कीर्ति जयराम

प्रारम्भिक साक्षरता परियोजना (इ.एल.पी) द्वारा विकसित शब्द पहचान की विधियाँ ‘संदर्भ’ के पिछले अंक में प्रस्तुत की गईं थीं। इन विधियों के साथ-साथ, कक्षा में सक्रिय और सार्थक लिखित माहौल बनाए रखना भी बहुत ज़रूरी है, ताकि बच्चे लिखित शब्दों से न केवल परिचित हों, बल्कि वे उनसे एक गहरा और सार्थक रिश्ता भी कायम कर पाएँ। इस माहौल को कायम रखने की जो कोशिश की गई उसका कुछ ब्यौरा यहाँ दे रहे हैं।

परियोजना की विचारधारा
प्रारम्भिक साक्षरता और भाषा विकास की वर्तमान सोच और शोध में यह बात उभरकर आई है कि बच्चे सबसे अधिक लिखना-पढ़ना तब सीखते हैं, जब इन्हें अर्थपूर्ण बनाया जाए, और उनके जीवन से प्राप्त अनुभवों और शब्दों के साथ जोड़ा जाए। भाषा सीखने-सिखाने की वर्तमान सोच के पीछे यह अवधारणा है कि बच्चे दुनिया के बारे में अपनी समझ और ज्ञान का निर्माण स्वयं करते हैं। यह निर्माण किसी के सिखाए जाने से नहीं, बल्कि बच्चों के खुद के अनुभवों और सक्रिय खोजबीन द्वारा होता है।

यह माना जाता है कि बच्चे अपने परिवेश से प्राप्त किए गए पूर्व ज्ञान का उपयोग करके लिखित सामग्री से अर्थ ग्रहण करने की कोशिश करते हैं। इस अवधारणा के पीछे यह भी सोच है कि बच्चे अर्थ और समझ बनाने के कुछ सामाजिक नियम घर के परिवेश से प्राप्त करते हैं, और फिर इन्हें स्कूल के अनुभवों पर लागू करते हैं। इस सोच के अन्तर्गत एक बच्चे की पृष्ठभूमि, सन्दर्भ और उसके अनुभव, उसके ज्ञान और समझ निर्माण का आधार बन जाते हैं। यही कारण है कि कक्षा के भीतर विभिन्न गतिविधियाँ करवाने की गुंजाइश ज़रूरी होती है, जो कि बच्चों की विभिन्न प्रकार की भाषा, सोच और पूर्व ज्ञान को जगह दे सकें।

प्रारम्भिक साक्षरता परियोजना का मुख्य उद्देश्य है, कक्षा के भीतर लेखन का सक्रिय और समृद्ध परिवेश विकसित करना, ताकि कक्षा की लिखित दुनिया में प्रवेश करने वाले नन्हे बच्चे, हिन्दी के लिखित शब्दों से सार्थक रिश्ता बना पाएँं। अक्सर यह देखा गया है कि बच्चे लिखने-पढ़ने की प्रक्रिया को केवल पाठ्यक्रम से ही जोड़ लेते हैं और इनसे किसी प्रकार का सार्थक रिश्ता नहीं बना पाते। इसलिए यह बेहद ज़रूरी हो जाता है कि बच्चों को कक्षा के अन्दर मौके देकर उनमें यह विश्वास जगाना कि वे बिना किसी झिझक के अपनी बातें, अपनी कल्पनाएँ, अपनी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी के अनुभव, अपनी चित्रित अभिव्यक्ति को लिखकर, पढ़कर या डिस्प्ले पर लगाकर सबको बता सकते हैं।

लिखित भाषा के समृद्ध परिवेश से अभिप्राय है कि बच्चों को लिखित भाषा के माहौल से घेर लेना, ताकि वे भाषा के लिखित रूप का प्रयोग विभिन्न तरीकों से कर पाएँं। साथ-ही, उन्हें कक्षा में अनेक प्रकार की लिखित सामग्री को पढ़ने की स्वतंत्रता प्रदान करना, ताकि वे भयहीन वातावरण में साक्षरता अर्जित कर पाएँ। इसके अलावा कक्षा में, विभिन्न गतिविधियों द्वारा बच्चों की घरेलू भाषा को कक्षा में जगह देना, और धीरे-धीरे उन्हें शाला की भाषा की ओर ले जाना। कई बच्चों का लिखित भाषा के साथ पहला सम्पर्क, कक्षा में प्रवेश होने के बाद ही होता है, विशेषतौर से वे बच्चे, जिनके घरों में लिखने-पढ़ने के मौके नहीं मिलते। परियोजना चाहती है कि कक्षा में लिखित माहौल विकसित करके, इन बच्चों के अनुभवों और पूर्व ज्ञान को कक्षा में स्वीकृति मिले, ताकि वे सकारात्मक और भयहीन तरीकों से लिखना-पढ़ना सीखें।

