जितेन्द्र कुमार
जब भी मैं कक्षा में होने वाली बातचीत के सम्बन्ध में सोचता हूँ तो कुछ निश्चित तस्वीरें ही मन में उभरती हैं। एक, जिसमें शिक्षक बोल रहा है और बच्चे उसे चुपचाप सुन रहे हैं। दो, कुछ बच्चे शिक्षक को बड़े ध्यान से सुन रहे हैं, कुछ शिक्षक को न सुनकर आपस में बातचीत करने में लगे हैं। तीन, या फिर शिक्षक कक्षा में नहीं है और बच्चे आपस में गप्पें मारने में लगेे हैं। मगर मैंने यह कभी नहीं देखा कि एक शिक्षक बच्चों के साथ सामान्य बातचीत कर रहा हो। ये सब अवलोकन सामान्य सरकारी ग्रामीण स्कूलों के मेरे अनुभवों पर आधारित हैं। परन्तु कक्षा में होने वाली बातचीत का महत्व चाहे वह स्कूल ग्रामीण हो या शहरी, सभी जगह समान है।
कृष्ण कुमार का कहना है, “बातचीत के प्रति उपेक्षा की वजह से हम शिक्षा में बातचीत के उपयोग की अवहेलना करते आ रहे हैं। यह स्थिति सभी स्तरों पर है पर प्रारम्भिक स्तर पर यह सबसे स्पष्ट है। नर्सरी व प्रायमरी स्कूल के लिए बातचीत करना सीखने और सीखी हुई चीज़ों को सुदृढ़ बनाने का एक बुनियादी माध्यम है। ऐसे अध्यापक जो बच्चों को बातचीत नहीं करने देते, वे पहले ही ऐसा मूल्यवान साधन बेकार जाने दे रहे हैं जिसके लिए कोई पैसा खर्च नहीं करना पड़ता।”
बातचीत हमेशा से ही शिक्षण प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण अंग रही है और अच्छे शिक्षक इसे बखूबी उपयोग करते हैं। वे यह समझते हैं कि संवाद, प्रभावी शिक्षण के लिए सहायक सामग्री मात्र न होकर उससे ज़्यादा कुछ है। बच्चे को सीखने और सोचने के लिए मौखिक भाषा की अच्छी खुराक की ज़रूरत होती है। पढ़ना, लिखना व संख्या सीखना ये पाठ्यक्रम के मान्य आधार हैं, परन्तु संवाद, सीखने की सच्ची बुनियाद है। और इस विचार को नए शोधकार्यों ने और बढ़ावा दिया है, अब यह मान लिया गया है कि बातचीत केवल सीखने के लिए ही नहीं परन्तु मस्तिष्क के विकास के लिए भी ज़रूरी है और इससे मस्तिष्क की क्षमता में वृद्धि होती है।
संवाद का महत्व यहीं समाप्त नहीं हो जाता है -- जिस तरह लोग इसे शिक्षण प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण भूमिका में देखते हैं इसी तरह हम इसकी भूमिका को लोकतांत्रिक कक्षा के निर्माण में भी देख सकते हैं। लोकतंत्र की अवधारणा हमारे जीवन के कई पहलुओं पर लागू हो सकती है और अनेक रूप ले सकती है। कक्षा में लोकतांत्रिक व्यवस्था का निर्माण कक्षा के सम्पूर्ण विकास के लिए आवश्यक है और संवाद इसमें एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। इसी सन्दर्भ में यहाँ कुछ उदाहरणों की मदद से हम कक्षा में संवाद की क्षमता को समझने का प्रयास करेंगे।
उदाहरण-1
यह उदाहरण एक निजी स्कूल की कक्षा-5 का है। यह अँग्रेज़ी भाषा का पीरियड है, जिसमें व्याकरण का अभ्यास चल रहा है। पाठ्यपुस्तक से कुछ अभ्यास बच्चों को घर से करके लाना था। अभ्यास में वाक्यों को वर्तमान काल से भूतकाल या भविष्यकाल में बदलना था। इस कक्षा में कुछ संवाद जो शिक्षक व छात्रों के बीच हुआ, उसे यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है।
सुमित अपनी गृहकार्य की कॉपी लाना भूल गया। ऐसे में यह सुनिश्चित करने के लिए कि सुमित ने गृह कार्य किया है या नहीं शिक्षिका ने उसके साथ सवाल-जवाब शुरू किया।
शिक्षिका: सुमित तुम्हारी कॉपी कहाँ है?
सुमित: आई डिड नाट ब्रोट माई कॉपी (अँग्रेज़ी में)।
शिक्षिका: ब्रोट?
