घरों में बिजली का सबसे बुनियादी उपयोग प्रकाश व्यवस्था के लिए किया जाता है। कई कम आय वाले और नए विद्युतीकृत घरों में तो बिजली का प्रमुख या एकमात्र उपयोग इसी के लिए किया जाता है। प्रकाश व्यवस्था की ज़रूरत शाम के समय बिजली के सर्वाधिक उपयोग के समय से भी मेल खाती है। पूर्व में कई सरकारी कार्यक्रमों/कंपनियों ने फिलामेंट बल्ब को अत्यधिक कुशल सीएफएल और एलईडी बल्बों से बदलने का लक्ष्य रखा था। इनमें से सबसे नया और सबसे सफल कार्यक्रम उजाला कार्यक्रम रहा, जो अभी भी जारी है। उजाला के तहत, एलईडी बल्ब थोक मूल्य में खरीदकर अनुबंधित विक्रेताओं के माध्यम से उपभोक्ताओं को रियायती मूल्य पर उपलब्ध कराए जा रहे हैं। इसके तहत अब तक 35 करोड़ से अधिक एलईडी बल्ब बेचे जा चुके हैं।
2018 में भारत में लगभग 1.4 अरब बल्ब और ट्यूब लाइट्स का उत्पादन किया गया। इनमें से लगभग 46 प्रतिशत एलईडी, 43 प्रतिशत फिलामेंट बल्ब और शेष सीएफएल और फ्लोरोसेंट ट्यूब लाइट का था। एलईडी की मांग बढ़ती गई है जबकि हाल के वर्षों में सीएफएल की बिक्री में गिरावट आई है। फिलामेंट बल्बों की बिक्री भी कम हो रही है, लेकिन सीएफएल की तुलना में इसमें गिरावट की दर बहुत कम है।
हमने अपने सर्वेक्षण में उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र दोनों में एलईडी को अपनाने का काफी उच्च स्तर देखा। उत्तर प्रदेश में सर्वेक्षित परिवारों में 80 प्रतिशत से अधिक प्रकाश उपकरण एलईडी बल्ब या ट्यूब लाइट हैं। सभी आय वर्गों में लगभग यही स्थिति थी। लगभग 68 प्रतिशत घरों में प्रकाश के लिए केवल एलईडी बल्ब का उपयोग किया जाता है। अधिकांश परिवारों ने बताया कि वे एलईडी के प्रदर्शन से संतुष्ट हैं और उनका उपयोग जारी रखेंगे। महाराष्ट्र में, सर्वेक्षित परिवारों में 54 प्रतिशत से अधिक प्रकाश उपकरण एलईडी हैं, हालांकि विभिन्न आय वर्गों में छिटपुट अंतर हैं। सीएफएल दूसरा सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाने वाले प्रकाश विकल्प है (लगभग 27-28 प्रतिशत)।
महाराष्ट्र के घरों में एलईडी बल्बों को कम अपनाने का एक संभावित कारण यह लगता है कि महाराष्ट्र में परिवार पहले फिलामेंट बल्ब छोड़कर सीएफएल का उपयोग करने लगे थे। ऐसा सरकार के बचत लैंप योजना (बीएलवाय) के तहत सीएफएल को दिए गए प्रोत्साहन के कारण हुआ था। हालांकि महाराष्ट्र के अधिकांश सर्वेक्षित परिवारों ने भविष्य में एलईडी बल्ब खरीदने की इच्छा व्यक्त की, लेकिन संभवत: पूरे स्टॉक को एलईडी में बदलने में काफी समय लगेगा। दूसरी ओर, उत्तर प्रदेश के परिवारों ने फिलामेंट बल्ब या प्रकाश व्यवस्था के सर्वथा अभाव से सीधे एलईडी की ओर लंबी छलांग लगाई है।
एक दिलचस्प बात यह है कि उत्तर प्रदेश के मात्र 12 प्रतिशत और महाराष्ट्र के 17 प्रतिशत सर्वेक्षित परिवारों ने ही बताया कि उन्होंने एलईडी बल्ब उजाला कार्यक्रम के तहत खरीदा है। फिर भी, बड़े पैमाने पर एलईडी को अपनाए जाने का श्रेय उजाला कर्यक्रम को दिया जा सकता है क्योंकि कार्यक्रम ने प्रकाश उद्योग पर व्यापक असर डाला है। उजाला के तहत बड़े पैमाने की खरीदी के चलते कार्यक्रम के बाहर बेचे जाने वाले एलईडी बल्बों की कीमत में भी भारी कमी हुई है। इसके अलावा, एलईडी बल्बों की बढ़ी हुई मांग ने एक बड़े लघु उद्योग को भी जन्म