नवनीत कुमार गुप्ता
25 जुलाई को प्रोफेसर यश पाल का निधन हो गया। वे कुछ दिनों से बीमार थे। कुछ वैज्ञानिक अपने वैज्ञानिक कार्यों के अलावा समाज को अपने व्यक्तित्व से अधिक मोह लेते हैं। प्रोफेसर यश पाल ऐसी ही शख्सियत थे। यश पाल अपने अनोखे अंदाज़ में जीवन के अंतिम समय तक जनमानस को विज्ञान समझाते रहे। वैज्ञानिक उपलब्धियों से अधिक वे समाज में विज्ञान संचारक के रूप में विख्यात थे। देश-विदेश की अधिकतर विज्ञान संचार से जुड़ी संस्थाओं को प्रोफेसर यश पाल के कार्यों ने प्रेरित किया है।
प्रोफेसर यश पाल हर आयु वर्ग के लोगों के चहेते थे। यही कारण रहा कि उनके निधन पर पूरा देश में शोक छा गया। वैज्ञानिक बिरादरी ही नहीं प्रधानमंत्री सहित अनेक विख्यात हस्तियों ने उनके निधन पर शोक व्यक्त किया।
यश पाल का जन्म 26 नवंबर, 1926 को झांग (अब पाकिस्तान के पंजाब प्रांत का एक शहर) में हुआ था। उनका बचपन बलूचिस्तान के क्वेटा में बीता। 1935 में आए भूकंप के कारण उनका पुश्तैनी घर तहस-नहस हो गया था। इसी दौरान उनके पिता का तबादला जबलपुर (म.प्र.) में हुआ। परिवार के साथ वे जबलपुर आ गए थे। 1947 में पिता के साथ वे भी दिल्ली आ गए। दिल्ली में बंटवारे के दर्द को झेलते लोगों को उन्होंने बहुत करीब से देखा था।
यश पाल ने बचपन में उर्दू भाषा में अध्ययन किया था। जबलपुर आने के बाद उन्होंने हिंदी व अंग्रेज़ी भाषा में पढ़ाई की। इस दौरान उन्होंने कई धार्मिक पुस्तकों का भी अध्ययन किया। उच्च शिक्षा के लिए उन्होंने विज्ञान को चुना। यश पाल ने पंजाब विश्वविद्यालय से 1949 में भौतिकी में मास्टर्स किया और 1958 में उन्होंने मैसेचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी से भौतिकी में ही पीएच.डी. की उपाधि हासिल की। अमेरिका में रहकर उन्होंने कई प्रसिद्ध वैज्ञानिकों के साथ मौलिक विज्ञान में शोध कार्य किया।
विज्ञान में योगदान
प्रोफेसर यश पाल ने अपना कैरियर टाटा इंस्टिट्यूटऑफ फंडामेंटल रिसर्च से आरंभ किया था। कॉस्मिक रे, उच्च ऊर्जा भौतिकी व खगोल भौतिकी पर शोध कार्य के चलते उन्हें पूरी दुनिया में प्रसिद्धी मिली। 1973 में उन्हें अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र यानी स्पेस एप्लीकेशन सेंटर का पहला निदेशक नियुक्त किया गया था। इस केंद्र ने संचार प्रौद्योगिकी में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने भारत में सेटेलाइट इंस्ट्रशनल टेलीविजन एक्सपेरिमेंट की नींव रखी। शिक्षा के लिए उपग्रह आधारित प्रणाली के विकास में उनके इस प्रयोग ने अहम भूमिका निभाई। वैज्ञानिकों और शिक्षाविदों के बीच इस प्रयोग के सामाजिक महत्व की काफी तारीफ हुई। वे विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव भी रहे। इस पद पर रहते हुए उन्होंने देश में विज्ञान एवं प्रौद्योगिक नीति-निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
शिक्षा में योगदान
विज्ञान की शिक्षा को लोकप्रिय बनाने में प्रोफेसर यश पाल का अमूल्य योगदान रहा है। छात्रों में विज्ञान के प्रति जो डर था उसे कम करने के लिए उन्होंने विज्ञान को सरल और रोचक तरीके से प्रस्तुत किया और शिक्षा को आकर्षक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण को बढ़ावा देने वाली बनाने पर ज़ोर दिया।
प्रोफेसर यश पाल 1986 से 1991 तक विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष भी रहे थे। 1993 में बच्चों पर बस्ते के बोझ के मुद्दे पर भारत सरकार ने यशपाल की अध्यक्षता में एक समिति बनाई। समिति ने लर्निंग विथाउट बर्डन नाम से रिपोर्ट प्रस्तुत की थी। 1983-84 में वे योजना आयोग में मुख्य सलाहकार भी रहे। प्रोफेसर यश पाल 2007 से 2012 तक जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के कुलपति भी रहे। वे एनसीईआरटी की नेशनल करीकुलम फ्रेमवर्क समिति के अध्यक्ष भी रहे।
विज्ञान संचारक
जनमानस में यश पाल अपने विशेष अंदाज़ के कारण प्रसिद्ध थे। वे विज्ञान की बातों को आसानी से और रोचक तरीके से समझाया करते थे। लोग उन्हें दूरदर्शन पर प्रसारित हुए टर्निंग पाइंट कार्यक्रम से अधिक जानने लगे। यह कहना गलत न होगा कि उन्होंने मीडिया को विज्ञान लोकप्रियकरण की नई विधा से परिचित कराया। उन्होंने विज्ञान प्रसार, निस्केयर सहित अनेक विज्ञान, नीति व विज्ञान संचार संस्थाओं का मार्गदर्शन किया। विज्ञान संचारक के रूप में उनका कार्य एक वैज्ञानिक होने के कारण काफी उल्लेखनीय रहा।
भारत सरकार द्वारा उन्हें 1976 में पद्मभूषण और 2013 में पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया था। 2009 में विज्ञान को बढ़ावा देने और उसे लोकप्रिय बनाने में अहम भूमिका निभाने के लिए उन्हें यूनेस्को द्वारा कलिंग सम्मान से नवाज़ा गया था। उनके अस्सी वर्ष पूर्ण होने पर विज्ञान प्रसार ने उनके जीवन एवं कार्यों पर एक पुस्तक का प्रकाशन एवं एक फिल्म का निर्माण किया था। (स्रोत फीचर्स)