कक्षा में बच्चे चिल्लाने लगते हैं, “ब्रिंग”।
शिक्षिका अपना स्वर बदलती है और गुस्सा दिखाती है। उन्हें शक है कि सुमित ने अपना काम नहीं किया है। वह उसे गृहकार्य के पहले सवाल का जवाब देने के लिए कहती है। अन्य बच्चे जवाब देना चाहते हैं। वे चिल्लाते हैं। परन्तु शिक्षिका कहती है कि “सुमित के अलावा कोई जवाब नहीं देगा।” और “मैं सुमित से बात कर रही हूँ।” सुमित खड़ा है और पन्ने पर लिखे वाक्य को पढ़ रहा है।
शिक्षिका: तुम्हें यह सवाल करना है --‘द’ के आगे एक शब्द जोड़ो -- चलो सुमित, करके दिखाओ (दबाव बनाते हुुए)।
ये सभी वाक्य एक मिनट से भी कम समय में बोले गए। चूँकि इस दौरान सारा ध्यान एक बच्चे पर रहा इसलिए बाकी कक्षा बेचैन होने लगी। सुमित ने गलत जवाब दिया। इसके बाद यह सवाल पूरी कक्षा के लिए खुला था और इस बात को शिक्षिका के आदेश के बिना ही समझ लिया गया। शिक्षिका ने सुमित को घूर कर देखा और फिर बाकी बच्चों की ओर घूम गई जो अभी तक काफी बेचैन हो चुके थे।
पीरियड के आधे समय के बाद शिक्षिका ने उन बच्चों पर ध्यान देना शु डिग्री किया जो अपना हाथ खड़ा नहीं कर रहे थे। ये बच्चे अब तक शिक्षिका की नज़र में आ चुके थे। शिक्षिका ने इन बच्चों के गृहकार्य की जाँच शु डिग्री की और पता लगा कि उन्होंने अपना गृहकार्य नहीं किया है। यहाँ से शिक्षिका व बच्चों के बीच एक नए संवाद की शुरुआत हुई। संवाद हुआ पीछे बैठे हुए एक लड़के के साथ जो कक्षा में भागीदारी नहीं कर रहा था।
शिक्षिका: प्रणव, तुम्हारी गृहकार्य की कॉपी कहाँ है?
प्रणव: मेरे पास नहीं है।
शिक्षिका: क्या तुमने अपना गृहकार्य किया था?
प्रणव कुछ बुदबुदाता है......
शिक्षिका: क्या?
प्रणव: नहीं किया (उसने पूरा वाक्य नहीं बोला)।
शिक्षिका: तुमने नहीं किया। क्यों? तुमने कोशिश की?
प्रणव: मैंने एक-दो को कॉपी में करने की कोशिश की पर समझ नहीं आया।
यह बातचीत इस बात का अच्छा सबूत है कि एक शिक्षक कक्षा में अपनी सत्ता का उपयोग कैसे करता है। अगर सीखने-सिखाने के दृष्टिकोण से देखें तो यह संवाद न तो बच्चे के लिए मददगार था और न ही शिक्षक के लिए क्योंकि शिक्षिका अधिकतर समय बच्चों को डाँटने के अलावा कुछ खास नहीं कर रही। अनुशासन के दृष्टिकोण से भी देखें तो भी यह चर्चा किसी हल को खोजने के लिए नहीं हो रही; क्योंकि शिक्षिका, समस्या क्या है यह जानने की कोशिश भी नहीं कर रही है। यहाँ संवाद को बनाने के लिए कोई प्रयास नहीं किया गया और न ही कक्षा में छात्र-छात्राओं के बीच सहभागिता बनाने का। इस प्रकार यह बातचीत कक्षा को एक साझी जगह बनाने की बजाय दो अलग-अलग दायरों में बाँटने का काम कर रही है।
उदाहरण-2
यह एक प्राइवेट स्कूल की कक्षा-6 का उदाहरण है जिसमें लड़के-लड़कियाँं साथ पढ़ते हैं। यह इतिहास की कक्षा है जिसमें शिक्षिका ‘उत्तर मौर्य काल’ के बारे में पढ़ा रही है। शिक्षिका कक्षा में घुसती है, चार या पाँच विद्यार्थी उन्हें गुड मॉर्निंग कहते हैं, कुछ हाय और हैलो कहते हैं और कुछ सिर्फ शिक्षिका की तरफ देखते हुए आपस में बातें कर रहे हैं।
शिक्षिका: गुड मॉर्निंग, क्या हो रहा है, इससे पहले तुम्हारी अँग्रेज़ी की कक्षा थी न?
बच्चे: हाँ, मैम।
(सभी ने अपनी अँग्रेज़ी की कॉपी बन्द कर के सामाजिक विज्ञान की कॉपी खोल ली। और शिक्षिका बोर्ड पर लिख रही है, ‘साम्राज्य क्या होता है?’)
शिक्षिका: पिछले हफ्ते हमने साम्राज्य क्या होता है, इस बारे में बात की थी। क्या कोई मौर्य साम्राज्य के बारे में कुछ बताना चाहता है (कई बच्चों ने अपने हाथ उठाए)?
सुरंजय: मैम, मौर्य साम्राज्य, महाद्वीप के बहुत बड़े हिस्से में फैला हुआ था। और वह एक सत्ता से नियंत्रित होता था। वे एक नई विचारधारा का प्रचार करने में लगे थे जिसने कई छोटे राज्यों को प्रभावित किया।
विभोर : मैम, मैम जैसे धम्म। उसने सिक्के का उपयोग किया, ताकि लेन-देन में एक समानता आ सके।
शिक्षिका: हाँ, सही विभोर, क्या कोई और कुछ जोड़ना चाहता है?
