रेखा चमोली  [Hindi PDF, 234 kB]

एक घने कस्बे में ऐसी जगह जहाँ मकान एवं तंग गलियाँ हों, हमारे लिए प्रकृति से निकटता एक छोटी-सी फूलों की क्यारी है। इसी क्यारी में हमने चाँदनी रात में मकड़ी को जाला बुनते देखा, चींटियों को अखरोट का चूरा बिल में ले जाते देखा। हमने अपनी उस छोटी-सी क्यारी में कई तरह के बीजों को अंकुरित होते व बढ़ते देखा पर इन सबमें सबसे रोमांचित करने वाला अनुभव रहा इल्ली को तितली बनते देखना।

मई 2012 में एक छुट्टी वाले दिन एक नन्ही इल्ली दरवाज़े पर रेंगते दिखी, शायद क्यारी से घूमती इस ओर आ निकली हो। जब बच्चों को बताया कि यह इल्ली है और बाद में तितली बनेगी तो वे बेहद खुश हुए। बच्चों ने अपनी किताब में दी गई जानकारी के आधार पर उसे पहचाना और इल्ली को पालने की इच्छा ज़ाहिर की। मैंने भी इससे पहले इल्ली किताबों में ही देखी थी और उसकी सही-सही पहचान मुझे भी न थी। फिर भी इल्ली पालने के विचार ने मुझे भी रोमांचित कर दिया। हमने प्लास्टिक के एक पारदर्शी खुले मुँह वाले डिब्बे में इल्ली को रख दिया। वह बाहर न निकले इसके लिए एक सूती रुमाल डिब्बे के मुँह पर बाँध दिया।

इल्ली आखिर खाती क्या होगी, यह हमारे लिए चिन्ता का विषय था। चूँकि वो हमारी फूलों की क्यारी से निकली थी तो अनुमान के आधार पर तीन-चार ताज़ी पत्तियाँ इल्ली को खाने को दीं। बाद में हमें इल्ली की पसन्द का पता चल गया और हमने उसे सिर्फ डहेलिया की पत्तियाँ ही देने का इन्तज़ाम किया। बच्चे सुबह-शाम उसे साफ धुली पत्तियाँ खिलाते, डिब्बा साफ करते और उसे बढ़ते देख खुश होते। उन्होंने अपने दोस्तों को भी बुला-बुला कर इल्ली दिखाना शुरू कर दिया।

हर शाम बच्चे आते, इल्ली को बढ़ता देखते और अपने जिज्ञासा भरे सवालों की झड़ी लगा देते। अचानक हमने महसूस किया कि इल्ली ने हिलना-डुलना, खाना बन्द कर दिया है। बच्चे उदास हो गए। बच्चों ने डिब्बे को धूप में रखा। फिर हमने देखा कि हरी इल्ली भूरे रंग के प्यूपा में बदल गई। तब जाकर राहत मिली। मैंने बच्चों को बताया कि कुछ दिनों में यह प्यूपा तितली में बदल जाएगा। इसके अन्दर तितली बन रही है। फिर से नए सवाल उठ खड़े हुए।

इस दौरान इंटरनेट से तितलियों के बारे में जानकारी हासिल करने की भी कोशिश की पर वो नाकाफी रही। हम इन्तज़ार करते रहे। प्यूपा को हाथ में लेकर देखते रहे। धीरे-धीरे हमने महसूस किया कि उसके गहरे पारदर्शी खोल के भीतर रंग बदल रहा है। कुछ छोटी बिन्दु जैसी गोल संरचनाएँ दिख रही हैं। ग्यारह दिन के इन्तज़ार के बाद एक सुबह जब हम उठे तो देखा एक नन्ही तितली जैसे हमारा इन्तज़ार ही कर रही थी। हम सब रोमांच से भर उठे। तितली इस विशाल संसार में घूमने को आतुर थी। हमने डिब्बे के मुँह पर ढका रुमाल हटा दिया। उस नन्ही तितली ने एक पल की भी देर न की। बाहर निकल वह एक-दो मिनट क्यारी में घूमी, फिर निकल पड़ी दुनिया घूमने।

