कमल किशोर मालवीय

भाषा की जादुई दुनिया में प्रवेश करते ही बच्चों का तरह-तरह के शब्दों से खेलना शुरु हो जाता है। दुनिया का कौन-सा ऐसा बच्चा होगा जिसने अपने बचपन में शब्दों को उलट-पलटकर मज़ा नहीं लिया होगा। बच्चों का कविता से सम्पर्क बचपन से ही शुरु हो जाता है। जैसे माँ की लोरियाँ, उनके खुद के खेलगीत, एक-दूसरे से सुने गीतों में खुद से कुछ जोड़ देना, यानी कि कविता की दुनिया किसी भी बच्चे के लिए नई नहीं है।
बच्चे की भाषिक क्षमता बढ़ाने के लिए कविताओं से उसकी दोस्ती बनी रहे, यह बहुत ज़रूरी है। कविता को बच्चों के सामने सदैव ऐसे प्रस्तुत करें कि वे उसका मज़ा ले पाएँ।  
भाषा पढ़ना सिखाने के लिए कविता एक अच्छा टी.एल.एम. भी है। मुस्कान संस्था द्वारा संचालित बंजारी बस्ती सेंटर पर बच्चों को भाषा पढ़ना सिखाने के लिए मैंने एक कविता का उपयोग किया। जिस तरह मैंने अपनी कक्षा में कविता का उपयोग किया और जो गतिविधियाँ मैंने सप्ताह-दर-सप्ताह कराईं उससे बच्चे इस कविता के शब्द, शब्दों की ध्वनि और उससे जुड़ी मात्राएँ पढ़ना सीख पाए।

पहला सप्ताह
पहले दिन कक्षा में कविता का गायन किया गया। इस प्रक्रिया में कक्षा में उपस्थित अधिकतर बच्चों ने भाग लिया पर कुछ बच्चे अभी भी छूटे हुए थे। मुँह तो उनके भी चल रहे थे पर आवाज़ नहीं निकल रही थी।
अगले दिन कविता को फिर से बच्चों के साथ गाया गया। पहले दिन की अपेक्षा दूसरे दिन बच्चों के शामिल होने की संख्या बढ़ गई। इस बार मैंने कविता को बोर्ड पर लिख भी दिया था। एक बच्चे राधेपाल ने पूछा, “मैं कविता पढ़कर सुनाऊँ?” मैंने पढ़कर सुनाने के लिए सहमति जताई।
छह साल की छोकरी,
भर कर लाई टोकरी।
टोकरी में आम है,
नहीं बताती नाम है।
दिखा दिखाकर टोकरी,
हमें बुलाती छोकरी।
हमको देती आम है,
नहीं बुलाती नाम है।
नाम नहीं है पूछना,
आम हमें है चूसना।
बच्चे ने कविता बोलना शुरु किया। उसने एक लाइन पर उंगली रखकर ही चार लाइनें बोल दीं। फिर अपनी उंगली तीसरी लाइन पर पहुँचाई और आगे की लाइन से अन्तिम लाइन बोलकर अपने स्थान पर पहुँच गया। कक्षा में अब ऐसा लग रहा था कि मानो इस कविता को बोलने के लिए बच्चों में होड़ लग गई हो।

