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Cover - Illustration by Arya A. Parmar, 4th std student of DPS Pune
कवर - एक पूरे साल के होने को दर्ज कर रहा है चौथी के आर्या का यह चित्र। सभी मौसम एकसाथ हैं यहाँ - बराबरी से। विविधता है पर बराबरी भी है यहाँ। एक एक मौसम, एक-एक दिन... एक पूरा जीवन है यहाँ। इतने कम में इतना सारा। और हम हैं कि यह सोच-सोच के दुबलाए जा रहे हैं कि बच्चे फलाना चीज़ समझ पाएँगे कि नहीं...हम जैसे उनकी समझ का ठेका लिए हुए हैं...जबकि हम खुद को समझ गए हों इसमें भी शक कम नहीं…
Suraj ka Gola - A poem by Bhawani Prasad Mishr, Illustration by Shobha Ghare
सूरज का गोला - हम सब इक अजीब-सी नींद में हैं। नींद में उठते, खाते-पीते-काम करते...फिर नींद में ही सो जाते। नींद में उठते...इक रोज़मर्रा का तय जीवन जीते। न सोचने की झँझट न सवाल। न हमें उत्सुकता कि इस नींद के बाहर का जीवन कैसा होगा। ऐसे में यह कविता एक कोशिश है इस बने-बनाए जीवन में सेंध लगाने की। उत्साह जगाने की। आँख खोल कर खाने-पीने-सोने-चलने की। यह न केवल इंसान, फूल पत्ती, चिड़िया बीज को भी गुहार लगाती है...। उठो उठो...अब उठ भी जाओ...कब उठोगे...
Index - Tribute to Anupam Mishra
इंडेक्स - भवानीप्रसाद मिश्र के बेटे अनुपम मिश्र को चकमक की एक विनम्र श्रद्धांजलि। अनुपमजी भवानीप्रसाद जी की कविता की तरह थे। खुद तो जागे और बहुत ही विनम्र भाव से लोगों को जगाने में लगे रहे। एक खुली, साफ-सीधी-सादी किताब-सा जीवन जिया। पानी का मोल पहचाना, और उस इंसान का भी जो दूर-दराज में गुमनाम ज़िन्दगी जीता है और पानी को हथेली पर उठाए रखता है। फिर दुनिया को बार-बार अपने विनम्र अन्दाज़ में बोला-
मेरे साथ सब निकलो
घने अँधेरे से
कब जागोगे
अगर न जागे
मेरे टेरे से?
Kahan se aate hain Joote - An article by Anupam Mishra, Illustration by Dilip Chinchalkar
कहाँ से आते हैं जूते- जूते हमें दुनिया का चक्कर लगवा देते हैं। पर जूते खुद कहाँ से आते हैं। इस दिलचस्प सवाल ने अमरीकी संस्था नॉर्थवेस्ट वॉच को पूरी दुनिया का चक्कर लगवा दिया। चमड़ा कहाँ से आता है। उसकी सफाई कहाँ होती है। सफाई के साथ कितना प्रदूषण होता है। उसकी रंगाई-पुताई कहाँ होती है। उसका तला कहाँ बनता है...। जूते का हम तक पहुँचने से पहले का एक आँख खोल देनेवाला सफर…
Agar Magar - An interactive column with Gulzar Sahab, in which children’s ask questions to him, Illustrations by Atanu Roy
अगर मगर - बच्चों के सवाल और गुलज़ार के जवाब अब एक मज़ेदार कॉलम बनता जा रहा है। शुरुआती औपचारिकता खत्म होती जा रही है। अब बच्चे ज़्यादा सहज होकर सवाल पूछने लगे हैं। जैसे - अगर दुनिया चपटी होती तो? एक बच्चे के सवाल पर गुलज़ार कहते हैं - तो आप गोल होते। आप भी अपने आसपास के बच्चों के सवालों को इकट्ठा करके हम तक पहुँचाने में हमारी मदद करें तो बेहतर होगा।
Pyare Bhai Ramsahay - A story by Swayam Prakash, Illustrations by Priya Kurian
प्यारे भाई राम सहाय - कहते हैं दोस्तियाँ तो वही हैं जो बचपन में हुई। बाकी सब तो काम की दोस्तियाँ। पर कमलाकर पण्डित ने जिस दोस्ती को बचपन में तो खूब निभाया उसे बड़े होने पर जाने क्यूँ भुला बैठे। दोस्ती को दो तरफी होती है। इसीलिए शायद इसमें दो है। पर कमलाकर पण्डित बड़े होकर एक बड़ी कुर्सी पर क्या जा बैठे दोस्ती का दो कहीं उसके पाय के नीचे दब गया।...रामसहाय का एक और दिलचस्प किस्सा...
