रिनचिन
कहानी
स्कूल के पीछे से एक पगडण्डी थी जो सीधे उनकी बाड़ी को जाती थी। और अधबीच से गुड़िया अपने घर का दरवाज़ा देख सकती थी। महुआ के पेड़ तक पहुँचने पर उसने देखा कि अन्दर एक से ज़्यादा लोग हैं। उसे पता था कि माँ तो चूल्हे के पास बैठी होगी। उसे किसी अजनबी का एक हिस्सा दिख रहा था -- उसकी नीली साड़ी और ब्लाउज़। किन्तु उसने साड़ी को जिस ढंग से पहना था, वह उसकी माँ और दूसरे लोगों से थोड़ा अलग था। तो वह समझ गई कि यह बाहर से आई हुई वही चुड़ैल है जो माँ से परेशानियाँ पैदा करवा रही है। नन्ही गुड़िया सोचने लगी, “यह दिखती कैसी है?” और इससे पहले कि वह कल्पना कर पाती, वह सामने आ गई... गुड़िया की आँखें फटी रह गईं। चुड़ैल ने उसे आँख मारी और फिर मुँह बनाया। गुड़िया इतनी चकरा गई कि वह पगडण्डी पर दौड़ने लगी। चुड़ैल हँस रही थी और टूटी-फूटी सादड़ी में उसे पुकार रही थी, “...ओय नोनी ... भाग क्यों रही हो...?”
“अरे गुड़िया... पागल हो गई है क्या, वापिस आ जा!” यह उसकी माँ थी।
गुड़िया जानती थी कि वह मज़े के लिए भाग रही है। चुड़ैल ने आँख मारकर और मुँह बनाकर जो खेल शुरू किया था, उसके जवाब में। और वह वास्तव में भागी नहीं, सिर्फ घर का चक्कर लगाकर सामने के दरवाज़े से अन्दर आ गई, ताकि वह मेहमान से मिले बगैर सीधी माँ के पास पहुँच जाए।
गुड़िया जाकर माँ के पास बैठ गई और अपना चेहरा माँ के पीछे छिपा लिया और बुदबुदाई, “कौन आया है?” “तो क्या तुम भाग जाओगी?” माँ ने उसे दूर धकाते हुए कहा। किन्तु गुड़िया ने अपना मुँह माँ के पल्लू में छिपा लिया। “अरे, कभी तो शर्माती नहीं है, आज ऐसे क्यों कर रही हो?” माँ ने उसे परे धकेलकर सीधा बैठा दिया।
मेहमान ने पूछा, “तो तुम गुड़िया हो?”
“गुड़िया भी और चन्दा भी,” गुड़िया ने माँ के पीछे से ही जवाब दिया।
“दोनों नाम तुम्हारे हैं?”
“हाँ,” उसने हामी में सिर हिलाया।
“तो मैं तुम्हें गुड़िया बुलाऊँ या चन्दा?”
“गुड़िया, तुम घर पर हो और गुड़िया घर का नाम है। स्कूल में आओ, तो चन्दा कहना।”
मेहमान ने हँसते हुए पूछा, “तो अब बताओ गुड़िया कि तुम भागी क्यों थी? मैं इतनी डरावनी हूँ?”
गुड़िया ने हामी में सिर हिलाया।
“मैं क्या चुड़ैल हूँ?”
गुड़िया ने फिर से सिर हिलाया। उसकी माँ झेंप गई किन्तु मेहमान हँसने लगी। “दीदी तुम इसकी बातों का बुरा मत मानना, कुछ भी बोलती रहती है।”
“मैं बोली कहाँ, मैंने तो सिर्फ सिर हिलाया।” यह सुनकर तो उसकी माँ भी हँस पड़ी।
गुड़िया जानती थी कि पहली बार उसकी माँ नहीं हँसी थी, क्योंकि वह सच बात थी। तीन दिन पहले ही नेतीराम आया था और गुड़िया ने उसे माँ से कहते सुना था, “क्यों जानकी, तुम हम सबको मुश्किल में क्यों डाल रही हो? तुम अपने ही समाज के खिलाफ क्यों जा रही हो?”