कक्षा में लिखित भाषा के समृद्ध परिवेश को विकसित करने के उद्देश्य
-- कक्षा के भीतर लिखित माहौल उत्पन्न करना ताकि बच्चे लिखित शब्दों का उपयोग करके उनसे दोस्ती बना सकें
-- लिखित परिवेश के द्वारा बच्चों को पढ़ने-लिखने के अनेक मौके प्रदान करना और इनके द्वारा कक्षा की विभिन्नता को सम्बोधित करना
-- लिखित शब्दों को बच्चों के आपसी सम्प्रेषण का एक माध्यम बनाना
-- लिखित शब्दों का बच्चों के जीवन से रिश्ता बनाना ताकि वे उनके लिए मायने रखें
-- लिखित परिवेश द्वारा पाठ्यक्रम से जुड़े सहयोगी तथ्य प्रदर्शित करके पाठ्यक्रम को बच्चों के लिए सार्थक बनाने का प्रयास करना।

कक्षा में लिखित परिवेश से जुड़े हुए कुछ तथ्य
इन तथ्यों के पीछे यह सोच है कि बच्चों को ऐसी लिखित सामग्री से घेर लिया जाए, जो उनके लिए दिलचस्प और अर्थपूर्ण हो, ताकि, बच्चे सक्रिय रूप से लिखने-पढ़ने की प्रक्रिया से खुलकर जुड़ें। इसके लिए इन नन्हे बच्चों के लिए उपयुक्त लिखित तथ्यों का चयन किया गया, और फिर उनसे जुड़ी गतिविधियाँ, खेल और वर्कर्शीट बनाई गईं, ताकि बच्चे सक्रिय तरीकों से लिखित तथ्यों से जुड़ें। निम्नलिखित तथ्यों का प्रयोग कक्षाओं में किया गया:
* उपस्थिति चार्ट
* आज का सन्देश
* शब्द-दीवार
* अक्षर चार्ट
* कैलेण्डर
* पहेली का कोना
* कविता का कोना
* कहानी
* शीर्षक के साथ, और उनकी आँख के स्तर पर बच्चों के कार्य का स्पष्ट प्रदर्शन
* दीवार पर मुक्त लेखन के लिए जगह
* कक्षा में विभिन्न प्रस्तुतियों के स्पष्ट शीर्षक
उपरोक्त में से कुछ तथ्यों को विस्तार से नीचे प्रस्तुत किया गया हैै:

उपस्थिति चार्ट- नन्हे बच्चे अक्सर सबसे पहले अपना नाम लिखना सीखते हैं। जिन कक्षाओं में बच्चों की संख्या सीमित थी, वहाँ पर इस प्रक्रिया को कक्षा में बच्चों की उपस्थिति से जोड़ा। ‘उपस्थिति रजिस्टर’ की जगह बच्चों के नाम, एक चार्ट में क्रम में लिखे गए। साथ ही ऊपर एक पंक्ति में तिथियाँ लिखी गईं। इस चार्ट को बच्चों की पहुँच के अनुसार कक्षा की दीवार पर लगाया गया। सबसे पहला नाम कक्षा के शिक्षक का लिखा गया। जैसे-जैसे बच्चे अपना नाम पढ़ना सीखते गए वे अपनी उपस्थिति चार्ट में स्वयं लगाने लगे। बच्चे एक-दूसरे की सहायता भी करने लगे। कुछ ही दिनों में लगभग सभी बच्चे सबके नामों से परिचित हो गए। अब बच्चों को प्रोत्साहित किया गया कि वे अपने नाम के सामने रोज़ अपनी कोई छोटी बात लिखें या चित्र बनाएँ। शिक्षक भी लिखने लगे। इस प्रक्रिया से बच्चे बहुत उत्साहित हुए। किसी ने लिखा, “आज मैं आई हूँ”; तो किसी और ने लिखा, “मैंने बूट पैने हैं”। यहाँ पर गलतियों को सुधारा नहीं गया ताकि बच्चे खुलकर इस वास्तविक, लिखित सम्प्रेषण में भाग लें।

