लेखक:   ऐड्रियन फोर्सिथ और कैन मियाटा   [Hindi PDF, 354 kB]
अनुवाद: सुशील जोशी:

   पारिस्थितिकी

कटिबन्धीय जंगलों की फितरत है कि वे उसका वर्णन करने वालों में लफ्ज़ों का सैलाब पैदा कर देते हैं।

— पॉल रिचर्ड्स
द ट्रॉपिकल रेनफॉरेस्ट

1952 में जब रिचर्ड्स ने यह बात कही थी, उस समय तक यह शिकवा पुराना हो चुका था। इसके करीब एक सदी पहले महान विक्टोरियाई प्रकृतिविद् ऐल्फ्रेड रसल वॉलस अपने पाठकों को आगाह कर चुके थे कि “कटिबन्धीय प्रकृति की प्रचुरता और सौन्दर्य एक घिसा-पिटा विषय है और इसके बारे में नया कहने को बहुत कम है।” फिर भी कटिबन्धीय बरसाती जंगल का वर्णन करने की कठिनाइयों के चलते यह बासी पड़ चुके विवरणों और बने-बनाए मुहावरों का अखाड़ा बना हुआ है। इनमें से सबसे आम मुहावरा है कि कटिबन्धीय जंगल गिरजाघरनुमा होते हैं। इस मुहावरे को जन्म देने के लिए सम्भवत: वॉलस ही ज़िम्मेदार थे, हालाँकि वे शायद इसके उपयोग को स्वीकार न करते। वॉलस ही थे जिन्होंने पुश्ता जड़ों (buttresses) वाले बड़े-बड़े पेड़ों को गोथिक संरचनाएँ कहा था। मार्सटन बेट्स ने अपनी मशहूर पुस्तक द फॉरेस्ट एंड द सी में इस उपमा को खूब विस्तार दिया था और तब से यह उपमा एक पिटा-पिटाया रूपक बन गई है।

बहरहाल, यह उपमा पर्याप्त उदार नहीं है। गिरजाघर रौबीले और खूबसूरत स्थान होते हैं, मगर किसी बरसाती जंगल की तुलना में वे काफी सरल होते हैं। गोथिक गिरजाघरों में पुश्तों की रचना और कार्य को भलीभाँति समझ लिया गया है मगर बरसाती जंगल के पेड़ों के पुश्तों की रचना व सम्भावित कार्य की समझ आधी-अधूरी ही है। वॉलस ने इन रचनाओं की ओर ध्यान दिलाया था और उसके कई वर्षों बाद, आज भी ये पुश्ते वैज्ञानिक बहस का विषय बने हुए हैं।

कटिबन्धीय बरसाती जंगल में पुश्ते कई आकार-प्रकार धारण करते हैं मगर ये बरसाती जंगल के कई बड़े पेड़ों के आम लक्षण हैं। बरसाती जंगल के इन लम्बे-लम्बे पेड़ों के तने प्राय: सीधे खम्भे होते हैं जिन पर कोई शाखाएँ नहीं होतीं जब तक कि तना जंगल के ऊपरी छोर पर न पहुँच जाए। मगर ज़मीन से करीब 20 फुट की ऊँचाई पर इन तनों में से पतली-पतली दूर-दूर तक फैली पुश्ता जड़ें निकलकर ज़मीन में घुस जाती हैं। इन पतली-पतली पुश्ता जड़ों को एक लाइन से जोड़ेंगे तो उसका घेरा पचास फुट तक हो सकता है, हालाँकि तने के जिस स्थान से ये जड़ें निकलती हैं वहाँ तने का व्यास अधिक-से-अधिक पाँच-छ: फुट होगा।

पुश्तों का कार्य
पुश्तों का सबसे ज़ाहिर कार्य तो यांत्रिक स्थिरता प्रदान करना है: ये पेड़ को गीली और उथली मिट्टी में टिकने में मदद करती हैं। ऐसी गीली व उथली मिट्टी कई बरसाती जंगलों की पहचान है। मगर इनकी मौजूदगी की वैकल्पिक व्याख्याएँ भी दी गई हैं। जैसे पुश्ता जड़ें पानी के संवहन में मददगार होती हैं, ऑक्सीजन के लेन-देन के लिए बड़ी सतह उपलब्ध कराती हैं, पत्तियों के कचरे से पोषक पदार्थों को प्राप्त करने में सहायता करती हैं और अनचाही लयाना-लताओं को ऊपर चढ़ने से रोकती हैं।

