विनोद कुमार गुप्ता
प्रचलित पाठ्य पुस्तकों में वर्नियर का सिद्धांत नहीं समझाया जाता है, केवल वर्नियर के अल्पतम माप का सूत्र व पाठ्यांक लेने की विधि का वर्णन भर कर दिया जाता है। वर्नियर की सहायता से सूक्ष्म पाठ्यांक आसानी से लेना किस प्रकार संभव हो पाता है यह जानना दो वजह मे ज़रूरी है। एक तो उससे ही समझ में आ सकता है कि आखिर वर्नियर में अल्पतम माप का जो सूत्र इस्तेमाल किया जाता है वह कहां से आ टपकता है। और इसलिए भी क्योंकि वर्नियर की विधि सामान्य मापन से एकदम फर्क है और मजेदार भी। यही नहीं, वर्नियर की तरह का पैमाना और भी कई जगह इस्तेमाल किया जाता है। इसलिए हमें मालूम तो हो कि यह आखिर काम कैसे करता है।
वर्नियर का अल्पतम माप
वर्नियर का आविष्कार सन् 1930 में वैज्ञानिक पियरे वर्नियर ने किया था। इसकी सहायता से किसी भी पैमाने का अल्पतम माप प्रभावी रूप से कम किया जा सकता है। सामान्यतः किसी पैमाने का अल्पतम माप उस पर खींचे दो पास-पास के किन्हीं चिन्हों के बीच का माप होता है। इन चिन्हों को और पास-पास लाकर अल्पतम माप कम किया जा सकता है यानी मापन की बारीकी बढ़ाई जा सकती है। लेकिन ऐसा एक निश्चित सीमा तक ही संभव है। उसके पश्चात पास-पास के चिन्हों में अंतर कर पाना कठिन होता जाता है। वर्नियर पैमाना इस कठिनाई को कुछ हद तक दूर करता है।
वर्नियर पैमाना मुख्य पैमाने से जुड़ा हुआ एक छोटा पैमाना होता है, जिस पर समान दूरियों पर कुछ चिन्ह लगे होते हैं। इन चिन्हों की संख्या व इनके बीच की दूरी इस बात से निर्धारित होती है कि मुख्य पैमाने का अल्पतम माप, प्रभावी रूप से कितना कम करना है। वर्नियर पैमाना, मुख्य पैमाने पर आगे-पीछे सरकाया जा सकता है। वर्नियर का सर्वाधिक अधिक प्रचलित रूप वर्नियर कैलिपर्स है। चित्र-1 में इसी तरह का एक पैमाना दिखाया गया है। इसमें मुख्य पैमाने का अल्पतम माप 1 मिलीमीटर है। अब अगर हम 1 मिलीमीटर के दसवें हिस्से तक पाठ्यांक लेना चाहते हैं, तो वर्नियर पैमाने पर समान दूरियों पर 10 भाग इस प्रकार बनाए जाते हैं कि वे मुख्य पैमाने के 9 भागों यानी 9 मिलीमीटर के बराबर हों।
अर्थात वर्नियर के 10 भाग = मुख्य पैमाने के 9 भाग यानी 9 मिमी
अतः वर्नियर के 1 भाग का मान = 0.9 मिलीमीटर
अब इस वर्नियर की कार्यविधि समझते हैं। जब वर्नियर कैलिपर्स के जबड़ों के बीच कोई वस्तु न रखी हो तब मुख्य पैमाने का शून्य वर्नियर के शून्य के एकदम सामने होता है। शून्य त्रुटि न होने पर वर्नियर का दसवां चिन्ह मुख्य पैमाने के 9वें चिन्ह के सामने आ जाता है। इस अवस्था में मुख्य पैमाने के 1 भाग व वर्नियर पैमाने के 1 भाग के मान का अंतर इतना होगाः
1 मिमी - 0.9 मिमी = 0.1 मिमी
अतः यह स्पष्ट है कि वर्नियर का पहला चिन्ह मुख्य पैमाने के पहले चिन्ह मे 0.1 मिमी पहले आता है।
वर्नियर का दूसरा चिन्ह मुख्य पैमाने के दूसरे चिन्ह से 0.2 मिमी पहले आता है।
वर्नियर का दसवां चिन्ह मुख्य पैमाने के दसवें चिन्ह से 1 मिमी पहले आता है अर्थात यह मुख्य पैमाने के 9 मिमी के निशान के सामने आता है। इस तथ्य को चित्र-1 में दर्शाया गया है।
उपरोक्त विवरण एवं चित्र-1 से स्पष्ट है कि यदि जबड़ों के मध्य रखी। वस्तु का आकार 0.1 मिलीमीटर हो तो - वर्नियर 0.1 मिमी आगे सरकेगा व उसका पहला चिन्ह मुख्य पैमाने के पहले चिन्ह से संपाती होगा यानी सामने आएगा।
