लेखक : जॉर्ज गैमो
अनुवाद: डॉ. राकेश पोपली [Hindi PDF, 447kB]
पिछले भाग में हमने संख्याओं की चर्चा की, जिनमें से कई तो काफी बड़ी थीं। सिस्सा-बिन-दाहिर द्वारा माँगे गए गेहूँ के दानों की संख्या भले ही बहुत अधिक हो, भले ही कल्पना से भी लगभग परे लगती हो, फिर भी यह अनन्त नहीं है। परमाणविक मशीन द्वारा छापी गई पंक्तियों की संख्या भी अनन्त नहीं है। यदि पर्याप्त समय मिले तो इन सब संख्याओं को आखिरी अंक तक लिखा जा सकता है।
परन्तु कुछ संख्याएँ सचमुच अनन्त भी हैं, यानी इतनी बड़ी हैं कि इन्हें लिखना सम्भव नहीं है, चाहे कितना ही समय लगाया जाए। अब जैसे, ‘सभी संख्याओं की संख्या’ स्पष्ट ही अनन्त है, और इसी प्रकार ‘किसी रेखा पर आने वाले ज्यामितीय बिन्दुओं की संख्या’ भी अनन्त है।
क्या ऐसी सभी अनन्त संख्याएँ बस एक-सी अनन्त होती हैं या इनमें कोई भेद भी है? उदाहरणतया, क्या यह सम्भव है कि दो अलग-अलग अनन्तों की तुलना करके देखा जाए कि कौन ‘अधिक’ बड़ी है?
अगर यह पूछा जाए कि, “सभी संख्याओं की संख्या, किसी रेखा पर पड़ने वाले सभी बिन्दुओं की संख्या से बड़ी है या छोटी” तो क्या इस प्रश्न का कोई अर्थ है? इस प्रकार के प्रश्नों पर, जो पहली दृष्टि में बेतुके लगते हैं, सबसे पहले प्रसिद्ध गणितज्ञ जोर्ग कैंटोर ने विचार किया और उनको सचमुच ‘अनन्त के अंकगणित’ का प्रवर्तक कहा जा सकता है।
हम बड़ी बनाम छोटी अनन्तों की बात करना चाहते हैं। पर समस्या यह है कि उन संख्याओं की तुलना कैसे करें जिन्हें हम न कोई अलग-अलग नाम दे सकते हैं और न लिख सकते हैं? कमोबेश, हमारी स्थिति हॉटेनटॉट वाली है जो अपने खज़ाने की पिटारी का निरीक्षण करके जानना चाहता हो कि उसके पास काँच के मनके अधिक हैं या ताँबे के सिक्के। जैसा कि आपको याद होगा, बेचारा हॉटेनटॉट तीन से आगे गिनने में असमर्थ है। तब क्या उसे अपने मनकों और सिक्कों की संख्याओं की तुलना करने की कोशिश ही छोड़ देनी चाहिए? बिलकुल नहीं। यदि वह चतुर है तो एक-एक मनके की एक-एक सिक्के के साथ जोड़ी बना कर उत्तर खोज लेगा। वह एक मनके को एक सिक्के के बगल में रखेगा, दूसरे मनके को दूसरे सिक्के के बगल में, और इसी प्रकार आगे, आगे और आगे...। यदि सारे मनके समाप्त हो जाएँ, जबकि कुछ सिक्के अभी बचे हों, तो उसे मालूम हो जाएगा कि उसके पास मनकों की अपेक्षा सिक्के अधिक हैं, और यदि पूरे-पूरे जोड़े बन जाएँ तो वह समझ लेगा कि उसके मनके और सिक्के बराबर संख्याओं में हैं।
दो अनन्तों की तुलना करने के लिए कैंटोर ने यही तरीका प्रस्तावित किया: क्यों न दोनों अनन्त समूहों की वस्तुओं के जोड़े बनाए जाएँ? अर्थात् पहले अनन्त में से एक-एक वस्तु का दूसरे अनन्त की एक-एक वस्तु के साथ जोड़ा बना दिया जाए। अब यदि दोनों में से किसी भी समूह में से कोई वस्तु अकेली न बच जाए, तो दोनों अनन्त बराबर हैं। दूसरी ओर यदि ऐसा करना असम्भव हो और हर बार एक ही समूह की कुछ वस्तुएँ अलग बच जाती हों तो हम कहेंगे कि वस्तुओं का वह अनन्त दूसरे अनन्त से अधिक या विशालतर है।
