कवर
इस्माइल मेरठी की कविता बरसात। और सुजाशा दासगुप्ता का खूबसूरत चित्र। छन्द कविता में लय तो लाता ही है और वो ज़ुबान पर चढ़ जाता है पर उर्दू शायरी में जो कहन का मज़ा है जो आन्तरिक लय है वो बस देखते-सुनते ही बनती है। उर्दू की कहन हिन्दी में बिरले ही मिलती है। गालिब ने, मीर ने और उन के बाद के हज़ारों उस्तादों ने इस भाषा में एक फन पैदा किया है। उसमें एक बारीक- सा ह्रूमर चलता रहेगा। एक व्यंग्य चलता रहेगा। और बात भी चलती रहेगी। इस ताने बाने की एक झलक देती बरसात की यह कविता।
महुआ की बिनाई - गिरिजा कुजूर
गिरिजा 11 साल की हैं। परिवार को महुआ बीनते देखते कई साल हो गए हैं। हर बार सब के साथ महुआ बीनने के मज़े लेती हैं, उसे घर लाकर सुखाने- उसके रखरखाव में भी हाथ बँटाती होगीं...पर फिर भी यह सवाल पूछना नहीं भूलती कि हमारे पेड़, हमारी मेहनत, हमारा समय लगता है पर फायदा हमें क्यों नहीं मिलता? दलाल, जो बस उसे हमसे खरीदता है सारा मुनाफा उसकी जेब में क्यों चला जाता है। साथ में है नीलेश गहलोत का जीवन्त चित्र।
द जनरल - जेनेट चार्टरस - कहानी
इस दौर में खुद को श्रेष्ठ साबित करने की दौड़ से कुछ ही लोग बच पाए होंगे। जनरल जोधपुर भी इसी रट में फँसे हैं। देश का सबसे महान जनरल बनने की ख्वाहिश उन्हें अपनी फौज के अलावा कुछ नहीं सोचने देती। एक दिन जब वो अपने घोड़े से गिरकर कुछ देर तक घास-फूल के बीच पड़े रहे, अचानक उन्हें समझ आया उन्होंने कितना कुछ खो दिया। आज तक उन्होंने फूल, घास, पेड़, तितली, बादल कुछ नहीं देखे। नतीजा यह रहा कि उन्होंने अपने सारे फौजियों को घर भेज दिया। उन्होंने क्या किया कि आखिर जनरल जोधपुर दुनिया के महानतम जनरल कहलाए? ये दुनिया हथियारों, युद्ध की जिस अँधी दौड़ में फँस गई है...इस समय के लिए एकदम मुफीद किताब। और ताज्जुब यह कि 50 साल पहले लिखी गई यह कहानी आज भी एकदम मौजूँ हैं।
नींद का झोंका - बाबुशा कोहली - कविता
नई कविता की एक बानगी। इसमें आज के समय के शब्द हैं जो कल्पनाओं की पेंग उड़ा रहे हैं। साथ में है चन्द्रमोहन कुलकर्णी का चित्र जो किसी कविता से कतई कम नहीं।
उपवास में बुद्ध - अशोक भौमिक - लेख
बुद्ध की तीन संग्रहालयों - पाकिस्तान, इंडोनेशिया और न्यूयॉर्क- में रखी तीन मूर्तियों पर अशोक भौमिक का बेहद दिलचस्प लेख। एक महीने से उपवास में एक ही जगह बैठे बुद्ध को शिल्प में कैसे दिखाया जाए। शिल्प जिसे कि अमूमन एक स्थिर पल चित्रण माना जाता है उसमें समय के बीतने को कैसे दिखाया है मूर्तिकार ने यह अपने आप में अनूठा है। उन्होंने बुद्ध के शरीर पर पतली-पतली बेलें चढ़ा दी हैं। उनका सोचना यह हो सकता है कि एक ही जगह पर लम्बे समय तक बैठे रहने से आसपास के बेल-बूटे तो उनपर चढ़ेंगे ही।
गुस्सैल चाचा - शिनची होशी - जापानी कहानी