इन सब विचारों में थोड़ी-बहुत वैधता तो ज़रूर है मगर जिस किसी ने भी ऐसी जड़ों वाले पेड़ के ठूँठ को उखाड़ने की कोशिश की होगी, वह शायद सहमत होगा कि स्थिरता वाला तर्क सबसे सही है। इस मत के विरोधी कहते हैं कि बरसाती जंगल के बड़े-बड़े पेड़ों के लिए स्थिरता कोई बड़ा मुद्दा नहीं है। ये बड़े-बड़े पेड़ घने जंगलों से घिरे होते हैं और इनकी कैनपी इतनी पास-पास सटी होती हैं कि हवा के झोंके इन्हें डिगा नहीं सकते। एक तथ्य यह भी है कि दक्षिण अमेरिका के कटिबन्धीय जंगलों के कई इलाकों में तो तूफान आते ही नहीं। तो, तेज़ हवाएँ कोई कारक ही नहीं हैं। अलबत्ता, यह मत सरसरी तौर पर किए गए अवलोकनों पर टिका है और हमें कमज़ोर लगता है।

यह मानना गलतफहमी है कि जंगल के पेड़ों की वृद्धि के पैटर्न को तय करने में हवाएँ गौण कारक हैं। हम कटिबन्धीय हवाओं के बारे में जो भी मान्यताएँ बनाते हैं वे एक संकीर्ण परिप्रेक्ष्य पर टिकी होती हैं। प्रकृतिविद् कटिबन्धीय जंगल में प्राय: ज़मीन पर ही रहते हैं। यह जंगल का वह हिस्सा है जो तेज़ हवाओं से काफी सुरक्षित रहता है। जंगल के अन्दर शान्त वातावरण प्राय: इस बात को छिपा लेता है कि 100 फीट ऊपर कैनपी के स्तर पर हवाएँ चलती रहती हैं। ज़ोरदार हवाओं के दौरान भी जंगल का फर्श शान्त बना रहता है। बरसाती तूफानों के साथ चलने वाली हवाओं का एकमात्र संकेत हमें गिरते हुए फलों और शाखाओं की आवाज़ से मिलता है। पेड़ों का जीवन काल अक्सर किसी मानव प्रेक्षक से कहीं ज़्यादा होता है। यदि दो ज़ोरदार हवाओं के बीच 10-20 साल का अन्तराल हो, तो सम्भवत: हम इन्हें महत्वहीन घटनाएँ कहकर खारिज कर देंगे। मगर यदि 200 साल जीने वाले किसी पेड़ की नज़र से देखें तो 10-20 या पचास साल के अन्तराल पर बहने वाली शक्तिशाली हवाएँ भी महत्वपूर्ण घटनाएँ होंगी।