वस्तु का आकार 0.2 मिमी हो तो - वर्नियर का दूसरा चिन्ह मुख्य पैमाने के दूसरे चिन्ह से संपाती होगा।
वस्तु का आकार 0.9 मिमी हो तो वर्नियर का नौवां चिन्ह मुख्य पैमाने उदाहरणार्थ यदि किसी वस्तु का के नवे चिन्ह से संपाती होगा।
अल्पतम माप का सूत्र
अगर गणित में आपकी रुचि हो तो आप सूत्र से भी पता कर सकते हैं कि दिए गए वर्नियर पैमाने का अल्पतम नाप क्या है; या फिर सूत्र से ही खोज सकते हैं कि किसी विशेष अल्पतम नाप का वर्नियर स्केल कैसा बनेगा।
मुख्य पैमाने के अल्पतम माप (मानो s) को जितने गुना कम करना हो, (मानो n गुना कम करना है) उतने भाग वर्नियर पर समान दूरियों पर हों तथा ये भाग मुख्य पैमाने के (n-1) भाग के बराबर हों, तो वर्नियर की सहायता से (S/n) तक नाप ली जा सकती है।
इस प्रकार वर्नियर के n भाग = मुख्य पैमाने के (n-1) भाग
अतः वर्नियर के 1 भाग का मान = [(n-1)/n] x S
=(n-1) s/n
वर्नियर का अल्पतम माप = मुख्य पैमाने के 1 भाग का मान - वर्नियर के 1 भाग का मान
= s - (n-1)s/n
= s - ns/n + s/n = s/n
= (मुख्य पैमाने के 1 भाग का मान )/(वर्नियर पर अंकित कुल भाग )
वर्नियर का अल्पतम माप = (मुख्य पैमाने पर अल्पतम माप )/(वर्नियर पर अंकित कुल भाग )
इस तरह यह बात साफ हो जाती है कि इन दोनों तरीकों से वर्नियर के अल्पतम माप का सिद्धांत समझा जा सकता है।
इस प्रकार 1 मिली के दसवें हिस्से का पाठ आसानी से लिया जा सकता है
उदाहरणार्थ यदि किसी वस्तु का आकार 4.55 सेंटीमीटर है और उसे वर्नियर कैलिपर्स के जबड़ों के बीच फंसाया जाता है तो वर्नियर का शून्य मुख्य पैमाने के 4.5 व 4.6 सेमी के बीच आएगा; और वर्नियर का 5वां चिन्ह मुख्य पैमाने के किसी निशान की सीध में मिलेगा। (इस स्थिति में वह 5 सेमी के चिन्ह से संपाती होगा)। यहां ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि वर्नियर का कौन-सा चिन्ह मुख्य पैमाने के किसी भी निशान की एकदम सीध में आता है, यही महत्वपूर्ण है। यह बिल्कुल भी महत्वपूर्ण नहीं है कि वह मुख्य पैमाने के कौन-से चिन्ह की सीध में है।
इस प्रकार वर्नियर पैमाना लगाने पर पैमाने का प्रभावी अल्पतम माप = मुख्य पैमाने के 1 भाग का मान - वर्नियर के 1 भाग का मान
= .1मिमी-0.9 मिमी.= 0.1 मिमी.
इसी तरह अगर हमें एक ऐसा वर्नियर पैमाना बनाना हो जिससे (0.05 मिलीमीटर तक की दूरी नापी जा सके तो वर्नियर पैमाने को इस तरह बनाना होगा कि उसका प्रत्येक खंड मुख्य पैमाने के एक खंड से 0.05 मिलीमीटर कम हो। ऐसा तभी संभव है जब वर्नियर पैमाने के 20 खंड मुख्य पैमाने के 19 खंड के एकदम बराबर हों क्योंकि अगर वर्नियर पैमाने का प्रत्येक खंड 0.05 मिलीमीटर छोटा है तो वर्नियर पैमाने के 20 खंड मुख्य पैमाने से 0.05 x 20 = 1 मिलीमीटर कम होंगे।
अब आप ही सोचिए कि अगर वर्नियर पैमाने से 0.01 मिलीमीटर तक की दूरी नापनी हो तो वर्नियर पैमाना कैसा चुनना होगा। सिद्धांततः संभव होते हुए भी इस पैमाने को बनाने में कौन-कौन-सी समस्याएं आएंगी; उन पर भी अगर आप गौर करेंगे तो आपको वर्नियर पैमाने की सीमाएं भी समझ में आने लगेंगी।
वर्नियर स्केल का उपयोग स्पेक्ट्रोमीटर व चल सूक्ष्मदर्शी इत्यादि यंत्रों में किया जाता है। जब भी मौका मिले उसमें इस्तेमाल किए गए वर्नियर पैमाने को पढ़ने की कोशिश जरूर कीजिए।
विनोद कुमार गुप्ता: रतलाम में कॉलेज में भौतिकी के सहायक प्राध्यापक हैं।