एक जापानी कहानी। जो बच्चे कहना नहीं मानते उनके लिए एक एजेंसी कुछ खास लोग तैयार करती है। ये लोग बच्चों को डरा-धमकाकर अनुशासन सिखाते हैं। एक परिवार के पास भी इसी एजेंसी का विज्ञापन करने वाला व्यक्ति आता है। विज्ञापन इतना आकर्षक होता है कि वह परिवार अपने बच्चे के लिए एक गुस्सैल चाचा की सेवाएँ लेने के लिए तैयार हो जाता है। फिर एक बहुत दिलचस्प घटना घटती है और इस कम्पनी का सारा का सारा खेल सामने आता है।
चंद्रमोहन कुलकर्णी ने इस कहानी का बहुत ही उम्दा चित्र बनाया है।
मेरा चाँद डूबा नहीं था - निधि सक्सेना - रचनात्मक लेख
जो कभी-कभी आसमान पर बहली छाती है पर दरअसल बादलों की वजह से नहीं। बूढ़ी सूत कातती बुढि़या के हाथ से गिरे ऊन के गोले चाँद पर जा लिपटते होंगे। और हम समझते हैं बादल छा गए। बरसात आनेवाली है। और छतरी लेकर घर से निकल जाते हैं। अब जो बादल हैं ही नहीं वो बरसेंगे कैसे? रचनात्मक लेखन का एक शानदार नमूना।
बरखा तुम्हारा आना - दिलीप चिंचालकर - लेख
मंच पूरा सज चुका है। पपिहा, श्यामा, पेड़-पौधे, जीव- जन्तु, बादल, हवा सब इन्तज़ार की अपनी तैयारियों में हैं। पर बरखा है कि आ ही नहीं रही। तैयारी में तो कोई कोर कसर नहीं छूटी। फिर फाइनल शो क्यों नहीं हो रहा? बारिश आना हममें से कईयों के लिए एक उम्मीद के पूरा होने की तरह होती है। कइयों के लिए एक दु:स्वप्न की तरह भी होती है। बारिश इस तरह से अन्य मौसमों से बहुत अलग होगी है। उसके आने से पहले कैसी- कैसी कहाँ-कहाँ तैयारियाँ चल रही होती हैं... दिलीप चिंचालकर का लेख उन्हीं के हरे-भरे चित्रों के साथ...
मेरा पन्ना
बच्चों की रचनात्मकता को सलाम करते पन्ने...
धूप बताशा - प्रियम्वद - कविता
रोज़ सवेरे यही तमाशा, टूटे बिखरे धूप बताशा....कहानीकार, उपन्यासकार और इतिहासविद् प्रियम्वद ने पहली बार बच्चों के लिए कविता लिखी है। अन्य भाषाओं में वहाँ के बड़े कवियों, कहानिकारों ने बच्चों के लिए लिखने को जो अहमियत दी है हमारे यहाँ वो सिरे से गायब लगती है। पर जब उन्होंने आग्रह पर ही सही लिखा तो क्या खूब लिखा।...
प्रिय बराक ओबामा के नाम खत - सोफिया - खत
वो एकमात्र चीज़ जिसका ना होना इस दुनिया को एकदम नीरस जगह में तब्दील कर सकता है वो है विविधता। सब कुछ एक जैसे - धर्म, जातियाँ, रंग, बोलियाँ, कपड़े, खाने... - से बेस्वाद और क्या होगा। हम क्यों नहीं समझते कि इस दुनिया को दिलचस्प यही विविधता बनाए हैं। ऐसे में एक छोटी बच्ची एक महान देश के राष्ट्रपति को खत लिखती है। और पूछती है कि हर घर में एक माँ-एक पिता होते हैं। मेरे घर में दो पिता हैं - दोनों एक दूसरे से और मुझसे बहुत प्यार करते हैं। ऐसे में लोग मेरा मज़ाक क्यों बनाते हैं। मुझे तो इसमें कोई खराबी नहीं दिखती। और राष्ट्रपति ओबामा इसका जवाब देते हैं। एक बहुत ज़रूरी संवाद...
कलमकारी - निहारिका शेनॉय - लेख
कलमकारी का चलन दक्षिण भारत में शुरू हुआ। फिर वो धीरे-धीरे दुनिया भर में फैल गई। पर इंग्लैंड में इसके आयात में कमी आने पर यह बहुत सिमट गई। कलमकारी पर एक जानकारी परक लेख...
नाचघर - सोन ख्वाब - प्रियम्वद - कहानी
कथाकार प्रियम्वद की लम्बी कहानी नाचघर का एक और दिलकश एपिसोड। इस जादू को लिखा नहीं सकता -
इसे देखा ही जा सकता है...पढ़कर देखो ...