उसके बाद से आलम यह है कि बच्चे उस जैसी किसी भी तितली को देखकर पूछते रहते हैं, “माँ यह हमारी तितली है क्या?” इस पूरी प्रक्रिया को देख बच्चे आश्चर्यचकित थे। तितली ने अपने आप उड़ना कैसे सीखा? बिना किसी की मदद के वो इतनी बड़ी दुनिया में अकेले घूमने कैसे चली गई? उनके ढेरों सवाल थे जिनमें से बहुत सारे सवालों के जवाब मेरे पास भी नहीं थे।

इस शानदार अनुभव के बाद मैं अक्सर ही क्यारी में इल्ली खोजती हूँ। अपने स्कूल के आसपास के पौधों में इल्ली खोजी पर नहीं मिली। अगले साल फिर अप्रैल की सुबह हमें एक इल्ली मिली। हमने उसे पाला। इस बार भी बच्चों ने इल्ली की खूब देखभाल की और नियत समय पर एक सुन्दर तितली को पाया। इस बार प्यूपा का तितली में तब्दील होना शाम को हुआ। शाम को 6 बजे के लगभग हमें यह पता चला। हमने तितली को क्यारी में छोड़ा तो वह एक चक्कर क्यारी में घूमी और फिर एक पौधे से दूसरे पर बैठती रही। हम थोड़ी देर इन्तज़ार करते रहे पर वह उड़ी नहीं। रात हो गई, हमने सोचा शायद रात होने की वजह से नहीं उड़ रही हो। सुबह हुई तो देखा वह वहीं बैठी है।

जब पहली बार हमने इल्ली पाली तो उस समय उठे बच्चों के सवाल:

* क्या सच में इस इल्ली से तितली बनेगी?
* यह इल्ली कहाँ से आई?
* क्या इसकी माँ इसे ढूँढ़ नहीं रही होगी?
* क्या हम इसका घर ढूँढ़कर इसे वापस रख सकते हैं? अगर इसकी माँ इसे ढूँढ़ते हुए यहाँ आ गई तो हम इसे वापस दे देंगे?
* कैटरपिलर इतनी सारी पत्तियाँ खा रहा है, इसे इतनी भूख क्यों लगती है?
* क्या इसके मुँह में भी दाँत होंगे?
* इल्ली के इतने सारे पैर क्यों होते हैं?
* अगर ये इल्ली क्यारी में ही होती तो कहाँ-कहाँ घूमती? क्या तब इसकी माँ इसे देखती? इसकी देखभाल करती?
* इसके अन्य भाई-बहन भी तो होंगे, यह क्या उनके साथ खेलती? उनसे बातें करती?
* इसको डिब्बे के अन्दर कैसा लग रहा होगा? क्या ये भी हमें देख रही है? हमारी बातें सुन

 

जब इल्ली ने हिलना-डुलना बन्द कर दिया तब उठे सवाल:

* यह इधर-उधर क्यों नहीं जा रही?
* इसे चोट तो नहीं लगी?
* तबियत खराब है क्या?
* अगर यह बीमार हुई तो हमें कैसे पता चलेगा?
* हम इसे किस डॉक्टर के पास ले जाएँगे? इसको दवाई कैसे देंगे?
* अगर यह क्यारी में होती तो क्या खुद कोई दवाई खा लेती?

 

जब इल्ली प्यूपा में बदली

बच्चों को बहुत आश्चर्य हुआ जबकि वे अपनी किताब में पढ़ चुके थे कि ऐसा होता है। अपने सामने ऐसा होता देख वे सुखद आश्चर्य से भर उठे। जब गौरांशी ने कहा कि मेरी समझ में नहीं आ रहा कि इतनी बड़ी इल्ली, इतने छोटे-से प्यूपा में कैसे बदल गई तो अक्षत बोला, “तुझे इतना भी नहीं पता, यह ऐसे बैठी है पाँव सिकोड़कर (सिर घुटनों में देकर) और उसने अपने चारों ओर कवर बनाकर खुद को छिपा लिया।”

 

जब प्यूपा तितली में बदला तो:

* ये प्यूपा तितली कैसे बना होगा?
* इतनी बड़ी तितली इतने छोटे प्यूपा में कहाँ से आई?
* तितली के पंख कैसे बने होंगे?
* तितली को उड़ना किसने सिखाया? उसके पास तो कोई नहीं था।
* इसके पंखों में कलर कौन करता है?
* क्या भगवान ने इसे उड़ना सिखाया?