तान्या: मुझे लगता है कि उनका ज़ोर नियंत्रण करने पर था मगर उन्होंने आम आदमी की ज़रूरत को अनदेखा किया।
शिक्षिका: (हिन्दी में बोलती है) हाँ, मौर्य एम्पायर में ध्यान इसके ऊपर दिया जाता था कि किस तरीके से सभी रियासतों में यूनिफॉरमिटी लाई जाए, एक ही रूल बने, एक ही किंग रूल करे। तान्या, तुम सही कह रही हो, आम आदमी की ज़रूरतों को पूरी तरह से अनदेखा किया गया था।
शिक्षिका (बोर्ड पर लिखते हुए): आज हम इस बारे में बात करेंगे कि मौर्य साम्राज्य के बाद क्या हुआ, ठीक है, तो कोई उत्तर मौर्य काल के बारे में कुछ कहना चाहता है?
आदित्य: तब तो शासन का कोई अर्थ नहीं रह गया था, चाहे कुछ भी हो। क्या हो रहा होगा पूरे राज्य में? पता नहीं, किसी को कोई चिन्ता थी या नहीं?
कुछ बच्चों ने बोलने के लिए हाथ उठाए।
समर्थ: मंत्री ज़रूर साम्राज्य की परिस्थितियों पर बात करते होंगे। राजा ने सोचा कि साम्राज्य को नियंत्रित कर पाना मुश्किल है और राज्य बिखर गया। ... उसके बाद क्या हुआ होगा?
श्रेया: नए राज्य बने होंगे, और क्या! वे राज्य दोबारा छोटे राज्यों में बँट गए होंगे और फिर वे साम्राज्य में शामिल हो गए होंगे।
शिक्षिका: हाँं, श्रेया तुम सही कह रही हो। साम्राज्य छोटे-छोटे क्षेत्रों में बँट जातेे, फिर कोई राजा आता और अपनी विचारधारा के आधार पर फिर से राज्य को नियंत्रित करके उसे अपने साम्राज्य में शामिल कर लेता।
शिक्षिका: किसी को पता है वे कौन-से राज्य थे जिनके बारे में हम बात कर रहे हैं?
ऋषभ: विदेह।
शिक्षिका: हाँ, विदेह एक था, और कोई?
स्पर्श: उस समय व्यापार व्यवस्था भी बिगड़ गई थी। मौर्य काल के लोगों को अपने घरों में छुपना पड़ा होगा। लोगों को उस समय कोई अधिकार नहीं थे, उन्हें अपनी बात कहने की आज़ादी नहीं थी, वे एक तरह से दास थे। जैसा कि तालिबान में है।
तान्या: हाँ, स्पर्श। तुम्हें पता है बहुत-सी जगह लड़कियों को स्कूल जाने की इजाज़त नहीं है और कई देशों में मार-काट मची हुई है क्योंकि कुछ समूह बाकी लोगों पर अपनी विचारधारा अपनाने के लिए ज़ोर डाल रहे हैं।
शिक्षिका: हाँं, तुम सही कह रही हो तान्या, लड़कियों की स्थिति बहुत ही खराब है और इससे यह भी स्पष्ट है कि नियंत्रण की ताकत चन्द लोगों के पास है और आम जन के प्रति उनका रवैया निरंकुश है। स्पर्श, तुम्हारी चिन्ता भी जायज़ है। साम्राज्यों के पतन ने लोगों के जीवन को काफी हद तक प्रभावित किया होगा।
शिक्षिका: अच्छा, अब मुझे बताओ, मौर्य टाइम पे कौन एम्बेसेडर आया था?
विपुल: मैगस्थनीज़, मैम।
स्पर्श: प्लीज़, प्लीज़ मैम।
शिक्षिका: स्पर्श, हमें दूसरों को भी बोलने का मौका देना चाहिए। ठीक है, कहो, तुम्हें क्या कहना है।
स्पर्श: उस समय वे मानव अधिकारों का कोई सम्मान नहीं करते थे। सभी राज्यों ने राजतंत्रीय व्यवस्था अपनायी हुई थी ।
शिक्षिका: हाँ स्पर्श, उस समय सभी राज्यों में राजतंत्रीय शासन प्रणाली थी और राज्य भर में एक ही व्यक्ति का शासन चलता था। लेकिन तभी साम्राज्य का पतन हुआ और उसके बाद इंडो-ग्रीक कबीले आए। जो कबीले बाहर से आए उन्हें क्या बोलोगे?
ऋषभ: आक्रान्त, घुसपैठिए।
समर्थ: मैम, पर एक बात है...
स्पर्श: मैम, देखिए ये तो गलत बात है ना। यहाँ एक आम आदमी और राजा के बीच में कितना भेदभाव है।
शिक्षिका: कैसे?