दक्षिण पेरू में माद्रे द दिओस के बरसाती जंगल में शायद धरती के किसी भी क्षेत्र से ज़्यादा समृद्ध प्राणी जगत पाया जाता है। मैंने उम्मीद की थी कि यह एक शानदार ऊँचा जंगल होगा और इसकी निचली मंज़िल साफ-सुथरी और अन्धकारमय होगी जैसा कि मैंने कटिबन्धीय अमेरिका के अन्य अनछुए बरसाती जंगलों में देखा था। मगर रियो ताम्बोपेटा के जंगल की ऊँचाई कम थी और झाड़-झंखाड़ ही ज़्यादा थे। यह मुझे आदिम बरसाती जंगल की बजाय द्वितीयक वृद्धि वाला जंगल लगा। जब मैंने इसमें घुसकर चहलकदमी की तो इसकी निचली मंज़िल काफी घनी थी जिसकी वजह से मुझे पगडण्डियों से चिपके रहना पड़ा। मैं काफी निराश हुई और सोचने लगी कि यहाँ इतना कचरा क्यों है।
जवाब जल्दी ही मिल गया। रात को दक्षिण से तेज़ आवाज़ करती हुई हवाएँ उठीं। पेटागोनिया के मैदान को जाड़ों ने जकड़ लिया और हम तक पहुँचने वाली हवाएँ नीची भूमि वाले कटिबन्ध के हिसाब से सर्द थीं। अगले दिन का तापमान 15 डिग्री सेल्सियस से ऊपर नहीं गया और हवाओं ने पूरे जंगल में पेड़ों और शाखाओं को तोड़ा-गिराया। ये हवाएँ बगैर रुके दो दिन तक चलती रहीं और इन्होंने मुझे कटिबन्धीय इलाके में ‘असामान्य मौसम’ का एक नया अहसास दिया। रियो ताम्बोपेटा के किनारे पर ऊँचे-ऊँचे पेड़ या तो संकरे दर्रों में थे या दक्षिण की ओर पहाड़ियों की बदौलत हवाओं से सुरक्षित स्थानों पर थे। शक्तिशाली हवाएँ इस इलाके में बहुत बार नहीं आतीं मगर उन्होंने जंगल की बनावट और डील-डौल पर अपनी छाप छोड़ी है।

पेड़ों का गिरना
यह सही है कि नीची भूमि वाले कटिबन्धों में आम तौर पर तेज़ हवाएँ नहीं चलतीं मगर बरसाती जंगलों में पेड़ गिरना आम बात है। तेज़ हवाएँ न सही, शायद पेड़ों की छतरी (कैनपी) की बेडौल असन्तुुलित रचना और उनसे लिपटी लताओं और उन पर उगे ऊपरीरोही (वायवीय, epiphytic) पौधों से पैदा हुआ तनाव इसके लिए ज़िम्मेदार हो सकता है। कारण जो भी हो, कटिबन्धीय बरसाती जंगल में पेड़ों के गिरने की दर आश्चर्यजनक रूप से तेज़ होती है। इनके गिरने से अनुक्रमण (नए जीवों के क्रमिक पदार्पण) के लिए नई-नई जगहें खाली होती रहती हैं। परिणाम यह होता है कि एक चितकबरा जंगल अस्तित्व में आता है - प्रौढ़ पेड़ जो जंगल की पूरी ऊँचाई (कैनपी) तक पहुँचते हैं, निचली मंज़िल में कम ऊँचाई की झाड़ियाँ, और नए-नए उगे पौधे तथा मध्यम आकार के पेड़ जो कैनपी की ओर बढ़ रहे हैं। विशालकाय पेड़ों के साथ छोटे आकार के पेड़ मिलते हैं। इस तरह से जंगल का दृश्य कहीं अधिक विविधता-पूर्ण होता है, यह वैसा समांगी तो बिलकुल नहीं होता जैसा हमें बताया जाता है। कटिबन्धों में पहली बार जाने वाले लोग अपने साथ कुछ पूर्व-धारणाएँ लेकर जाते हैं। उन्होंने पढ़ा होता है कि बरसाती जंगल में पेड़ कई अलग-अलग स्पष्ट परतों में जमे होते हैं मगर वे यह नहीं समझ पाते कि इन परतों की प्रकृति अत्यन्त गतिशील होती है। बरसाती जंगल में कुछ ही चीज़ें स्वत: नज़र आती हैं। यह हो सकता है कि कुछ जंगलों में अलग-अलग कैनपी परतें एकदम स्पष्ट होती हैं मगर हमारे लिए ऐसी परतें पहचानना हमेशा कठिन रहा है, बताया जाए तब भी शायद हम उन्हें नहीं पहचान पाते।

