सवाल : चोट लगने पर सूजन क्यों आती है?
जवाब: सूजन किसी खास बीमारी की वजह से भी हो सकती है और चोट लगने की वजह से भी। लेकिन दोनों स्थितियों में एक बात तो एक-सी है।
हदय से निकलकर रक्त बड़ी-बड़ी नलिकाओं में आगे बढ़ता है, जिन्हें रक्त वाहिनियां कहते हैं। ये वाहिनियां आगे जाकर अत्यंत छोटी-छोटी नलिकाओं में बंट जाती हैं। इन छोटी-छोटी नलिकाओं को रक्त कोशिकाएं कहते हैं। कोशिकाओं की दीवारें जिन कोशिकाओं की बनी होती हैं, वे आपस में एकदम सटी नहीं होतीं – थोड़ी सी जगह होती है उनके बीच। इस जगह में से रक्त के द्रव का कुछ हिस्सा रिसता रहता है। इस द्रव का अधिकांश भाग-लगभग 99 प्रतिशत – कोशिकाओं में फिर से रिसकर अंदर आ जाता है। शेष बचे एक प्रतिशत द्रव को इकट्ठा कर वापस रक्त में मिलाने के काम में एक दूसरी तरह की नलिकाएं लगी होती हैं। इन्हें लसिका वाहिनियां कहते हैं। इस तरह द्रव के रिसने और वापस लौटने के बीच एक संतुलन बना रहता है। लेकिन चोट लगने के समय – जिस स्थान पर चोट लगी है वहां – इस द्रव के रिसने की गति तेज़ हो जाती है। इस वजह से द्रव वहां इकट्ठा होने लगता है। इसलिए वह जगह फूल जाती है यानी सूजन आ जाती है।
दरअसल इस सूजन आने का संबंध आपको किसी बाहरी खतरे से बचाना भी है। निश्चित तौर पर आपका सवाल होगा कि कैसे? चलिए चोट लगने की पूरी प्रक्रिया को शुरू से देखते हैं।
जब भी कहीं चोट लगती है तो उस स्थान के कुछ ऊतक क्षतिग्रस्ता हो जाते हैं। जैसे ही शरीर के किसी भाग को क्षति पहुंचती है कुछ रासायनिक पदार्थ तुरंत प्रतिरक्षा तंत्र को इसकी सूचना पहुंचाते हैं। इसके साथ ही इसके साथ ही इस क्षति से निपटने की पूरी तैयारी हो जाती है। कुछ रासायनिक पदार्थों के कारण चोट लगने वाले स्थान पर रक्त वाहिनियों की दीवार में स्थित कोशिकोओं के बीच की जगह बढ़ जाती है और इस वजह से सामान्य स्थिति के मुकाबले तेज़ी से द्रव रिसने लगता है।
शुरूआत में तो ये द्रव घाव से बह रहे रक्त के साथ बहता जाता है। लेकिन रक्त का थक्का बनने के बाद – जब खून का बहाव रूक जाता है – ये द्रव उस जगह पर इकट्ठा होने लगता है। और वो जगह थोड़ी फूल जाती है। यही है चोट लगने पर आने वाली सूजन।
इस द्रव में मरे हुए ऊतकों को हटाने व अगर बाहर से कोई जीवाणु घुस आया है तो उसे निपटने वाली प्रतिरक्षा कोशिकाएं भी होती हैं। साथ ही चूंकि उस घाव को भरना है इसलिए उस स्थान विशेष पर नई कोशिकाएं बनने की दर भी तेज़ हो जाती है। इसके लिए आवश्यक पोषक पदार्थ भी इस द्रव में होते हैं।
लेकिन चोट घाव लगने वाली जगह पर कई बार मवाद बन जाता है। यह आमतौर पर संक्रमण की वजह से होता है। इस मवाद में कुछ और नहीं बल्कि रक्त कोशिकाओं से रिसा हुआ द्रव, मरी हुई कोशिकाएं, प्रतिरक्षक कोशिकाएं आदि मौजूद होते हैं।
रक्त, कोशिकीय द्रव और लिम्फ
हमारे शरीर की कोशिकाओं के बीच की जगह में एक द्रव भरा रहता है। कोशिकाएं सीधे रक्त के संपर्क में नहीं होतीं। इसलिए उन तक भोजन, ऑक्सीजन आदि ज़रूरी चीज़ें इसी कोशिकीय द्रव से होकर पहुंचती हैं।
यह द्रव कोशिकाओं को उनका आकर बनाए रखने में मदद करता है, उन्हें एक ऐसा माध्यम मुहैया करवाकर जिसमें वे अपना स्वाभाविक आकर बनाए रख सकें। कहां से आता है ये द्रव? यह वही द्रव है जो रक्त कोशिकाओं से रिसता है।
थोड़ा-सा आगे बढ़ने के बाद यह द्रव जिस तरह कोशिकाओं से बाहर निकला था उसी तरह कोशिकाओं में रिसकर भीतर बह रहे रक्त में शामिल हो जाता है। लेकिन अभी भी इस द्रव को थोड़ा सा हिस्सा बाहर बच जाता है। यह लसिका वाहिनियों से होकर रक्त में मिलता है। ये भी बहुत महीन और छिद्रदार होती हैं। ये नलियां भी क्रमश: बड़ी नलियों में मिलती जाती हैं। इस नलियों में कुछ विशिष्ट जगहों पर ग्रंथियां पाई जाती हें। इन लसिका ग्रंथियों में इस द्रव की साफ-सफाई होती है; इसमें मौजूद मरी हुई कोशिकाओं, जीवाणुओं आदि को हटा दिया जाता है और इसमें कुछ सुरक्षा कोशिकाएं लिम्फोसाइट्स – आदि डाल दिए जाते हैं। ये नलियां गर्दन के नीचे की ओर रक्त वाहिनियों से मिलती हैं। यह द्रव यहां फिर से दुबारा रक्त में शामिल हो जाता है। तो जनाब लसिका वाहिनियां सिर्फ द्रव को ही वापस नही ले जाती बल्कि आपके प्रतिरक्षा तंत्र का एक सक्रिय हिस्सा हैं।
इडिमा: अगर किसी वजह से द्रव का लसिका नलिकाओं में रिसना रूक जाए तो द्रव इकट्ठा होता जाता है और वह जगह फूल जाती है। इसे इडिमा कहते हैं। जैसे कि हाथी पांव के रोग में। इसमें फाइलेरिया के कृमि अंदर काफी तादाद में इकट्ठा हो जाते हैं जिसके कारण लसिका वाहिनियों के छिद्र बंद हो जाते हैं और ऊतकों में द्रव इकट्ठा होता जाता है; जिससे वह अंग, हाथ हो या पांव, लगातार फूलता जाता है।
सवालीराम ने पूछा सवाल
सवाल: जब पानी को गरम करते हैं और पानी वाष्पा बनकर ऊपर जाकर बादल का रूप धारण कर लेता है तो पृथ्वी के गुरूत्वा कर्षण से वह नीचे क्यों नही खिंचता। बादल ऊपर ही क्यों रहता है?
सौरभ बंसल,
बॉम्बे रोड, हरदा
सवाल: जब शाम होती है तो बादल के रंग अलग-अलग कैसे हो जाते हैं?
रामप्रसाद, कक्षा आठवीं,
पोपो. बालागुडा, मंदसौर
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