एक क्षुद्र ग्रह अक्टूबर की रात को दूरबीन की फोटोग्राफी प्लेट पर एक हल्की सी सफेद लकीर छोड़ता हुआ चुपके से निकल गया था। जर्मनी की हाइडेलबर्ग वेधशाला के कार्ल राइनमुट तथा अन्य नक्षत्र शास्त्रियों ने 1937 में लगभग 35,000 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से पृथ्वी के पास से गुज़रते इस आकाशीय पिंड की कक्षा की गणना की और बाद में इसका नाम हर्मिस रखा गया। वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे थे कि यह पृथ्वी से चंद्रमा की दूरी की दोगुनी से भी कम दूरी पर था। इसे नक्षत्र शास्त्र की भाषा में बाल बराबर दूरी माना जाता है। एक मायने में यह पृथ्वी से टकराते-टकराते ‘बाल-बाल’ बच गया था।
हर्मिस उन क्षुद्र ग्रहों (एस्टीरॉइड) में से एक है जिन्हें लघु आकारों तथा अनियमित आकृतियों के कारण यदा-कदा ‘उड़ते हुए पर्वत’ कहा जाता है। लेकिन बड़े ग्रहों से भिन्न, कुछ क्षुद्र ग्रह सूर्य के चारों ओर पृथ्वी के वार्षिक मार्ग को काटने वाली विषम कक्षाओं में यात्रा करते हैं। इस प्रकार वे कभी-कभी हमारे ग्रह से टकरा सकते हैं।
यदि हर्मिस हमारे ग्रह से टकराता तो इस टकराव से एक मेगाटन के 1 लाख बमों के बराबर ऊर्जा उत्पन्न होती। हर्मिस का व्यास तो मात्र एक किलोमीटर है। यदि उससे 10 गुना बड़ा क्षुद्र ग्रह हमसे टकराए तो समूची पृथ्वी का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा। पृथ्वी ज़ोर से हिलाए गए घंटे की भांति डगमगाने लगेगी। इससे भूकंप तथा ज्वार तरंगें पैदा होंगी। धूल, धुएं अथवा जलवाष्प से (जो इस बात पर निर्भर करता है कि क्षुद्र ग्रह भूमि से टकराया है अथवा जल से) वर्षों के लिए वातावरण प्रदूषित हो जाएगा। पृथ्वी की जलवायु बदल जाएगी और वह प्राणियों के लिए जानलेवा सिद्ध होगी।
पृथ्वी अभी तक क्षुद्र ग्रहों के अनेक प्रहार झेल चुकी है। उदाहरण के लिए, लगभग 3 करोड़ वर्ष पहले एक क्षुद्र ग्रह के टकराने से वर्तमान शिकागो नगर के 110 किलोमीटर दक्षिण में 13 किलोमीटर चौड़ा एक गड्ढा बन गया था। एक अन्य लगभग 35 किलोमीटर चौड़ा गड्ढा मेन्सन (आयोवा) के आसपास के मक्का के खेतों के नीचे छिपा है। पृथ्वी पर कुल मिलाकर क्षुद्र ग्रह निर्मित 100 गड्ढे पाए जा चुके हैं।
मंगल एवं बृहस्पति ग्रहों के मध्य स्थित क्षुद्र ग्रह पट्टी 10 अरब से अधिक पिंडों से भरी है। ये पिंड आकार में सूक्ष्म धूल कणों से लेकर करीब 1025 किलोमीटर व्यास वाले विशालतम क्षुद्र ग्रह सेरेस के आकार के हैं। अमरीकी नक्षत्र शास्त्री डेनियल किर्कवुड ने यह पता लगाया था कि क्षुद्र ग्रह पट्टी विभिन्न क्षेत्रों में विभाजित है। हर क्षेत्र के बीच एक रहस्यपूर्ण अंतराल है जिसे अब किर्कवुड अंतराल कहा जाता है।
जैक विज़डम ने 1982 में यह खोज की थी कि बृहस्पति तथा अन्य ग्रहों का गुरुत्वाकर्षण क्षुद्र ग्रह पट्टी को प्रभावित करता है। क्षुद्र ग्रहों में से जो भी पिंड किर्कवुड अंतराल में आ घुसता है, वह झटका खाकर अंतत: पृथ्वी की निकटतर कक्षा में पहुंच जाता है। और ऐसे झटके से फेंके गए क्षुद्र ग्रहों में से हर पांच में से एक क्षुद्र ग्रह पृथ्वी की कक्षा को काटते हुए गुज़रता है।
