें अपने घर ले आते हैं- कुछ पैसे और थोड़े से खाने पर।
Umeed ka uddta parinda – A film review by Nidhi Saxena
उम्मीद का उड़ता परिन्दा- कैस की कहानी है यह। जो बच्चे-बड़े की उम्र के बीच झूल रहा है। ऐसे में उसे अपना जीवन निर्रथक लगने लगता है। पर एक बाज़ उसे
Chitrpaheli
चित्र पहेली - चित्रों में पहेली का खेल हर बार की तरह।
Nadi - A poem by Kedar Nath Agarwal, Illustration by Chandra mohan Kulkarni
नदी -
आज नदी बिलकुल उदास थी
सोई थी अपने पानी में
उसके दर्पण पर
बादल का वस्त्र पड़ा था
मैंने उसको नहीं जगाया
दबे पाँव घर वापस आया।