दिया है। भारत में लगभग 250 पंजीकृत एलईडी बल्ब उत्पादन इकाइयां हैं, जो 2014 में मुट्ठी भर थीं। इसलिए, बाज़ारों में सस्ते एलईडी बल्बों की बहुतायत है। हालांकि, इससे उनकी गुणवत्ता को लेकर भी चिंता बढ़ गई है। भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) का निर्देश है कि भारत में बिकने वाले सारे एलईडी उपकरण सुरक्षा और प्रदर्शन मानकों के अनुरूप होना चाहिए। इसके अलावा, ब्यूरो ऑफ एनर्जी एफिशिएंसी (बीईई) ने एलईडी लैंप की रेटिंग के लिए एक अनिवार्य स्टार लेबलिंग योजना शुरू की है। इसके तहत सभी एलईडी उपकरणों को 1 स्टार (न्यूनतम कुशल) से 5 स्टार (सबसे कुशल) तक अंकित किया जाता है। अलबत्ता, इन नियमों का अनुपालन ढीला है। 8 शहरों में 400 खुदरा विक्रेताओं के एक हालिया सर्वेक्षण में पाया गया है कि बाज़ार में उपलब्ध एलईडी बल्ब ब्रांडों में से आधे सुरक्षा और प्रदर्शन के बीआईएस मानकों के अनुरूप नहीं हैं। हमारे सर्वेक्षण में, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र दोनों में केवल 2-3 प्रतिशत परिवारों को एलईडी बल्ब के लिए स्टार-लेबलिंग कार्यक्रम के बारे में पता था। इसके अलावा, दोनों राज्यों के अधिकांश परिवारों ने एलईडी बल्बों के प्रदर्शन को खरीद का कारण बताया। चंद परिवारों ने ही कहा कि वे एलईडी बल्बों का उपयोग कम कीमत और बिजली बिल में कमी के कारण कर रहे हैं। इसलिए, बाज़ार में एलईडी की ओर झुकाव को बनाए रखने के लिए अच्छी गुणवत्ता वाले एलईडी बल्ब की उपलब्धता सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है। इसके लिए एलईडी बल्बों के लिए स्टार रेटिंग कार्यक्रम के बारे में उपभोक्ताओं को जागरूक बनाना और नियमों के सख्ती से अनुपालन की आवश्यकता होगी।
यह सर्वेक्षण इस बात को भी रेखांकित करता है कि परिवार के व्यवहार पर बिजली आपूर्ति की गुणवत्ता का प्रभाव होता है। उत्तर प्रदेश में लगभग 45 प्रतिशत ग्रामीण परिवार अभी भी प्रकाश व्यवस्था के लिए विकल्प के रूप में केरोसिन चिमनी का उपयोग करते हैं जो घर के अंदर प्रदूषण और दुर्घटनाओं का कारण बन सकती है। अर्ध-शहरी और ग्रामीण, दोनों क्षेत्रों में बैटरी और सौर लैंप के साथ एकीकृत एलईडी बल्बों का स्वामित्व 11-14 प्रतिशत है। ये विकल्प नियमित एलईडी बल्बों की तुलना में महंगे हैं, लेकिन कम आय वाले परिवार तक यही विकल्प चुन रहे हैं। दूसरी ओर महाराष्ट्र में, अपेक्षाकृत कम परिवार वैकल्पिक प्रकाश स्रोतों का उपयोग करते हैं।
कुल मिलाकर, यह कहा जा सकता है कि दोनों राज्यों के अर्ध-शहरी और ग्रामीण क्षेत्र के विभिन्न आय वर्गों के परिवारों में एलईडी को व्यापक रूप से अपनाया गया है। उत्तर प्रदेश के परिवारों ने फिलामेंट बल्बों या प्रकाश व्यवस्था के सर्वथा अभाव से सीधे एलईडी को अपनाया है, जबकि महाराष्ट्र के लोग धीरे-धीरे सीएफएल से एलईडी की ओर बढ़ रहे हैं। सर्वेक्षण का एक निष्कर्ष यह है कि सरकार और अन्य सम्बंधित किरदारों के लिए यह ज़रूरी है कि वे बाज़ार में एलईडी की ओर हो रहे परिवर्तन को बनाए रखने के लिए अच्छी गुणवत्ता वाले एलईडी बल्बों की उपलब्धता सुनिश्चित करें। (स्रोत फीचर्स)
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Srote - December 2019
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