नए कोरोनावायरस लक्षणों की सूची अनुमान से अधिक विविध होती जा रही है। थकान, दिल का तेज़ धड़कना, सांस लेने में तकलीफ, जोड़ों में दर्द, सोच-विचार करने में परेशानी, गंध संवेदना में कमी जैसी कुछ समस्याओं के अलावा हाल ही में दिल, फेफड़े, गुर्दे और मस्तिष्क की क्षति जैसी दिक्कतें भी शामिल हो गई हैं।
इस तरह का एक मामला युनिवर्सिटी कॉलेज लंदन (युसीएल) की न्यूरोसाइंस प्रयोगशाला की एथेना अकरमी के साथ हुआ। नए कोरोनावायरस के शुरुआती लक्षणों (बुखार और खांसी) के बाद अकरमी को सांस लेने में तकलीफ, सीने में दर्द और अत्यधिक थकान की शिकायत होने लगी। इसके अलावा उनको सोच-विचार करने में परेशानी के अलावा जोड़ों और मांसपेशियों में भी तकलीफ होने लगी। चार सप्ताह तक घर में आराम करने पर भी ये समस्याएं समय के साथ बढ़ती-घटती रहीं लेकिन खत्म नहीं हुर्इं। ऐसे में मार्च से लेकर अब तक उनका तापमान सिर्फ 3 सप्ताह ही सामान्य रहा है।
आम तौर पर कोविड-19 रोगी या तो हल्के लक्षणों के साथ जल्दी ठीक हो जाते हैं या फिर अधिक बीमार होकर आईसीयू तक पहुंचते हैं। लेकिन अकरमी का मामला कुछ अलग ही था। आम तौर पर कोविड-19 रोगियों में दीर्घावधि लक्षणों के विकसित होने की संभावना का आकलन करना मुश्किल होता है। इस सम्बंध में विभिन्न अध्ययनों से अलग-अलग परिणाम सामने आए हैं क्योंकि इनमें मरीज़ों के किसी समूह की निगरानी अलग-अलग समय तक की गई है।
इटली के एक समूह द्वारा किए गए अध्ययन से पता चला है कि कोविड-19 के अत्यधिक गंभीर रोगियों में से 87 प्रतिशत लोग बीमार होने के 2 माह बाद तक ऐसे लक्षणों से जूझते रहे। जबकि अमेरिका, ब्रिटेन और स्वीडन में किए गए अन्य अध्ययनों से पता चलता है कि 10-15 प्रतिशत रोगियों को ठीक होने में काफी समय लगा जिनमें हल्के लक्षणों वाले लोग भी शामिल हैं। इसी तरह जर्मनी के रेडियोलॉजिस्ट मार्टिन रिक्टर ऐसे मामलों के बारे में भी बताते हैं जिनमें कोविड-19 से वृद्ध एवं गंभीर स्थिति में पहुंच चुके रोगी स्वस्थ हुए जबकि मामूली निमोनिया वाले अधेड़ लोग 3 महीने से भी अधिक समय तक अधिक नींद आने की समस्याओं से जूझते रहे।
यह रोग नया-नया है, इसलिए अभी यह कहना मुश्किल है कि ऐसे जीर्ण लक्षण कब तक परेशान करेंगे।
शोधकर्ता इस रहस्यपूर्ण बीमारी को समझने के प्रयास कर रहे हैं। युनिवर्सिटी ऑफ लायसेस्टर की फेफड़ा वैज्ञानिक रेचल एवांस ने रोग से ठीक हो चुके 10,000 लोगों पर 1 वर्ष से लेकर 25 वर्ष तक के अध्ययन की शुरुआत की है। शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि इस अध्ययन से ना सिर्फ रोग को गहराई से समझा जा सकेगा बल्कि यह भी आकलन किया जा सकेगा कि किन रोगियों में दीर्घकालिक समस्याएं पैदा होने का खतरा है और क्या शुरुआती इलाज से ऐसी स्थिति से निपटा जा सकता है।