स्पर्श: राजा अपनी सुरक्षा के लिए ज़्यादा चिन्तित होता था, क्योंकि युद्ध के समय मुख्य उद्देेश्य राजा को जेल में डालना होता था। मुझे लगता है उस वक्त राजा को ज़्यादा सुरक्षा दी जाती थी और आम आदमी की सुरक्षा को लेकर वे कुछ खास चिन्तित नहीं थे।
शिक्षिका: हाँ, स्पर्श तुम्हारी चिन्ता सही है। ऐसा होता था, क्योंकि अगर राजा हार जाता या गिरफ्तार हो जाता तो पूरा राज्य दूसरे राजा के हाथ में चला जाता था।
समर्थ: पता है क्या होता था? सेना छोटे-छोटे इलाकों को अपने कब्ज़े में ले लेती थी। इसलिए राजा को राजधानी के पास ज़्यादा सुरक्षित रखते थे।
शिक्षिका: आजकल तो बिहार की राजधानी पटना है परन्तु तब उस इलाके की राजधानी क्या थी?
त्रिशा: पाटलीपुत्र, मैम।
श्लोक: मगर अंकू मैम, मैं पूछना चाहता हूँ; समझ लो दिल्ली, एक इंडिया है, सिक्युरिटी नहीं है तो कोई भी कब्ज़ा कर सकता है? अगर सिक्युरिटी कवर नहीं करेंगे तो हम तो गए। क्योंकि मिनिस्टर के पास तो सिक्युरिटी है, पहले की तरह।
शिक्षिका: हाँ, श्लोक इसी तरह उस समय भी ज़्यादा सुरक्षा पाटलीपुत्र को दी जाती थी।
स्पर्श: कमाल की बात तो यह है कि अगर किंग मरेगा तो उसका बेटा सँभालेगा।
श्लोक: हाँ, अब ऑबवियसली वही बनेगा, अभी तेरे पेरेंट्स की प्रॉपर्टी किसको मिलेगी, तुझे और तेरी बहन को ना!
तान्या: मैम, राजा ज़रूर सुस्त और घमण्डी रहा होगा। उसने सोचा होगा कि कबीले आएँगे तो वे उन्हें पाटलीपुत्री, नहीं, नहीं पाटलीपुत्र में पकड़ लेंगे।
(अन्य बच्चों ने भी सही करने की कोशिश की)।
शिक्षिका: जब साम्राज्य कई टुकड़ों में बँट जाता है, तो वो आपस में लड़ाई करते हैं, अपने आप में ही वे इतना इनवॉल्व होते हैं कि दूसरों पर ध्यान नहीं देते। वे केवल अपनी जीत और शौर्य के बारे में ही सोचते हैं और ऐसे में वो आम आदमी की ज़रूरतों को अनदेखा कर देते हैं। कुछ कबीलों पर हम विस्तार से चर्चा करेंगे और कुछ पर सरसरी तौर पर ही बात करेंगे।
आदित्य: मैम, एनार्की हुई तो वह पूरी तरह हुई न?
शिक्षिका: हाँ, तुम ठीक कह रहे हो। अच्छा, एक कबीला तो इंडो-ग्रीक था। कुछ और नाम बताओ?
ऋषभ: भूटान के कबीलों ने भी भारत पर आक्रमण किया था।
स्पर्श: बेचारा इण्डिया, हर बार पिटा था। यह बिलकुल उसी तरह है जैसे हम हर बार एक नया घर बनाते हैं और सरकार के बुलडोज़र उस घर को तोड़ देते हैं।
शिक्षिका: इंडिया का तो कॉनसेप्ट ही नहीं था तब।
विपुल: एक और कबीलों का समूह था, हाका।
स्पर्श: इंडिया को कोई टॉय समझ रखा है, जब चाहा तोड़ा, जब चाहा जोड़ा। इंडिया घर में ही लड़ाई कर रहा था ऐसे में बाकी तो फायदा उठाएँगे ही।
शिक्षिका: हाँ, तुम सही हो, जब हम देश के अन्दर ही लड़ाई करते हैं तो लोग तो फायदा उठाते ही हैं। श्लोक, क्या तुम उत्तर-मौर्य काल की स्थिति के बारे में कुछ बतला सकते हो?
श्लोक: मैं सोचता हूँ उस समय राजा लोग तो बौद्ध होते थे। अगर वे बौद्ध थे तो लड़ाई क्यों करते थे?
त्रिशा: मैम, हमने बौद्ध कुषाणों के बारे में बात की थी। वे बौद्ध धर्म का कड़ाई से पालन नहीं करते थे। पर अशोक तो पक्का बौद्ध था तो वह क्यों हिंसा के रास्ते पर चल रहा था?
शिक्षिका: लेकिन, हम उस समय की बात कर रहे हैं जब अशोक स्वयं हिंसा में विश्वास करता था। लड़ाइयों के कई सालों बाद उसने बौद्ध धर्म अपनाया।
नितिन: मैम, अगर कोई अशोक को चाकू मार दे तो क्या वो उसे नहीं मारेगा?