गैरी हार्टशॉर्न एक अग्रणी नव-कटिबन्धीय वनिक हैं। उन्होंने कई नव-कटिबन्धीय जंगलों में पेड़ गिरने की दरें नापीं और पाया कि ये दरें इतनी ज़्यादा हैं कि उनकी नवीनीकरण अवधि (यानी जितने समय में कोई जंगल पूरी तरह नया हो जाएगा) 80-135 वर्ष के दायरे में है। इसका मतलब है कि शीतोष्ण जंगलों के मुकाबले कटिबन्धीय बरसाती जंगल कहीं अधिक गतिशील (परिवर्तनशील) होता है।
इससे यह भी संकेत मिलता है कि कटिबन्धीय जंगल की सैकड़ों वृक्ष प्रजातियाँ कैसे सह-अस्तित्व बनाए रखती हैं। जन्तु प्रजातियों के बीच प्रतिस्पर्धा के अध्ययनों से पता चलता है कि वे संसाधनों का बँटवारा कुछ इस तरह करती हैं कि प्रत्येक प्रजाति संसाधन पुंज के किसी एक विशिष्ट हिस्से पर जीवित रहती है। यह कल्पना करना अपेक्षाकृत आसान है कि शीतोष्ण जंगलों में पाई जाने वाली चन्द दर्ज़न वृक्ष प्रजातियाँ मिट्टी के प्रकार, अम्लीयता, प्रकाश और खुली हवा का बँटवारा करके साथ-साथ जी सकती हैं। मगर इन्हीं बुनियादी संसाधनों को कटिबन्धीय बरसाती जंगल की 400 से ज़्यादा प्रजातियों में बाँटना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन लगता है।

खाली स्थानों में पनपते जीव
जब कोई पेड़ जंगल की कैनपी को चीरते हुए गिरता है, तो वह रोशनी के एक सुराख और निचली मंज़िल के अन्धकार में बदलाव का रास्ता खोल देता है। प्रकाश ऊर्जा है और ऊर्जा बदलाव लाती है। धूप का नया कतरा तत्काल जंगल के फर्श पर जीवन में बड़े बदलाव का सबब बनता है। आम तौर पर वहाँ खरपतवारनुमा झाड़ियाँ और उलझी हुई लताएँ पसर जाती हैं। मगर किसी पेड़ की जानलेवा डुबकी के साथ शु डिग्री होने वाले बदलाव में झाड़ियों और लताओं की जो भीड़भाड़ पैदा होती है, उसमें इकॉलॉजीविद् कुछ पैटर्न पहचानने लगे हैं।

पेड़ के गिरने से पैदा हुआ खाली स्थान कटिबन्धीय जंगल में एक महत्वपूर्ण व पेचीदा संसाधन है। कई पेड़ तो स्थापित होने और अपने विकास के लिए पूरी तरह इन खाली स्थानों पर निर्भर होते हैं। हार्टशोर्न ने पाया कि कोस्टा रिका के एक बरसाती जंगल में 75 प्रतिशत पेड़ इन खाली स्थानों के भरोसे हैं। इन खाली जगहों की साइज़ में बहुत विविधता होती है और इस वजह से अन्दर पहुँचने वाली धूप की मात्रा में भी काफी अन्तर होते हैं। इन अन्तरों के चलते सूक्ष्म-जलवायुगत बदलाव होते हैं। कुछ पेड़ बड़े रिक्त स्थान के विशेषज्ञ होते हैं - अर्थात् उन्हें अपने अंकुरण और वृद्धि के लिए तेज़ धूप और उच्च तापमान की दरकार होती है जो बड़े खाली स्थान से प्राप्त होते हैं। इन पेड़ों की पौध छाया को सहन नहीं कर सकती। ये विशाल-सुराख (झरोखा) विशेषज्ञ इस तेज़ धूप का इस्तेमाल निचली मंज़िल की प्रजातियों की अपेक्षा बेहतर ढंग से कर सकते हैं। जंगल की निचली मंज़िल के पौधे इतनी तेज़ धूप के आदी नहीं होते और वे उस मद्धिम-सी धूप का कार्यक्षम उपयोग करने के लिए अनुकूलित हो चुके हैं जो उनके हिस्से आती है। जब ज़्यादा धूप उपलब्ध होती है तो वे इसका फायदा उठाकर तेज़ी से वृद्धि करने में असमर्थ रहते हैं।

