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कवर
जारुल के फूलों से लदे जारुल के पेड़ का ये मोहक चित्र हमारे देश के जाने-माने चित्रकार शुद्धसत्व बसु ने बनाया है। और ये पंक्तियाँ किसी अनाम कवि की हैं। पर हैं कितनी मारक –
पेड़ काटने आए हैं
कुछ लोग मेरे गाँव में
अभी धूप बहुत तेज़ है कहकर
बैठे हैं उसकी छाँव में

गर्मी/ कविता - इस्माइल मेरठी
इस्माइल मेरठी बच्चों के लिए कुछ कमाल की रचनाओं के लिए विख्यात हैं। गर्मी का मौसम भी उनकी एक बहुत ही जबर्दस्त कविता है। उर्दू की कहन में जो बात है वह हिन्दी में बिरले ही मिलती है। गालिब ने, मीर ने और उन के बाद के हज़ारों उस्तादों ने इस भाषा में एक फन पैदा किया है। उसमें एक बारीक सा ह्रूमर चलता रहेगा। एक व्यंग्य चलता रहेगा। और बात भी चलती रहेगी। इस ताने बाने की एक झलक देती गर्मी की यह कविता।
अतनु राय के जल रंगों का एक अद्भुत नमूना। एक पूरे पन्ने का चित्र।

सूखे पेड़ बेजान नहीं होते.../फोटो फीचर/हार्दिक राठौर
हार्दिक राठौर कैमरा लिए घूमते फिरते रहते हैं। वे इस कैमरे के साथ बार-बार सूखे, पुराने पेड़ों के चक्कर काटते हैं। बार-बार जाते हैं। जैसे हम बुजुर्गों के पास जाते हैं। पेड़ सूखकर भी मरते नहीं हैं। शायद वे यही हम से कहना चाहते हैं। इस अंक में एक सूखे पेड़ के जीवन के बारे में बहुत मार्मिक तसवीरें हैं। इन सूखे पेड़ों में एक उल्लू का परिवार रहता है। कभी इसी सूखे पेड़ पर तोते चले आते हैं। कभी एक मैना उल्लू के घोंसले में आती है। पक्षी जाते हैं। हम शायद कभी एक सूखे पेड़ के पास नहीं जाते। हम हरे पेड़ को देखकर भी नहीं पता कर पाते कि वह नीम है या आम? एक सूखे पेड़ को देखकर पहचानना वह किसका पेड़ है थोड़ा मुश्किल है। पर तोते जानते हैं। मैंना जानती हैं। उल्लू तो रहते हैं वहाँ। उन्हें शायद मालूम है कि इसी पेड़ ने कभी उन्हें हज़ारों हज़ार इमलियाँ खिलाई हैं। जैसे हम जाते हैं। वैसे ही पक्षी भी सिर्फ इमलियों के लिए नहीं याद की इमलियों के लिए एक सूखे पेड़ पर बार-बार जाते हैं।
हार्दिक के कैमरे की चार कमाल की तसवीरें तथा इस सूखे पेड़ की संक्षिप्त कहानी।

सर्दियों की रात में गाय/उदयन वाजपेयी- चित्र/नीलेश गहलोत
गाय की सेवा करना क्या होता है आखिर? उदयन वाजपेयी के इस आलेख से जानिए।

एक बस ड्राइवर की कहानी जो ईश्वर बनना चाहता था/कहानी - एत्गार केरेट/चित्र - चन्द्रमोहन कुलकर्णी
यह इज़राइल के मशहूर कथाकार एत्गार केरेट की कहानी है। एक विलक्षण बस ड्राइवर की कहानी। जो किसी लेटलतीफ के लिए दरवाज़ा नहीं खोलता। चाहे वह कोई भी क्यों न हो। पर एक दिन कुछ अलग होता है। यह कहानी जीवन के कुछ बेहद दिलचस्प अनुभवों से भरी है। चित्रकार चंद्रमोहन कुलकर्णी के दो रंगी चित्र इसमें अतिरिक्त मिठास भर देते हैं।

