स्नेक प्लांट एक सजावटी पौधा है, जिसका उपयोग ऑफिस के अंदर और घर की हवा की गुणवत्ता सुधार हेतु आजकल बड़े पैमाने पर किया जा रहा है। ऑनलाइन दुकानों पर भी यह पौधा खूब बिक रहा है। इसका एक नाम मदर-इन-लॉज़ टंग (mother-in-law's tongue) भी है।
वनस्पति विज्ञान में इसे अभी तक सेंसिविएरिया ट्रायफेसिएटा (Sansevieria trifasciata) के नाम से जाना जाता था। अब इस पौधे का नाम बदल दिया गया है। अब इसे ड्रेसीना ट्रायफेसिएटा (Dracaena trifasciata) कहा जाने लगा है।
लेकिन क्यों?
सवाल यह है कि पौधों के नाम आखिर बदले ही क्यों जाते हैं? जो चलन में है उन्हें ही चलने दें। लेकिन यहां बात चलन की नहीं है, सही होने की है। दरअसल, नाम बदलने के तीन कारण होते हैं -
पहला, सबसे पुराना नाम वह माना जाता है जो सबसे पहले प्रकाशित हुआ हो। यदि ऐसी कोई प्रामाणिक जानकारी मिलती है कि जो नाम आजकल चलन में है उससे पूर्व का भी कोई नाम प्रकाशित हुआ था, तो नए नाम को छोड़कर पुराना नाम अपना लिया जाता है।
दूसरा, यदि पौधे का जो नाम चलन में है, उस पौधे की पहचान ही गलत हुई हो, तो गलती को सुधारा जाता है।
नाम बदलने का तीसरा कारण यह है कि पौधे को नए सिरे से वर्गीकृत किया गया हो। दरअसल पूर्व के वर्गीकरणविदों ने पेड़-पौधों का जो नामकरण किया था उसका मुख्य आधार उनका रूप-रंग, आकार-प्रकार, फूलों की आपसी समानता आदि थे। यानी मुख्य रूप से आकारिकी आधारित वर्गीकरण था। फिर पादप रसायन शास्त्र, भ्रूण विज्ञान, आंतरिक संरचना, पुराजीव विज्ञान आदि के आधार पर पौधों को फिर से वर्गीकृत किया गया।
नाम बदलने का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है बबूल का। पहले इसे अकेसिया अरेबिका (Acacia arabica) कहते थे और फिर बदलकर अकेसिया निलोटिका (Acacia nilotica) कर दिया गया था। लेकिन एक बार फिर नाम बदला गया और बबूल हो गया वेचेलिया निलोटिका (Vachellia nilotica)।
यहां यह बात गौरतलब है कि सामान्यत: वानस्पतिक नामों में दो पद होते हैं। इसे द्विनाम प्रणाली कहते हैं। इनमें से पहला पद (जैसे अकेशिया अथवा वेचेलिया) वंश या जीनस दर्शाता है और दूसरा पद (अरेबिका अथवा निलोटिका) प्रजाति बताता है। इसका मतलब है कि अकेशिया अरेबिका से बदलकर अकेशिया निलोटिका करने का मतलब था कि यह पौधा अभी भी उसी वंश (अकेशिया) में माना गया था लेकिन इसे बदलकर वेचेलिया निलोटिका करने का मतलब है कि इस पौधे को एक नए वंश में शामिल कर लिया गया है।
और अब तो ज़माना जीनोम अनुक्रमण और जेनेटिक सम्बंधों का है। जब से जिनोम अनुक्रमण ने वर्गीकरण के मैदान में कदम रखा है तब से चीज़ें बहुत बदल गई हैं। जीनोम अनुक्रमण (यानी किसी जीवधारी की संपूर्ण जेनेटिक सामग्री यानी डीएनए में क्षारों का क्रम पता लगाना) की मदद से जीवधारियों के बीच सम्बंध ज़्यादा स्पष्टता से सामने आते हैं और इसके आधार पर यह तय किया जा सकता है कि कौन-से पौधे या प्राणि ज़्यादा निकटता से सम्बंधित हैं। इस नई जानकारी के आधार पर वर्गीकरण में परिवर्तन स्वाभाविक है।
स्नेक प्लांट यानी मदर- इन-लॉज़ टंग के मामले में यही हुआ। वर्ष 2017 तक जिसे वनस्पति वैज्ञानिक सेंसेविएरिया ट्रायिफेसिएटा कहते थे, जीनोम अनुक्रमण से प्राप्त जानकारी के चलते उसे ड्रेसीना वंश में समाहित कर दिया गया है। कारण यह है कि सेंसेविएरिया प्रजातियों के जीनोम और ड्रेसीना वंश की प्रजातियों के जीनोम में काफी समानता देखी गई है।
ड्रेसीना एक बड़ा वंश है जिसमें लगभग 120 प्रजातियां शामिल हैं। सेंसेविएरिया वंश में करीब 70 प्रजातियां शामिल थीं और अब सबकी सब ड्रेसीना वंश में समाहित हो गई हैं। दोनों वंशों की अधिकांश प्रजातियां अफ्रीका, दक्षिण एशिया से लेकर उत्तरी ऑस्ट्रेलिया की मूल निवासी हैं।
ड्रेसिना ट्राइफेसिएटा मूल रूप से दक्षिण अफ्रीका, नाइजीरिया और कांगों तक पाया जाता है। इसमें कड़क हरी पत्तियां सीधी खड़ी लंबाई में वृद्धि करती है। पत्तियों के किनारे पीले होते हैं और पूरी पत्ती पर हल्के भूरे रंग के आड़े पट्टे बने होते हैं। पत्तियों की लंबाई 70 से 90 सेंटीमीटर और चौड़ाई 5 से 6 सेंटीमीटर होती है। और यह 2 मीटर तक लंबा हो सकता है।
नासा ने अपनी स्टडी में सिक बिल्डिंग सिंड्रोम के लिए ज़िम्मेदार 5 ज़हरीले रसायनों में से चार को फिल्टर करने में स्नेक प्लांट को उपयोगी पाया है। इसे घर के बाहर और अंदर दोनों जगह बड़े आराम से लगाया जा सकता है। हालांकि हवा को साफ करने की इसकी क्षमता बहुत ही धीमी है। अतः इस कार्य हेतु इसका उपयोग व्यावहारिक नहीं है।
इस हेतु दूसरा पौधा है सेंसिविएरिया सिलेंड्रिका, जिसे सिलेंड्रिकल स्नेक प्लांट, अफ्रीकन स्पीयर, सेंट बारबरास स्वॉर्ड कहते हैं। यह अंगोला का मूल निवासी है। इसमें पत्तियां 3 सेंटीमीटर तक मोटी और 2 मीटर तक लंबी, लगभग गोल, चिकनी और हरे रंग की होती हैं। (स्रोत फीचर्स)
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Srote - January 2023
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