बड़े खाली स्थान को घेरने वाले पौधे आम तौर पर तेज़ी से बढ़ते हैं और अपनी बड़ी-बड़ी पत्तियों के माध्यम से एक छतरीनुमा मुकुट धारण कर लेते हैं जो अधिक-से-अधिक धूप का उपयोग कर पाती हैं। ऐसा लगता है कि ये महारथी प्रतिस्पर्धा में अन्य छाया-सहिष्णु अंकुरों से तभी बाज़ी मार पाते हैं जब खाली स्थान 825 वर्ग मीटर या उससे बड़ा हो। इस आकार के खाली स्थान अपेक्षाकृत बिरले होते हैं और इनको खोजकर उपयोग करने के लिए बीजों के बिखराव की समस्याएँ सामने आती हैं।

अधिकांश ऐसे पेड़ों के बीजों का बिखराव पक्षियों और चमगादड़ों द्वारा किया जाता है। बड़े खाली स्थानों पर महारत रखने वाले अधिकांश पेड़ों में खूब सारे फल पैदा होते हैं और ये फल बारीक-बारीक बीजों से भरे होते हैं। और इन पर लगभग पूरे मौसम में फल आते रहते हैं। बिखराव की इस रणनीति से इस बात की सम्भावना बढ़ जाती है कि जब कैनपी में कोई खाली स्थान प्रकट हो तो आपका बीज वहाँ पहले से मौजूद रहे। शीघ्र आगमन बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि बड़े खाली स्थानों में जल्दी ही प्रकाश की प्यासी लताएँ और फर्न उग आते हैं और एक चटाई-सी बना देते हैं। हो सकता है कि ये बाद में आने वाले बीजों के अंकुरण में रासायनिक बाधा पैदा करें। इन खाली स्थानों को भरने वाली कई सफल प्रजातियाँ सबसे पहले पहुँचती हैं, जल्दी प्रजनन करती हैं और फिर प्रतिस्पर्धा की भेंट चढ़ जाती हैं। मगर कई अन्य प्रजनन में विलम्ब करती हैं एवं बढ़ती रहती हैं और कैनपी-निर्माता पेड़ बन जाती हैं।

जो प्रजातियाँ प्रकाश के छोटे खाली स्थानों में बढ़ने की विशेषज्ञ हैं वे आम तौर पर घनी कैनपी के नीचे की छाया में अंकुरित होती हैं, हालाँकि उन्हें प्रजनन-योग्य साइज़ हासिल करने के लिए खुलापन चाहिए होता है। कैनपी में छोटे-छोटे सुराख कहीं ज़्यादा संख्या में उपलब्ध होते हैं और बरसाती जंगल के कई पेड़ इन्हीं परिस्थितियों में बढ़ने के लिए अनुकूलित होते हैं। इन प्रजातियों के बीज आम तौर पर बड़े होते हैं और इनका बिखराव अपेक्षाकृत कम दूरी तक होता है क्योंकि इनकी मंज़िलें ज़्यादा पास-पास और ज़्यादा संख्या में होती हैं। बड़े बीज का फायदा यह होता है कि इनमें जल्दी ही विस्तृत जड़ तंत्र बन जाता है जो बड़े पौधे बनने में सहायक होता है। बड़े बीजों में विद्यमान कार्बोहायड्रेट का भण्डार उन्हें यह क्षमता प्रदान करता है कि अंकुरण के बाद वे कोई रिक्त स्थान बनने की प्रतीक्षा कर सकें। छोटे खाली स्थान के ये महारथी बड़े खाली स्थानों में अच्छा प्रदर्शन नहीं करते क्योंकि वहाँ ये बड़े खाली स्थान के विशेषज्ञों की तेज़ वृद्धि के साथ होड़ नहीं कर पाते।