चंडीगढ़ का वो युरोप, अफ्रीका और चीन/संस्मरण - मीता वशिष्ठ
जानी मानी अभिनेत्री मीता वशिष्ठ ने अपना एक अनुभव साझा किया है। बचपन का। जब उनके पड़ोस में अलग-अलग देशों के लोग रहा करते थे। अफ्रीकी लड़के कैसे उनके पड़ोस में उनके भाई बने घूमते थे। उनके साथ खेलते थे। चीनी परिवारों की कथा तो और भी अनूठी है। यह रचना हालिया रंगभेदी हिंसा के दिनों में कितनी मौजूँ हो उठती है।

दिल्ली में उनींदे/इंटरव्यू - गगन गिल
गगन गिल हमारे देश के उन गिने-चुने लेखकों में से एक हैं जिनका गद्य पढ़ना एक अलग ही अनुभव होता है। वे एक शिल्पी की तरह भाषा की छोटी-से छोटी नोंकों को भी तराशती चलती हैं। वे बहुत ही जटिल बातों को एक आसान से वाक्य में सहेज ले जाने का हुनर जानती हैं। दिल्ली के एक ऑटोवाले से उनकी बातचीत पढ़ना आपको ऊपर लिखी सब बातों का मतलब समझा सकेगा। एक ऑटोवाला जो पिछले 14 साल से सोया नहीं है। यही ऑटो उसका घर है। उसका बिस्तर। उसका गाँव...सब कुछ। यकीन कीजिए इस बातचीत को पढ़ने के बाद आप उस तरह ऑटोवाले से नहीं मिल सकेंगे जैसे आप आमतौर पर मिला करते हैं। चंद्रमोहन कुलकर्णी तथा अतनु राय के तीन बहुत ही खूबसूरत चित्रों के साथ।

रिकार्ड मैंने नहीं तोड़ा है/व्यंग्य - शरद जोशी
शरद जोशी हिन्दुस्तान के विलक्षण व्यंग्य लेखक हैं। क्रिकेट पर उनका यह व्यंग्य बेहद करारा है। एक बार पढ़कर आपका मन नहीं भरेगा। आपको निश्चित ही इसे दुबारा पढ़ना पड़ेगा। और प्रशांत सोनी के बहुत ही सधे हुए चित्रों से सजा।

बोलू की कहानी/विनोद कुमार शुक्ल/चित्र - अतनु राय
विनोदकुमार शुक्ल की लम्बी कहानी में इस बार कंधारू ।
भाषा में कहन की तमाम सम्भावनाएँ खोलती इस कल्पनाशील कहानी को सिर्फ इसके शिल्प के लिए भी पढ़ा जा सकता है। भाषा असल में कई बार किसी चीज़ को, बात को कहे जाने लायक बनाती है और सुने जाने लायक बनाती है। हमारा जीवन जिसमें फैलेगा-फूटेगा वह ज़मीन भी बनाती है। इस कहानी के वाक्य बहुत छोटे हैं। पाँच या ज़्यादा से ज़्यादा छह शब्द।
जैसे बाबूलाल होटल के एक नौकर से मिलिए - उसके बड़े-बड़े बाल थे। बाल उसके कंधे पर बँटे थे। उसका कंधा तराजू के पल्ले की तरह चौड़ा था। जब हवा नहीं चलती थी। और बाल नहीं उड़ते थे। तभी वह बाहर आता था। कभी हवा से उड़कर एक भी बाल दूसरे कंधे पर चला जाता था। इससे उसका उस तरफ का कंधा झुक जाता था। इस किरदार के बारे में आप कितनी ही बातें सोच सकते हैं। कल्पना कर सकते हैं। मसलन, तेज़ हवा में जब उसके बाल इधर-उधर उड़ रहे होंगे तब उसका क्या हाल होता होगा? एक दिन वह अपने बाल कटवाने गया है। तब क्या होगा? क्या वह अपने सारे बाल अपने साथ ले आएगा कि कभी हवा में झुकते कंधे पर रखने के काम आएँगे?