स्पष्ट है कि अनन्त संख्याओं की तुलना करने के लिए यही नियम सबसे तर्कसंगत है, और वास्तव में एकमात्र सम्भव नियम है। उदाहरण के लिए, सभी सम संख्याओं का अनन्त और सभी विषम संख्याओं का अनन्त लीजिए। निश्चय ही आप सहजबुद्धि से अनुभव कर लेंगे कि जितनी सम संख्याएँ हैं उतनी ही विषम संख्याएँ हैं। उपर्युक्त नियम से यह बात भी मेल खाती है, क्योंकि इन दोनों प्रकार की संख्याओं को एक-पर-एक करके रखा जा सकता है।
इस तालिका में हर विषम संख्या का सम्बन्ध एक सम संख्या से है, और हर सम संख्या के लिए एक विषम संख्या है, अत: सम संख्याओं का अनन्त विषम संख्याओं के अनन्त के बराबर है। यहाँ तक तो सब कुछ सरल और स्वाभाविक लगता है, है न? पर जब अनन्त संख्याओं में हाथ डाला है तो कुछ अजीब, अनपेक्षित बातों के लिए भी तैयार रहना चाहिए। जैसे, आपके विचार से कौन बड़ी है: सभी संख्याओं की संख्या, अर्थात् सम-विषम दोनों मिला कर, या केवल सम संख्याओं की संख्या? आप तुरन्त कह उठेंगे कि सभी संख्याओं की संख्या अधिक बड़ी है, क्योंकि इसमें सभी सम संख्याएँ तो शामिल हैं ही, इसके अतिरिक्त सभी विषम संख्याएँ भी शामिल हैं। पर यह सिर्फ आपका ख्याल ही है, और बिलकुल सही उत्तर पाने के लिए आपको दो अनन्तों की तुलना करने वाले उपर्युक्त नियम का प्रयोग करना होगा। और जनाब, आप आश्चर्य-चकित रह जाएँगे कि आपका यह ख्याल गलत था। वास्तव में देखिए, यह तालिका हाज़िर है, जो कि सभी संख्याओं और सम संख्याओं की एक-पर-एक अनुरूपता दिखाती है, यानी जोड़ियाँ बना कर दिखाती है।
सभी संख्याओं में से प्रत्येक का जोड़ा किसी सम संख्या के साथ बन गया है, दोनों समूहों में से किसी में कोई संख्या अकेली नहीं बचती। अनन्तों की तुलना के हमारे नियम के अनुसार यह कहना ही पड़ेगा कि सम संख्याओं का अनन्त ठीक उतना ही बड़ा है जितना कि सभी संख्याओं वाला अनन्त। इसमें कुछ विरोधाभास तो अवश्य लगता है (भला आधा भाग पूरे के बराबर कैसे हो सकता है?) परन्तु हमें याद रखना होगा कि यहाँ अनन्त (अपरिमित) संख्याओं के साथ हमारा पाला पड़ा है, और हमें परिमित (finite) की अपेक्षा कुछ अलग गुणों का सामना करने के लिए तैयार रहना होगा।
वास्तव में अनन्त के संसार में एक भाग पूरे के बराबर हो सकता है। प्रसिद्ध जर्मन गणितज्ञ डेविड हिल्बर्ट द्वारा दिया गया एक उदाहरण सम्भवत: इस बात को सबसे अच्छी तरह दर्शाता है। अपने व्याख्यानों में उन्होंने अनन्त संख्याओं के इस विरोधभासी गुण को इन शब्दों में प्रकट किया:1