बड़े और छोटे खाली स्थान विशेषज्ञों के बीच कोई स्पष्ट विभाजन नहीं है। बरसाती जंगल के कई पौधे, खास तौर से निचली मंज़िल के पौधे और झाड़ियाँ किसी खाली स्थान के बगैर भी अंकुरित होती हैं और परिपक्व हो जाती हैं। खाली स्थान भी हर साइज़ के मिलते हैं - लगभग न के बराबर से लेकर किसी पहाड़ के पूरे के पूरे फलक के बराबर, जो भूस्खलन की वजह से खुल जाता है। हरेक प्रजाति के लिए यथेष्ट खाली स्थान की साइज़ अलग-अलग होती है। खाली स्थान बरसाती जंगल के पौधों के लिए एक विषमांग संसाधन है जो बहुत बिखरा हुआ होता है। विशेषीकरण के चलते प्रजातियों के बीच प्रतिस्पर्धा कुछ हद तक कम हो जाती है मगर इस प्रणाली में एक किस्म की बेतरतीबी भी है। कटिबन्धीय जंगल में जहाँ सैकड़ों वनस्पति प्रजातियाँ हैं और बीजों को बिखेरने वाले एजेंट भी सैकड़ों हैं, वहाँ हर खाली स्थान के लिए प्रजातियों के एक विशिष्ट समूह के सदस्यों के बीच प्रतिस्पर्धा होती है। यह असम्भव है कि किसी प्रजाति के पेड़ के गिरने पर उस खाली स्थान की पूर्ति उसी प्रजाति के पेड़ से होगी। इस बात की सम्भाविता की विश्वसनीय गणना करना तो और भी मुश्किल होगा कि क्षतिपूर्ति किन विभिन्न प्रजातियों द्वारा की जाएगी।

शीतोष्ण जंगल में नवीनीकरण के छात्र इस बात की सम्भाविता की गणना कर सकते हैं कि किसी बीच या मैपल वृक्ष के गिरने पर कौन-सी प्रजाति उसका स्थान लेगी। और तो और, वे किसी परिपक्व जंगल में कैनपी के संघटन की भविष्यवाणी भी कर सकते हैं। पिं्रसटन विश्वविद्यालय के हेनरी हॉर्न ने न्यू जर्सी जंगल के लिए एक सम्भाविता मैट्रिक्स विकसित किया है मगर उन्हें मात्र ग्यारह प्रजातियों को ध्यान में रखना था। दो-तीन सौ प्रजाति वाले किसी जंगल के लिए क्षतिपूर्ति सम्भाविता की गणना करने में महती कठिनाइयाँ हैं। यह जटिलता इस बात को रेखांकित करती है कि जब कोई प्रजाति वृक्ष गिरने से खाली हुई जगह पर कब्ज़ा करने की कोशिश करती है तो उसे किस ढंग की कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा: उसे सैकड़ों विशिष्ट रूप से अनुकूलित प्रजातियों के साथ होड़ करनी होगी। पेड़ गिरने की दर और खाली स्थान की साइज़ मिट्टी के प्रकार, नमी, ढलान और ऊँचाई पर निर्भर करती है। ये सारे कारक किसी भी पेड़ के बीज-बिखराव के दायरे में बदलते हैं, इसलिए किसी भी प्रजाति की सफलता की भविष्यवाणी करना निहायत मुश्किल है।

नवीनीकरण की प्रक्रिया और भी पेचीदा हो जाती है क्योंकि कुछ प्रतिस्पर्धी प्रजातियों की एक पीढ़ी दो सदियों से भी ज़्यादा समय की होती है। जो प्रजाति क्रमश: अपने प्रतिस्पर्धी को विलुप्ति की ओर धकेलने की क्षमता विकसित कर रही है, हो सकता है कि इतने लम्बे समय में उसे किसी जलवायु परिवर्तन का या किसी बड़ी पर्यावरणीय घटना का सामना करना पड़े, जैसे भूकम्प, बाढ़, सूखा, आग या ज्वाला-मुखी का फटना, जो शायद प्रतिस्पर्धा की शर्तें ही बदल दे। इस तरह के व्यवधान और हादसों तथा साथ में पेड़ गिरने के बेतरतीब सिलसिले के चलते यह मुश्किल लगता है कि कटिबन्धीय जंगल कभी भी पूर्वानुमान योग्य साम्यावस्था (इक्विलिब्रियम) तक पहुँचेगा। क्लाइमेक्स समुदाय की अवधारणा, जिसका आशय है कि विभिन्न वनस्पति प्रजातियों की तुलनात्मक प्रचुरता की भविष्यवाणी की जा सकती है, शायद उच्चतर अक्षांशों के अपेक्षाकृत सरल जंगलों पर लागू करना सम्भव हो; अनछुए कटिबन्धीय बरसाती जंगल को तो एक चितकबरे, सतत् परिवर्तनशील तंत्र के रूप में ही देखना बेहतर होगा जो काफी हद तक पेड़ों के गिरने की अपूर्वानुमेय (अन्प्रेडिक्टेबल) घटना का परिणाम होता है।