20 बच्चों की कक्षा में 11 बच्चों ने बिलकुल ठीक क्रम में कविता सुनाई। 5 बच्चों ने चार-चार लाइनें बोलकर सुनाईं। बाकी 4 बच्चों ने भी 2-3 लाइनें बोलीं।
तीसरे दिन मैं कक्षा में अपने साथ कविता का पोस्टर बनाकर ले गया था। कार्ड शीट पर कविता लिखी हुई थी। इसमें कुछ चित्र भी थे जैसे टोकरी, छोकरी, आम, दो रुपए (सिक्के का चित्र) आदि।
चूँकि बच्चों की मर्ज़ी जानना बहुत ज़रूरी था इसलिए मैंने बच्चों से पूछा, “कल जो कविता हमने गाई थी, क्या आज भी एक बार फिर से वापस गा लें?” एक बच्चे राजा को छोड़कर सभी ने सहमति दी। मैंने राजा से पूछा, “तुम क्यों मना कर रहे हो?” राजा बोला, “कई कोनी, एक ईच कविता रोज़-रोज़।”
“ठीक है, आज इस कविता को कुछ अलग तरह से बोलेंगे।”
मैंने बच्चों के दो समूह बनाए। एक समूह पहली लाइन और दूसरा समूह दूसरी लाइन बोलेगा। फिर पहला समूह तीसरी लाइन और दूसरा समूह चौथी लाइन। जैसे,
पहला समूह - छह साल की छोकरी।
दूसरा समूह - भरकर लाई टोकरी।
पहला समूह - टोकरी में आम है।
दूसरा समूह - नहीं बताती दाम है।
इसी तरह दोनों समूहों ने कविता पूरी की। इसके बाद राजा बोला, “एक बार और ऐसे ही करेंगे।” समय को देखते हुए मैंने राजा से कहा, “कल फिर से इसी कविता को जैसा तुम बोल रहे हो वैसे ही गाएँगे।” इस गतिविधि को आज यहीं पर रोक दिया।

दूसरा सप्ताह
कविता पट्टी क्रम में जमाना
जब क्लास शुरु  हुई तो बच्चे पहले से तैयार थे कि आज फिर कल जैसे ही दो समूह बनाकर कविता बोलेंगे। मैंने कहा, “ठीक है।” अब बच्चों को कविता गाने में मज़ा आ रहा था। हमने ऐसा ही किया लेकिन इस बार दीवार पर एक खाली कार्ड शीट लगाकर उस पर पूरी कविता लिख दी और बच्चों की कविता खत्म होने के बाद शीट पर लिखी कविता की एक-एक लाइन काटकर कविता पट्टी बना ली। इसी तरह की कविता पट्टी के 6 सेट पहले से तैयार थे। पर एक सेट बच्चों के सामने काटकर बनाया ताकि बच्चों की नज़र में कविता बनी रहे।
अब तीन-तीन बच्चों के समूह बनाए और हर समूह को एक सेट दिया। “तीनों बच्चे आपस में चर्चा करके उसे क्रम से जमाएँ,” मैंने कहा।
राधेपाल, राहुल, मोहिनी पहली लाइन रखने के बाद कविता को आपस में दोहराते हैं। फिर दूसरी लाइन की पट्टी उठाकर उसके नीचे लगाते हैं। हर समूह के बच्चे अपनी-अपनी जुगत लगाते हुए कविता पट्टी को क्रम में जमा लेते हैं।
समीर और शिवा को छोड़कर सभी 18 बच्चों ने कविता को क्रम से जमाया। इन दो बच्चों ने भी कविता की 4-5 लाइनें सही क्रम में जमा ली थीं। उसके बाद की पंक्तियों का क्रम थोड़ा गड़बड़ा गया था। लेकिन बाद में उन्होंने भी कविता को दोहराते हुए सही क्रम में पंक्तियों को जमा लिया।

तीसरा सप्ताह
कविता पट्टी से शब्द कार्ड
अब चार-चार बच्चों के पाँच समूह बनाए और प्रत्येक समूह को कविता की दो लाइनों के शब्द कार्ड दिए जो कविता पट्टी से काटकर बनाए गए थे। एक लाइन से लगभग चार शब्द निकले। बच्चों ने कविता पोस्टर देखकर शब्द कार्ड जमाते हुए अपनी-अपनी लाइनें पूरी कर लीं।
दूसरे दिन दीवार से कविता पोस्टर को हटा दिया गया। अब फिर से शब्द कार्ड समूहों में बाँटे गए। इस बार बच्चों को शब्द जोड़कर लाइन तैयार करने में काफी समय लगा लेकिन बच्चों ने आपसी समझ बनाते हुए थोड़ी मुश्किलों के बाद सही क्रम में शब्दों को जमाकर लाइन तैयार कर ली।