आइए, हम कल्पना करें कि एक होटल में निश्चित संख्या में कमरे हैं, और मान लीजिए सभी कमरे भरे हुए हैं। एक नया ग्राहक आता है और एक कमरा माँगता है। मालिक कहता है, “मुझे खेद है, जनाब, सभी कमरे भरे हुए हैं।” अब एक ऐसे होटल की कल्पना करें जिसमें अनन्त संख्या में कमरे हैं, और सभी कमरे भरे हुए हैं। इस होटल में भी एक नया ग्राहक आता है और कमरा माँगता है।
“हाँ, हाँ, अभी लीजिए,” मालिक कहता है, और वह 1 नम्बर कमरे में रह रहे व्यक्ति को 2 नम्बर कमरे में भेज देता है, 2 नम्बर वाले को 3 नम्बर में, 3 नम्बर वाले को 4 नम्बर में,.... आदि। और नए ग्राहक को कमरा नम्बर एक मिल जाता है, जो कि इस अदल-बदल के फलस्वरूप खाली हो गया है।।
अब फिर से अनन्त कमरों वाले एक होटल की कल्पना करें, जिसमें सभी कमरे भर चुके हैं, और अनन्त संख्या में नए ग्राहक आकर कमरे माँगते हैं।
“ज़रूर मिलेगा, सज्जनों,” मालिक कहता है, “बस क्षण भर रुकिए।”
वह कमरा नम्बर 1 वाले ग्राहक को 2 नम्बर में भेज देता है, 2 नम्बर वाले को 4 नम्बर में, 3 नम्बर वाले को 6 नम्बर में, आदि, इत्यादि। अत: सभी विषम संख्या वाले कमरे (1, 3, 5,...) खाली हो जाते हैं और अनन्त संख्या में आए नए ग्राहकों को उनमें आसानी से स्थान दिया जा सकता है।
हिल्बर्ट द्वारा वर्णित अनन्त ग्राहकों और अनन्त क्षमता वाले होटलों की कल्पना करना सहज नहीं है, परन्तु इस उदाहरण से निश्चय ही यह बिन्दु समझ में आ जाता है कि अनन्त संख्याओं के कुछ ऐसे गुण हैं जो हमारे नित्य व्यवहार के अंकगणित के गुणों से कुछ अलग हैं।
दो अनन्तों की तुलना करने के कैंटोर के नियम का अनुसरण करते हुए अब हम यह भी प्रमाणित कर सकते हैं कि 3/7 या 735/8 जैसी सभी साधारण भिन्नों की संख्या, सभी पूर्ण संख्याओं की संख्या के बराबर है। इन दोनों अनन्तों की तुलना करने के लिए पहले हमें सभी सम्भव भिन्नों को एक पंक्ति में सजाना होगा ताकि पूर्ण संख्याओं के साथ उनकी एक-पर-एक करके जोड़ी बना सकें। एक पंक्ति में सजाने के लिए निम्नलिखित नियम है : पहले उन भिन्नों को लिखिए जिनमें अंश (numerator) और हर (denominator) का योग 2 के बराबर है; ऐसा केवल एक ही भिन्न है: 1/1। फिर उन भिन्नों को लिखिए जिनमें यह योग 3 के बराबर है: 2/1 और 1/2। फिर उनको लिखिए जिनमें योग 4 है: 3/1, 2/2, 1/3 और इसी प्रकार चलते जाइए। इस प्रक्रिया के अनुसार चलने से हमें अनन्त ाृंखला प्राप्त होगी, जिसमें प्रत्येक सम्भव भिन्न होगा (चित्र 1)। अब इस ाृंखला के समान्तर पंक्ति बना कर पूर्णांकों की संख्या लिख दीजिए; इस प्रकार भिन्नों के अनन्त और पूर्णांकों के अनन्त के बीच एक-पर-एक का सम्बन्ध प्राप्त हो गया। अत: दोनों संख्याएँ बराबर हैं।
“अच्छा, यह सब तो ठीक है,” आप कह सकते हैं, “परन्तु इसका अर्थ इतना ही है कि सभी अनन्त एक-दूसरे के बराबर हैं, है न? और यदि ऐसी बात है, तो उनकी तुलना करने का उपयोग ही क्या है?”