पेड़ के गिरने पर हड़बड़ी
जंगल में पेड़ों के गिरने के परिणाम सिर्फ वनस्पति नहीं बल्कि जन्तुओं के लिए भी महत्व रखते हैं। किसी पेड़ की ताज़ा गिरी हुई विशाल कैनपी बरसाती जंगल में बहुत ही रोमांचक स्थान होता है। ऊँचाइयों से घबराने वाले प्रकृतिविद् यहाँ उन ऑर्किड्स और कीड़ों के घोंसलों की झलक पा सकते हैं जो आम तौर पर नज़रों या पहुँच से दूर होते हैं। कैनपी कई अनूठी प्रजातियों को अपने में समाकर रखती है और यदि पेड़ न गिरते तो शायद इन प्रजातियों का हमारा ज्ञान बहुत सीमित रहता। वैसे आजकल वैज्ञानिक रस्सियों और जुमरों (ऊपर चढ़ने का एक साधन, चित्र-5) की मदद से कटिबन्धीय बरसाती जंगल की जीवित कैनपी की ऊँचाइयों तक पहुँचने लगे हैं मगर आज भी वहाँ रहने वाले पौधों और जन्तुओं के बारे में मालूमात बहुत कम हैं। ऐसे उद्यमी प्रेक्षक आज भी एक-एक पेड़ तक सीमित रहते हैं और उन्हें वहाँ जो सारे जीव नज़र आते हैं, उनका संग्रह करके पहचान पाना अत्यन्त कठिन होगा। ताज़ा गिरे हुए पेड़ उन जीव वैज्ञानिकों के लिए मूल्यवान संसाधन हैं जो कटिबन्धीय बरसाती जंगलों की विविधता का अध्ययन व दस्तावेज़ीकरण करने का इरादा रखते हैं। और लगता है कि हर बार जब कोई पेड़ गिरता है तो कुछ नया लेकर गिरता है।

किसी बड़े पेड़ के पतन के बाद जो आपाधापी पैदा होती है वह बहुत प्रेरणास्पद होती है, खास तौर से कीट वैज्ञानिकों के लिए। हाल ही में गिरे हुए पेड़ का ताज़ा कटा हुआ तना शोरगुल करने वाली सिर्फिड मक्खी और कई सारे तड़क-भड़क वाले गुबरैलों को आकर्षित करता है: लम्बे सींग वाला, कई इंच लम्बा, शरीर पर पीली और नारंगी पट्टियों का ज्यामितीय पैटर्न लिए हार्लेक्विन गुबरैला (Acrocinus longimanus,, चित्र-6); गोल्डेन ब्युप्रेस्टिड वुड-बोरिंग गुबरैला; और बड़े-काले घुन (वीविल्स)। ये सब अवतरित होते हैं, लकड़ियों से टपकते रस को चूसने और वहाँ अण्डे देने के लिए। कई परजीवी ततैये मक्खियों और गुबरैलों की अपरिपक्व अवस्थाओं में रुचि रखते हैं। ये ततैये पेड़ के लट्ठे पर गश्त लगाना शु डिग्री कर देते हैं और फलभक्षी मक्खियों का हुजूम सड़ते हुए (किण्वित होते) रस पर मण्डराने लगता है। यदि खाली स्थान बड़ा और धूपदार हुआ तो लताओं और झाड़ियों पर फूलों की बहार आ जाती है। मकरन्द की आस में तितलियाँ, तथा फलों की आस में चमगादड़ और पक्षी पैशन लताओं की ओर खिंचे चले आते हैं। मॉर्निंग ग्लोरी मधुमक्खियों को, तो एहेलैण्ड्रा, हेलिकोनिया व अन्य नलीनुमा फूलों वाले पौधे हमिंगबर्ड्स को पुकारते हैं। ये पक्षी फूलों वाली हर पट्टी की भरपूर रक्षा करते हैं।

