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Sandarbh - Issue 131 (Nov-Dec 2020)
- ये किस हिन्दी का उपयोग करती हैं पाठ्यपुस्तकें?
- धोखेबाज़ तितलियाँ
- ज़मीनी हकीकत - परिधि और क्षेत्रफल में सम्बन्ध
- ज़िद्दी सवाल और विरोधाभास
- एक कहानी कई विचार
- ज्ञान का स्वामित्व और नाटक प्रक्रिया
- महाराष्ट्र के सरकारी-अनुदान प्राप्त सेमी-इंग्लिश स्कूलों से क्या सीख सकते हैं?
- सवालीराम - 131
- फरिश्तों के चेहरों पर रंग
Sandarbh - Issue 131 (Nov-Dec 2020)
1 ज़मीनी हकीकत - विवेक मेहता
क्षेत्रफल और परिधि को समझना इतिहासकारों के साथ-साथ गणितज्ञों को भी बेहद रोचक लगा है और वह आयतन से जुड़े तमाम सवालों को हल करने की कोशिश में भरसक प्रयास कर रहे हैं। इसी मसले को लेख के द्वारा आम उदाहरणों के साथ समझते हैं।
2 धोखेबाज़ तितलियाँ - संकेत
छोटे कीटों की दुनिया अद्भुत होती है। तितली हमारी जीव-सृष्टी का नायाब और महत्वपूर्ण घटक है। जीवसृष्टी के विकास में ज़िन्दा रहने की चुनौतियों का योगदान काफी अहम रहा है। इस धरातल पर ज़िन्दा रहने के लिए कई तरकीबें अपनाई जाती हैं। तितली के पास भी ऐसा एक बेहतरीन हथियार है, नकल यानी मिमिक्री का, जिसे अनुकूलन का एक विशेष तरीका माना जाता है। इस लेख में समझते हैं कि नकल से तितली को क्या लाभ हो सकता है और उसके कई अन्य रोचक तथ्यों को।
3 ये किस हिन्दी का उपयोग करती हैं पाठ्यपुस्तकें? – उमा सुधीर
इस लेख के द्वारा लेखिका बच्चों और शिक्षकों, दोनों के साथ विज्ञान की कुछ बुनियादी अवधारणाओं पर काम करने के अपने अनुभव साझा करना चाहती हैं। यह लेख मुख्य रूप से इस बारे में है कि हम विज्ञान पढ़ाते वक्त किस तरह की भाषा का उपयोग करते हैं। तो आइए प़ढ़ते हैं इस महत्वपूर्ण लेख को जो आज की स्थिति को अच्छे से दर्शाता है।
4 ज़िद्दी सवाल और विरोधाभास: भाग 5 – शेषागिरी केएम राव
शिक्षा वास्तव में एक दूसरी दुनिया को मुमकिन बनाने का शुरुआती बिन्दु है और शिक्षण खुद को शिक्षित करने का बढ़िया तरीका है। उक्त लेख के माध्यम से पढ़ते- समझते हैं कि कैसे एक अच्छा गणित शिक्षक, लेखक की शिक्षण शैली में परिवर्तन ला पाया और गणित की समझ को विद्यार्थियों तक पहुँचाने में सहायक बना। पढ़ते हैं इस सीरीज़ के पाँचवें लेख को।
5 एक कहानी कई विचार - नीतू यादव
आज के समय में बच्चों को शुरुआत से ही इस तरह का एक्सपोज़र देना महत्वपूर्ण है जिससे बच्चों के मन में विभिन्न सामाजिक तबकों के प्रति एक समझ और संवेदनशीलता का भाव विकसित हो क्योंकि विभिन्न आर्थिक और सामाजिक पृष्ठभूमि के बच्चों के आपस में रहने-खेलने की जगहों, स्कूलों में ऐसा विभाजन है कि इन बच्चों के बीच मेलमिलाप के मौके ही नहीं बनते। इसके लिए ज़रूरी है कि बच्चों के साथ उन किताबों को साझा किया जाए जो अलग-अलग तरह के जीवन और संस्कृतियों की झलक दिखाती हों| इसी परिप्रेक्ष्य में बच्चों के साथ साझा की गई एक किताब इस्मत की ईद से जुड़े कुछ अनुभव लेखिका इस लेख के साथ साझा करती हैं।
6 ज्ञान का स्वामित्व और नाटक प्रक्रिया – मौअज्ज़म अली
शिक्षा के रचनावादी और निर्माणवादी सिद्धान्त, जिसके अन्तर्गत यह माना जाता है कि एक बच्चा अपने ज्ञान का निर्माण स्वयं करता है। आखिर इस ‘ज्ञान के स्वामित्व’ का क्या मतलब है? इसके आलोक में देखने के तहत, नाटक की प्रक्रिया में इसको हासिल करने की सम्भावना को खोजने पर यह लेख अनुभवात्मक चर्चा प्रस्तुत करता है। आइए पढ़ते हैं इस लेख को विस्तारपूर्वक।
7 महाराष्ट्र के सरकारी-अनुदान प्राप्त सेमी-इंग्लिश स्कूलों से क्या सीख सकते हैं? – अरविंद सरदाना
महाराष्ट्र में कई स्कूलों में अर्ध-अँग्रेज़ी यानी सेमी-इंग्लिश नीति अपनाने की अनुमति थी इसलिए सेमी-इंग्लिश स्कूलों की परिपाटी रही है। ये स्कूल हैं तो मराठी माध्यम के, परन्तु माध्यमिक शाला में विज्ञान और गणित के लिए अँग्रेज़ी पाठ्यपुस्तकों का उपयोग करते हैं। इस कारण बच्चे इन्हीं स्कूलों में टिके हुए हैं और प्राइवेट स्कूल की तरफ पलायन कम हुआ है। इस मुद्दे में विरोधाभास तो यह है कि जहाँ महाराष्ट्र में अँग्रेज़ी सीखने की महत्वाकांक्षा के लिए एक मध्य मार्ग अपनाया गया है वहीं आदिवासी भाषाओं के प्रति नकारात्मक नीति अपनाई गई है। इसी चर्चा को विस्तारपूर्वक पढ़ते हैं उपरोक्त लेख में।
8 फरिश्तों के चेहरों पर रंग – मार्क ओ’सुलीवान - कहानी
9 पन्नी-प्लास्टिक कैसे बनती है? – सवालीराम
प्लास्टिक के प्रति विरोध के बावजूद इसकी उपयोगिता हर जगह निरन्तर बनी हुई है। ऐसे में यह सवाल बहुत ही सटीक है कि आखिर यह प्लास्टिक बनती कैसे है। इस सवाल के जवाब को समझते हैं इस बार के सवालीराम के साथ।