चौथा सप्ताह
अब बारी थी शब्दों में आने वाली ध्वनियों की क्योंकि शब्दों को बच्चे पहचान चुके थे। उन पर काम शुरु किया। बोर्ड पर कविता की लाइनें चार्ट-1 में दिखाए गए तरीके से लिखीं।
इसी तरह जिस लाइन में नई आवाज़ या ध्वनि का शब्द आया उस लाइन को बोर्ड पर लिखकर उस ध्वनि को दिखाया।
मैंने बच्चों से चर्चा करते हुए कहा, “कविता लाइन में आए शब्द के प्रत्येक अक्षर से बने शब्द हमारी बोल-चाल में रोज़ आते हैं। सोचकर बताओ, वे कौन से शब्द हैं।” थोड़ी देर बच्चे चुप रहे। फिर मैंने एक शब्द बोला, “जैसे ‘छ’ से छाता।” बस, इसके बाद तो बच्चों ने शब्दों की झड़ी लगा दी। उनमें से मैंने यहाँ सिर्फ पाँच-पाँच शब्द ही लिए हैं।
* छ - छाछ, छतरी, छायलो, छानु (कण्डे), छाटनू
* ह - हत्ती, हाथ, हलदर (हल्दी), हाँसना, हरयू
* स - साटा, सन्तरू, सासू, समोसू
* ल - लाकड़ू, लुखानु, लात, लड्डू, लानू
* क - कीटान, कोप, काछप, काकड़ी, कांगल
* र - रानी, राजा, रोटो, रब्बड़, रावण
* भ - भालू, भाजी, भौरो, भार जइ री, भगत
* ट - टटेरो, टाल (खोपड़ी), टाटी, टाटिया (पीली ततैया), टमाटर
* म - मटको, माछली, माला, माकड़ी, माल
* आ - अम्बो, अट्टो, अल्लू, आग, ओटलो
* न - नालो, नाय, नाक, नासी, नज़र
* ब - बाली, बोर, बोरी, बोकड़ी, बाज़ार
* त - तरबूज़, तार, तारू, तालू, तलवार
* द - दाल, दादो, दर्द, दीवाल, दिल
* प - पतंग, पीपो, पाछे, परेवो, पपीतो

पाँचवाँ सप्ताह
इस गतिविधि के बाद ध्वनि पक्की हुई या नहीं, यह जाँचने के लिए एक और गतिविधि शुरु की। शब्द कार्डों के ढेर में से बोले अनुसार बच्चों को अलग-अलग आवाज़ वाले शब्द उठाना थे। जैसे ‘ट’ की आवाज़ वाला शब्द उठाओ या ‘छ’ की आवाज़ वाला शब्द उठाओ।
वीरन ढेर से ‘टोकरी’ शब्द उठाते हुए बोला, “टोकरी...।” ऐसा ही अन्य शब्दों को लेकर किया।
इसी तरह से अन्य बच्चों से बारी-बारी से करवाया गया। जहाँ बच्चे ध्वनि को लेकर कमज़ोर थे अब पक्के हो रहे थे। जिन बच्चों को आने लगा वे अन्य बच्चों की मदद कर रहे थे।
कुछ बच्चे मात्रा की ध्वनि को नहीं पकड़ पा रहे थे इसलिए अब अक्षर ध्वनि के साथ मात्रा को जोड़कर पकड़ पाएँ, इस पर ध्यान देने की ज़रूरत लगी। इसलिए मात्रा को अलग कर, मात्रा की ध्वनि और फिर अक्षर की ध्वनि को जोड़ते हुए अभ्यास कराया।
मैंने बच्चों से कहा, “आप भी इन्हीं आवाज़ों वाले अन्य शब्द बोलो।” थोड़ी देर के लिए तो कमरे में सन्नाटा छा गया। फिर राधेपाल बोला, “माल।” मैंने कहा, “हाँ, ठीक है।” बस एक के बाद एक बारिश की बूंदों की तरह आवाज़ें आना शुरु हो गईं। कविता में आने वाले शब्दों की मात्राओं को दिखाते हुए बच्चों से नए शब्द निकलवाए।