शिक्षिका: नितिन, हम अभी कुछ और बात कर रहे हैंै, क्या तुम कक्षा में हो रही बात पर ध्यान दे सकते हो? मुझे लगता है हम बातचीत से हट रहे हैं।
इस कक्षा में हमें शिक्षक व छात्रों के बीच की बातचीत का एक अच्छा उदाहरण देखने को मिला है, बातचीत गुणवत्ता की दृष्टि से भी काफी अच्छी है। इस संवाद को पढ़कर हम समझ सकते हैं कि शिक्षिका बच्चों को उनके मत और टिप्पणियों के लिए पर्याप्त समय और स्थान दे रही है। बच्चे परिस्थितियों के बारे में कुछ अनुमान लगा रहे हैं, साथ ही शिक्षिका इनके विचारों को पर्याप्त महत्व भी दे रही है। दरअसल, शिक्षिका ने कक्षा को मौर्य साम्राज्य पर चर्चा का रूप दिया जिसमें सभी समान दिलचस्पी से भाग ले रहे हैं।
शिक्षिका ने कक्षा की शुरुआत किसी एक बच्चे को जवाब देने या बोलने को कहने की बजाय इस वाक्य से की, “कोई मौर्य साम्राज्य के बारे में अपनी राय देना चाहेगा?” और जो जवाब उन बच्चों ने दिए वे इस बात का सबूत हैं कि बच्चे अपने मत प्रकट करने में कितने सहज हैं। उनका यह व्यवहार एक कक्षा में लगातार होने वाली बातचीत की लम्बी प्रक्रिया का परिणाम था। इसमें छात्रों के साथ ऐसे रिश्ते को स्थापित करने का प्रयास किया गया है जिसमें बच्चों के लिए स्थान सुनिश्चित हो सके।
स्वतंत्रता और स्वतंत्रता का अहसास एक-दो दिनों में नहीं मिल जाता बल्कि यह लम्बे समय तक एक वातावरण में रहते हुए ही महसूस की जा सकती है। इस कक्षा की संस्कृति में यह तत्व मौजूद है। यहाँ शिक्षिका बच्चों के अवलोकन की प्रशंसा कर रही है और बजाय एक-दो छात्रों पर ध्यान देने के, सभी की भागीदारी के लिए रास्ते भी बना रही है। उदाहरण के लिए, इस कक्षा में शिक्षिका मौर्य साम्राज्य पढ़ा रही है मगर बच्चे अपनी टिप्पणियों में अतीत को वर्तमान से जोड़ रहे हैं जो उनकी इतिहास की एक अर्थपूर्ण/सार्थक समझ की ओर इशारा कर रहा है और ये तुलनाएँ इस समझ को और व्यापक बनाने में मददगार साबित हो सकती हैं। वे अपनी व्याख्याओं से स्वयं अर्थ बना रहे हैं और शिक्षिका को इससे कोई आपत्ति नहीं है। बच्चों की भाषा में हम उनकी अभिव्यक्ति की स्पष्टता देख सकते हैं। और यह स्वतंत्रता व अभिव्यक्ति कक्षा में शिक्षिका द्वारा स्वीकृत थी। कक्षा में शिक्षिका, हिन्दी व अँग्रेज़ी दोनों ही भाषाओं का उपयोग कर रही है। हिन्दी जो कि बच्चों की मातृभाषा है और अँग्रेज़ी जो कि निर्देश की भाषा है। शिक्षिका की तरफ से दोनों भाषाओं के उपयोग में काफी लचीलापन है, बिना शिक्षण के माध्यम की खास चिन्ता किए अधिकतर समय वह अँग्रेज़ी का उपयोग करती है। परन्तु जिस तरह से वह दोनों भाषाओं का उपयोग कर रही थी उससे स्पष्ट है कि शिक्षिका का उद्देश्य भाषा का उपयोग नहीं बल्कि ज्ञान व विचारों का आदान-प्रदान है।
हमने यह भी देखा कि बच्चे शिक्षिका को उनके नाम से पुकार रहे हैं (श्लोक: मगर अंकू मैम मैं पूछना चाहता हूँ)। यह स्वतंत्रता का एक विशिष्ट उदाहरण है, जो सामान्यत: देखने को नहीं मिलता।
बातचीत के एक विशेष अंश पर मैं प्रकाश डालना ज़रूरी समझता हूँ। जब नितिन कहता है- “मैम, अगर कोई अशोक को चाकू मार दे तो क्या वो उसे नहीं मारेगा?” तब शिक्षिका ने यह कहते हुए कि “नितिन, हम कुछ और बात कर रहे हैं। क्या तुम कक्षा की चर्चा पर अपना ध्यान रखोगे? मुझे लगता है हम मुद्दे से भटक रहे हैं।” बात को टाल देती है। दरअसल, उस सवाल में नितिन अहिंसा के गहरे अर्थ को समझने की कोशिश कर रहा था जो कि एक बच्चे की स्वाभाविक जिज्ञासा है। परन्तु शिक्षिका ने उसे केवल इसलिए रोक दिया क्योंकि यह पाठ वो आज ही पूरा कर देना चाहती है।
लेकिन मेरे विचार में ऐसा करके शिक्षिका ने एक महत्वपूर्ण विषय पर चर्चा का मौका गवाँ दिया जो कि कक्षा की चर्चा को विद्यार्थियों के लिए अधिक अर्थपूर्ण बना सकता था। यह अक्सर होता है, हम असल ज़िन्दगी की बातों को कक्षा के बाहर निकाल देते हैं जिसके चलते कक्षा बच्चे के लिए एक दूसरी दुनिया बन जाती है जिसका उसकी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी से कोई खास जुड़ाव नहीं होता।
इसके बावजूद, इस कक्षा की शिक्षिका एक संवेदनशील शिक्षिका है और जिस तरह से वो कक्षा को संचालित कर रही है उससे स्पष्ट है कि एक लोकतांत्रिक कक्षा के स्वरूप का उसे अच्छा-खासा अन्दाज़ा है।
उदाहरण-3
यह कक्षा-2 का उदाहरण है जिसमें बच्चे शिक्षक के साथ बैठे हैं।
शिक्षक: एक था जंगल। जंगल या बाग?