Humein pani mai bhego ke khud bach nikle Anupam - A memoir on Anupam Mishr by Dilip Chinchalkar
हमें पानी में खूब भिगोकर खुद साफ बच निकला अनुपम - अनुपम जी ने राजस्थान के दूर-दराज इलाकों में घूम-घूमकर एक किताब लिखी- “आज भी खरे हैं तालाब”। उन्हें एक साधारण-सा सवाल सूझा - राजस्थान में इतनी कम बारिश होती है फिर भी इतने सालों से यहाँ लोग कैसे बसते हैं। और वो निकल पड़े इसका जवाब खोजने। और जो ज्ञान हासिल हुआ वो इस किताब की शक्ल में हमारे सामने हैं। यह मराठी, पंजाबी, फ्रेंच, गुजराती, अरबी आदि भाषाओं में प्रकाशित हुई है। इस किताब के चित्र बनाए हैं उनके चालीस साल से दोस्त दिलीप चिंचालकर ने। वे कहते हैं कि राजस्थान में रेत बहुत होती है। तो उन्होंने सोचा कि इस किताब के चित्र ऐसे हों जो रेत का एहसास दिलाएँ। इसीलिए उन्होंने कुछ रेतीले किस्म के चित्र बनाए। अनुपम जी के साथ बीते वक्त को याद कर रहे हैं दिलीप जी...
Canvas ke Joote aur Raatrani ke Phool - A story by Nikhil Sacchan, Illustrations Swetha Nambiar
कैनवस के जूते और रात रानी के फूल - एक बूढ़ा एक बूढ़ी। एक स्कूल में रहते थे बच्चों के साथ। बूढ़ा घण्टी बजाता। बूढ़ी बच्चों को सम्भालती। बच्चों में उनकी दुनिया थी। उनकी खुशियाँ। उनकी उम्मीदें। उनके ख्वाब। फिर एक दिन उनका स्कूल छूट गया। वो जैसे धम्म से ज़मीन पर गिरे। उन्हें कभी एहसास तक न था की ज़मीन इतनी सख्त है। उन्हें याद आया घुटने का दर्द। उन्हें याद आया अकेलापन। अपने बच्चे न होना भी उन्हें तभी याद आया। एक बेहद खूबसूरत कहानी।
Mera Panna - Children Creativity Column
मेरा पन्ना - बच्चों के चित्र, शिल्प, कहानियाँ, कविताएँ...बच्चों की रचनात्मकता को पहले पायदान में रखते पन्ने।
Dosto ke naam ek chitti - A touchy letter from Fiyona Apple
दोस्तों के नाम एक चिट्ठी - फिओना अपने दोस्तों के साथ दक्षिण अमरीका जाने का प्रोग्राम बनाती है। पर उसकी पालतू कुत्तिया - जेनेट - बीमार है। उसे छोड़कर जाना सम्भव नहीं है। वो अपने दोस्तों को खत लिखती है। और उस खत में वो एक बार वो सारा समय जीती है जो उसने जेनेट के साथ जिया है। एक बेहद मार्मिक पत्र...
Mehangai - A satire by Sharad Joshi, Illustration by Prashant Soni
महँगाई - इस तंगदिल समय में व्यंग्य की जगह लगातार कम होती जा रही है। और इस कम होती जगह के कारण समाज की तंगदिली और बढ़ती जा रही है। ऐसे समय में हरीशंकर परसार्इं को पढ़ना, शरद जोशी को पढ़ना एक सुखकर अनुभव होता है। और हैरानी होती है कि उनका लिखा आज भी कितना मौजूँ है। क्या दुनिया कितनी भी आगे बढ़ जाए, पर वक्त की दुखती रगें वही रहती हैं?
Bagh Nabibaksh - Observation activity responses
बाघ नबीबख्श - चकमक के नवम्बर अंक में हमने चित्रकार नबीबख्श के बाघों के चित्र छापे थे। असल में वो बाघ को याद करते हुए अपने बीते वक्त को याद कर रहे थे। हमने बच्चों से कहा था कि क्या वो भी अपने किसी पालतु जानवर को इस तरह याद करते हैं। बच्चों के इसपर अथाह चित्र बने। किस्से मिले। उसकी एक बानगी यहाँ प्रस्तुत है...
Boli Rangoli - A column on children’s illustration on Gulzar’s couplet
बोली रंगोली - गुलज़ार साब की इस कविता पर हमें बच्चों के हज़ारों चित्र मिले। कुछ उनके कुछ हमारे पसन्दीदा चित्रों की रंगोली यहाँ पेश है। कविता को पढ़कर उसके अर्थ तक पहुँचने की यात्रा बेहद दिलचस्प है। बच्चों को भी इस यात्रा का मज़ा लेने दें। और यहाँ तो उन्हें एक और यात्रा करनी है। अर्थ से चित्र तक की यात्रा। इस अंक की कविता थी -
दो पैसे में धूप का ताप
चार आने की बारिश
मैं मौसम बेचता हूँ
मैं मौसम बेचता हूँ
Haji Naji - Fun stories by Swayam Prakash, Illustration by Atanu Roy
हाजी-नाजी - हाजी नाजी के दो नए किस्से। हँसने-हँसाने का सिलसिला...
