सवाल: परछाई सुबह, दोपहर और शाम को अलग-अलग दिशा में क्यों बनती है?

— आश्रमशाला डोमा, महाराष्ट्र

जवाब: जापानी उपन्यासकार हारुकी मुराकामी के उपन्यास IQ84 का यह वाक्य बहुत मशहूर है: “जहाँ रोशनी है, वहाँ परछाई होगी ही, जहाँ परछाई है वहाँ रोशनी भी अवश्य होगी। रोशनी के बगैर परछाई नहीं होती और परछाई के बगैर रोशनी नहीं...।”
यह बहुत बढ़िया अवलोकन है कि परछाई की साइज़ और दिशा दिन भर में बदलती रहती है। हो सकता है तुमने यह भी ध्यान दिया होगा कि परछाई की साइज़ और दिशा महीने के अनुसार भी बदलती है। पहले यह देखते हैं कि परछाई होती क्या है।

परछाई कब और कैसे बनती है?
परछाई दरअसल वह अँधेरा क्षेत्र होता है जहाँ किसी अपारदर्शी वस्तु के कारण रोशनी नहीं पहुँच पाती। अर्थात् परछाई तब बनती है जब कोई वस्तु सूरज की रोशनी को कहीं पहुँचने से रोकती है। इस परछाई की लम्बाई इस बात से तय होती है कि सूरज आसमान में कितना चढ़ चुका है।  यह तो तुम जानते ही हो कि दिन भर में आसमान में सूरज की स्थिति बदलती रहती है। सूरज की इसी बदलती स्थिति की वजह से चीज़ों की परछाइयों में परिवर्तन  होता  है।  यह  परिवर्तन परछाइयों की लम्बाई, आकृति और दिशा में हो सकता है।

कोई भी स्थान लें, दिन भर में सूरज से आने वाली किरणें पृथ्वी की सतह पर अलग-अलग कोण बनाती हैं। इसकी वजह से वस्तुओं की परछाइयों की साइज़ और दिशा बदलती हैं। उदाहरण के लिए, मध्यान्ह के समय, जब सूरज सिर के ठीक ऊपर होता है, तब हमारी परछाई सबसे छोटी होती है। यहाँ ध्यान देने की बात यह है कि मध्यान्ह का समय अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग हो सकता है। जैसे भोपाल में मध्यान्ह का समय दिन में 12 बजकर 26 मिनट है। दूसरी ओर, सूर्योदय व सूर्यास्त के समय परछाइयाँ लम्बी-लम्बी होती हैं। इसे समझने के लिए किसी दिन जब धूप खिली हो, तब बाहर निकलो और अपनी परछाई को देखो। यदि समय मध्यान्ह के आसपास का है तो तुम्हारी परछाई छोटी रहेगी और सुबह या शाम के वक्त परछाई लम्बी होगी।

परछाई की दिशा कैसे बदलती है?
प्रकाश स्रोत (जैसे सूरज) की स्थिति बदले या रोशनी के मार्ग में आने वाली वस्तु की स्थिति बदले, तो परछाई की दिशा भी बदलती है। एक उदाहरण से इसे समझते हैं। मान लो तुम धूप में खड़े हो और तुम्हारी परछाई किसी दिशा में पड़ रही है। तुम्हारी परछाई की दिशा सूरज से उल्टी दिशा में होगी। कुछ समय बाद सूरज की स्थिति बदलने के कारण उससे आने वाली किरणों की दिशा भी बदल जाएगी और उसी के हिसाब से परछाई की दिशा भी।
परछाई की बात तो हो गई लेकिन क्या तुमने सोचा है कि ऐसा भी कोई दिन होता है जब कोई परछाई नहीं बनती? या क्या तुम परछाई का उपयोग किसी काम में कर सकते हो? चलो थोड़ी बात इसके बारे में भी करते हैं।

शून्य परछाई दिवस
तुमने ध्यान दिया होगा कि मध्यान्ह के समय परछाई सबसे छोटी होती है। जब सूरज ठीक सिर के ऊपर होता है और सूरज की किरणें सतह पर लम्बवत गिरती हैं तो वहाँ किसी भी चीज़ की परछाई नहीं दिखती। यदि तुम अपनी परछाई देखना चाहो तो तुम्हें थोड़ा कूदना पड़ेगा। लेकिन यह स्थिति पृथ्वी पर हर जगह नहीं होती है। सिर्फ कर्क रेखा और मकर रेखा के बीच स्थित जगहों पर ही साल में दो बार शून्य परछाई दिवस आता है। भारत में यह अप्रैल और सितम्बर माह के दौरान आता है।