इन क्षुद्र ग्रहों का उद्भव कैसे हुआ? क्या वे किसी नष्ट ग्रह का कचरा हैं? यह सिद्धांत प्रस्तुत अवश्य किया गया है, पर आजकल इसे व्यापक मान्यता प्राप्त नहीं है। अनेक वैज्ञानिक एक अन्य संभव परिकल्पना में विश्वास करते हैं। करीब 4.6 अरब वर्ष पहले गैसों तथा धूल के चक्राकार पिंड से ग्रह बन रहे थे। सूर्य की परिक्रमा करते समय उस धूल के कुछ हिस्से छूट गए। सौर मंडल धीरे-धीरे साफ हुआ। इसका एकमात्र अपवाद रह गई क्षुद्र ग्रह पट्टी, जहां बृहस्पति का गुरुत्व सूर्य के विरोधी आकर्षण का मुकाबला करने में समर्थ था और इसी कारण ये पिंड जुड़कर एकाकार होने से रह गए। इस मत के अनुसार, क्षुद्र ग्रह उस समय की बची-खुची सामग्री है।
क्षुद्र ग्रहों के निर्माण का कारण जो भी हो मगर इनके पृथ्वी पर टकराने से जो उथल-पुथल मच सकती है उसा अंदाज़ इस बात से लगाया जा सकता है कि करीब 6.5 करोड़ वर्ष पहले 10-16 किलोमीटर चौड़ा एक क्षुद्र ग्रह पृथ्वी से टकराया, जिससे हमारा वि·ा हमेशा के लिए बदल गया। टकराव के फलस्वरूप भूकंप आए और ज्वार तरंगें उठीं, प्रचंड ज्वालामुखी विस्फोट हुए और दावानल भड़क उठे। टनों धूल तथा पत्थर वातावरण में भर गए और वर्षों तक वहीं बने रहे जिससे सूर्य का प्रकाश ढंक गया इससे प्रकाश संश्लेषण रुक गया और डायनासौर सहित हज़ारों प्रजातियां भूख से मर गर्इं। वैसे 6.5 करोड़ वर्ष पुराने उस क्षुद्र ग्रह को हम अपना सौभाग्य मान सकते हैं - उस तथा अन्य क्षुद्र ग्रहों के प्रहारों ने उस वि·ा का निर्माण किया होगा जो आज हमारे सामने है तथा मनुष्य के अस्तित्व एवं जीवन को संभव बनाया होगा।
साइबेरियाई वनों के एक दूरवर्ती भाग के ऊपर 30 जून 1908 को एक दीप्तिमान वस्तु कौंधी और 12 मेगाटन के हाइड्रोजन बम की ऊर्जा के साथ फट गई। उस विस्फोट से जो भूकंपीय तरंगें तुंगुस्का (रूस) में उत्पन्न हुर्इं वे दूर इंग्लैंड तक महसूस की गर्इं। आघात तरंगों ने करीब 80 किलोमीटर क्षेत्र में हर वृक्ष को धराशायी कर दिया। इस विस्फोट से उठी धूल तथा कचरा विश्व भर में फैल गया। तुंगुस्का का वह भयंकर विस्फोट किसी लुप्त होते धूमकेतु ने उत्पन्न किया था या किसी पथरीले क्षुद्र ग्रह ने? वैज्ञानिक इस विषय पर बहस करते रहे। अमरीकी भूगर्भ सर्वेक्षण संस्थान के अनुसंधानी भूगर्भशास्त्री यूजीन शूमेकर के अनुसार, महत्व की बात यह है कि अगले 75 वर्षों में ऐसी ही घटना पुन: होने की काफी संभावना है।
नासा की एक सलाहकार परिषद ने 1980 में डायनासौर के विनाश सम्बंधी सिद्धांत पर चर्चा करते हुए इस आशंका पर भी विचार किया था कि भविष्य में एक ऐसा ही टकराव समूची मानव जाति का विनाश कर सकता है। उन्होंने सोचा कि क्या खतरा उत्पन्न करने वाले क्षुद्र ग्रहों का पता लगाया जा सकता है और यदि उनमें से कोई पृथ्वी के अत्यधिक निकट आ जाए तो क्या पृथ्वी की रक्षा के उपाय किए जा सकते हैं।
कुछ वैज्ञानिक पृथ्वी के निकटवर्ती क्षुद्र ग्रहों की खोज कर रहे हैं। कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी की पालोमर वेधशाला में इलियानोर हेलिन पृथ्वी ग्रह की कक्षा को काटकर गुज़रने वाले क्षुद्र ग्रहों का सर्वेक्षण कर रहे हैं। महीने में करीब एक सप्ताह हेलिन और उनके साथी कैमरा दूरबीन से आकाश के चित्र लेते हैं। फिर वे नए क्षुद्र ग्रहों का प्रतिनिधित्व करने वाली विस्थापित छवियों की खोज में नेगेटिवों को एक-दूसरे से मिला कर देखते हैं।