राधिका बोली - साला।
शिवा - काला।
अन्य बच्चों ने भी इसी तरह के शब्द बोले जैसे-
आ की मात्रा (सा) -- साल,  
ओ की मात्रा (टो) -- टोकरी
ए की मात्रा (में) -- में
ई की मात्रा (ती) -- देती
इ की मात्रा (दि) -- दिखा
उ की मात्रा (बु) -- बुलाती
ऊ की मात्रा (पू) -- पूछना
ऐ की मात्रा -- है

छठवाँ सप्ताह
मात्रा वाले शब्द छाँटना
अब चार-चार बच्चों का समूह बनाकर, हर समूह को शब्द कार्डों का एक ढेर दिया। बच्चों को मात्रा वाले शब्द छाँटना थे।
इस पूरी कविता में कुल 8 मात्राएँ हैं।
बच्चों ने इन सभी मात्राओं वाले शब्दों को छाँटकर निकाला और मात्राओं के शब्द गिनती कर बताने लगे। जैसे ‘आ’ की मात्रा वाले 10 शब्द हैं। ‘ई’ की मात्रा वाले 13 शब्द। ‘ए’ की मात्रा वाले 4 शब्द।
‘ओ’ की मात्रा वाले शब्द में बच्चे कुछ उलझ रहे थे कि छोकरी और टोकरी को तो ‘ई’ की मात्रा में शामिल कर लिया। अब इसे ‘ओ’ की मात्रा में शामिल करें या नहीं।
मैंने कहा, “जिस शब्द में एक से ज़्यादा मात्रा हैं वो उन सब मात्रा वाले समूहों में शामिल होगा।” यह कहने पर बच्चों ने ‘ओ’ की मात्रा वाले शब्द उठाना शुरु किए।
‘ओ’ की मात्रा वाले 6 शब्द मिले।
इसी क्रम में आगे ‘ऐ’, ‘उ’ और ‘ऊ’ की मात्रा वाले शब्दों को बच्चों ने उठाया।
‘ऐ’ की मात्रा वाले शब्द उठाते समय एक समूह में बात हो रही थी कि ‘ऐ’ की मात्रा वाला शब्द तो ‘एक’ आवाज़ वाला है। शामिल करें या नहीं। समूह में सहमति होने पर ‘है’ को ‘ऐ’ की मात्रा वाले शब्दों में शामिल कर लिया गया।

अब वापस सभी शब्दों को ढेर में मिला दिया गया और एक बच्चे समीर को बोला कि उस ढेर में से कोई एक शब्द उठाओ और अपने साथियों को पढ़कर सुनाओ। समीर ने पहला शब्द उठाया ‘छोकरी’। इसे बोर्ड पर ऐसे लिखा कि इसके आगे-पीछे के शब्द लिखे जा सकें। इसी क्रम में आने वाले बच्चों ने शब्द उठाए, पढ़कर सुनाए और बोर्ड पर लिखे।
इस गतिविधि को इसी क्रम में आगे बढ़ाते गए और कविता को पूरा किया गया।    
इस कविता में 19 ध्वनियाँ हैं। इन ध्वनियों में ज़्यादातर ध्वनियाँ ऐसी हैं कि जब बच्चा भाषा बोलना सीख रहा होता है तो इन्हीं ध्वनियों से शुरुआत करता है। जैसे म, ब, द, न, प, छ, ह, स, ल, क, र, भ, ई, ट, आ, त, ख, च, स।
इस तरह बच्चों को इस कविता के माध्यम से अक्षरों और मात्राओं के उच्चारणों और ध्वनियों को सिखाने की मेरी कोशिश काफी हद तक कामयाब होती दिखी।


कमल किशोर मालवीय: मुस्कान संस्था, भोपाल के साथ कार्य करते हैं।
सभी चित्र: अक्षता चौरे: सर जे.जे. इंस्टीट्यूट ऑफ एप्लाइड आर्ट्स, मुम्बई से स्नातक। वर्तमान में एम.एस. यूनिवर्सिटी, बड़ौदा से विज़्युअल आर्ट्स में स्नातकोत्तर कर रही हैं। चित्रकला एवं टायपोग्राफी में रुचि।