नहीं जी, यह बात नहीं, और ऐसा अनन्त आसानी से खोजा जा सकता है जो सभी पूर्णांकों या अंकगणित के सभी भिन्नों के अनन्त से बड़ा हो। वास्तव में, यदि हम किसी रेखा पर आने वाले बिन्दुओं की संख्या की तुलना सभी पूर्णांकों की संख्या से करें तो हम पाएँगे कि ये दोनों अनन्त असमान हैं। जितने पूर्णांक हैं या जितनी भिन्नें हैं, उससे कई अधिक बिन्दु एक रेखा पर होते हैं।
इस कथन को प्रमाणित करने के लिए आइए, हम एक रेखा पर आने वाले बिन्दुओं तथा पूर्णांकों की ाृंखला के बीच एक-पर-एक सम्बन्ध स्थापित करने का प्रयास करें। मान लीजिए कि रेखा 1 इंच लम्बी है। रेखा पर कोई भी बिन्दु लीजिए और रेखा के एक छोर से उसकी दूरी इंचों में नापिए। यह दूरी एक संख्या है जिसे अनन्त दशमलव भिन्न के रूप में लिखा जा सकता है, जैसे 0.7350624780056... या 0.38250375632...2। इस प्रकार रेखा के प्रत्येक बिन्दु का वर्णन एक संख्या (दशमलव भिन्न) द्वारा किया जा सकता है। अत: हमें सभी पूर्णांकों की संख्या की तुलना सभी सम्भव अनन्त दशमलव भिन्नों की संख्या से करनी है। अब ऐसी अनन्त दशमलव भिन्नों और साधारण भिन्नों (जैसे 3/7 या 8/277) में क्या अन्तर है?
आपको अपने अंकगणित के पाठ से अवश्य याद होगा कि प्रत्येक साधारण भिन्न को अनन्त आवर्ती दशमलव भिन्न। में बदला जा सकता है। जैसे 2/3 उ 0.6666.... = 0.(6), और 3/7 उ 0.428571 428571 428571......... = 0.(428571)। ऊपर हमने प्रमाणित किया है कि सभी अंकगणितीय भिन्नों की संख्या सभी पूर्णांकों की संख्या के समान है। इसलिए सभी आवर्ती दशमलव भिन्नों की संख्या भी सब पूर्णाकों की संख्या के बराबर ही होगी। परन्तु किसी रेखा के बिन्दुओं के लिए यह आवश्यक नहीं है कि उन्हें आवर्ती दशमलव भिन्नों द्वारा ही दर्शाया जा सके। अधिकतर मामलों में तो हमें ऐसी अनन्त दशमलव भिन्नें ही मिलेंगी जिनमें दशमलव अंक या उनके समूह बार-बार दुहराए नहीं जाएँगे। नीचे हम दिखा रहे हैं कि इनको एक ाृंखला में सजाना किसी भी तरह सम्भव नहीं है।
मान लीजिए, कोई दावा करता है कि सभी अनन्त दशमलव भिन्नों को एक अनन्त ाृंखला में सजा लिया गया है, जो इस प्रकार दिखती हैं:
क्रम संख्या
1) 0.38602563078
2) 0.57350762050
3) 0.99356753207
4) 0.25763200456
5) 0.00005320562
6) 0.09903638567
7) 0.55522730567
8) 0.05277365642
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. ..........................
. ..........................
