यह दिन-प्रतिदिन स्पष्ट होता जा रहा है इक्कीसवीं शताब्दी की सबसे बड़ी चुनौती यह है कि धरती की जीवनदायिनी क्षमताएं और विशेष परिस्थितियां, मानव-निर्मित कारणों से गंभीर खतरे में पड़ गई हैं।
यह एक बहुपक्षीय संकट है पर इसमें दो पक्ष विशेष उल्लेखनीय हैं। पहला कि अनेक पर्यावरणीय समस्याएं सहनीय दायरे से बाहर जा रही हैं। इनमें सबसे प्रमुख जलवायु बदलाव की समस्या है पर इससे कम या अधिक जुड़ी हुई अन्य गंभीर समस्याएं भी हैं। इन समस्याओं के साथ ‘टिपिंग पॉइंट’ की अवधारणा जुड़ी है: समस्याओं का एक ऐसा स्तर जहां पहुंचकर उनमें अचानक बहुत तेज़ वृद्धि होती है और ये समस्याएं नियंत्रण से बाहर जा सकती हैं।
दूसरा पक्ष यह है कि धरती पर महाविनाशक हथियारों का बहुत बड़ा भंडार एकत्र हो गया है। इनके उपयोग से धरती पर जीवन का अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाएगा। इस समय विश्व में लगभग 14,500 परमाणु हथियार हैं जिनमें से 3750 हमले की पूरी तैयारी के साथ तैनात हैं। यदि परमाणु हथियारों का बड़ा उपयोग एक बार भी हुआ तो इसका असर केवल हमलास्थल पर ही नहीं बल्कि दूर-दूर होगा। उन देशों में भी होगा जहां परमाणु हथियार हैं ही नहीं। हमले के स्थानों पर तुरंत दसियों लाख लोग बहुत दर्दनाक ढंग से मारे जाएंगे। इसके दीर्घकालीन असर दुनिया के बड़े क्षेत्र में होंगे जिससे जीवनदायिनी क्षमताएं बुरी तरह क्षतिग्रस्त होंगी।
परमाणु हथियारों की दिक्कत यह है कि विपक्षी देशों में एक-दूसरे की मंशा को गलत समझ कर परमाणु हथियार दागने की संभावना बढ़ती है। परमाणु हथियारों के उपयोग की संभावना को रोकने वाली संधियों के नवीनीकरण की संभावनाएं कम हो रही है।
इस समय नौ देशों के पास परमाणु हथियार हैं। निकट भविष्य में परमाणु हथियार वाले देशों की संख्या बढ़ सकती है। संयुक्त राज्य अमेरिका व रूस दोनों ने अपने हथियारों की विध्वंसक क्षमता बढ़ाने के लिए हाल में बड़े निवेश किए हैं, खासकर संयुक्त राज्य अमेरिका ने।
इसके अतिरिक्त बहुत खतरनाक रासायनिक व जैविक हथियारों के उपयोग की संभावना भी बनी हुई है। हालांकि इन दोनों हथियारों को प्रतिबंध करने वाले अंतर्राष्ट्रीय समझौते हुए हैं, पर अनेक देश ज़रूरी जानकारी पारदर्शिता से नहीं देते हैं व इन हथियारों के चोरी-छिपे उत्पादन की अनेक संभावनाएं हैं।
रोबोट हथियारों के विकास की तेज़ होड़ भी आरंभ हो चुकी है जो बहुत ही खतरनाक सिद्ध हो सकते हैं। इसके बावजूद इनमें भारी निवेश अनेक देशों द्वारा हो रहा है, विशेषकर संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस व चीन द्वारा।
आतंकवादी संगठनों के हाथ में यदि इनमें से किसी भी तरह के महाविनाशक हथियार आ गए तो विश्व में विध्वंस की नई संभावनाएं उत्पन्न होंगी।
इन खतरों को विश्व स्तर पर उच्चतम प्राथमिकता मिलनी चाहिए। सबसे गंभीर खतरों को दूर करने या न्यूनतम करने में अभी तक की प्रगति आशाजनक नहीं रही है। अविलंब इन्हें विश्व स्तर पर उच्चतम प्राथमिकता बनाकर इन खतरों को समाप्त करने या न्यूनतम करने की असरदार कार्रवाई शीघ्र से शीघ्र होनी चाहिए। यह इक्कीसवीं सदी का सबसे बड़ा सवाल है कि क्या समय रहते मानव सभ्यता इन सबसे बड़े संकटों के समाधान के लिए समुचित कदम उठा सकेगी। इस सवाल को विश्व स्तर पर विमर्श के केंद्र में लाना ज़रूरी है। (स्रोत फीचर्स)
-
Srote - July 2019
- पश्चिमी घाट में मेंढक की नई प्रजाति मिली
- क्या बिल्लियां अपना नाम पहचानती हैं?
- चौपाया व्हेल करती थी महाद्वीपों का सफर
- एक कृमि को मॉडल बनाने वाले ब्रेनर नहीं रहे
- जीवों में अंगों का फिर से निर्माण
- हम छठी व्यापक जैव विलुप्ति की कगार पर हैं
- फूलों में छुपकर कीटनाशकों से बचाव
- गर्म खून के जंतुओं में ह्रदय मरम्मत की क्षमता समाप्त हुई
- खेती के बाद शामिल हुए नए अक्षर
- पिघलते एवेरस्ट ने कई राज़ उजागर किए
- हिमनद झील के फूटने के अनुमान की तकनीक
- आखिर समुदाय ने अपनाया स्वच्छता अभियान
- ब्लैक होल की मदद से अंतरिक्ष यात्रा
- क्षुद्रग्रह रीयूगू पर विस्फोटक गिराया
- कृत्रिम बुद्धि के लिए पुरस्कार
- एक खोजी की अनोखी यात्रा
- गणित की एक पुरानी पहेली सुलझाई गई
- मात्र शत प्रतिशत ग्रामीण विद्युतीकरण पर्याप्त नहीं है
- पाई (π) के कुछ रोचक प्रसंग
- विलुप्त होती हड्डी दोबारा उभरने लगी
- बीमारी के इलाज में वायरसों का उपयोग
- प्राचीन मानव प्रजाति ‘हॉबिट’ से भी छोटी थी
- बायोमेट्रिक पहचान भी चुराई जा सकती है
- कोशिका भित्ती बंद, बैक्टीरिया संक्रमण से सुरक्षा
- प्रशांतक दवाइयों की लत लगती है
- तत्वों की आवर्त तालिका के डेढ़ सौ साल
- इक्कीसवीं सदी की सबसे बड़ी चुनौती अभी उपेक्षित है
- जीसस का तथाकथित कफन फर्जी है
- दृष्टिबाधितों की सेवा में विज्ञान