अपनी परछाई से समय कैसे बताओगे?
यह तो तुम देख ही चुके हो कि दिन भर में सूरज की किरणों की दिशा बदलती रहती है - सुबह धूप पूर्व की ओर से आती है तो शाम को पश्चिम की ओर से। इसके साथ परछाई की लम्बाई और दिशा भी बदलती है। लोग सदियों से परछाई को देखकर समय का अन्दाज़ लगाते रहे हैं। कई स्थानों पर इसके लिए सौर घड़ी का उपयोग भी किया जाता है। दिन के अलग-अलग समय पर परछाई की लम्बाई अलग-अलग होती है और दिशा भी। किसी समय पर परछाई की लम्बाई के आधार पर तुम समय का अनुमान लगा सकते हो।

कुछ आसान गतिविधियाँ करने के लिए

1. परछाई बनाओ
इस सरल-सी गतिविधि के लिए हमें एक टॉर्च और तरह-तरह की वस्तुओं की ज़रूरत होगी, जैसे गेंद, चौकोर गत्ते का टुकड़ा, पेंसिल वगैरह। ध्यान इस पर देना कि जब टॉर्च को विभिन्न वस्तुओं पर चमकाया जाता है तो क्या होता है। टॉर्च की स्थिति की तुलना में परछाइयों की स्थिति और साइज़ को नोट करो। वस्तु को एक जगह स्थिर रखो और टॉर्च को अलग-अलग जगह पर रखकर उसकी रोशनी वस्तु पर डालो। यह देखो कि क्या टॉर्च को सरकाने से परछाई भी सरकती है। परछाई इस तरह सरकती है कि वह सदा टॉर्च की विपरीत दिशा में रहे।

2. परछाई की हरकतें
यह गतिविधि उन परछाइयों के गुणधर्मों को समझने के लिए है जो हमें खुली धूप में नज़र आती हैं। परछाइयों के गुणधर्मों के आधार पर हम पहले से बता सकते हैं कि किसी वस्तु की परछाई दिन भर में कैसे-कैसे बरताव करेगी। इस गतिविधि के लिए हमें किसी ऐसी वस्तु की परछाई को देखना होगा जो एक जगह स्थिर है, जैसे कोई खम्भा या अन्य कोई भी लम्बवत खड़ी वस्तु। अच्छा होगा कि कई सारे अवलोकन लिए जाएँ - एक सुबह, एक दोपहर में और फिर एक शाम के समय। यह देखा गया है कि परछाई सुबह से लेकर शाम तक लगभग घड़ी के काँटे जैसे रास्ते पर चलती है। यह गतिविधि अन्दर कमरे में भी की जा सकती है क्योंकि परछाई के गुणधर्म तो अन्दर-बाहर एक जैसे ही होते हैं। कमरे में करने के लिए हमें एक टॉर्च की ज़रूरत होगी।

3. परछाई से ऊँचाई
तुम जहाँ भी जाओ, परछाई साथ चलती है। लेकिन यह परछाई एक साये से ज़्यादा काम कर सकती है। खुली धूप वाले दिन में यह बड़ी-बड़ी इमारतों, बिजली के खम्भों वगैरह की ऊँचाई पता करने में मदद कर सकती है। इसके लिए तुम्हें किसी ऐसे स्थान पर जाना होगा जहाँ तुम्हें परछाइयाँ अच्छी तरह दिखें। यह गतिविधि ऐसे समय पर करना बेहतर होता है जब सूरज एकदम सिर पर न हो।

एक मापी फीता लेकर पैर से लेकर सिर तक की अपनी परछाई को मीटर में नाप लो। अपनी वास्तविक ऊँचाई भी मीटर में नापो। अपनी ऊँचाई में परछाई की लम्बाई का भाग दे दो। इस अनुपात को नोट कर लो। अब एक ऊँची चीज़ को देखो। चीज़ इतनी ऊँची भी न हो कि तुम्हें उसकी पूरी परछाई ही नज़र न आए। अब उस वस्तु की परछाई को नाप लो। परछाई की लम्बाई में ऊपर निकाले गए अनुपात से गुणा कर दो। यह उस वस्तु की ऊँचाई मीटर में होगी।


कोकिल चौधरी: संदर्भ पत्रिका से सम्बद्ध हैं।

अँग्रेज़ी से अनुवाद: सुशील जोशी: एकलव्य द्वारा संचालित स्रोत फीचर सेवा से जुड़े हैं। विज्ञान शिक्षण व लेखन में गहरी रुचि।