अब इन अनन्त संख्याओं में से प्रत्येक को अनन्त दशमलव अंकों तक लिखना तो असम्भव है। अत: स्वा-भाविक ही ऐसा दावा किए जाने का अर्थ है कि इस तालिका को किसी वैसे ही सामान्य नियम के अनुसार बनाया गया है, जैसा हमने साधारण भिन्नों को शृंखलाबद्ध करने के लिए बनाया था, और वह नियम इस बात की गारंटी है कि हर एक दशमलव भिन्न, जो भी आप सोच सकते हैं, कभी-न-कभी इस तालिका में दिखाई देगा ही।
अच्छा, अब बिना किसी कठिनाई के यह दिखाया जा सकता है कि इस प्रकार का कोई भी दावा सही नहीं है, क्योंकि हम हर हालत में ऐसी अनन्त दशमलव संख्या लिख सकते हैं जो कि इस अनन्त तालिका में शामिल नहीं है। ऐसा कैसे कर सकते हैं? बहुत आसान है। बस, ऐसा दशमलव भिन्न लिखें जिसमें पहला दशलव अंक उपर्युक्त तालिका की संख्या क्रमांक 1 के पहले अंक से अलग हो, दूसरा अंक तालिका की संख्या क्रमांक 2 के दूसरे अंक से अलग हो, आदि। इससे जो संख्या आप पाएँगे वह कुछ इस प्रकार दिखाई देगी:
0 5 (3 नहीं) 2 (7 नहीं) 7 (3 नहीं) 4 (6 नहीं) 0 (5 नहीं) 7 (6 नहीं) 1 (3 नहीं) 2 (5 नहीं) ... आदि और हम निश्चित रूप से कह सकते हैं कि यह संख्या तालिका में शामिल नहीं है, चाहे आप कितनी भी दूर तक खोज लें। यदि तालिका का लेखक कह दे कि जो भिन्न आपने लिखा है वह उसकी तालिका में क्रमांक 137 पर अवस्थित है (या किसी भी अन्य क्रमांक पर), तो आप तुरन्त उत्तर दे सकेंगे, “नहीं जी, यह वही भिन्न नहीं है, क्योंकि आपके भिन्न का एक सौ सैंतीसवाँ अंक मेरी सोची हुए भिन्न के एक सौ सैंतीसवें अंक से अलग है।”
अत: किसी रेखा पर आए सभी बिन्दुओं और पूर्णांकों के बीच एक-पर-एक सम्बन्ध स्थापित करना असम्भव है। यदि हम पूर्णांकों की जोड़ियाँ उन बिन्दुओं के साथ बनाते हैं जिनकी दूरी आवर्ती दशमलव भिन्न में है, तो वे सभी बिन्दु बिना जोड़ी के बच जाएँगे जिनकी दूरी अनावर्ती दशमलव भिन्न में है। इसका अर्थ है कि रेखा के बिन्दुओं की अनन्त संख्या, सभी पूर्णांकों या भिन्न संख्याओं के अनन्त की अपेक्षा अधिक या विशालतर है।
हमने अब तक ‘एक इंच लम्बी’ रेखा की चर्चा की है, परन्तु वास्तव में एक इंच, एक फुट या एक मील लम्बी रेखाओं में प्रत्येक पर बराबर संख्या में बिन्दु हैं। हमारे ‘अनन्त के अंकगणित’ के नियमों को लेकर इसे प्रमाणित किया जा सकता है। बस, चित्र 2 को देखिए, जिसमें अलग-अलग लम्बाइयों वाली रेखाओं AB और AC के बिन्दुओं की तुलना की गई है। इन दोनों रेखाओं के बीच एक-पर-एक सम्बन्ध प्रदर्शित करने के लिए हम AB के प्रत्येक बिन्दु से एक् के समान्तर रेखा खींचते हैं, और जहाँ यह रेखा ABऔर AC को काटती है, उन दोनों बिन्दुओं का जोड़ा बना देते हैं, जैसे Dएवं D’, E एवं E’, F एवं F’ आदि। अब AC के हर बिन्दु के जोड़े का बिन्दु AB पर है, और इसका उलट भी सही है। अत: हमारे नियम के अनुसार बिन्दुओं के दोनों अनन्त बराबर हैं। और यह भी सत्य है कि किसी भी रेखा के बिन्दुओं की संख्या पूर्णांकों की संख्या से अधिक है।
