Sandarbh - Issue 109 (March-April 2017)
1. अजूबा की पत्तियाँ ही नहीं फूल भी गज़ब के - किशोर पंवार [Hindi, PDF, 485 kB]
यहाँ जिस पौधे की बात हो रही है उसका नाम है ब्रायोफिलम पिन्नेटम। ग्रीक भाषा में ब्रायॉन का अर्थ होता है अंकुरण और फिलॉन का मतलब पत्ती अर्थात् पत्ती में अंकुरण वाला पौधा। यही इसकी विशेषता है जिसके चलते इसे कई नाम मिले हैं। पत्तियों के साथ ही यहाँ बात हो रही है इसके पुष्पक्रम और फूल की कुछ बारीकियों की।Read article...
2. क्यासनूर जंगल रोग: एक खोजी कथा: भाग 2 - नित्यानंद राव
[Hindi, PDF, 208 kB] [English PDF]
वायरस को ज़िन्दा रहने के लिए ज़रूरी होता है कि वे एक वाहक और एक भण्डारण जीव के बीच डोलते रह सकें। शोधकर्ताओं को जंगल के फर्श पर विचरने वाले विभिन्न छोटे स्तनधारियों - कुतरने वाले (कृन्तक) जीवों और छछून्दरों - पर सन्देह था कि ये पिस्सुओं की कई प्रजातियों के मेज़बान हैं और यही पिस्सू केएफडी वायरस के वाहक भी हैं। आखिर वे कौन-से कारण थे जिनके चलते वायरस इस ज़ुओनॉटिक चक्र को तोड़कर मनुष्यों को संक्रमित करने लगा? इन रोचक बातों को जानते हैं लेख के इस दूसरे भाग में।Read article...
3. विज्ञान और प्रयोग: भाग 1 - सुशील जोशी [Hindi, PDF, 386 kB]
विज्ञान का एक मकसद है अपने आसपास की दुनिया का एक विवरण देना और उसके अलग-अलग अवयवों के बीच सम्बन्ध स्थापित करना। इसके ज़रिए हम इस विश्व की एक तस्वीर निर्मित करते हैं और उसके कामकाज को समझने की कोशिश करते हैं। यह सब कुछ समझने में अवलोकन की अहम भूमिका है। कुछ अवलोकनों को बेहतर ढंग से समझने के लिए हमें प्रयोग का सहारा लेना पड़ता है। यह लेख विज्ञान में प्रयोग की भूमिका बतलाता है।Read article...
4. स्कूल, भाषा और बच्चे - कालू राम शर्मा [Hindi, PDF, 237 kB]
ज़्यादातर स्कूलों में भाषा शिक्षण बारहखड़ी को रटाकर किया जाता है। बारहखड़ी के अक्षर बच्चों के लिए एकदम नए और अनजान होते हैं जिन्हें दिमाग में बिठाना बच्चों के लिए आसान नहीं होता। पढ़ना महज़ पढ़ना नहीं बल्कि एक अर्थपूर्ण प्रक्रिया है जिसे अर्थ पूर्ण तरीके से ही करना होगा। लेखक यहाँ यही करके दिखला रहे हैं।Read article...
5. पढ़ना-लिखना और समझना - कमलेश चन्द्र जोशी [Hindi, PDF, 299 kB]
जब बच्चे चौथी-पाँचवीं में पहुँचते हैं तो विस्तारित साक्षरता की बात आती है। इसमें साक्षरता के उच्चस्तरीय कौशलों के विकास पर भी ध्यान देना होता है, जिनके अन्तर्गत पढ़कर समझना, अर्थ-निर्माण, भाषाई सौन्दर्य, समालोचनात्मक दृष्टिकोण आदि पहलू भी शामिल हैं। वास्तव मेंे, पढ़ना-लिखना और समझना साथ-साथ चलने वाली प्रक्रियाएँ हैं और इस पर समग्रता में ही काम होना चाहिए।Read article...
6. बहुभाषीयता: एक संसाधन - रमाकान्त अग्निहोत्री [Hindi, PDF, 123 kB] [English PDF]
हमारी परम्परागत शिक्षाशास्त्रीय रूपरेखा ‘एक शिक्षक’, ‘एक पाठ्यपुस्तक’ और ‘एक भाषा’ के इर्द-गिर्द रची गई है। यह ढाँचा भाषाई और सांस्कृतिक संसाधनों के उस समूचे खज़ाने को कक्षा से बाहर फेंक देता है जो बच्चे कक्षा में लाते हैं। सम्भव है कि हम ‘एक भाषा’ के बन्धन से आज़ाद होने की ओर बढ़ें और बच्चों में संज्ञानात्मक विकास और भाषाई काबिलियत को बढ़ावा देने के लिए उन सब भाषाओं का कक्षा में उपयोग करें जो बच्चे स्कूल में लाते हैं।Read article...
7. कल्मू और कर्मा - देवाशीष मखीजा [Hindi, PDF, 515 kB] [English PDF]
छत्तीसगढ़ के कई सारे भीतरी आदिवासी इलाकों में जहाँ बाहर के लोग तक नहीं पहुँच पाए थे, अयस्कों के मोह में बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ पहुँच चुकी हैं। सरकार भी उनके साथ है। आदिवासी जनों के बीच इन शक्तिशाली कम्पनियों के पहुँचने से कैसे हालात बने हैं, इसका जीवन्त चित्रण है इस कहानी में।Read article...
8. भारत में बचपन का अध्ययन - कृष्ण कुमार [Hindi, PDF, 209 kB] [English PDF]
स्वतंत्रता, वैयक्तिकता और समानता के विमर्श के रूप में बच्चे को देखने की शुरुआत 18वीं सदी के मध्य में पश्चिमी यूरोप में हुई। भारत में बचपन पर किए जाने वाले हमारे चिन्तन पर, इस विषय पर उपलब्ध प्रमुख वैश्विक संवाद का प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है। यूरोप से अलग भारत के सन्दर्भ में बचपन के कई आयाम और परतें हैं जिन्हें अलग तरह से देखने का प्रयास लेखक ने अपने इस लेख में किया है।Read article...
9. क्या प्लास्टिक का वेपोराइज़र विषैले तत्व छोड़ता है? - सवालीराम [Hindi, PDF, 169 kB] [English PDF]
ऐसा माना जाता है कि प्लास्टिक जब ज़्यादा गरम हो जाती है तो विषैले तत्व छोड़ती है। सर्दी हो जाने पर जिस वेपोराइज़र का इस्तेमाल हम भाप लेने के लिए करते हैं वो भी प्लास्टिक का बना होता है। तो क्या भाप लेने के साथ हम विषैले तत्व भी ग्रहण करते जाते हैं? इस सवाल की वैज्ञानिक पड़ताल करता इस बार का सवालीराम।Read article...