हमें चिन्ता होने लगी। बाहर बारिश हो रही थी, वह वहीं बैठी रही। अगले दिन बच्चों की छुट्टी थी। मैं स्कूल चली गई थी। स्कूल से बच्चों को फोन लगाया तो पता चला कि तितली वहीं बैठी है। वह भीग न जाए इसलिए बच्चों ने उस पर फूलों से छाता बना दिया था। जब मैं स्कूल से वापस आई तो तितली को वहीं बैठा पाया। हम सब परेशान थे। क्या हो गया? कहीं तितली को चोट तो नहीं लगी या फिर वह बीमार तो नहीं है?

इन्हीं आशंकाओं के साथ मैंने उसके सामने हाथ बढ़ाया। वह उँगली पर आकर बैठ गई फिर उड़कर दूसरे पौधे पर चली गई। शुक्र है, वह उड़ तो रही थी। दोपहर लगभग तीन बजे मौसम खुला। धूप निकली। मेरी बेटी ने तितली को हाथ में लिया। अबकी बार तितली ने दो-तीन चक्कर क्यारी के लगाए, छज्जे पर बैठी और फिर उड़ गई। ऐसा क्यों हुआ? क्या वह मौसम खुलने का इन्तज़ार कर रही थी?

पहली इल्ली और दूसरी इल्ली के तितली बनने की प्रक्रिया में हमने कई सारी समानताएँ देखीं पर जो अन्तर देखे वो इस तरह से थे।
पहली इल्ली हमारे पास चार दिन तक इल्ली रही, फिर ग्यारह दिन तक प्यूपा में बदलकर रात को तितली में बदली। प्यूपा भी रात में ही बना था। यह भूरे रंग का था। जबकि दूसरी इल्ली 6 दिन इल्ली रही फिर 9 दिन हरे रंग के प्यूपा में रही। दोनोंे ही तितलियों के प्यूपा के आकार में अन्तर था। शायद ऐसा अलग-अलग प्रजातियों की तितलियों की वजह से हुआ, क्योंकि बाद वाली तितली पहली तितली से बड़ी थी और दिन में तितली बनी थी।

इल्ली अपना कोकून कहाँ और कैसे बनाती है? तितली बिना किसी की मदद के उड़ना कैसे सीख लेती है? इन सारे सवालों को लेकर अक्षत कई दिनों तक सोचता रहा फिर एक दिन मेरे पास आकर बोला, “जैसे आप हमारे लिए कोई मैसेज छोड़ देती हैं वैसे ही तितली भी अण्डे देते समय अपने बच्चों के लिए मैसेज छोड़ देती होगी। जब इल्ली अण्डे से निकलती है तो वह अपनी माँ का छोड़ा मैसेज पढ़ती है। उसे पता चल जाता है कि उसे क्या करना है।

जितने दिन हमारे घर में इल्ली रही वह डिब्बा बच्चों के साथ उनके बिस्तर पर ही रहता था। ये छोटी-सी इल्ली अपने साथ उमंग, उत्साह लेकर आई, कुछ सिखा भी गई। उसकी वजह से हम सब चहके-चहके रहते थे। उसका जाना भी हमारा एक उड़ान में शामिल होना था।


रेखा चमोली: उत्तराखण्ड में राजकीय प्राथमिक विद्यालय में शिक्षिका हैं। साहित्य में रुचि। कविताएँ भी लिखती हैं।
सभी फोटो: रेखा चमोली।