सुबह का सन्देश या आज का सन्देश - श्यामपट के एक कोने में अध्यापिका बच्चों के लिए एक सन्देश हर रोज़ लिखती है। इस तरह की छोटी बातें, जो वास्तविक हों और बच्चों को प्रतिदिन पढ़ने के लिए आकर्षित करें। जैसे, “आज मैंने नीली सलवार पहनी है” या “आज मैंने तीन बसें देखीं”। हमने पाया कि जिन कक्षाओं में इस गतिविधि को नियमित तरीके से किया जाता है, वहाँ पर बच्चे हर सुबह कक्षा में प्रवेश करने के बाद, खूब उत्साहित होकर, शिक्षक के लिखित सन्देश की प्रतीक्षा करने लगते हैं, और फिर तुरन्त ही एक-दूसरे की मदद से, इसको पढ़ने के प्रयास में जुट जाते हैं। धीरे-धीरे बच्चों को भी अपनी छोटी-छोटी बातें लिखने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है, और यह कोना कक्षा में वास्तविक लिखित संवाद का एक कोना बनने लगता है।

शब्द-दीवार - कक्षा में शब्द चार्ट पर चिपका कर, या दीवार पर शब्द लिखकर लगाए जाते हैं, और इन्हें ‘शब्द-दीवार’ का नाम दिया जाता है। परियोजना का उद्देश्य है कि ये शब्द बच्चों की दृष्टि में रहें ताकि वे इनसे घुल-मिल जाएँ और दोस्ती बना लें। इसके लिए इन्हें केवल दीवार पर लिखना ही काफी नहीं है। इन शब्दों के प्रयोग के लिए कई गतिविधियाँ, शब्द खेल और वर्कशीट तैयार की गई हैं।
हर कक्षा में शब्दों की तीन श्रेणियाँ होतीं हैं:
— पाठ्यक्रम की विषयवस्तु और हिन्दी पाठ्य-पुस्तिका से लिए गए शब्द
— स्तर 1 के बच्चों के लिए कुछ सरल शब्द
— बच्चों की असली दुनिया से जुड़े हुए शब्द, जो बच्चों से बातचीत के ज़रिए कक्षा में उपलब्ध होते हैं।

ये ‘शब्द-दीवारें’ बच्चों के लिए शब्द देखकर सीखने की प्रक्रिया में सहयोगी ढाँचे का रूप ले लेतीं हैं। निरन्तर रूप से, समय-समय पर नए शब्दों को शब्द-दीवार में प्रदशर््िात किया जाता है, और बच्चों द्वारा इनका प्रयोग विभिन्न गतिविधियों से जोड़कर भी करवाया जाता है। इन शब्द-दीवारों में बच्चों की घरेलू भाषाओं के कुछ शब्दों को भी शामिल किया जाता है, ताकि बच्चों के लिए स्कूल और घर का फासला कुछ कम हो, और उन्हें कक्षा में स्वीकृति का अहसास मिले। शब्द-दीवार बच्चों और शिक्षकों, दोनों को फायदेमन्द लगी, बल्कि कुछ कक्षाओं में, आधी छुट्टी के समय बच्चे स्वयं ही इन शब्द-दीवारों से जुड़े ख्ेाल दिलचस्पी से खेलने लगे थे।