पृथ्वी को चकनाचूर करने में सक्षम आकार के क्षुद्र ग्रह की टक्कर से बचने के लिए हम क्या कर सकते हैं? मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी के प्रोफेसर पाल सैंडार्फ ने 1967 में एक ऐसी ही चुनौती अपने छात्रों के समक्ष प्रस्तुत की थी। यदि करीब डेढ़ किलोमीटर व्यास का क्षुद्र ग्रह आइकेरस 6 महीने में पृथ्वी से टकराने वाला है तो आप उसकी भीषण टक्कर से पृथ्वी को कैसे बचाएंगे? छात्रों का उत्तर था कि अणु शस्त्रों से लैस प्रक्षेपास्त्र छोड़ कर क्षुद्र ग्रह के बगल में उनका विस्फोट कराया जाए ताकि क्षुद्र ग्रह का यात्रा पथ बदला जा सके। सैंडार्फ ने छात्रों की योजना की सफलता की संभावना 90 प्रतिशत मानी।
कुछ वैज्ञानिक यह तर्क देते हैं कि चंद्रमा की अपेक्षा पृथ्वी के अधिक निकट आने वाले 9 मीटर चौड़ाई वाले क्षुद्र ग्रहों का भी मार्ग बदलने की चेष्टा करनी चाहिए क्योंकि ऐसे पिंड से टक्कर एक परमाणु बम के विस्फोट जैसी होगी। उदाहरण के लिए, जापान एयरलाइंस के विमान के कर्मचारियों ने 9 अप्रैल 1984 को एक 29,000 मीटर ऊंचा तथा 320 किलोमीटर चौड़ा खुंभी जैसा बादल देखा। इस आशंका से कि वह एक रेडियोधर्मी बादल से होकर गुजरा है, उसके चालक ने उड़ान को एंकरेज स्थित अमरीकी वायु सेना अड्डे की ओर मोड़ दिया, लेकिन जांच में रेडियोधर्मिता के चिंह नहीं मिले। दो विशेषज्ञों ने मत व्यक्त किया कि विमान किसी उल्का के विस्फोट से उत्पन्न चमकते बादल के पास से गुजरा होगा।
शूमेकर के अनुसार, हर्मिस जैसा विशालकाय क्षुद्र ग्रह औसतन 1 लाख वर्ष में एक बार पृथ्वी से टकराता है। और एक मेगाटन बम की ऊर्जा उत्पन्न करने में सक्षम 25 मीटर व्यास का क्षुद्र ग्रह हर 30 वर्ष में एक बार पृथ्वी के वातावरण में प्रवेश करता है।
सट्टेबाज़ भले ही यह कह सकते हैं कि यह खतरा चिंता करने योग्य नहीं है। लेकिन क्षुद्र ग्रहों में इन सट्टेबाज़ों की रुचि उड़ती स्वर्ण खदानों के समान होगी। कुछ भविष्यवादियों का विश्वास है कि उच्च श्रेणी के निकल एवं लौह से युक्त 1600 मीटर चौड़े क्षुद्र ग्रह का मूल्य वर्तमान दरों पर 4 खबर डॉलर होगा। निकल एवं लौह के अलावा, कुछ क्षुद्र ग्रहों में स्वर्ण तथा प्लेटिनम के समृद्ध भंडार हो सकते हैं। और ऐसे कुछ खनिज बहुल क्षुद्र ग्रहों की कक्षाएं पृथ्वी की कक्षा के इतने निकट हैं कि वे चंद्रमा की भांति पहुंच में हैं और उन्हें अंतरिक्ष अड्डे बनाया जा सकता है, उनका दोहन किया जा सकता है।
एरिज़ोना अंतरिक्ष संसाधन केंद्र के अनुसंधानकर्ताओं ने रोबोट के ज़रिए अंतरिक्ष में क्षुद्र ग्रहों से धातुएं निकालने के तरीके खोज निकाले हैं। नासा ने अपने बहु विलंबित गैलीलियो उपग्रह के क्षुद्र ग्रहों के पास से गुज़रने की योजना तैयार की है। सोवियत संघ क्षुद्र ग्रहों की यात्रा की तैयारियां कर रहा है। और युरोप के देशों को आशा है कि वे करीब 16 करोड़ किलोमीटर दूर स्थित क्षुद्र ग्रह वेस्टा में एक उपग्रह भेज सकेंगे।
हो सकता है कि कोई क्षुद्र ग्रह ही अतीत में पृथ्वी पर शासन करने वाले विशालकाय डायनासौरों और अन्य जीवों के लिए मकबरे का पत्थर बना हो। हमारे सामने तो चुनौती यह है कि हम इन क्षुद्र ग्रहों को सीढ़ी के ऐसे पत्थरों में परिणित कर दें जिन पर चढ़कर हम सितारों के बीच मानव जाति के भाग्य से भेंट करने के लिए साहसपूर्वक एक-एक पग चढ़ सकें। (स्रोत फीचर्स)
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Srote - August 2019
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