‘बाग’ (बच्चे बोले)।
शिक्षक: बाग कैसा होता है ?
दिनेश: बाग... पेड़ का बाग, आम का बाग।
सलमान: कटहल रहते हैं।
दिनेश: सर जी, सब्ज़ी भी रहती है।
शिक्षक: बाग बड़ा होता है या बगीचा?
सलमान: बाग बड़ा होता है, सर।
शिक्षक : किस-किस ने बाग देखे हैं?
“हमने-हमने” (सभी चिल्लाए)।
गुलशन: सर मैंैने देखा है।
शिक्षक: किसका?
गुलशन: वकील साब का।
शिक्षक: वकील साहब का बाग कहाँं है?
सलमान: बो खेत है (बीच में टोकते हुए)।
दिनेश: वहाँ आम के पेड़ हैं। यहाँं से ले के बान्द्राभान तक है।
शिक्षक: अच्छा! उनमें क्या लगा है, किस चीज़ का बाग है, फल का बाग है कि सब्ज़ी का?
(बीच में कुछ लड़के शोर करने लगे।) शिक्षक नें उन्हें चुप रहकर गुलशन की बात सुनने के लिए कहा।
शिक्षक: वकील साहब के बाग में क्या देखा तुमने?
गुलशन:.... (चुप रहा)।
शिक्षक: उन्होंने क्या बोया हुआ है?
गुलशन: कटहल।
शिक्षक: और जो बान्द्राभान के पास है, उसमें क्या बोया हुआ है?
दिनेश: बीही, जामुन का पेड़ और सीताफल।
शिक्षक: सीताफल, जिसकी सब्ज़ी बनती है, वो?
(बच्चे शिक्षक की बात सुनकर हँसने लगे।)
दिनेश: नहीं।
मोहित और सलमान: नहीं, खाने वाला, सर (मतलब था सीताफल एक फल है, सब्ज़ी नहीं। शिक्षक को उसका दूसरा नाम याद आया ‘शरीफा’, और उन्होंने बच्चों को बताया)।
शिक्षक: अच्छा, सीताफल का स्वाद कैसा होता है?
दिनेश: मीठा! शक्कर जैसा।
(किसी बच्चे ने बताया कि नवल किशोर अपनी दुकान पर रखकर बेचता है।)
शिक्षक: तुम बेचते हो सीताफल (नवल से)?
गुलशन: सर पपीता भी। गुलाब के फूल तो अभी भी लगे हैं बाग में।
शिक्षक: कितने सारे?
गुलशन: खूब सारे।
सलमान: हाँ सर, वकील साब के खेत में गुलाब के भी पौधे हैं और गेन्दा के भी।
गुलशन: सर, बेचते हैं।
शिक्षक: किसको?