“मुझे तो लग रहा था कि मेरा केस कम्पनी के खिलाफ है, वह समाज के खिलाफ कैसे हुआ?” माँ ने तल्खी से पूछा था।
“तुम यह साबित करना चाहती हो कि कम्पनी ने तुम्हारी ज़मीन किसी और के ज़रिए गैर-कानूनी ढंग से खरीदी है। वे लोग हमारे अपने लोग हैं। इसमें उनकी कोई गलती नहीं थी, उन्होंने तो वही किया जो कम्पनी के लोगों ने कहा।”
“तो उनसे कहो कि वे मेरे साथ मिलकर कम्पनी के खिलाफ लड़ें, मुझे अपनी ज़मीन बचाने से क्यों रोक रहे हो?”
“तुम यह सब उस चुड़ैल वकील के कहने पर कर रही हो। उसके बहकावे में मत आओ, वह तो अपनी जेब भरने के लिए तुम्हारा इस्तेमाल कर रही है। यह सब कम्पनी को ब्लैकमेल करने की साज़िश है।”
“मैं जानती हूँ, कौन अपनी जेबें भरना चाहता है।”
“और अब वह तुम्हें भड़का रही है, इसलिए तुम खुद को बहुत ताकतवर समझ रही हो मगर बाद में वह औरत चली जाएगी और तुम्हें अकेले ही कम्पनी का सामना करना पड़ेगा। वे तुम्हें बरबाद कर देंगे। तब वह औरत यहाँ नहीं होगी तुम्हारी सहायता करने को।”
“मुझे मुकदमा दायर करने को उसने नहीं कहा था। मैंने उससे मदद माँगी थी। तुममें से किसी ने मदद नहीं की थी, इसलिए मैं उसके पास गई थी।” थोड़ा रुककर माँ ने ज़्यादा ज़ोर-से कहा, “नेतीराम, शर्म की बात है कि तुम हमारे साथ खड़ा रहने की बजाय यहाँ मुझे धमकाने आए हो। क्या तुम यह ज़मीन बचाना नहीं चाहते? और तुम हमारे मुखिया हो?”
“मुझे पता है तुम्हें अपनी ज़मीन से कितना लगाव है। यह तो बस ज़्यादा पैसा पाने का एक बहाना है। परन्तु इससे कुछ हासिल नहीं होगा। तुम्हें कुछ नहीं मिलेगा। अभी जितना मिल रहा है, वह भी नहीं मिलेगा। और वह बाहरी औरत, वह वकील, या तो वह मारी जाएगी या जेल में जाएगी...और तुम भी ज़रा सावधान रहना।”
उसके जाने के बाद माँ का चेहरा सख्त हो गया था और वे चुप रहीं।
गुड़िया माँ के पास ही रही। बाद में जब वह पानी लाने हैंडपम्प पर गई तो उसने नेतीराम और उसके आदमियों को वहीं आते देखा। गुड़िया उन्हें अनदेखा करने की कोशिश में ज़ोर-ज़ोर-से पम्प चलाने लगी जबकि बाल्टी भर चुकी थी। पास से गुज़रते हुए, नेतीराम ने उसे घूरा और पानी माँगा। वैसे तो वह हँसकर बोल रहा था किन्तु गुड़िया को उसके रंग-ढंग ठीक नहीं लगे। उसके बोलने में कुछ तो बुरा था। गुड़िया ने सिर हिलाकर मना कर दिया। वह रुका और उसकी तरफ देखा। वह भौंचक्का था। फिर उसने ठहाका लगाते हुए कहा, “माँ तो बन ही रही है, तू भी चुड़ैलन बनेगी क्या?” गुड़िया ने सुना कि जाते-जाते वह अपने आदमियों से कह रहा था, “मार-मार कर भगाएँगे चुड़ैलन को।”
