आम तौर पर पीले रंग को खुशी और उमंग जैसी भावनाओं के साथ जोड़कर देखा जाता है। लेकिन जर्नल ऑफ एनवॉयरमेंटल साइकोलॉजी में प्रकाशित ताज़ा अध्ययन बताता है कि सभी लोग पीले रंग को सुखद एहसास या अनुभूति के साथ जोड़कर नहीं देखते।
दरअसल शोधकर्ता यह जानना चाहते थे कि रंगों के साथ भावनाओं के जुड़ाव में कौन से कारक भूमिका निभाते हैं। यह जानने के लिए उन्होंने एक नई परिकल्पना को जांचा कि क्या किसी खास रंग से उमड़ने वाली भावनाओं को आसपास का भौतिक परिवेश प्रभावित करता है। उदाहरण के लिए क्या ठंडे या बरसाती इलाके फिनलैंड में रहने वाले व्यक्ति में पीले रंग से जो भावनाएं उमड़ती हैं, वे सहारा रेगिस्तान में रहने वाले व्यक्ति से अलग होंगी?
शोधकर्ताओं ने 55 देशों के लगभग 6625 लोगों पर हुए सर्वे के डैटा को देखा। इस सर्वे में लोगों को 12 अलग-अलग रंगों को इस आधार पर अंक देने को कहा गया था कि वे खुशी, गौरव, डर और शर्म जैसी भावनाओं का सम्बंध किस रंग से जोड़ते हैं।
अध्ययन में शोधकर्ताओं ने सिर्फ पीले रंग से जुड़े डैटा का इस आधार पर विश्लेषण किया कि विभिन्न कारक जैसे धूप की अवधि, दिन की रोशनी की अवधि और वर्षा की मात्रा कैसे लोगों द्वारा रंगों के लिए बताई गई भावनाओं से जुड़ी हैं। लोग पीले रंग के प्रति कैसा अनुभव करते हैं इसका सबसे अधिक सम्बंध दो बातों से देखा गया: वे जहां रहते हैं वहां सालाना कितनी बारिश होती है और वह स्थान भूमध्य रेखा से कितनी दूरी पर है। शोधकर्ताओं ने पाया कि पीले रंग को उमंग से जोड़कर देखने वाले लोगों की संख्या वर्षा वाले इलाकों में अधिक थी और भूमध्य रेखा के नज़दीक कम। इसके अलावा भूमध्य रेखा से दूर रहने वाले लोगों ने उजले रंगों की अधिक सराहना की। मिरुा (गर्म स्थान) में सिर्फ 5.7 लोगों ने पीले रंग को खुशी के साथ जोड़ा जबकि बर्फीले फिनलैंड के 87.7 प्रतिशत लोगों ने पीले रंग को खुशी से जोड़कर देखा। मध्यम जलवायु वाले यू.एस. में पीले रंग और खुशी का जुड़ाव 60-70 प्रतिशत लोगों ने जोड़ा।
अध्ययन में मौसम परिवर्तन के साथ रंगों में बदलती रुचि पर भी गौर किया गया - क्या किसी इलाके में लोग गर्मियों की बजाय सर्दियों में पीले रंग को ज़्यादा पसंद करते हैं? पाया गया कि रंगों को लेकर लोगों की राय साल भर लगभग एक जैसी ही रहती है। (स्रोत फीचर्स)
-
Srote - December 2019
- बैक्टीरिया की मदद से मच्छरों पर नियंत्रण
- पहले की तुलना में धरती तेज़ी से गर्म हो रही है
- एक जेनेटिक प्रयोग को लेकर असमंजस
- चांदनी रात में सफेद उल्लुओं को शिकार में फायदा
- पक्षी एवरेस्ट की ऊंचाई पर उड़ सकते हैं
- पदचिन्हों के जीवाश्म और चलने-फिरने का इतिहास
- कई ततैयों को काबू में करती है क्रिप्ट कीपर
- शीतनिद्रा में बिना पानी कैसे जीवित रहती है गिलहरी
- स्वास्थ्य सम्बंधी अध्ययन प्रकाशित करने पर सज़ा
- अमेज़न में लगी आग जंगल काटने का नतीजा है
- प्लास्टिक का प्रोटीन विकल्प
- स्थिर विद्युत का चौंकाने वाला रहस्य
- भारत में ऊर्जा का परिदृश्य
- गुणवत्ता की समस्या
- प्रकाश व्यवस्था: लोग एलईडी अपना रहे हैं
- वातानुकूलन: गर्मी से निपटने के उपाय
- अन्य घरेलू उपकरण
- खाना पकाने में ठोस र्इंधन बनाम एलपीजी
- पानी गर्म करने में खर्च ऊर्जा की अनदेखी
- सार-संक्षेप
- क्षयरोग पर नियंत्रण के लिए नया टीका
- हड्डियों से स्रावित हारमोन
- दृष्टिहीनों में दिमाग का अलग ढंग से उपयोग
- समस्याओं का समाधान विज्ञान के रास्ते
- क्या शिक्षा प्रणाली भारत को महाशक्ति बना पाएगी?
- व्याख्यान के दौरान झपकी क्यों आती है?
- नई खोजी गई ईल मछली का ज़ोरदार झटका
- क्या रंगों को सब एक नज़र से देखते हैं