हाल ही में वैज्ञानिकों ने एक ऐसे बैक्टीरिया को पुनर्जीवित करने में सफलता प्राप्त की है, जो अलास्का के पर्माफ्रॉस्ट में 32 हज़ार साल से सुप्त पड़ा था। पर्माफ्रॉस्ट बर्फ की वह चादर है जो पिछले हिमयुग के दौरान जम गई थी।
इस बैक्टीरिया का नाम कार्नोबैक्टीरिया प्लीस्टोसेनियम रखा गया है। यह बैक्टीरिया प्लीस्टोसीन काल में सक्रिय था जब धरती पर वुली मैमथ और अन्य जानवर विचरण किया करते थे।
दरअसल नासा के खगोल जीव वैज्ञानिक रिचर्ड हूवर ने अलास्का के पर्माफ्रॉस्ट की एक सुरंग में इस बैक्टीरिया को खोजा है। इस सुरंग के अन्दर एक बर्फीला तालाब था। इस तालाब के पेंदे में एक कत्थई धब्बा था। हूवर का विचार था कि यह सूक्ष्म जीव डाएटम के जीवाश्म हैं। मगर जैसे ही यह बर्फ पिघली वहाँ उपस्थित बैक्टीरिया तैरने लगे।
पहले तो हूवर और उनके साथियों ने सोचा कि यह वर्तमान में पाया जाने वाला ही कोई बैक्टीरिया होगा, जो खोजबीन के दौरान गलती से तालाब के पानी में पहुँच गया होगा। उनके ऐसा सोचने की ठोस वजह भी थी।
ऐसे प्राचीन बैक्टीरिया को पुनर्जीवित करने के दावे पहले भी किए गए हैं। जैसे वर्ष 2000 में वेस्ट चेस्टर यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने घोषणा की थी कि उन्होंने एक लवण चट्टान में से 25 करोड़ वर्ष पुराना बैक्टीरिया खोज निकाला है। मगर इस दावे पर कई आशंकाएँ व्यक्त की गई थीं। अक्सर प्रयोगों के दौरान ऐसे बैक्टीरिया शोधकर्ताओं के ज़रिए (जाने-अनजाने) वहाँ पहुँच जाते हैं। इसलिए हूवर ने सावधानी बरती।
जब अलास्का के पर्माफ्रॉस्ट से प्राप्त बैक्टीरिया का जेनेटिक परीक्षण किया गया तो पता चला कि यह एक नई प्रजाति है। इंटरनेशनल जर्नल ऑफ सिस्टेमेटिक एंड इवॉल्यूशनरी माइक्रोबायोलॉजी में प्रकाशित इस शोध के परिणामों से पता चलता है कि बैक्टीरिया हज़ारों साल तक सुप्तावस्था में पड़े रह सकते हैं। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि डी.एन.ए. बहुत लम्बे समय तक नष्ट नहीं होता (बशर्ते हालात अनुकूल हों)।
यह अनुसंधान उन वैज्ञानिकों के कान खड़े कर देगा जो मंगल ग्रह पर जीवन की खोज में लगे हुए हैं। उन्हें मंगल पर जीवन की नई सम्भावनाएँ नज़र आ रही होगीं।