रात में गुड़िया डरकर माँ से सटकर सोई, मगर माँ को यह नहीं बताया कि नेतीराम ने उससे क्या कहा था। नेतीराम की बात से वह सहम गई थी मगर साथ ही सोच रही थी -- यदि चुड़ैल कम्पनी से लड़ने में माँ की मदद कर रही है तो वह इतनी बुरी भी नहीं हो सकती। आखिरकार, वह लोगों को उनकी ज़मीन बचाने में मदद कर रही है और गुड़िया को भी कम्पनी अच्छी नहीं लगती थी। उन्होंने सड़क का आर-पार रास्ता बन्द कर दिया था और अब उनके गाँव से पास के गाँव पहुँचने का रास्ता बन्द हो गया था। ये दोनों गाँव इतने पास-पास थे कि एक गाँव जैसे लगते थे। और तो और, उनका तालाब भी एक ही था, जहाँ वे नहाते-धोते थे। जब कम्पनी ने बागड़ लगाना शुरु किया था, तो सबको बहुत आश्चर्य हुआ था। गुड़िया को यकीन ही नहीं हुआ था। क्या कोई कम्पनी पूरा गाँव खरीद सकती है? लोगों के घर, उनके पेड़ और देवता, सब कुछ? दूसरी तरफ के बच्चे अब यहाँ नहीं आ सकते थे क्योंकि रास्ता बहुत लम्बा हो गया था। और वैसे भी जल्दी ही पूरे गाँव को वहाँ से हटना था। जाने से पहले सारे मकानों को तोड़ना था। उसके दोस्त चले गए थे और हालाँकि उनके पालक कहते थे कि वे अपनी मर्ज़ी से ऐसा कर रहे हैं, किन्तु वे बहुत खुश नज़र नहीं आ रहे थे।
आधी नींद में वह उस औरत के बारे में सोच रही थी जिसे नेतीराम ने चुड़ैल कहा था और जो उसकी माँ को भी चुड़ैल बना रही थी, और शायद खुद उसे भी। माँ तो उसके साथ बहुत आश्वस्त लगती थी, और सहज। जब नेतीराम और उसके आदमी आए थे, तब ऐसा नहीं था।
माँ और चुड़ैल बातें करते रहे। कुछ ही समय बाद गाँव की कुछ और औरतें आ गईं और वे बातें करने लगे। हमारे पास ज़मीन के अलावा है ही क्या... ज़मीन गई तो हमारे पास क्या रह जाएगा... तुम्हारी ज़मीन तुम्हारी है... तुम्हें अधिकार है कि कोई तुम्हारी ज़मीन छीने तो उसे रोको... और यह तो गैर-कानूनी है... हम फर्ज़ी रजिस्ट्री की बात को साबित कैसे करेंगे... थोड़ी देर के लिए गुड़िया का दिमाग अपनी ही दुनिया में खो गया। मगर उसे इन सब औरतों के बीच बैठना अच्छा लगा, सुरक्षित लगा।
जल्दी ही वह बाहर चली गई, उस पेड़ के नीचे जहाँ उसके दोस्त गाँव-गाँव खेल रहे थे। गुड़िया और दो दोस्त खेत में गए और एक खाना पकाने को रुक गया। खेलते-खेलते गुड़िया ने अपने दोस्तों से चुड़ैल के बारे में पूछा। “तुम्हें पता कैसे चलेगा कि कोई इन्सान चुड़ैल है या नहीं?” किसी को ठीक-ठीक पता नहीं था।
“पहले तो उनके पैर उल्टे होते थे और बाल गन्दे, रस्सी जैसे बाल होते थे, किन्तु आजकल वे चतुर हो गई हैं। वे हमारे जैसी ही दिखती हैं, तो कोई बता नहीं सकता।
“परन्तु उनकी गन्ध अलग होती है।”
“और उनकी पेशाब लाल होती है।”
“क्या?”
