चपालाल कुशवाहा
'पिछले अंक में हवा का दबाव' लेख पढ़ा। लेख के अंत में गुब्बारे-बोतल वाला एक प्रयोग दिया गया था। मैं इसी प्रयोग के बारे में अपने अनुभव बताना चाहता हूं।
पिछले साल मुंबई के मरीन ड्राइव स्थित बाल भवन में आयोजित 'बाल विविधा' नामक एक कार्यक्रम के दौरान हम तीन-चार साथी विज्ञान के बहुत से छोटे-छोटे खेल लेकर वहां गए थे। हमारे इन खेलों में यह बोतल-गुब्बारे वाला खेल भी था जिसे हमने नाम दिया था - जादुई गुब्बारा।
जब बच्चे या अन्य दर्शक इसे देखकर पूछते कि यह क्या है तो हमारा जवाब होता - जादुई गुब्बारा। हम उन्हें बोतल देकर गुब्बारा फूलाने के लिए कहते तो वे उसी नली में फेंक मारते थे जिस नली से गुब्बारा जुड़ा होता था क्योंकि हमेशा की तरह वे यही सोचते थे कि गुब्बारा तभी फूलेगा जब उसमें फेंक मारी जाए।
अब दर्शकों से कहा गया कि गुब्बारे में फेंक मारे बिना उसे फूलाकर दिखाना है तो लोग भौंचक्के रह गए। कुछ लोग हमारी बात को मज़ाक समझने लगे तो कुछ लोगों ने उस नली में फेंककर देख लिया जिसमें गुब्बारा नहीं लगा था, लेकिन इस सब के बावजूद भी गुब्बारा ज्यों-का-त्यों रहा। अब हमारे एक साथी ने बिना गुब्बारे वाली नली में फेंक मारे जब गुब्बारे को फूलाकर दिखा दिया तो लोग हमें जादूगर समझने लगे और इसका राज़ पूछने लगे।
हमने अपनी समझ के अनुसार उन्हें बताया कि दूसरी नली से मुंह लगाकर हम बोतल की हवा को खींचते हैं, जिससे बोतल में हवा का दबाव कम हो जाता है; और इस रिक्त स्थान को भरने के लिए बाहर की हवा गुब्बारे वाली नली के माध्यम से बोतल में प्रवेश करती है और गुब्बारा फूल जाता है। गुब्बारा कितना फूलेगा यह इस बात पर निर्भर करता है कि कितनी हवा आप बोतल में से खींच पाते हैं।
गुब्बारा फूल जाने के बाद दूसरी समस्या थी कि जैसे ही आप नली से मुंह हटाते हो गुब्बारे में से हवा निकल जाती है और गुब्बारा पिचक जाता है। अगला सवाल था कि अब यदि गुब्बारे को फुलाए रखना हो तो क्या करना चाहिए? इस सवाल का जवाब दर्शकों ने आसानी से खोज लिया कि गुब्बारे वाली नली का मुंह बंद कर दिया जाए। लेकिन जल्दी ही उन्हें यह बात भी समझ में आ गई कि गुब्बारे को फुलाकर, जिस नली से हम बोतल की हवा को खींच रहे हैं, उस नली का मुंह बंद कर दें तब भी गुब्बारा फुला रह सकता है।
दर्शकों के एक समूह को हमने यह सब दिखाने के बाद कहा कि बोतल का ढक्कन खोले बगैर और बिना किसी अन्य उपकरण की सहायता लिए बोतल में पानी भरकर दिखाना है। दर्शक एक बार तो विस्मित हो गए कि बोतल में पानी किस तरह भरा जाए! लेकिन एक-दो लोगों ने पिछली बार किए प्रयोग की तर्ज पर पहले गुब्बारे को फूलाया, फिर गुब्बारे वाली नली को बंद किया और गुब्बारा रहित नली को पानी में डुबो दिया। अब गुब्बारे वाली नली को खोल दिया जिससे पानी बोतल के भीतर आने लगा। थोड़ी देर में यह समझ में आया कि गुब्बारा रहित नली से हवा खींचकर फिर इसी नली को बंद करके इसे पानी में डुबोया जाए और नली का मुंह खोल दिया जाए तब भी पानी बोतल में आने लगता है। इन दोनों तरीकों में बोतल के भीतर हवा का दबाव कम हो जाता है जिसे भरने के लिए पानी बोतल में घुसता है।
अब तक हमारा जादुई गुब्बारा लोगों के आकर्षण का केन्द्र बन गया था। अगला सवाल यह उठ खड़ा हुआ कि बोतल के भीतर का पानी किस तरह बाहर निकाला जाए? दर्शकों में में कुछ लोग इस गुब्बारे के खेल को समझ चुके थे। एक दर्शक ने गुब्बारे में हवा फेंकना शुरू किया जैसे-जैसे गुब्बारे का आकार बढ़ने लगा बोतल में से पानी बाहर निकलने लगा; क्योंकि बोतल के भीतर हवा का दबाव बढ़ने पर गुब्बारा रहित नली में से हवा और पानी बाहर निकलने लगा।
बातों ही बातों में यह सवाल हमारे एक साथी ने रखा कि बोतल में पानी है और गुब्बारा रहित नली को बिना छुए आपको गुब्बारा फुलाकर दिखाना है। क्या किया जा सकता है? इस बार तो हम लोग भी सोच में डूब गए। दर्शकों में से कोई अपनी राय देता तो कभी हमारे साथियों में से कोई समस्या को सुलझाने की कोशिश करता। हम अभी इसी उधेड़बुन में फंसे हुए थे कि तभी मुझे एक उपाय सूझा। मैंने बोतल को इतना तिरछा किया कि बोतल का पानी आसानी से बाहर निकल सके। जैसे-जैसे पानी बाहर निकलने लगा गुब्बारा फूलने लगा। अब मेरी भी समझ में यह बात आ गई थी कि बोतल में से पानी निकलने के कारण बोतल में हवा का दबाव कम हो रहा था, और इस दबाव के अंतर को पाटने के लिए गुब्बारे वाली नली से बाहर की हवा भीतर आने की कोशिश कर रही थी और गुब्बारे को फुला रही थी। अब हमारे साथियों और दर्शकों के चेहरे पर संतोष के भाव दिखने लगे थे।
चंपालाल कुशवाहा: हिरनखेड़ा गांव में बच्चों के एक बाल समूह का संचालन करते हैं। साथ ही एक साइक्लोस्टाइल बाल पत्रिका 'बाल प्रयास' का प्रकाशन भी करते हैं।