ये सब लोग इतनी छोटी और अलग-अलग जगहों के लोग होतेे हैं कि इनके पास कुछ भी बड़ा नहीं होता। इसलिए कोई बड़ा भगवान भी नहीं होता। इसीलिए इनकी जि़न्दगी, इनकी बातें और प्रार्थनाएँ बिना भगवान की हैं। सोन ख्वाब में वहीं से आई हैं। मैंने पहली बार ऐसी प्रार्थनाएँ सुनी हैं जो पूरी दुनिया में कोई भी कर सकता हैं क्योंकि उनमें कोई भगवान नहीं है। कोई धर्म नहीं हैं। ये जि़न्दगी से निकली हैं। इनमें धूप, रोशनी, सबके सुखी होने की प्रार्थनाएँ हैं। ऋतुओं की, पानी, बादलों, ऊँटनी के दूध, रेत के बिच्छू की प्रार्थनाएँ हैं। चिता के धुएँ की, हड्डी के न टूटने की, फसलों और बीमारियों की प्रार्थनाएँ हैं। ...यह कहानी हिन्दी की इक्की-दुक्की किशोर प्रेमकथाओं में से एक है। यह कथा तथा प्रेम इतना झीना है और इस सलीके से कहा जा रहा है कि पता ही नहीं चलता है कि कथा के पाश्र्व में प्रेम है या प्रेम के पाश्र्व में कथा है।
80 पर्सेंट - चन्द्रमोहन कुलकर्णी - संस्मरण
एक चित्रकार को एक दिन थाने बुलाया जाता है। चित्रकार है तो वो किसी के भी चित्र बना सकता है यही सोच कर। उसे एक बदमाश का हूलिया बयान किया जाता है जिसपर उसे चित्र बनाना है ताकि वो पकड़ा जाए। हूलिया बतानेवाले के पास भी कुछ आम-सी दो-चार पहचानों के अलावा कुछ कहने को है नहीं। चित्रकार उस पर चित्र बनाता है। और हैरानी की बात यह कि जिसने उस अपराधी को देखा तक नहीं वो कहता है कि यह 80 परसेंट सही है...एक मज़ेदार वाक्या...
और एक दिन - नसीरुद्दीन शाह - पुस्तक अंश
नसीरुद्दीन शाह आज एक जाना-पहचाना नाम है। थिएटर और फिल्मों में उन्हें इज़्ज़त मिली है। पर उन्होंने बचपन में अपने हिस्से की तमाम मुश्किलों को झेला। स्कूल में नम्बर न आने के कारण उनपर अकसर कहर बरसता। पर उन्हें जो राह दिखाई वो कलाओं ने ही थी। एक नाटक पर वो मंच पर आए। उसमें उन्होंने इतने सारे लोगों के बीच संवाद जो बोले उनके तमाम डर गायब हो गए। और आत्मविश्वास लौट आया।
उल्टे पाँव लौटना - लेख
चींटियाँ खाना लेने जाती हैं। जब लौटती हैं तो कभी-कभी अपने आकार से भी बड़े खाने को लेकर। मुँह पर पकड़े इतने बड़े खाने के बाद वो रास्ता कैसे चीन्हती हैं...।
जब पेंसिल की नोंक खत्म होगी- विनोद कुमार शुक्ल - लम्बी कहानी
भाषा में कहन की तमाम सम्भावनाएँ खोलती इस कल्पनाशील कहानी को सिर्फ इसके शिल्प के लिए भी पढ़ा जा सकता है। भाषा असल में कई बार किसी चीज़ को, बात को कहे जाने लायक बनाती है और सुने जाने लायक बनाती है। हमारा जीवन जिसमें फैलेगा-फूटेगा वह ज़मीन भी बनाती है। इस कहानी के वाक्य बहुत छोटे हैं। पाँच या ज़्यादा से ज़्यादा छह शब्द।
बाबूलाल महराज ने कहा, “जब तुम्हारी पेंसिल की नोक लिखने से खतम हो जाएगी तब आऊँगा।” कूना ने कहा, “तब मैं जल्दी-जल्दी बहुत सारा लिखूँगी। इससे आप जल्दी आ जाएँगे।” “लेकिन, जब तक मैं नहीं आऊँगा तुम्हारी पेंसिल की नोक तो खतम नहीं होगी।” महराजजी ने मुस्कराकर कहा। बोलू ने कहा, “हम दोनों मिलकर बारी-बारी से एक ही पेंसिल से लिखेंगे तो नोंक और जल्दी खतम हो जाएगी।” महराज हँसने लगे। कहा, “मैं जिस तरफ जा रहा हूँ। उस तरफ की बहुत दूरी है। पेंसिल भी देर तक चलेगी। वह मेरे जाते और मेरे लौटते तक चलेगी।”
एक समय की बात है- गीत चतुर्वेदी - कहानी
एक बीज से निकले पेड़ की कहानी। बीज से निकलकर हर पल उससे दूर जाते पेड़ की कहानी।...
