कहानियों में पढ़ा है न कि भालू चढ़ा पेड़ पर मधुमक्खियों के छत्ते से शहद चुराने ... एक मधुमक्खी ने उसे देख लिया, उड़ के पहुंची और ज़ोर से मारा डंक। उसकी नाक पर और उसके बाद तो मधुमक्खियों का पूरा का पूरा हुजूम ही उसके पीछे पड़ गया!
खैर यह तो कहानी वाली बात थी। लेकिन सवाल है कि उस पहली मधुमक्खी के डंक में ऐसी क्या खास बात थी कि सभी को मालूम पड़ गया कि आया है कोई हमलावर?
तो पहली मक्खी के पहले डंक के साथ ही एक रसायन निकला। इस रासायनिक संकेत ने दूसरी मक्खियों को उस स्थान की ओर - जैसे कि भालू - आकर्षित किया। चींटियो में भी ऐसा ही होता है। समूह का कोई सदस्य रसायन के रूप में खतरा संकेत छोड़ता है। अन्य चीटियां इसे ग्रहण कर उस स्थान पर पहुंचना शुरु कर देती हैं।
अलग-अलग जीवों में चेतावनी या अपने समूह के दूसरे सदस्यों तक खतरे की सूचना पहुंचाने के अलग अलग तरीके विसकित हुए हैं। क्योंकि प्रकृति में हमला या दूसरे जीवों से खतरा एक बिल्कुल ही सहज चीज है।
और कई बार तो ऐसा भी होता है कि संकेत किसी दूसरे समूह के सदस्य से आए। जैसे कि चीतल, हनुमान लंगूर आदि के द्वारा दिए जा रहे खतरे के संकेतों को समझ कर सचेत हो जाता है।
अब इससे क्या समझें? इस मिलेजुलेपन का असर शायद यह होता है कि हमलावर को उस क्षेत्र में शिकार मिलने की संभावना काफी कम हो जाती है। इस वजह से इस क्षेत्र की तरफ उसका आकर्षण भी कम हो जाता होगा। यानी इससे सभी का फायदा है।