कैलेण्डर - बच्चों द्वारा बनाए गए मासिक कैलेण्डर को कक्षा में लगाया जाता है और फिर, उसके साथ स्पष्ट शब्दों में कैलेण्डर से जुड़े कुछ निर्देश या प्रश्न लिखे जाते हैं। जैसे बच्चों को किसी घटना से सम्बन्धित दिन पहचानने के लिए कहा जाता है या उपस्थिति चार्ट से जुड़े प्रश्न लिखे जाते हैं, जैसे महीने में कौन-से दिनों में सब से कम बच्चे उपस्थित थे, इत्यादि। इनको पढ़कर बच्चे कैलेण्डर में से इनके जवाब खोजकर लिखते हैं। कुछ कक्षाओं में शिक्षकों ने कैलेण्डर को मौसम चार्ट से जोड़ा था। इस गतिविधि के दौरान प्रत्येक दिन के सामने, उस दिन के मौसम का उपयुक्त, पूर्व निर्धारित चिह्न, बच्चों द्वारा बनाया जाता है। इन्हें गणित के प्रदर्शित लिखित प्रश्नों में शामिल किया जाता है, और इन प्रश्नों के जवाब बच्चे कैलेण्डर से खोजकर लिखते हैं। बड़ी कक्षाओं में बच्चों को इस कैलेण्डर से जुड़े सवाल स्वयं लिखने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है, और बाकी बच्चे इनके जवाब ढूँढ़ते हैं। इस तरह कैलेण्डर को कक्षा में वास्तविक और सक्रिय लिखित सम्प्रेषण का एक साधन बनाया जाता है। कैलेण्डर के पास ही वर्ष के, महीनों के, अथवा सप्ताह के दिनों के नामों को यदि शब्द-दीवार में लगाया जाए, तो ये नन्हे बच्चों के लिए फायदेमन्द साबित होते हैं।

पहेली का कोना - पाठ्य-पुस्तक से सम्बन्धित पहेलियाँ, ‘पहेली के कोने’ में लिखी गईं और इसके पास बच्चों के जवाब के लिए एक चार्ट लगाया गया। इनके जवाब बच्चे पाठ में से खोजकर लिखते थे। कुछ समय बाद बच्चों को अपनी पहेलियाँ बनाने के लिए प्रोत्साहित किया गया। इसके लिए बच्चों को पहेली का एक सरल ढाँचा दिया गया। सबसे पहले कुछ पहेलियाँ पूरी कक्षा के संग श्यामपट पर बच्चों की भागीदारी से निर्मित की गईं। जब बच्चे पहेली के ढाँचे से परिचित हो गए, तब उन्हें अपनी व्यक्तिगत पहेलियाँ बनाने के लिए प्रोत्साहित किया गया, और इन्हें कक्षा में प्रदर्शित किया गया। यह एक बहुत लोकप्रिय गतिविधि थी और बच्चों ने बहुत सारी पहेलियाँ बनाईं और एक-दूसरे की पहेलियों के जवाब ढूँढ़ने में व्यस्त हो गए।
कुछ पहेलियाँ बच्चों की घरेलू भाषा में थीं और कुछ पारम्परिक शैली में। इस तरह बच्चों की रोज़मर्रा की भाषा और तौर तरीकों को कक्षा में एक जगह मिली। हमने पाया कि वे बच्चे जो अब तक कक्षा की प्रक्रिया में भाग नहीं ले रहे थे, अब कुछ हद तक भाग लेने लगे। यह वास्तव में उनके लिए एक बहुत बड़ा कदम था, जिसके लिए उन्हें कक्षा में स्वीकृति मिलना ज़रूरी था, ताकि वे खुलकर लिखें। एक प्रस्ताव है कि बच्चों की पहेलियों का संकलन कक्षा की पहेली पुस्तक के रूप में बनाया जाए।

कविता का कोना - बच्चे कविताओं की दुनिया में खुशी से प्रवेश करते हैं और सभी बच्चे प्रदर्शित कविताओं को थोड़े ही समय में याद कर लेते हैं और फिर नई कविताएँ चाहते हैं। कुछ चुनी हुई रोचक कविताओं को बड़े कागज़ पर फोटो-कॉपी करके, तीन-तीन रुपए में पोस्टर बन गए। इन्हें ‘कविता के कोने’ में लगाया गया। समय-समय पर बच्चों को ये कविताएँ पढ़कर सुनाई जाती हैं और फिर बच्चे अभिनय के साथ उनका उच्चारण भी करते हैं। हमारा अनुभव रहा कि कविता की लय और शब्दावली हर बच्चे को आकर्षित करती है। कविता के ढाँचे को बच्चे आनन्द से ग्रहण कर लेते हैं। फिर बच्चों को इन कविताओं के ढाँचे के आधार पर, अपनी कविताएँ लिखने के लिए भी प्रोत्साहित किया गया। चूँकि यह एक नई गतिविधि है, पहली बार पूरी कक्षा की भागीदारी से एक कविता का लेखन श्यामपट पर करवाया गया, लेकिन जल्द ही बच्चे अपनी व्यक्तिगत कविताएँ लिखने लगे। बच्चों की कविताएँ कक्षा के भीतर प्रदर्शित की गईं, और समय-समय पर इन्हें बच्चों द्वारा पढ़वाया गया। कुछ बच्चे केवल एक ही वाक्य लिख पाए, परन्तु धीरे-धीरे अपने साथियों की कविताएँ देख-देखकर इनकी कविताओं में और वाक्य जुड़ने लगे। कभी बच्चों को तुकबन्दी शब्द दिए गए और फिर उन्हें कविता लिखने के लिए उनसे जुड़ा एक ढाँचा दिया गया। कविता से जुड़ी गतिविधियाँ भी करवाई जाती हैं, जैसे कविता के चित्र बनाना या शब्द खेल खेलना।