बोली रंगोली
बोली रंगोली में जून-जुलाई की कविता थी -
एक मच्छर मिला,
गुनगुनाता हुआ
कान के पास
सीटी बजाता हुआ
बड़ा मनचला,
एक मच्छर मिला
दोनों हाथों से जब
मारना चाहा तो
एक ताली बजी
मनचला खुश हुआ,
नाचने लग गया
ताता थई, ताता थई
ताता थई, ताता थई
बड़ा मनचला
एक मच्छर मिला।
इतनी मज़ेदार और विजुअल से भरी होने के बावजूद इस पर हमें बहुत कम रचनात्मक चित्र मिले। जबकि हमें हज़ारों चित्र मिले। गुलज़ार साब को इसमें से एक भी चित्र न जँचा। तो आप सभी से गुज़ारिश है आप भी अपने आसपास और स्कूल के बच्चों से इस पर चित्र बनाने को कहें। बच्चे चाहें तो जून-जुलाई की या अगस्त- सितम्बर की भी कविता पर चित्र बना सकते हैं। अगर ये चित्र भी पसन्द न आए तो बोली रंगोली बन्द कर दिया जाएगा - यह सोचकर कि बच्चे अब बोर हो गए हैं।
अगस्त -सितम्बर की कविता -
(एक मच्छर मिला - भाग 2)
उसे मक्खी एक आँख न भाती थी
सुनेहरी रिबन पहने आ जाती थी
न चोटी, न दुम, भिनभिनाती हुई
न तीवर, न कोमल, अजब बेसुरी
जहाँ मीठा देखा, वहीं जा गिरी
वो ताली बजा के मुड़ा और हँसा
ताता थई, ताता थई
ताता थई, ताता थई
बड़ा मनचला, एक मच्छर मिला।
सांडा - करण सोनी (विकास सोनी) - लेख
रेगिस्तान में मिलती है यह काँटेदार पूँछवाली छिपकली। वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर विकास सोनी ने इसे खींचा है। और इसके बारे में दिलचस्प जानकारी भी दी है।
ओसेरा - नीलम सिंह - बच्चे की रचना
पारदी समाज का अब तक जीने का एक ही आसरा था - शिकार। वे कहीं जाते अपना ठिकाना बनाते। शिकार और कुछ सामान बेचकर इनका घर चलता। भोपाल में अर्चना शर्मा पिछले 6-7 सालों से पारदी समाज की लड़कियों को अपने साथ रखती हैं। उन्हें पढ़ाती-लिखाती हैं। शिकार से इतर उनके जीवन में कुछ आए इसकी कोशिश में हैं। बच्चे अपने घर अपने ओसेरे को याद करते हैं। ऐसी ही ओसेरे की एक याद...
सूखा पेड़
हार्दिक राठौर कैमरा लिए घूमते फिरते रहते हैं। वे इस कैमरे बार-बार सूखे, पुराने पेड़ों के चक्कर काटते हैं। बार-बार जाते हैं। जैसे हम बुजुर्गों के पास जाते हैं। पेड़ सूखकर भी मरते नहीं हैं। शायद वे यही हम से कहना चाहते हैं। पिछले अंक में एक सूखे पेड़ के जीवन के बारे में बहुत मार्मिक तसवीरें। इन सूखे पेड़ों में एक उल्लू का परिवार रहता है। हमने बच्चों से कहा था कि वे भी अपनी याद के सूखे पेड़ पर लिखें। उन्होंने जो लिखा वो बस कमाल है। पेश है कुछ बानगियाँ...
माथापच्ची
सवालों की दुनिया से छह मज़ेदार सवाल।
गर्मी का पंखा - अंजना त्रिवेदी - संस्मरण
जब घर बहुत सी चीज़ों की आमाद का गोदाम बन जाता है तो हर नई चीज़ पर एक गिनती होती है। पर बहुत पहले जब स्थितियाँ भिन्न थीं जब चीज़ों के आने का आधार ज़रूरत होता था तो उनका आना याद बन जाता था। जो मौके-बेमौके नीचे की परतों से निकल झाँकने लगता है। अंजना को बहुत पहले खरीदे पंखे को इक बिल क्या मिला वो पूरी याद का झरना बह निकला। ... आपके घर आखरी चीज़ क्या आई थी, कब आई थी याद है?
चश्मा नया है
दो बच्चियाँ हैं। बात कर रही हैं। घर की बात। स्कूल की बात। सड़क की बात। अपने डर की बात। अपनी खुशी की बात। जि़न्दगी जैसे इन्हीं बातों को जोड़-जोड़कर बनी है। बात से बात मिली। जि़न्दगी कुछ आगे बड़ी।
चित्रपहेली
वही चित्रों के इशारों को शब्दों में बूझने की पहेली।