स्याणा/कहानी – अनिरुद्ध उमठ/चित्र – शुभम लखेरा
राजस्थान का नाम लेते ही ऊँट का भी ख्याल आता है। वैसे ही ऊँट का नाम लेते ही राजस्थान की याद भी आती है। स्याणां ऊँट की और राजस्थान दोनों की कहानी है। कहानी का नायक एक जिद्दी ऊँट हैं। वह चाहेगा तो टस से मस नहीं होगा। लेकिन फिर ऊँट उठता है। स्याणा अपने बुज़ुर्गों के लिए भी कहते हैं। यह कितना अच्छा है कि एक ऊँट भी हमारा बुज़ुर्ग हो सकता है। जैसे हमारे बुज़ुर्ग जि़द पकड़ लेते हैं वैसे ही एक ऊँट ने जि़द पकड़ ली है। यह जि़द न होती तो यह कहानी भी न होती। ...या कोई कहानी न होती।
हिन्दी के प्रसिद्ध कवि अनिरुद्ध उमठ की एक दिलचस्प कहानी। तथा शुभम लखेरा के जीवंत चित्रों के साथ ।

बोली रंगोली
बच्चों के लिए एकदम मुफीद लिखना गुलज़ार के बाएँ हाथ का काम लगता है। जैसे कि इस बोली रंगोली में भी दिखा। बच्चों ने न सिर्फ हज़ार से ऊपर चित्र बनाकर भेजे बल्कि बोरियत पर भी लगभग दो सौ बच्चों ने लिख भेजा। इन शानदार रचनाओं से सजे छह पन्ने। बोरियत पर दो बेहद खूबसूरत रचनाएँ उन बच्चों की जिन्हें हम बच्चा ही समझते रह गए।

माँ की बेबसी/कविता – कुँवरनारायण
हिन्दी के प्रख्यात कवि की एक कविता है माँ की बेबसी। इस कविता का नायक एक बच्चा है जो सुन नहीं सकता है। एक स्कूल में हिन्दी की शिक्षिका ने इस कविता को पढ़ाते हुए बच्चों को भी प्रेरित किया कि इस कविता की जुगलबन्दी करते हुए वे भी कुछ लिखें। बच्चों ने कई कविताएँ लिखी हैं। इनमें से चुनिन्दा कविता तथा कुँवरनारायण की कविता पर एक समीक्षात्मक टिप्पड़ी। यह कविता शिक्षण पर शिक्षकों के काम आने वाली रचना होगी।

अजीब-सी अनिशा/कहानी- ज्योत्सना
वह अपनी छोटी बहिन को कमरे में बन्द कर देती है। और एक पत्र छोड़कर जाने कहाँ जाने के लिए निकल पड़ी है। घरवाले, उसके दोस्त सब उसकी तलाश में हर उस जगह जाते हैं जहाँ वह जा सकती थी। फिर सब थक हारकर लौट आते हैं। पर अनिशा मिलती है। अजीब अनिशा की यह दिलचस्प कहानी ज्योत्सना ने लिखी है। पाँचवीं की छात्रा ज़्योत्सना दिल्ली की एक बस्ती में रहती हैं। यह उनकी सच्ची कहानी है।

फोटोग्राफर मैं मन का/संस्मरण - दिलीप चिंचालकर
दिलीप चिंचालकर की एक लघु रचना। उन्होंने अपने बचपन की उस बात को याद किया है जब पहली बार उन्होंने कैमरा थामा था। लेकिन जल्दी ही इस कैमरे की ज़रूरत नहीं रह गई। उनकी पहचान एक ऐसे कैमरे से हुई जो बिना फोटो निकाले दुनियाभर की बातें दजऱ् करता रहता था। और ज़रूरत के वक्त उन्हें ताज़ा कर देता था।

अपवास में बुद्ध/ कला पर लेख - अशोक भौमिक
एक बुत उस समय काल के आलावा औऱ भी कितना बताता है जिस वक्त वो बना। पाकिस्तान में मिली बुद्ध के इस बुत से उसके व्यक्तित्व के बारे में, उनकी सोच के बारे में भी कितना कुछ जाना जा सकता है। एक बेहद दिलचस्प लेख