सलमान: माला बनाने वालों को।
इस कक्षा में शिक्षक व बच्चों के बीच बातचीत हो रही है। यह बहुत ही अनौपचारिक किस्म की बातचीत है मगर बहुत ही औपचारिक जगह, एक कक्षा में हो रही है। ये कक्षा-2 में पढ़ने वाले बच्चे हैं जो अपनी बाहरी दुनिया के अनुभवों को कक्षा में बाँट रहे हैं और इस जानकारी का स्रोत भी वे ही हैं। दूसरी महत्वपूर्ण बात है उनकी अपनी मातृभाषा का उपयोग। जिस तरह से वे अपने अनुभवों को बाँट रहे हैं, इससे उन्हें आभास होता है कि उनके अनुभव और उनकी बातों का भी मूल्य है, और उन्हें भी कक्षा की चर्चा में शामिल किया जा सकता है। साथ ही हम यह भी देख सकते हैं कि यह संवाद, शिक्षक व छात्रों के बीच एक रिश्ता बनाने में मदद कर रहा हैै। रिश्ता जो बच्चों में यह विश्वास जगाता है कि वे भी कक्षा के अंग हैं। यह रिश्ता एक साझी समझ पैदा करता है जो कि आम तौर पर बच्चे अनुभव कर ही नहीं पाते। किसी भी समूह की गतिविधियों के लिए यह आवश्यक है।
कक्षा में अनौपचारिकता, वहाँ मौजूद गैर बराबरी को कम करने में मदद करती है। इससे बच्चों का आपस में और शिक्षक के साथ मेलजोल बढ़ता है। यह कक्षा में एक नई संस्कृति की शुरुआत है जो कक्षा को एक अधिक लोकतांत्रिक जगह बनाने में मदद करेगी।
उदाहरण-4
इस गतिविधि का सुझाव कृष्ण कुमार द्वारा लिखित, ‘बच्चे की भाषा और अध्यापक,1996’ से लिया गया है। यह एक सरकारी स्कूल की कक्षा तीन का उदाहरण है। शिक्षक ने बच्चों को कुछ समय कक्षा के बाहर जाकर अवलोकन करने के लिए कहा। फिर कक्षा में आकर उन्हें अपने अनुभव बताने थे। कालू, एक बच्चा जो कुछ समय सड़क पर बिता कर आया था, का शिक्षक के साथ वार्तालाप कुछ इस तरह हुआ।
शिक्षक: तो, तुम कहाँ गए थे?
कालू: सर, सड़क पे, स्कूल के पीछे।
शिक्षक: अच्छा यह बताओ, तुमने बाहर क्या देखा?
कालू: सर, एक गाय थी ... एक लड़का, साइकल पे जा रहा था ....।
शिक्षक (कालू को बीच में टोकते हुए): अच्छा तुम ये बताओ, उन आने-जाने वाले लोगों में तुमने किसको ज़्यादा अच्छे ढंग से देखा, कौन अच्छा लगा तुमको?
कालू: सर, एक चश्मा लगाकर जा रहा था और अच्छे कपड़े पहने था।
शिक्षक: अच्छा! वो अच्छा लगा तुमको?
कालू: हाँ।
शिक्षक: तो क्यों अच्छा लगा?
कालू: क्योंकि सर, वो बड़ा आदमी था।
शिक्षक: बड़ा आदमी था?
कालू: हाँ सर, नहाया-धोया था, अच्छे कपड़े पहने था।
शिक्षक: नहाया-धोया था और अच्छे कपड़े पहने था, इसलिए। अच्छा, अगर वह गन्दे कपड़े पहने होता तोे गन्दा लगता?
कालू: खराब!
शिक्षक: खराब लगता न, क्यों? तो क्यों भैया, आपको क्या शिक्षा मिलती है इससे? यदि आप गन्दे कपड़े पहन के निकलोगे रोड़ पर तो लोग तुम्हें देखेंगे क्या? अच्छा लड़का जा रहा है, कहेंगे क्या?
बच्चे: नहीं।
शिक्षक: और प्राइवेट स्कूल के लड़के जाते हैं बढ़िया कोट-पैंट पहन के, बुशर्ट पहने, बेल्ट लगाए हुए, टाई बाँधे हुए, जूता पहने हुए, बढ़िया तेल लगाए हुए, कंघी किए हुए, कैसे लगते हैं वो?
बच्चे: अच्छे लगते हैं।
शिक्षक: और तुम लोग आते हो तो लोग क्या कहते हैं, ये देखो गवरमेंट स्कूल के बच्चे, कंघी नहीं करी। तो हमें कैसे आना चाहिए?
बच्चे: अच्छे होकर।
शिक्षक: बढ़िया कमीज़ साफ करके, नहाकर, अच्छे कपड़े पहनकर।
अगर हम इस संवाद को देखें तो पाते हैं कि शिक्षक का मुख्य उद्देश्य है बच्चों को प्रेरित करना कि वे स्कूल में नहा-धोकर साफ-सुथरे होकर आएँ, न कि बच्चों के अवलोकन पर चर्चा करना। यह देखने की बजाय कि बच्चों ने क्या देखा, कैसे देखा शिक्षक इस अवसर का उपयोग बच्चों को सफाई का पाठ पढ़ाने में करते हैं। परन्तु जिस तरह से उन्होंने बात की वह सरकारी व प्राइवेट स्कूल के बच्चों के बीच तुलना पर ही रुक जाती है, न कि सफाई व स्वच्छता के बारे में मूल रूप से कुछ कहती है। साथ ही कहीं-न-कहीं वे सफाई के मामले में इन विद्यार्थियों को निजी विद्यालय के विद्यार्थियों के आगे गन्दा स्वीकार करवाने पर ज़ोर डाल रहे हैं जो कि शिक्षक की घोर असंवेदनशीलता का एक उदाहरण है।