“हाँ, जो खून वो पीती है, उससे।”
फिर उन्होंने भूमिकाएँ बदल लीं। गुड़िया खाना पकाने लगी। दूसरे दोस्त अब खेत पर गए काम करने को। गुड़िया हमेशा शुरु से शुरु करना पसन्द करती है। तो उसने पुराना चूल्हा तोड़ डाला और अपने लिए नया चूल्हा बनाया। तीन ईंटें और थोड़ी-सी मिट्टी। अभी चूल्हा बना ही था कि चुड़ैल आ गई। पेड़ के पीछे पेशाब करने को जाते-जाते उसने पूछ लिया, “तुम लोग क्या खेल रहे हो?” यह औरत है तो अच्छी मगर एकदम चुड़ैल की तरह पीछे से आकर डराती है। चुड़ैलों के बारे में कई किस्से थे, जैसे वे तुम्हारे ऊपर साँस छोड़ दें तो तुम भी चुड़ैल बन जाओगे। गुड़िया ने सिर उठाया और बोली, “मैं खाना बना रही हूँ।”
“तो तुम मेरे लिए भी खाना बनाओगी?”
“तुम क्या खाओगी?”
“जो भी तुम बनाओगी, भात और दाल, चटनी।”
“तुम बच्चे नहीं खाओगी?”
“नहीं, नहीं, मैं तो सिर्फ कम्पनी के दलालों को खाती हूँ।”
जब वह चली गई तो गुड़िया पेड़ के पीछे गई, उस जगह को देखने जहाँ उसने पेशाब की थी। वहाँ तो साधारण काली मिट्टी ही थी जैसी तब होती है जब वह या उसकी माँ या कोई भी पेशाब करता है। वैसे उसे पता भी नहीं था चुड़ैल की पेशाब दिखती कैसी है। और यदि मुन्ना की बात मान ली जाए कि चुड़ैल खून की पेशाब करती है, तो देखने पर उसकी बात ठीक नहीं लग रही थी। गुड़िया और उसके दोस्त फिर गाँव-गाँव खेलने में मगन हो गए। कितना काम था - मकान बनाने थे, फर्श को लीपना था, खेतों को जोतना था और खाना पकाना था। उनका खेल देर तक चलता रहा और फिर उसके दोस्त जाने लगे क्योंकि जल्दी ही नगाड़े बजने लगेंगे। किसी दूसरे गाँव की एक टोली नाच का कार्यक्रम देने आई थी। वे लोग आज यहाँ कार्यक्रम करने वाले थे और गुड़िया को वहाँ भी जाना था। परन्तु मेहमान अभी तक बाहर नहीं निकली थी। गुड़िया ने अपनी खाने की थाली को देखा। बाकी बच्चों ने तो अपनी झूठ-मूठ की जूठन को फेंक भी दिया था किन्तु गुड़िया ने चुड़ैल से वादा जो किया था। उसने अपनी थाली बचाकर रखी थी।
राह देखते-देखते थककर गुड़िया अन्दर गई। वहाँ क्या देखती है कि मेहमान तो बैठकर खाने भी लगी थी। गुड़िया ने पूछा, “मैंने जो खाना बनाया था, उसका क्या होगा? यदि यहीं खाना था तो तुमने मुझसे खाना बनाने को क्यों कहा था?” “ओह,” चुड़ैल चौंक गई। गुड़िया ने सोचा कि वह भूल गई होगी। फिर चुड़ैल ने कहा, “गलती हो गई, मैं यह खा लूँ, फिर आकर तुम्हारा खाना खाऊँगी।”
गुड़िया ने मुँह बनाया और पानी की टंकी के पीछे चली गई। बड़े लोग ऐसे ही होते हैं, जो वे कहते हैं वैसा कभी नहीं करते। पहले कहो और फिर भूल जाओ!