शायद इस परिणाम से आप चकित हुए हों। इससे भी अधिक चौंकाने वाला एक अन्य परिणाम इस प्रकार है: किसी समतल पर आने वाले सभी बिन्दुओं की संख्या किसी भी रेखा के सभी बिन्दुओं की संख्या के बराबर है। इसे प्रमाणित करने के लिए एक इंच लम्बी रेखा AB के सभी बिन्दुओं एवं 1 इंच x1 इंच माप के वर्ग CDEF में पड़ने वाले सभी बिन्दुओं पर ध्यान दें (चित्र 3)। मान लीजिए कि रेखा AB पर किसी एक बिन्दु की स्थिति एक संख्या द्वारा बताई जा सकती है, जैसे 0.75120386...। इस एक संख्या से हम दो अलग-अलग संख्याएँ बना सकते हैं यदि हम सम और विषम स्थानों के अंकों को अलग-अलग एकत्र कर दें। इस प्रकार हमें प्राप्त हो जाएगा 0.7108.... और 0.5236....। अब इन दो संख्याओं द्वारा व्यक्त दूरियाँ हमारे वर्ग में (बिन्दु C से) दाहिनी तथा ऊपर की ओर नाप ली जाएँ, तो इस प्रकार प्राप्त हुए बिन्दु को रेखा वाले बिन्दु के ‘जोड़े का बिन्दु’ कहा जा सकता है। इसका उलटा करना हो तो, मान लीजिए, वर्ग में कोई बिन्दु है जिसकी स्थिति दो संख्याओं द्वारा व्यक्त हो सकती है, जैसे 0.4835... एवं 0.9907....। अब हम रेखा पर इस बिन्दु के ‘जोड़े का बिन्दु’ प्राप्त करने के लिए दोनों संख्याओं को मिला देते हैं: 0.49893057...।
स्पष्ट है कि इस विधि से दोनों बिन्दु-समूहों में एक-पर-एक सम्बन्ध स्थापित हो जाता है। रेखा के हर बिन्दु की जोड़ी का बिन्दु वर्ग में मिलेगा; वर्ग के हर बिन्दु की जोड़ी का बिन्दु रेखा पर होगा; और कोई भी बिन्दु अलग नहीं बचेगा। अत: कैंटोर की कसौटी के अनुसार किसी वर्ग के अन्दर पड़ने वाले सभी बिन्दुओं का अनन्त किसी रेखा पर पड़ने वाले सभी बिन्दुओं के अनन्त के बराबर है।
ऐसे ही तरीके से इसे भी आसानी से प्रमाणित किया जा सकता है कि किसी घन के अन्दर के सभी बिन्दुओं का अनन्त, किसी रेखा के बिन्दुओं के अनन्त के बराबर है। इसके लिए हमें इतना ही करना है कि मूल दशमलव भिन्न को तीन भागों में तोड़ें3 और इस प्रकार प्राप्त तीन नए भिन्नों का उपयोग निर्देशांकों (co-ordinates) की तरह करके घन के भीतर ‘जोड़ी के बिन्दु’ की स्थिति बताएँ। और यह भी सत्य है कि किसी वर्ग या घन के भीतर के बिन्दुओं की संख्या उतनी ही रहेगी, भले ही उनका माप कितना भी हो, उसी प्रकार जैसे अलग-अलग लम्बाई की दो रेखाओं की बात है।
