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मधुमक्खियाँ कहती हैं... – रोहन चक्रवर्ती
अनुवाद: सजिता नायर
हर साल 20 मई को विश्व मधुमक्खी दिवस मनाया जाता है। इसी अवसर पर पेश है मधुमक्खियों के महत्व और उनके संरक्षण में आने वाले खतरों से अवगत कराता एक मारक कार्टून।
तालाबन्दी में बचपन – तालाबन्दी के बाद पहला सफर – शानिता
चित्र: हबीब अली
कोरोना के चलते बच्चों का जीवन अभी भी एक तरह से तालाबन्दी में ही है। ‘तालाबन्दी में बचपन’ कॉलम के ज़रिए बच्चे तालाबन्दी के दौर के अपने अनुभवों को साझा करते हैं।
इस बार आठवीं कक्षा में पढ़ रही शानिता ने तालाबन्दी के बाद रेल के अपने पहले सफर के बारे में तफसील से बताया है।
गणित है मज़ेदार : शब्द क्यों, चित्रों से सिद्ध करते हैं – आलोका कान्हेरे
चित्र: मधुश्री बासु
इन पन्नों में हम कोशिश करेंगे कि ऐसी चीज़ें दें जिनको हल करने में आपको मज़ा आए। ये पन्ने खास उन लोगों के लिए हैं जिन्हें गणित से डर लगता है।
गणित में आपने ऐसे कई सवाल देखे होंगे जिनमें किसी बात को सही सिद्ध करने के लिए शब्दों का इस्तेमाल होता है। इस बार मिहिर और सायरा एक पैटर्न के लिए अपने तर्क को चित्रों की मदद से सिद्ध कर रहे हैं। वे ऐसा कैसे करते हैं जानने के लिए पढ़िए यह मज़ेदार लेख। .
दृष्टिभ्रम – कविता तिवारी
इस अंक के कवर पर दिए गए चित्र को अलग-अलग एंगल से देखिए। क्या आपको उसमें कुछ बदलाव नज़र आ रहे हैं? अपने कम्प्यूटर या मोबाइल स्क्रीन पर स्क्रॉल करते हुए इस चित्र पर गौर फरमाइए। यह क्या हो रहा है? क्या यह ऐसा सच में हो रहा है या यह कोई भ्रम है। इस बारे में अधिक जानने के लिए पढ़िए यह छोटा-सा लेख।
आँखों में जो तैरते दिखते हैं – एक दृष्टिभ्रम? – जितेश शेल्के
क्या आपने अपनी आँखों के बिलकुल सामने कभी धब्बों, कणों या फिर इल्लियों जैसा कुछ देखा है? क्या यह सच में मौजूद होते हैं या यह कोई दृष्टिभ्रम है? जानने के लिए पढ़िए यह लेख।
एक ही थाली में खाना – सुशील शुक्ल
चित्र: शुभश्री माथुर
“चींटी बाहर होती तो मैं थाली उसकी तरफ थोड़ा सरका देता। मगर वह थाली के अन्दर थी। मुझे नहीं पता था कि उसे खाने के लिए बोलूँ, क्या करूँ? थाली में कोई मीठी चीज़ नहीं थी। मुझे लगा कि चीनी के कुछ दाने ले आऊँ और थाली में परोस दूँ।”
नन्हा राजकुमार - एन्त्वॉन द सैंतेक्ज़ूपेरी
अनुवाद: लालबहादुर वर्मा
यह नन्हा राजकुमार की दसवीं किश्त है। नन्हा राजकुमार एक शानदार फ्रेंच लघु उपन्यास ल प्ती प्रैंस का हिन्दी अनुवाद है। पिछले अंक में आपने पढ़ा कि नन्हा राजकुमार बहुत सारे ग्रहों से होता हुआ पृथ्वी पर पहुँचता है। रेगिस्तान, पहाड़ और बर्फीले मैदानों में भटकते-भटकते उसकी मुलाकात एक लोमड़ी से होती है। इस अंक में लेखक और राजकुमार पानी की तलाश में एक कुएँ तक पहुँचते हैं। आगे क्या हुआ? जानने के लिए पढ़िए…
क्यों-क्यों
क्यों-क्यों में इस बार का सवाल था: “कुछ बच्चे रोज़ घर से स्कूल जाते हैं, कुछ बच्चे बोर्डिंग में रहते हैं। अगर तुम्हें इन दोनों में से अपने लिए स्कूल चुनना हो तो तुम कौन-सा चुनोगे, और क्यों?”
बच्चों द्वारा भेजे गए दिलचस्प जवाबों में से कुछ आपको यहाँ पढ़ने को मिलेंगे। साथ ही उनके बनाए कुछ दिलकश चित्र भी देखने को मिलेंगे।
सफेद जूते – मनमीत नारंग
चित्र: मयूख घोष
मुनिया एक बार लता की तरह चमकते हुए साफ जूतों में स्कूल जाना चाहती है। वह रात से ही जूतों को पॉलिश कर चमकाकर रखती है। पर अगली सुबह तो सारी सड़कें बारिश के पानी से भीगी होती है। यह देख मुनिया डर जाती है कि कहीं कीचड़ से उसके साफ, सफेद जूते खराब ना हो जाएँ। मुनिया अपने जूतों को बचाने के लिए क्या तिकड़म भिड़ाती है? क्या वो उन्हें गन्दा होने से बचा पाती है? जानने के लिए पूरी कहानी पढ़िए।
चलो, अपनी आँखों से ग्रह देखें – आलोक मांडवगणे
चित्र: आलोक मांडवगणे
ऐसे कुछ ग्रह हैं जिन्हें हम अपनी नंगी आँखों से आसमान में देख सकते हैं। इन ग्रहों को कौन-सी दिशा में और किस समय देखा जा सकता है यह छोटा-सा लेख इसी बारे में है।
भूलभुलैया
दिए गए कई रास्तों में से सही रास्ते को चुनने की जद्दोजहद।
तुम भी जानो
इस बार जानिए:
शनि के छल्ले गायब हो रहे हैं
नमक से बना एक मोहल्ला
मेरा पन्ना
वाकया: आम का पेड़, खेल-खेल में
लेख: मेरा प्यारा दोस्त, मेरे घर का काम-धन्धा
कविता: ज़िन्दगी में आपकी कई मोड़ आएँगे
और बच्चों के बनाए कुछ दिलकश चित्र
माथापच्ची
कुछ मज़ेदार सवालों और पहेलियों से भरे दिमागी कसरत के पन्ने।
चित्रपहेली
चित्रों में दिए इशारों को समझकर पहेली को बूझना।
तुम भी जानो
इस बार जानिए:
दुनिया की सबसे पहली महिला लेखक
धीमी गति के स्लॉथ
बैल चलो – अनुराधा जैन
चित्र: कनक शशि
चम्पा को फूल सजो
सजो-धजो बैल चलो...