इनमें से कई पायोनीयर पौधे लगभग साल भर बढ़ते रहते हैं, फलते-फूलते रहते हैं। इसलिए नदियों के किनारे, टापू, नदी के मोड़ और भूस्खलन जैसे प्रकाशित इलाके, जहाँ ये पायोनीयर पौधे उगते हैं, जन्तुओं के आकर्षण का केन्द्र होते हैं। जब शेष जंगल में उपलब्धता में मौसमी मन्दी होती है तो बन्दर तथा अन्य जन्तु इन सुपर खाली जगहों पर पहुँच जाते हैं। पायोनीयर पौधे अपनी वृद्धि को इतना अधिक महत्व देते हैं कि उनके पास अपने रासायनिक सुरक्षा साधनों पर खर्च करने को कुछ नहीं बचता। कीटों से लेकर स्लॉथ तक सारे शाकाहारी जन्तु खाद्य पत्तियों के इन नखलिस्तानों का लाभ उठाते हैं। ऐसा लगता है कि कुछ पक्षी रोशनी वाले खाली स्थानों के विशेषज्ञ होते हैं। वे यहाँ कीटों के उच्च घनत्व को देखकर पहुँच जाते हैं। कीटों का यह उच्च घनत्व और साथ में धूप शायद कई छिपकलियों को भी पेड़ गिरने या अन्य कारणों से बने खाली स्थानों की ओर खींच लाता है। जब बढ़िया धूप हो और छिपकलियाँ भरपूर मात्रा में उपलब्ध हों, तो साँप भी दौड़े चले आते हैं। कटिबन्ध के प्रकृतिविदों के बीच यह अप्रमाणित दन्तकथा है कि यदि बरसाती जंगल में टर्सिओपेलो या फर-डी-लांस जैसेसबसे भयानक साँपों को देखना है तो गिरे हुए पेड़ सबसे बढ़िया जगह है।

रोशनी वाले खाली स्थानों से जुड़े जन्तुओं को पेड़ गिरने की बेतरतीब घटनाओं द्वारा उपलब्ध कराए गए नए अवसरों के साथ तालमेल बनाकर जीना पड़ता है और उन्हें तब अलग किस्म की प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है जब ये खाली स्थान हरियाली से भर जाते हैं।
बरसाती जंगल में ऐसी घमासान प्रतिस्पर्धात्मक अन्तर्क्रियाएँ कभी भी एक स्थिरतापूर्ण, पूर्वानुमान योग्य अवस्था में नहीं पहुँच पातीं जहाँ प्रजातियों के बीच प्रतिस्पर्धा कुछ प्रजातियों का उन्मूलन कर दे। सम्भवत: कटिबन्धीय बरसाती जंगलों की समृद्धता और विविधता उनकी उम्र या पूर्वानुमान-योग्यता के कारण नहीं बल्कि पेड़ों के गिरने की वजह से होने वाले सतत् परिवर्तन और व्यवधानों के कारण है।


 ऐड्रियन फोर्सिथ: पिछले तीस सालों से ट्रॉपिक्स में शोध और कंज़र्वेशन करते आ रहे हैं। उत्तर अमेरिका के प्रकृति और विज्ञान के बेहतरीन लेखकों में से एक हैं।
कैन मियाटा: स्मिथसोनियन इंस्टिट्यूशन में पोस्ट-डॉक्टोरल फैलोशिप करने के बाद उन्होंने नेचर कंज़र्वेन्सी के साथ काम किया। 32 साल की अल्प आयु में उनका निधन हो गया।
अँग्रेज़ी से अनुवाद: सुशील जोशी: एकलव्य द्वारा संचालित स्रोत फीचर सेवा से जुड़े हैं। विज्ञान शिक्षण व लेखन में गहरी रुचि।
यह लेख ‘ट्रॉपिकल नेचर - लाइफ एंड डैथ इन द रेन फॉरेस्ट्स ऑफ सैंट्रल एंड साउथ अमेरिका’ किताब से लिया गया है जो साइमन एंड शूस्टर द्वारा 1987 में छापी गई थी।