डॉ. अरविन्द गुप्ते
वैज्ञानिकों को यह पता है कि जब पक्षी और डॉल्फिन (समुद्र में रहने वाले स्तनधारी जंतु) सोते हैं तब उनके मस्तिष्क का केवल आधा भाग सोता है। शेष आधा भाग जागता रहता है ताकि किसी प्रकार की आहट या खतरा होने पर जंतु पूरी तरह सजग हो कर बचाव की कार्रवाई कर सके। अमेरिका के ब्राउन विश्वविद्यालय की युका सासाकी ने इस तथ्य को मनुष्य की नींद से जोड़ कर देखने का प्रयास किया। जब हम किसी अनजान स्थान पर पहली रात बिताते हैं तब हमें उतनी अच्छी नींद नहीं आती जितनी परिचित स्थान पर आती है। इसे ‘प्रथम रात्रि प्रभाव’ कहते हैं। इसी कारण जिन व्यक्तियों को प्रवास के दौरान रोज़ नए स्थान पर सोना पड़ता है वे अच्छी तरह नहीं सो पाते और अगले दिन थकान महसूस करते हैं।
सासाकी के अनुसार यह ‘प्रथम रात्रि प्रभाव’ वाली समस्या मनुष्य के जैव विकास से जुड़ी हो सकती है। यह उस समय की विरासत हो सकती है जब अन्य जंगली जंतुओं के समान हमारे पूर्वजों का भी केवल आधा मस्तिष्क सोता होगा। इस परिकल्पना को जांचने के लिए सासाकी और उनके दल ने 35 युवा और स्वस्थ व्यक्तियों को चुना। इन्हें मनोविज्ञान विभाग की प्रयोगशाला में दो रातें बिताने को कहा गया। ज़ाहिर है कि यह प्रयोगशाला उनके घरों में सोने के स्थान की तुलना में पूरी तरह अपरिचित थी। दोनों रातों में सोते समय इन वालंटियर्स के मस्तिष्क की गतिविधि, हृदय की गति और पेशियों तथा आंखों की हलचल का मापन किया गया।
शोधकर्ताओं ने पाया कि पहली रात को सहभागी अच्छी तरह नहीं सो पाए। नींद आने में उन्हें दुगने से अधिक समय लगा और रात में उनकी नींद भी गहरी नहीं रही। जब भी गहरी नींद आती थी तब उनके मस्तिष्क असममित तरीके से व्यवहार करते थे, ठीक उसी तरह जैसे पक्षियों और डॉल्फिन्स में होता है। विशेष बात यह थी कि पहली रात को मस्तिष्क का बायां भाग दाहिने भाग के बराबर गहरी नींद में नहीं था। क्या बायां भाग सचमुच आसपास के वातावरण की जानकारी लेता हुआ जाग रहा था? इसकी पुष्टि करने के लिए सासाकी ने प्रयोग को दोहराया। किंतु इस बार रात में उन्होंने एक समान टोन के और भिन्न-भिन्न टोन के बीप बजाए। उनका अनुमान था कि यदि मस्तिष्क का बायां भाग अपरिचित वातावरण में पहरेदारी करने के लिए सतर्क रह रहा था तो वह नियमित बीप्स को नज़रअंदाज़ कर देगा किंतु अनियमित बीप्स के प्रति सावधान हो कर सोने वाले की नींद में खलल डालेगा। प्रयोग के परिणाम ठीक इसी प्रकार आए।
मई 2016 की करंट साइंस पत्रिका में अपने निष्कर्षों का ब्यौरा देते हुए प्रोेफेसर सासाकी ने यह तर्क प्रस्तुत किया है कि ‘प्रथम रात्रि प्रभाव’ जैव विकास के दौरान रात के प्रहरी के समान विकसित हुआ है जो अपरिचित वातावरण में सोते समय होने वाली आवाज़ों और हलचल के कारण मनुष्य को जगा देता है। एक ही स्थान पर बार-बार सोने से मस्तिष्क की यह सतर्कता कम हो जाती है। (स्रोत फीचर्स)
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Srote - May 2017
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