अर्कान्सास आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने एक नई तकनीक विकसित की है जिसकी मदद से खून में से उन कैंसर कोशिकाओं को नष्ट किया जा सकेगा जो किसी कैंसर गठान से टूटकर अलग हुई हैं। ऐसी कोशिकाएं शरीर में कैंसर के फैलने की प्रमुख वजह होती हैं। यह तकनीक एक विशेष किस्म के लेज़र पर आधारित है।
फिलहाल कैंसर के फैलने का पता लगाने के लिए डॉक्टर रक्त के नमूनों का परीक्षण करके उनमें कैंसर कोशिकाओं की उपस्थिति का पता लगाते हैं। किंतु यह परीक्षण तभी सही परिणाम देता है जब रक्त में ऐसी कोशिकाओं की संख्या काफी ज़्यादा हो, जिसका मतलब है कि उस समय तक कैंसर काफी फैल चुका होता है।
शोध के प्रमुख व्लादिमिर ज़ारोव द्वारा विकसित तकनीक को सायटोफोन नाम दिया गया है। इसमें त्वचा पर लेज़र प्रकाश के पुंज दागे जाते हैं ताकि रक्त की कोशिकाएं गर्म हो जाएं। लेज़र की खूबी यह होती है कि वह सिर्फ मेलेनोमा कोशिकाओं को गर्म करता है, स्वस्थ कोशिकाओं को नहीं। मेलेनोमा एक किस्म का कैंसर होता है। इसकी कोशिकाओं में मेलेनीन नामक रंजक पाया जाता है जो लेज़र किरणों को अवशोषित कर कोशिका को गर्म कर देता है। जब ये पर्याप्त गर्म हो जाती हैं, तो इस ऊष्मन प्रभाव से उत्पन्न सूक्ष्म ध्वनि तरंगों को सायटोफोन द्वारा पकड़ा जाता है।
साइंस ट्रासंसलेशन मेडिसिन नामक शोध पत्रिका में प्रकाशित शोध पत्र में बताया गया है कि तकनीक का परीक्षण सबसे पहले हल्के रंग की त्वचा वाले मरीज़ों पर किया गया। इनमें से 28 को मेलेनोमा था जबकि 19 स्वस्थ थे। उन्होंने इनके हाथों पर लेज़र चमकाया और पाया कि 10 सेकंड से 60 मिनट के अंदर वे 28 में से 27 के रक्त प्रवाह में भटकती कैंसर कोशिकाओं को पहचानने में सफल रहे। सबसे अच्छी बात यह रही कि इस तकनीक ने एक भी स्वस्थ व्यक्ति के बारे में मिथ्या पॉजि़टिव परिणाम नहीं दिए। इसके कोई साइड प्रभाव भी नहीं देखे गए।
गौरतलब बात है कि त्वचा की कोशिकाओं में भी मेलेनीन पाया जाता है किंतु परीक्षण के दौरान उन कोशिकाओं को कोई क्षति नहीं पहुंची। कारण यह है कि लेज़र पुंज को इस तरह फोकस किया गया था कि वह त्वचा पर नहीं बल्कि थोड़ी गहराई में जाकर रक्त वाहिनियों पर केंद्रित होता है।
परीक्षण का एक अनपेक्षित परिणाम यह रहा कि परीक्षण के बाद मरीज़ों के शरीर में रक्त प्रवाह में भटकती कैंसर कोशिकाओं की संख्या में कमी आई। अर्थात यह तकनीक कैंसर कोशिकाओं को खत्म करने में भी उपयोगी साबित हो सकती है। ऐसा प्रतीत होता है कि जब मेलेनीन लेज़र द्वारा उत्पन्न ऊष्मा को सोखता है तो कोशिका में उसके आसपास उपस्थित पानी वाष्पित होने लगता है और एक बुलबुला बना लेता है। यह बुलबुला पहले तो फैलता है और फिर पिचक जाता है। इस प्रक्रिया में कोशिका मारी जाती है।
अभी इस तकनीक का परीक्षण गहरे रंग की त्वचा वाले व्यक्तियों पर नहीं किया गया है, जिनकी त्वचा कोशिकाओं में मेलेनीन काफी अधिक होता है।
अभी यह तकनीक सिर्फ मेलेनोमा से उत्पन्न कोशिकाओं पर आज़माई गई है। शोधकर्ता दल इसे अन्य किस्म की कैंसर कोशिकाओं के लिए भी विकसित करना चाहता है। इनमें मेलेनीन तो होता नहीं, इसलिए पहले इनको किसी मार्कर से चिंहित करना होगा।
टीम का कहना है कि अभी इस तकनीक को नैदानिक तकनीक में विकसित करने में समय लगेगा। वैसे उन्होंने प्रयोगशाला में उपलब्ध स्तन कैंसर की कोशिकाओं पर इसे कारगर साबित किया है। (स्रोत फीचर्स)