Hezal - A memoir by Rishabh Haldar, a 8th std student of DPS International Edge school, Illustration by Dilip Chinchalkar
हेज़ल - ऋषव अपने पालतू कुत्ते हेज़ल को याद करते हैं। हेज़ल के साथ बिताए वक्त को। हेज़ल के आने से पहले के वक्त को। और उसके चले जाने को। इसे पढ़कर यकीनन हमें ये बातें बिलकुल बेबुनियाद लगेंगी कि - बच्चे मासूम होते हैं, उनसे मौत की बात करने से उनके कोमल मन को धक्का लगता है....। वे हमारे साथ हमारी दुनिया साझा करते हैं। याकि हम सब एक दुनिया साझा करते हैं। यहाँ जो भी है - अच्छा, बुरा - सभी का है। सभी के लिए है। वे भी उसे वैसा ही महसूस करते हैं, करना चाहते हैं, जैसा हम करते हैं।
Confession Box- A forth part of Priyamvad’s long story series Nachghar, Illustrations by Prashant Soni
कन्फेशन बॉक्स – (नाचघर की चौथी किस्त) सबसे मुश्किल होता है खुद के साथ रहना। अगर हमारा खुद से रिश्ता अच्छा हो गया तो दुनिया से तो हो ही जाता है। कोई बात जो हमारे भीतर घुमड़ती रहती है, जिसकी ग्लानी भी हो सकती है हमें जीने नहीं देती। हम भले ही दूसरों से बचते रहें, खुद से बच नहीं सकते। ऐसी ही हालत थी उसकी, जो डाक देने के बहाने पादरी हेबर से मिलती है। और उन्हें अपना कन्फेसर बना लेती है। कन्फेशन के बाद जब वो चर्च से निकलती है तो वो हवा-सी हलकी हो गई होती है। वो बात जो बोझ बन उसे दबाए हुए थी अब वहीं रह गई थी। कन्फेशन बॉक्स में... किशोर उम्र के प्रेम का एक सुन्दर दृश्य प्रस्तुत करना है यह लघु उपन्यास।
Janwaro ka sona - An article by Vinitha Vishwanathan containing responses of observation activity of previous month
जानवरों का सोना - चकमक के नवम्बर अंक में विनता ने जानवरों के सोने की आदतों के बारे में लिखा था। बन्दर कैसे सोते हैं, कहाँ सोते हैं जैसी दिलचस्प बातें थी उसमें। लेख में विनता ने बच्चों से कहा था कि वो भी अपने अऩुभव लिखें। या फिर किताबों से पढ़ें या अपने बढ़ों आदि से जानवरों के सोने पर जानकारी हासिल करें। इसके जवाब में बच्चों ने अपने बेहद बारीक ऑब्ज़र्वेशन लिखे। कुछ ने चित्र बनाए। इन सब को पढ़कर विनता की प्रतिक्रिया इस रूप में हमारे सामने आई...
Chitrpaheli
चित्र पहेली - हर बार की तरह अंक शब्दों की भूलभुलैया वाली पहेली...
Ye dharti kitni sundar hai - A memoir by Ruskin Bond, Illustration by Dilip Chinchalkar
ये धरती कितनी सुन्दर है - रास्ते चलते कोई तितली हमें रोक लेती है, कभी किसी पक्षी की आवाज़ तो कभी फूल की खुशबू। ऐसा हम सभी के साथ होता है। हम रुक जाते हैं। कभी बादल हमें रोक लेते हैं। कभी हवा। कभी समुद्र। हम क्यों रुकते हैं यह शायद हम नहीं सोचते। बस रुक जाते हैं। थोड़ा खुश होते हैं और चल देते हैं। उनका थोड़ा-सा हममें रहा आता है। रस्किन बॉण्ड को एक दिन एख बीरबहूटी दिखी। वो रुके खुश हुए। वो कहते हैं कि इससे उस बीरबहूटी पर कोई फर्क नहीं पड़ा। पर हममें पड़ा। अगली बार जब हम ज़िन्दगी की जद्दोजहद में कमज़ोर पड़ने लगेंगे तो, इस बूरबहूटी की याद हममें उम्मीद भर सकेगी...हमें फिर खड़ा कर देगी...। एक छोटा-सा पर बेहद दिलचस्प, दिल को छू लेनेवाला टुकड़ा...
Paltu - A short piece by Ajeet Chaudhary, Illustration by Proity Roy
पालतू – लगातार देखने से एक तारा पालतू हो जाता है। इतना पालतू कि देखने वाले के न होने पर भी रोज़ वहीं उगकर उसकी राह देखता है।