हालाँकि, यह साफ है कि शिक्षक को सीखने व पढ़ने की प्रक्रिया में बातचीत के महत्व का कुछ अन्दाज़ा है। जहाँ शिक्षक का काम बच्चों को सोचने व अपनी सोच को खुलकर व्यक्त करने में मदद करना है वहाँं सवाल और टिप्पणियों का चुनाव इस तरह होना चाहिए कि वे बच्चे की सोच विकसित व अभिव्यक्त करने में सहायक हों। जबकि इस उदाहरण में शिक्षक बच्चों की बातों के लिए कोई स्थान नहीं छोड़ रहा है।
यह बहुत ही एकतरफा संवाद था। पूरे संवाद में शिक्षक ही हावी है और बच्चा मात्र रिपोर्ट कर रहा है कि उसनेे बाहर क्या देखा। शिक्षक अन्य कई बातें जो बच्चे ने देखी, को अनदेखा करके एक बात-विशेष कोे पकड़ कर उसकी व्याख्या करने लगता है और सन्दर्भ से अलग जाकर साफ-सफाई पर भाषण शु डिग्री कर देता है। इस प्रक्रिया में कक्षा एक अलोकतांत्रिक रूप ले लेती है।
अक्सर पारम्परिक कक्षाएँ एक अलोकतांत्रिक संस्था के रूप में बर्ताव करती हैं और ये कक्षाएँ, शिक्षा व्यवस्था, स्कूल प्रबन्ध की ढाँचागत श्रेणी में सबसे नीचे की कड़ी होती हैं। इनमें शिक्षक हमेशा सत्ता की भूमिका में होता है और बच्चे के लिए वह न केवल अपने अनुभव और ज्ञान के कारण बल्कि व्यवस्था और ढाँचे की श्रेणीबद्ध व्यवस्था के कारण भी सत्ता का अधिकारी होता है। एक संवेदनशील शिक्षक, इस स्थिति में कक्षा में होने वाले संवाद का उपयोग कक्षा को एक ऐसे स्थान में बदलने के लिए कर सकता है जो बच्चों के लिए सहज हो, जिसमें बच्चे सोचने, सवाल करने व बोलने के लिए स्वतंत्र हों। परन्तु हमने इस उदाहरण में जो देखा वह इसके ठीक विपरीत था।
कक्षा, सीखने व सोचने के लिए स्वतंत्रता प्रदान करे इसके लिए कक्षा में लोकतांत्रिक व्यवस्था की आवश्यकता है। हम देख सकते हैं कि 17वीं शताब्दी से लोकतंत्र के समर्थकों ने स्वतंत्रता के साथ इस व्यवस्था के सम्बन्ध को विशेष महत्व दिया है। उनका मानना था कि स्वतंत्र वातावरण के निर्माण में लोकतांत्रिक व्यवस्था एक निर्णायक साधन है और एक लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिए कुछ निश्चित अधिकार, स्वाधीनता व अवसर होना अनिवार्य है और जब तक यह प्रक्रिया रहेगी, स्वतंत्रता के पनपने के अवसर बने रहेंगे। अपने इसी विशेष गुण के कारण लोकतांत्रिक व्यवस्था व्यक्तिगत स्वतंत्रता के लिए व्यापक क्षेत्र उपलब्ध कराती है (रॉबर्ट ढाल, 1991)।
अगर हम इस तर्क से सहमत होते हैं तो मैं समझता हूँ कि लोकतंत्र कक्षा में अपनाए जाने के लिए एक उत्तम व्यवस्था है। अगर हम ऐसा करते हैं तो हम कक्षा में ऐसे वातावरण को सुनिश्चित कर पाएँगे जिसमें बच्चों की क्षमताओं का अधिकतम विकास सम्भव है। कक्षा में संवाद इसकी स्थापना का सशक्त माध्यम हो सकता है परन्तु इसके लिए संवाद की प्रकृति को ध्यान में रखना ज़रूरी है। जैसा कि हमने उदाहरण 1 व 4 में देखा कि इस तरह का संवाद जो बच्चों को अपने विचार, अनुभव व मत व्यक्त करने की स्वतंत्रता नहीं देता वह कक्षा में स्वतंत्रता के लिए कोई स्थान उपलब्ध नहीं कराता है; जबकि उदाहरण 2 व 3 का संवाद इस दृष्टिकोण से ज़्यादा वांछनीय है।
जितेन्द्र कुमार: एकलव्य के होशंगाबाद केन्द्र में भाषा शिक्षण पर शोधकार्य कर रहे हैं।
कक्षा में उपयोग किए गए बातचीत के अंश अनुप्रिया गुप्ता (उदाहरण-1), उषा मल्हान (उदाहरण-2) व जितेन्द्र कुमार (उदाहरण- 3 व 4) द्वारा बम्बई, दिल्ली व होशंगाबाद की शालाओं में रिकॉर्ड किए गए।
अनुप्रिया गुप्ता: मुम्बई की एज्यूकेशन इनिशिएटिव संस्था के साथ काम कर रही हैं।
उषा मल्हान: दिल्ली के एक शासकीय प्राथमिक विद्यालय में पढ़ाती हैं।
चित्र: जितेन्द्र ठाकुर, एकलव्य, भोपाल में डिज़ाइन एवं प्रोडक्शन इकाई में कार्यरत।