लगभग सभी बच्चे कविताएँ और कहानियाँ बहुत पसन्द करते हैं और मौका मिलने पर खुलकर इनसे जुड़ी हुई अपनी बातें, विस्तृत रूप से प्रकट करते हैं। इसके लिए कविताओं और कहानियों के चयन की ओर विशेष ध्यान दिया जाना अनिवार्य है, ताकि चयनित कहानियाँ और कविताएँ बच्चों के लिए दिलचस्प, आनन्दमय और उपयुक्त हों। परियोजना की समझ है कि बच्चों की मनपसन्द कविता और कहानी में उनके अन्दरूनी संसार यानी उनकी कल्पना व अनुभव से रचित संसार को छूने का जादू है, और इनसे जुड़ी बातचीत के ज़रिए जल्द ही वे अपनी काल्पनिक और वास्तविक दुनिया को कक्षा के भीतर ले आते हैं। कहानियाँ, कविताएँं और अन्य लेख बच्चों के लिए कक्षा के भीतर लेखन का सार्थक और सक्रिय माहौल उत्पन्न कर सकते हैं।

कहानी - हर कक्षा में कहानी पढ़ने के लिए समय निर्धारित किया जाता है। बच्चों को कहानी पढ़कर सुनार्ई जाती है। बच्चे कहानी सुनने या पढ़ने से पहले कहानी से जुड़ी बातचीत करते हैं। वे कहानी के चित्र देखकर अनुमान लगाते हैं कि कहानी में क्या होगा। इस तरह की पूर्व-पठन प्रक्रिया की एक अहम भूमिका मानी जाती है क्योंकि इसके द्वारा बच्चों का ध्यान केन्द्रित होता है, और वे गहराई से कहानी से जुड़ते हैं। बच्चों को कहानी की पुस्तक पढ़ने के लिए भी दी जाती है। इसके साथ, बच्चों की प्रतिक्रिया के लिए हर कक्षा में एक चार्ट लगाया गया है, जिसे हमने ‘प्रतिक्रिया चार्ट’ का नाम दिया है। इस पर बच्चे कहानी का शीर्षक और कहानी की बातें अपने कक्षा के साथियों के साथ लिखकर बाँटते हैं। इस गतिविधि से जुड़ने में बच्चों को काफी समय लगा लेकिन अन्तत: यह बच्चों के लिए एक लोकप्रिय गतिविधि साबित हुई।

कक्षा के लिखित माहौल को सक्रिय और अर्थपूर्ण बनाने में कहानी की अहम भूमिका होती है। कहानियों का बच्चों से एक गहरा जुड़ाव है। कहानियाँ प्रत्येक बच्चे के पूर्व अनुभव और व्यक्तिगत कथन को छूती हैं और बच्चों की अन्दरूनी दुनिया की झलक दिखलाती हैं। बच्चों की वास्तविक और काल्पनिक दुनिया का अहसास दिलाने का यह एक अमूल्य माध्यम है। जब बच्चों को एक कहानी बतलाई जाती है या पढ़कर सुनाई जाती है तो उस कहानी से जुड़े उनके अनुभव उनकी व्यक्तिगत कहानियों का स्वरूप ले लेते हैं। बच्चे खुलकर कहानी से जुड़ी हुई अपनी बातों को पेश करने लगते हैं, पहले बोलकर और चित्र बनाकर और फिर धीरे-धीरे लिखकर।
बच्चों द्वारा लिखी कहानियों और लेखों के कुछ उदाहरण प्रस्तुत किए गए हैं:

दानी पेड़ की कहानी सुनने के बाद कक्षा 3 के छात्रों ने इस कहानी से जुड़े अपने भाव और अपने अनुभव लिखकर और चित्र बनाकर व्यक्त किए।

रूसी और पूसी की कहानी अध्यापिका ने पूरी कक्षा को बड़े हाव-भाव के साथ पढ़कर सुनाई। इस कहानी में एक बिल्ली, जिसका नाम पूसी था, रूसी से नाराज़ हो जाती है। अध्यापिका ने पूसी के व्यवहार पर बच्चों की प्रतिक्रिया माँगी। कहानी की पूसी से जुड़कर, बातचीत ‘नाराज़गी’ के विषय पर पहुँची। बातचीत के दौरान बच्चों ने अपनी सोच, अपने अनुभव और उनसे जुड़ी भावनाएँ प्रकट कीं और फिर लिखकर व चित्रों द्वारा इन्हें प्रस्तुत किया।

कुछ बच्चे एक या दो वाक्य ही लिख पाते हैं, तो कुछ और बच्चे केवल चित्र ही बनाते हैं; लेकिन इन लेखों एवं चित्रों में बच्चों के वास्तविक अनुभवों की और उनके अन्दरूनी संसार की झलक मिलती है, और हर लेख की पृथकता दिखलाई देती है। बच्चों के लेख कक्षा में प्रदर्शित किए जाते हैं। वे एक-दूसरे के लेख पढ़ते हैं और उनसे जुड़कर बातचीत करते हैं। लेख के ज़रिए बच्चे एक-दूसरे को और गहराई से पहचानने लगते हैं। वे अपने साथियों की सोच और क्षमताओं से प्रभावित होते हैं, और इन प्रक्रियाओं के दौरान उनके स्वयं के लेखों में धीरे-धीरे सुधार आने लगता है। ज्यों ही वे लिखित शब्दों द्वारा अपनी सोच को पेश करते हैं, वे लिखित शब्दों से घुल-मिल कर, सार्थक रिश्ते बनाने लगते हैं और इस प्रकार से लिखित संसार के साथ एक गहरा रिश्ता कायम करने लगते हैं।

ई.एल.पी परियोजना का निरन्तर प्रयास रहता है, कक्षा के भीतर समृद्ध लिखित माहौल विकसित करके बच्चों को वास्तविक और सक्रिय तरीकों से वर्ण, अक्षर, शब्द और लेख से दोस्ती बनाने के कई मौके प्रदान करना, ताकि लिखित संसार उनके लिए मायने रखे, और उनकी लिखने-पढ़ने की क्षमताएँ सुदृढ़ बनें।

कीर्ति जयराम: प्राथमिक शिक्षा और प्रारम्भिक साक्षरता के क्षेत्र में शिक्षक, शिक्षक प्रशिक्षक के रूप में काफी लम्बा अनुभव है। फिलहाल राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्र के सरकारी प्राथमिक शालाओं में चल रहे प्रारम्भिक साक्षरता प्रोजेक्ट और इससे जुड़ी स्रोत सामग्री के निर्माण में व्यस्त हैं।

इस प्रोजेक्ट की विधियाँ विकसित करने में उन्हें हर्ष और ज्योत्सना का विशेष सहयोग मिला ।

प्रारम्भिक साक्षरता परियोजना (ई.एल.पी.), दिल्ली महानगर पालिका के सहयोग और सर रतन टाटा ट्रस्ट की वित्तीय सहायता से शु डिग्री किया गया एक प्रयास है। परियोजना के पहले चरण का कार्य, दिल्ली महानगर पालिका के कुछ विद्यालयों में जुलाई 2006 से क्रियान्वित किया गया है।

ई.एल.पी द्वारा शुरुआती पठन-लेखन के लिए स्रोत सामग्री का पैकेज बनाया गया है। इसमें शिक्षक निर्देशिका, गतिविधि पुस्तिका, मूल्यांकन पुस्तिका, अक्षर चार्ट, अक्षर कार्ड, कविता पोस्टर एवं सी.डी. भी शामिल हैं। और अधिक जानकारी के लिए कृपया सम्पर्क कीजिए:

ई.एल.पी,
सी 1/4, एस.डी.ए (दूसरी मंज़िल),
नई दिल्ली 110016
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