नवनीत कुमार गुप्ता
प्लास्टिक आज पर्यावरण के लिए सबसे बड़ा संकट है। प्लास्टिक प्राकृतिक रूप से सड़ता नहीं है। इस कारण यह तेज़ी से पर्यावरण को प्रदूषित कर रहा है। इंसान प्लास्टिक कचरे का समुचित निपटारा नहीं कर पा रहा है। ज़्यादातर प्लास्टिक कचरा समुद्रों में फेंक दिया जाता है जहां यह समुद्री जीवों के लिए भी संकट बनता जा रहा है। आज समुद्रों में 10 करोड़ टन प्लास्टिक मौजूद है।
अब प्लास्टिक कचरा उन्मूलन की दिशा में भारत, न्यूज़ीलैंड, ब्राज़ील और कज़ाकिस्तान समेत दुनिया के 187 देशों की सरकारें बेसल समझौते में संशोधन करने पर सहमत हो गई हैं।
बेसल समझौता विषैले पदार्थों और कचरे को दूसरे देशों में भेजने से जुड़ा अंतर्राष्ट्रीय समझौता है। इसका उद्देश्य विभिन्न देशों के बीच विषैले पदार्थों का आवागमन कम करना है। समझौते में विशेषकर विकसित देशों से विषैले पदार्थों को विकासशील देशों में भेजने पर रोक लगाई गई है। ताज़ा संशोधन के बाद विषैले पदार्थों की सूची में प्लास्टिक को भी शामिल किया गया है। इससे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्लास्टिक कचरे का व्यापार ज़्यादा पारदर्शी होगा और इंसानों के स्वास्थ्य और पर्यावरण को साफ रखने की दृष्टि से इसका बेहतर प्रबंधन होगा।
अमेरिका प्लास्टिक का सबसे ज़्यादा उत्पादन करने वाले देशों में एक है, लेकिन दुर्भाग्यवश वह इस संधि में शामिल नहीं है। प्लास्टिक कचरे की रोकथाम लागू करने में मदद के लिए व्यापार, सरकारों, अकादमिक जगत और नागरिक समुदाय के संसाधनों से जुड़ा एक नया सहयोग शुरू किया गया है।
इसके अलावा, विषैले पदार्थों की सूची में दो नए रसायन समूह जोड़े गए हैं: डिकोफॉल और परफ्लोरोऑक्टेनोइक एसिड। इन दो समूहों के लगभग 4000 रसायन संधि में शामिल किए गए हैं। इनमें कुछ रसायन फिलहाल औद्योगिक और घरेलू उत्पादों में भारी मात्रा में इस्तेमाल किए जा रहे हैं। जैसे नॉन-स्टिक बर्तन और खाद्य प्रसंस्करण उपकरण। टेक्सटाइल, कालीन, कागज़, पेंट और अग्निशामक फोम तैयार करने में भी इन रसायनों का खूब इस्तेमाल होता है।
सालों से लाखों टन प्लास्टिक कचरा विकासशील देशों में जमा कर दिया गया है। अब तक जिन देशों में बाहर से प्लास्टिक आता था, अब वे इसके आयात पर रोक लगा सकते हैं। इससे मजबूर होकर निर्यात करने वाले देश साफ और रिसायकल करने लायक प्लास्टिक का इस्तेमाल करेंगे। कचरे का वातावरण के अनुकूल प्रबंधन करना दीर्घकालीन विकास के लिए ज़रूरी है। दूसरी ओर, आर्थिक विकास के साथ-साथ कचरे का उत्पादन भी बढ़ रहा है। उचित प्रबंधन के अभाव में इसका असर इंसानों की सेहत और पर्यावरण पर पड़ रहा है। अब 187 देशों की सहमति से तैयार कानून पर्यावरण के संरक्षण में मदद करेगा। ये संधि प्लास्टिक कचरे पर रोक लगाने और उसके असंतुलित वितरण पर नियंत्रण रखने में मददगार साबित होगी और प्लास्टिक कचरे का उचित प्रबंधन सुनिश्चित करेगी। (स्रोत फीचर्स)