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सवालीराम: अन्तरिक्ष जाने वाले यात्री स्पेस-सूट पहनकर जाते हैं। यदि अन्तरिक्ष में स्पेस-सूट न पहना जाए तो क्या होगा?
जवाब: यह समझने के लिए पहले हमें यह जानना ज़रूरी होगा कि अन्तरिक्ष यात्री स्पेस-सूट पहनते क्यों हैं। यह तो स्पष्ट है कि खास स्पेस-सूट बनाए गए हैं क्योंकि पृथ्वी पर रहने, या यहाँ तक कि हवाई-जहाज़ में उड़ने की तुलना में अन्तरिक्ष में रहने में फर्क होता है।
तो अन्तरिक्ष और पृथ्वी के बीच में क्या अन्तर है? आपने यह तो ज़रूर सुना होगा कि हर वस्तु हर अन्य वस्तु को आकर्षित करती है। यह आकर्षण बल एक-दूसरे को आकर्षित करने वाली उन दोनों वस्तुओं के द्रव्यमान और उनके बीच की दूरी पर निर्भर करता है। तो पृथ्वी भी हर वस्तु को आकर्षित करती है। इस बल को गुरुत्वाकर्षण कहते हैं। चूँकि जैसे-जैसे आप पृथ्वी से दूर जाते हैं यह बल कम होता जाता है, पृथ्वी से जितना दूर जाएँगे पृथ्वी का उतना ही कम गुरुत्वाकर्षण आप अनुभव करेंगे। इस तरह एक ऐसी दूरी भी हो सकती है जहाँ यह बल (गुरुत्वाकर्षण) लगभग शून्य हो जाता है (पर पूरी तरह शून्य नहीं)।
दूसरा अन्तर - पृथ्वी के चारों ओर हवा है। इसे वायुमण्डल कहा जाता है। जैसे-जैसे हम पृथ्वी से दूर जाते हैं वायुमण्डल झीना होता जाता है। इसका मतलब है कि जैसे ही हम ऊपर जाते जाएँगे हवा कम होती जाएगी। इस तरह एक ऐसी दूरी भी आएगी जहाँ बिलकुल हवा नहीं होगी।
अन्तरिक्ष यात्रा के सम्बन्ध में ये दोनों अन्तर सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण हैं।
यह तो आप जानते ही होंगे कि पृथ्वी पर हर वस्तु गुरुत्वाकर्षण की वजह से ही गिरती है। अगर गुरुत्वाकर्षण नहीं होगा तो वस्तुएँ गिरेंगी ही नहीं। यदि अन्तरिक्ष में आप एक बॉल गिराएँगे तो वह बॉल वहीं रह जाएगी जहाँ आपने उसे छोड़ा था। दरअसल यदि गुरुत्वाकर्षण नहीं है तो कुछ ‘ऊपर’ या ‘नीचे’ नहीं होता। इसलिए अन्तरिक्ष में वस्तुएँ सिर्फ तैरती हैं। इसकी वजह से काफी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं जिनके बारे में सुनकर आपको हँसी आएगी पर अभी मुझे उन मज़ेदार समस्याओं की चिन्ता नहीं है। अभी मैं केवल उस समस्या की ओर ध्यान दूँगा जो अन्तरिक्ष में हवा के न होने की वजह से उत्पन्न होती है।
उदाहरण के लिए, यदि आपके और आपकी दोस्त के बीच में हवा है तो आप अपनी दोस्त की आवाज़ सुन सकते हैं, क्योंकि ध्वनि को एक जगह से दूसरी जगह तक जाने के लिए एक माध्यम की ज़रूरत होती है। इसलिए अन्तरिक्ष में आप एक-दूसरे से बात नहीं कर सकते क्योंकि वहाँ आप दोनों के बीच में हवा नहीं होती। लेकिन यह वो समस्या नहीं है जो स्पेस-सूट पहनने से सुलझ जाए।
जैसा कि आप जानते हैं, हमारे शरीर में रक्त प्रवाह होता है। ये रक्त खास तरह की नलिकाओं में बहता है जिन्हें शिरा और धमनी कहते हैं। चूँकि हृदय रक्त को धमनियों में धकेलता है, ये रक्त इन नलिकाओं में बहता है। हृदय द्वारा दबाव डालने की वजह से रक्त एक विशेष दाब पर प्रवाहित होता रहता है। यदि रक्त का दाब बहुत ज़्यादा बढ़ जाए तो धमनियाँ और शिराएँ फट सकती हैं। लेकिन वायुमण्डलीय दबाव यह होने से रोकता है।
अन्तरिक्ष में वायुमण्डल नहीं होता। इसलिए वहाँ वायुमण्डलीय दबाव भी नहीं होता। इस स्थिति में शरीर का रक्तचाप धमनियों और शिराओं को फाड़ सकता है जिससे रक्त बाहर आ सकता है। इस तरह की चीज़ दरअसल होती भी है। जैसा कि मैंने पहले कहा था, जैसे-जैसे आप पहाड़ों पर ऊपर की ओर जाएँगे हवा कम होती जाएगी। इसलिए उसका दबाव भी कम होता जाएगा। इसी वजह से, कभी-कभी, ऊँचे पहाड़ों पर लोगों की नाक से खून बहने लगता है। आप इसकी कल्पना कर सकते हैं कि यदि हवा न हो (जैसा कि अन्तरिक्ष में होता है) तो यह रक्त-स्त्राव एक बड़ी समस्या साबित हो सकता है।
स्पेस-सूट एक ऐसा सूट है जिसमें हवा को दाब से भरा जाता है। दूसरे शब्दों में, स्पेस-सूट आपको खुद का एक छोटा-सा वायुमण्डल उपलब्ध कराता है, ताकि आपमें से खून फटकर बाहर न बहने लगे।
इस जवाब को सुशील जोशी ने तैयार किया है।
सुशील जोशी: एकलव्य द्वारा संचालित स्रोत फीचर सेवा से जुड़े हैं। विज्ञान शिक्षण व लेखन में गहरी रुचि।
अँग्रेज़ी से अनुवाद: पारुल सोनी: ‘संदर्भ’ पत्रिका से सम्बद्ध हैं।