तो इस प्रकार सभी पूर्णांकों या भिन्नों की संख्या अनन्त है और सभी ज्यामितीय बिन्दुओं की संख्या उससे भी बड़ा अनन्त, यानी दूसरे दर्जे का अनन्त। परन्तु क्या यही गणित की सबसे बड़ी संख्या है? या गणितज्ञों को इससे और बड़ी संख्याएँ भी ज्ञात हैं? वास्तव में यह पाया गया है कि सभी सम्भव प्रकार की वक्र रेखाओं की संख्या, जिनमें अजीब आकृतियाँ भी शामिल हैं, सभी ज्यामितीय बिन्दुओं की संख्या से अधिक है। अत: इसका वर्णन करने के लिए अनन्तों की ाृंखला का तीसरा दर्जा चाहिए (चित्र 4)।
अनन्तों के अंकगणित के सृष्टा जोर्ग कैंटोर ने अनन्त संख्याओं को हिब् डिग्री लिपि के अक्षर न् (अलिफ) से चिन्हित किया है। इसके नीचे दाहिने कोने में एक संख्या लिखी जाती है जो अनन्त का दर्जा दर्शाती है।। अब संख्याओं की शृंखला (अनन्त संख्याओं को शामिल करके) इस प्रकार चलती है:
1,2,3,4,5, ...., 1, 2, 3, ...., और हम कहते हैं, ‘किसी रेखा पर 1 बिन्दु होते हैं’ या ‘ 2 विभिन्न प्रकार की रेखाएँ होती हैं’, ठीक उसी प्रकार जैसे हम कहते हैं कि ‘संसार के 7 भाग (महादेश) हैं’, या ‘ताश की गड्डी में 52 पत्ते होते हैं।’
अनन्त संख्याओं के बारे में अपनी बात समाप्त करते हुए हम ध्यान दिलाते हैं कि अनन्त का दर्जा बढ़ाते जाने से जल्दी ही ये संख्याएँ इतनी अधिक बड़ी हो जाती हैं कि उतनी गिनती के वस्तु-समूह की कल्पना करना ही कठिन हो जाता है। हम जानते हैं कि 0 सभी पूर्णांकों की संख्या बताता है, 1 सभी ज्यामितीय बिन्दुओं की संख्या व्यक्त करता है, और न्2 सभी वक्र रेखाओं की संख्या, परन्तु अभी तक कोई भी व्यक्ति किसी भी ऐसे अनन्त वस्तु-समूह की कल्पना नहीं कर पाया है जिसकी गिनती न्3 हो। यहाँ हम पाते हैं कि हम अपने पुराने मित्र हॉटेनटॉट से ठीक उलटी स्थिति में हैं : उसके बहुत-से बच्चे हैं पर वह तीन के बाद गिन ही नहीं पाता, जबकि हमारे पास ढेरों दर्जों वाली अनन्त संख्याएँ हैं, पर तीसरे अनन्त के बाद गिनने योग्य कुछ रह ही नहीं जाता।
जॉर्ज गैमो - 4 मार्च, 1904 को रूस में जन्मे डॉ. गैमो प्रतिभाशाली और लोकप्रिय विज्ञान लेखक माने जाते हैं। उन्होंने भौतिक-विज्ञान और खगोल-विज्ञान के साथ-साथ जीव-विज्ञान में भी काफी महत्वपूर्ण खोजें की हैं। सन् 1956 में डॉ. गैमो को यूनेस्को के प्रतिष्ठित ‘कलिंग पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया। प्रस्तुत अंश उनकी पुस्तक ‘वन टू थ्री...इन्फिनिटी’ के अनुवाद ‘परमाणु से सितारों तक’ से लिया गया है।
अँग्रेज़ी से अनुवाद: डॉ. राकेश पोपली - विज्ञान-लेखक थे। बिड़ला प्रौद्योगिकी संस्थान, मेसरा, राँची में भौतिक-विज्ञान के प्राध्यापक रहे हैं।
यह लेख जॉर्ज गैमो की पुस्तक ‘परमाणु से सितारों तक’ से साभार। प्रकाशक - विज्ञान प्रसार, 1998, मूल्य 99 रुपए।
यह पुस्तक एकलव्य के भोपाल स्थित पिटारा में उपलब्ध है।