घोंघों की पीठ पर कैल्शियम कार्बोनेट से बनी खोल एक कवच का काम करती है और उन्हें शिकारियों से बचाती है। लेकिन उनके शिकारी भी कोई कम शातिर नहीं हैं; वे शिकार के तरीके ढूंढ निकालते हैं। हालिया अध्ययन में ऐसा ही एक तरीका पता चला है, जिसमें घोंघों का शिकारी - क्लिक बीटल (भृंग) का लार्वा - अपने मांदनुमा घोंसले में घात लगाए बैठा होता है। क्लिक बीटल में शिकार की यह रणनीति पहली बार देखी गई है।
क्लिक बीटल एलाटेरिडे कुल के सदस्य है और जुगनुओं के सम्बंधी हैं। क्लिक बीटल अपनी ‘क्लिक’ की आवाज़ के लिए प्रसिद्ध हैं। ये बीटल्स वक्ष पर मौजूद कांटे का लीवर की तरह उपयोग कर हवा में उछलते हैं और कांटे से चटकने (क्लिक) की आवाज़ पैदा होती है।
देखा गया है कि क्लिक बीटल की कई प्रजातियां लार्वा अवस्था में शिकारी होती हैं। ब्राज़ील में पाई जाने वाली इनकी एक प्रजाति शिकार को फांसने के लिए अपनी नैसर्गिक जैवदीप्ति का सहारा लेती है, और फ्लोरिडा में पाई जाने वाली एक अन्य प्रजाति कछुए के अंडों को तोड़ कर उन्हें चट कर जाती है।
एक तरह का क्लिक बीटल, ड्रिलिनी, घोंघों का शिकार करता है। घोंघों का शिकार करने के लिए ड्रिलिनी पहले तो घोंघा द्वारा पीछे छोड़े गए चिपचिपे पदार्थ की लकीर का पीछा करके उनके ठिकाने का पता लगाता है, और वहां पहुंच जाता है। जब उसे घोंघा मिल जाता है तो वह अपने डंकनुमा मुखांग से उसके कठोर कवच में छेद करके उस पर काबू कर लेता है और शिकार बना लेता है। कई बार वह एक विष का भी उपयोग करता है।
लेकिन इकॉलॉजी में प्रकाशित हालिया अध्ययन में शिकार करती पाई गई क्लिक बीटल की प्रजाति एन्थ्राकेलौस साकागुची के पास कोई विशिष्ट हथियार नहीं होता बल्कि वह नीचे से वार करके चौंकाने की मदद लेता है।
जापान के ऋयुक्युस द्वीप पर रहने वाले क्लिक बीटल का लार्वा भूमि के नीचे बनी अपनी मांद में बैठा रहता है, और ऊपर से घोंघों के गुज़रने का इंतज़ार करता है। जैसे ही घोंघा ऊपर से गुज़रता है, लार्वा नीचे से उसके नरम और कवच-विहीन शरीर को पकड़ लेता है और अंदर खींचकर खा जाता है। घोंघे का खाली-खोखला कवच भूमि के ऊपर पड़ा रह जाता है।
दरअसल इन घोंघों के बारे में तब पता चला जब टोक्यो मेट्रोपोलिटन युनिवर्सिटी के कीटविज्ञानी नोज़ोमु सातो और उनके एक सहयोगी ऋयुक्युस के कुमे द्वीप पर घोंघा सर्वेक्षण कर रहे थे। उन्होंने देखा कि कई घोंघे मृत पड़े हैं और उनका नरम शरीर नीचे ज़मीन में बने बिलों में खींचा गया है। इन बिलों को खोदने पर उन्हें लार्वा मिले। लेकिन उन्हें अंदाज़ा नहीं था कि ये लार्वा क्लिक बीटल के हैं, वे तो इन्हें जुगनुओं के लार्वा समझ रहे थे। खैर, इन्हें वे अपनी प्रयोगशाला में ले आए और पाला। जब वे विकसित हुए तो पता चला कि ये तो ए. साकागुची क्लिक बीटल के लार्वा थे।
शोधकर्ता अब यह जानना चाहते हैं कि क्या ए. साकागुची के लार्वा घोघों को ऊपर से गुज़रने के लिए कोई प्रलोभन देते हैं या रंग वगैरह से आकर्षित करते हैं, या बस घात लगाए बैठे रहते हैं। साथ ही वे यह भी देखना चाहते हैं कि मृत पड़े झींगुर और तिलचट्टे भी क्या ए. साकागुची का शिकार बनते हैं या सिर्फ घोंघे ही इनका शिकार बनते हैं। हालांकि झींगुर और तिलचट्टों के मृत शरीर साबुत पड़े थे, किसी के द्वारा खाए नहीं गए थे।
इस अध्ययन से एक बात यह प्रकाश में आती है कि कीटों की वयस्क अवस्था पर तो काफी अध्ययन हुए हैं और उनके बारे में हमें मालूमात है, लेकिन उनके लार्वा अनदेखे ही रहे हैं और उनके बारे में हम बहुत कम जानते हैं। इन पर अधिक अध्ययन की ज़रूरत है। (स्रोत फीचर्स)
लार्वा का हमला देखने के लिए इस लिंक पर जाएं - https://www.science.org/content/article/watch-beetle-larva-ambush-snails-below-dragging-them-their-demise
उसकी उछाल देखने और क्लिक की आवाज़ सुनने के लिए इस लिंक पर जाएं - https://youtu.be/uH4roWTUMoA?si=FOs7uzaSq6xiXlTQ
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Srote - April 2024
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