आखिरी झलक/ लम्बी कहानी - प्रियम्वद
कथाकार प्रियम्वद की लम्बी कहानी नाचघर का एक और दिलकश एपिसोड। एक दो टुकड़े पढ़ो ...इस जादू को लिखा नहीं सकता - इसे देखा ही जा सकता है ...पढ़कर देखो ... सर्दियों में शुरू के दो महीनों में जब चाँद पूरा होता है मेरा कमरा चाँदनी से भर जाता है। चाँद ऊपर जाता रहता है। कमरे में चाँदनी बढ़ती जाती है। कमरे में भरती जाती है। किसी गुब्बारे की तरह कमरा फूलता जाता है। लगता है कि चाँदनी से फट जाएगा। ...यह कहानी हिन्दी की इक्की-दुक्की किशोर प्रेमकथाओं में से एक है। यह कथा तथा प्रेम इतना झीना है और इस सलीके से कहा जा रहा है कि पता ही नहीं चलता है कि कथा के पार्·ा में प्रेम है या प्रेम के पार्·ा में कथा है।

मेरा पन्ना
बच्चों की कमल और तूलिका का कमाल

मेरी मम्मी मेरे पापा.../चित्रकथा/नेहा सिंह
नेहा सिंह थिएटर करती हैं और लिखती हैं। गाती हैं। उनकी इस कहानी में ये तीनों तत्व हैं। छोटी सी कहानी है ये यूँ तो। एक छोटी सी लड़की की माँ लम्बी हैं और पिता ठिगने। लोग जैसे कि होते हैं कई बातें कहते हैं। मज़ाक बनाते हैं। पर ये छोटी लड़की अपने माँ पिता के बारे में क्या सोचती है ...बहुत ही सुन्दर जवाब।
आज जब दुनिया विविधता का उत्सव मनाने की जगह फिरकापरस्ती में गुम है तब ऐसी कहानियाँ हमारे बड़े काम आ सकती हैं। ताकि हमारे सपनों में हिम्मत बनी रहे। चित्र भी नेहा के हैं। बहुत ही अनगढ़।

हम कहानी क्यों कहते हैं/ लेख-कविता- कुमार अम्बुज
लाइजेल म्यूलर ने एक कविता लिखी है। वे दुनिया के उन कवियों में से एक हैं जिनके लेखन में इतिहास प्रमुखता से आता है। कवि कुमार अम्बुज ने उनकी ही एक कविता के माध्यम से बताया है कि हम कहानी क्यों कहते हैं? यह आलेख एक कविता को नए रूप में पाठक के सामने ला पाएगा। अतनु राय का एक अद्भुत चित्र भी पाठक देख सकेंगे।

माथापच्ची
सवालों की दुनिया से छह मज़ेदार सवाल।

क्यूँ-क्यूँ चिड़िया/यायावर – चित्र/नीलेश गहलोत
कभी देखा नहीं उसे
बस पास ही कहीं से
उस चिड़िया की आवाज़ सुनता हूँ
क्यूँ क्यूँ क्यूँ?

पता नहीं यह किस चिड़िया की आवाज़
पता नहीं उसके मन में क्या सवाल
मुझे तो सुनाई देती है बस
क्यूँ क्यूँ क्यूँ?

शायद मैं समझता हूँ
शायद दूसरी चिड़ियों के मन में आते होंगे ये सवाल
मगर केवल यही चिड़िया पूछती है
क्यूँ क्यूँ क्यूँ?

दूसरी चिड़ियों के मन में भी आते होंगे सवाल
मगर मैंने तो बस इसी को पूछते सूना है
क्यूँ क्यूँ क्यूँ...
क्यूँ क्यूँ क्यूँ...

चाँद/कहानी - मेहा/चित्र - रुस्तम
दस वर्ष की मेहा ने चाँद के अवलोकन तथा कथा को मिलाकर एक सुन्दर सा छोटा पीस लिखा है। उनकी रचना के साथ कवि-चित्रकार रुस्तम की एक पेंटिंग। पेंटिंग का शीर्षक भी ज़ाहिर है चाँद ही है।

चित्रपहेली
वही चित्रों के इशारों को शब्दों में बूझने की पहेली।