यह तो महामारी की शुरुआत में ही चिकित्सकों को पता चल गया था कि सार्स-कोव-2 वायरस कोशिकाओं की सतह पर ACE2 रिसेप्टर्स से जुड़कर ऊतकों को नष्ट करना शुरू कर देता है। ऐसे में फेफड़े, दिल, आंत, गुर्दे, रक्त वाहिकाएं और तंत्रिका तंत्र भी इसकी चपेट में आ जाते हैं। वैसे सार्स-कोव-2 के दीर्घकालिक प्रभाव उसी तरह के हैं जैसे फ्लू जैसे अन्य वायरस संक्रमणों में देखे जाते हैं। इनसे निपटने के लिए चिकित्सक आम तौर पर दवाइयों का उपयोग करते हैं। ऐसे पूर्व अनुभवों की मदद से चिकित्सक कोविड-19 के दीर्र्घकालिक प्रभावों को कम करने में मदद कर सकते हैं।
सार्स-कोव-2 के परिणामों में कुछ भिन्नता भी देखने को मिलती है। पूर्व के कोरोनावायरस, जैसे सार्स और मर्स, के अनुभवों से चिकित्सकों का मानना था कि नया वायरस भी फेफड़ों को स्थायी नुकसान पहुंचा सकता है। 2003 में सार्स से संक्रमित एक व्यक्ति के फेफड़ों में जो घाव पाया गया था वह 15 वर्ष बाद भी मौजूद था। युनिवर्सिटी ऑफ सदर्न कैलिफोर्निया में एशिया में कोविड-19 रोगियों के फेफड़ों के स्कैन में पता चला कि कोविड-19 सार्स की तुलना में फेफड़ों को कम गति और आक्रामकता से क्षति पहुंचाता है।
लेकिन कोविड-19 से होने वाली जटिलताएं भी काफी तीव्र हैं। अप्रैल के अंत में अकरमी ने कोविड-19 से उबर चुके 600 से अधिक लोगों का सर्वेक्षण किया जिनमें 2 सप्ताह से भी अधिक समय तक कोविड-19 के लक्षण उपस्थित रहे। उन्होंने 62 से अधिक लक्षण दर्ज किए हैं। फिलहाल यह तो स्पष्ट हो गया है कि कोविड-19 से गंभीर रूप से बीमार लोगों को पूरी तरह स्वस्थ होने में काफी अधिक समय लग रहा है।
अध्ययन के दौरान कोविड-19 रोगियों में ह्रदय से जुड़ी काफी समस्याएं सामने आर्इं। यह वायरस ह्रदय को कई तरह से प्रभावित करता है। यह ह्रदय की कोशिकाओं के ACE2 रिसेप्टर पर हमला करता है। ACE2 रिसेप्टर ह्रदय की कोशिकाओं की रक्षा करने के अलावा रक्तचाप बढ़ाने वाले हॉर्मोन एंजियोटेंसिन-II को नष्ट करता है। वायरस से लड़ने के लिए शरीर में एड्रीनेलीन और एपिनेफ्रिन के स्राव से भी ह्रदय को क्षति पहुंचती है। कोविड-19 के कारण जिन लोगों में ह्रदय की समस्या पैदा हुई उनमें से अधिकांश लोगों में पहले से ही मधुमेह और उच्च रक्तचाप की समस्याएं उपस्थित थीं। विशेषज्ञों को आशंका है कि कोविड-19 ने ह्रदय समस्याओं को और तीव्र कर दिया।
इस दौरान तंत्रिका तंत्र से जुड़े लक्षण भी सामने आए हैं। ब्रेन में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार 43 लोगों में गंभीर तंत्रिका सम्बंधी समस्याएं देखने को मिलीं। इसके अलावा चिकित्सकों को कई रोगियों में सोच-विचार करने में परेशानी की शिकायतें भी मिलीं।
कई स्थानों पर कोविड-19 से उबर चुके लोगों पर अध्ययन किया जा रहा है। कहीं ह्रदय से जुड़े रोगों पर अध्ययन किया जा रहा है, तो कहीं आने वाले दो वर्षों तक फेफड़ों के आकलन की योजना बनाई जा रही है।
हालांकि वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि वे दीर्घकालिक लक्षणों को टाल पाएंगे जिससे ऐसी समस्याओं से जूझ रहे रोगियों की मदद की जा सकेगी। अलबत्ता, इस वायरस की क्षमता को कम आंकना उचित नहीं होगा। यह रोग एक बार स्थापित हो गया तो वापस जाने का कोई रास्ता नहीं होगा।(स्रोत फीचर्स)
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Srote - October 2020
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