Sandarbh - Issue 150 (January - February)
मेरी आवाज़ ही पहचान है! नकलची पक्षी - संकेत राउत [Hindi, PDF]
क्या आप पक्षियों की आवाज़ सुनकर उनकी पहचान कर सकते हैं? यदि हाँ, तो क्या हो अगर आपको पता चले कि आपकी इसी क्षमता को धोखा देने में कई पक्षी काबिल हैं? संकेत राउत का यह लेख ऐसे ही नकलची पक्षियों के बारे में है, जो अलग-अलग आवाज़ों की नकल करने और उसके बलबूते पर अन्य जीवों को धोखा देने का हुनर रखते हैं। मगर वे ऐसा क्यों और कैसे करते हैं? पढ़िए, सुनिए और जानिए।
आम के पेड़ पर ये मटके किसने चिपकाए हैं? - किशोर पंवार [Hindi, PDF]
क्या आपने कभी आम या जामुन के पेड़ों पर छोटे-छोटे मटके जैसी दिखने वाली खोलनुमा रचनाओं को देखा है? या उन्हीं पेड़ों के नज़दीक हरे रंग के मॉथ को? कौन हैं ये विचित्र जीव? पहले एक लार्वा, फिर प्यूपा और आखिर एक पतंगा – चलिए इन रूप बदलते सुन्दर कीटों की खोज में, किशोर पंवार के लेख के साथ। क्या खबर, कभी आपको इनके अण्डे भी मिल जाएँ…
फोनोग्राफ, बल्ब और चलचित्र कैमरा - हरिशंकर परसाई [Hindi, PDF]
विज्ञान के महानतम आविष्कारकों की फेहरिस्त में थॉमस एडिसन का नाम उतना ही रोशन है, जितना रोशन उनका बल्ब! मगर इस वैज्ञानिक का योगदान अँधेरी रातों को जगमगाने तक ही सीमित नहीं है, बल्कि संगीत, सिनेमा, संचार से लेकर आधुनिक समाज के कई अन्य क्षेत्रों में भी एडिसन ने अमिट छाप छोड़ी है। जानिए इस बेहद जिज्ञासु और भूखे अन्वेषी की कहानी, हरिशंकर परसाई के इस लेख में।
आकाशीय पिण्डों की गति की व्याख्या: भाग 4 - उमा सुधीर [Hindi, PDF]
गर्मियों में दिन की लम्बाई ज़्यादा और सर्दियों में कम क्यों होती है? गर्मियाँ-सर्दियाँ होती ही क्यों हैं? पृथ्वी पर अलग-अलग जगहों पर सूर्योदय और सूर्यास्त के समय अलग-अलग कैसे होते हैं? आकाशीय पिण्डों और उनसे जुड़ी दिलचस्प घटनाओं की व्याख्या करते लेखों की इस कड़ी में हम ऐसे ही सवालों के उत्तर कुछ आँकड़ों, गतिविधियों और सरल अवलोकनों के ज़रिए ढूँढ़ सकते हैं। उमा सुधीर के इस लेख के द्वारा जानिए, इन जाने-पहचाने पिण्डों और उनके व्यवहार को आखिर हम कितना जानते हैं।
गणित सीखने में बातचीत की ज़रूरत - विक्रम चौरे [Hindi, PDF]
गणित में ‘गलतियाँ’ क्या होती हैं? ये गलतियाँ होती क्यों हैं? क्या इन्हें ‘गलतियाँ’ कहा भी जा सकता है? इन समस्याओं पर काम करने के लिए, और गणित सीखने के सफर को सुगम बनाने के लिए, बच्चों और शिक्षकों के बीच बातचीत एक अहम ज़रिया हो सकती है। महीन विश्लेषणों और चिन्तन से भरे विक्रम चौरे के इस लेख में ऐसे कई सवालों पर अलग-अलग कोणों से रोशनी डाली गई है।
और हम कह भी नहीं पाते! - राजाबाबू ठाकुर [Hindi, PDF]
“बच्चों को सिखाने के लिए थोड़ा-बहुत डर भी ज़रूरी है।” – यह कथन किस हद तक ठीक है? ठीक है भी या नहीं? क्या डर, दण्ड और मार बच्चों के सीखने के सफर में, और उनके शारीरिक, मानसिक व भावनात्मक विकास में बाधा नहीं डालते? शिक्षकों से ‘भय’ पर की गई बातचीत और उनसे सम्बन्धित कक्षा अवलोकनों को बयान करता राजाबाबू का यह लेख बड़ी दृढ़ता व तार्किकता से भय व दण्ड के खिलाफ पक्ष रखता है।
ऐंग गाँव की चेंग कथाएँ: भाग-2 - माधव केलकर [Hindi, PDF]
माधव के ऐंग गाँव से चेंग कथाओं का यह दूसरा भाग है। पहले भाग में जहाँ स्कूली शिक्षकों के लिए रिफ्लेक्टिव टीचिंग के मायनों पर रोशनी डाली गई थी, तो वहीं इस भाग में शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत गैर-शासकीय संस्थाओं के कार्यकर्ताओं पर बात की गई है। इन कार्यकर्ताओं से भी, कई कारणों के मद्देनज़र, रिफ्लेक्टिव रिपोर्ट तैयार करने की अपेक्षा की जाती है। ऐसे में, यह लेख एक चिन्तनशील रवैये को न सिर्फ रिपोर्ट में, बल्कि अपने जीवन में भी विकसित करने में बेहद मददगार होगा।
क्या मैं उड़ा था? - कृष्ण कुमार [Hindi, PDF]
हवा चली, चादर उड़ा ले गई। अब रातभर बिना चादर के नींद कैसे आए भला! तो वह चादर पकड़ने हवा के रास्ते दौड़ चला। मगर क्या वह उड़ती चादर को पकड़ने के लिए खुद भी उड़ा था? जानने के लिए पढ़िए कृष्ण कुमार की यह दिलचस्प कहानी।
सोडा डालने पर चने जल्दी क्यों पक जाते हैं? – सवालीराम [Hindi, PDF]
रात भर पानी में भिगोकर रखने के बाद भी सुबह उन चनों को खाते समय कुछेक चने कच्चे क्यों रह जाते हैं? और सोडा में ऐसी क्या खूबी है जिससे चने जल्दी पक जाते हैं? रसोईघर के रसायनशास्त्र से उठते इन सवालों के जवाब पढ़िए इस बार के सवालीराम में, चने चबाते-चबाते!