उसने अपनी थाली को देखा -- उसने आलू के नाम पर छोटे-छोटे पत्थर रखे थे और बारीक बजरी से चावल बनाए थे और छोटे-छोटे सफेद फूल भाजी थे। उसने तो हरी पत्तियों को गोल-गोल काटकर रोटियाँ भी बनाई थीं। रोटियाँ विशेष मौकों पर ही बनती हैं मगर चुड़ैल के लिए खाना भी तो विशेष होना चाहिए।
उसने अपने झूठ-मूठ के रसोई घर में थोड़ी देर इन्तज़ार किया तभी उसे पण्डाल से नगाड़ों की आवाज़ें सुनाई देने लगीं। वह दिनभर बैठकर चुड़ैल का इन्तज़ार थोड़े ही कर सकती है। तो वह फिर से उनके पास गई। “मैं नाच देखने जा रही हूँ, मगर मैंने तुम्हारा खाना टंकी के पास रख दिया है।” अब घर में ज़्यादा लोग बैठे थे, कुछ आदमी भी आ गए थे। एक बार फिर वही बातें चल रही थीं। गुड़िया समझ चुकी थी कि मेहमान को उसके खाने की कोई परवाह नहीं है। जब उसे नहीं चाहिए था तो उसने कहा क्यों, जैसे सारे बड़े लोग बहाना करते हैं कि उन्हें हमारे खेलों में बहुत रुचि है मगर वास्तव में वे रत्ती भर भी परवाह नहीं करते। किन्तु गुड़िया को अपने खेल पर यकीन था और उसने जो वादा किया था उसे पूरा किया था। चुड़ैल जो मर्ज़ी आए करे, उसकी बला से।
गुड़िया कुछ घण्टों बाद लौटकर आई, तो देखा कि उसकी माँ भी जा चुकी है। तो वह पड़ोसी के घर गई। “तुम्हारी माँ आमाकोना गई है, वकील बाई के साथ बैठक करने, वह कल सुबह वापिस आएगी।” गुड़िया ने सिर हिला दिया। उसे पता था कि इसका मतलब है कि उसे आज रात पड़ोसी के घर सोना है।
“मैं जाकर अपनी कॉपी ले आती हूँ,” यह कहते हुए वह दरवाज़े से निकल गई। “अपनी बाड़ी से थोड़े टमाटर भी लेती आना,” सूरजा मौसी ने पीछे से आवाज़ दी।
वह अपने बाड़े में पहुँची तो उसे वहाँ पेड़ के नीचे कोई लाल चीज़ दिखाई दी। टूटी हुई छोटी प्लास्टिक की प्लेट वहाँ धो-धाकर रखी हुई थी। वही प्लेट थी जिसमें उसने चुड़ैल के लिए खाना रखा था। खाना तो खा लिया गया था। पत्थर, फूल और यहाँ तक कि रोटियाँ भी। अब प्लेट पर एक गुड़हल का फूल रखा था। और साथ में एक पर्ची थी जिस पर मोटे-मोटे अक्षरों में लिखा था, “खाना बहुत अच्छा था, गुड़िया को चुड़ैल का प्यार।”
सूरजा मौसी के घर जाते हुए गुड़िया ने गुड़हल का फूल खा लिया और सोचती रही कि चुड़ैल पता नहीं कब वापिस आएगी। और यदि नेतीराम की धमकी के हिसाब से वह भी चुड़ैल बन गई, तो बहुत बुरी बात नहीं होगी।
रिनचिन: बच्चों व बड़ों के लिए कहानियाँ लिखती हैं। मध्य प्रदेश एवं छत्तीसगढ़ में जन संगठनों के साथ जुड़ी हैं।
अँग्रेज़ी से अनुवाद: सुशील जोशी: एकलव्य द्वारा संचालित स्रोत फीचर सेवा से जुड़े हैं। विज्ञान शिक्षण व लेखन में गहरी रुचि।
सभी चित्र: शिवांगी सिंह: स्वतंत्र रूप से चित्रकारी करती हैं। कॉलेज ऑफ आर्ट, दिल्ली से चित्रकला, फाइन आर्ट्स में स्नातक। स्कूल ऑफ कल्चर एंड क्रिएटिव एक्सप्रेशन्स, अम्बेडकर यूनिवर्सिटी, दिल्ली से विज़्युअल आर्ट्स में स्नातकोत्तर की पढ़ाई की है। दिल्ली में निवास।