सवाल: कभी-कभी हमारे शरीर के अंग जैसे हाथ और पैर अचानक कुछ काम नहीं करते और एक प्रकार से सुन्न हो जाते हैं जिसे हम कहते हैं कि पैर में नींद आ गई, ऐसा क्यों?
जबाव: यह तो शायद तुम जानते ही हो कि हमारे शरीर के अंगों को हिलाने डुलाने का काम मांसपेशियां करती हैं। चाहे आंख की पलक हो या पैर की अंगुली या घोड़े का कान - किसी भी जंतु का कोई भी अंग बिना मांसपेशी के नहीं हिल सकता।
किन्तु बात सिर्फ इतनी-सी नहीं है। मांसपेशियां तब तक काम नहीं कर सकतीं जब तक उन्हें लगातार रक्त न मिलता रहे और उनमें तंत्रिकाओं का जाल ने बिछा हो।
खून इसलिए जरूरी है क्योंकि शरीर की प्रत्येक कोशिका अपने लिए ऊर्जा सूद पैदा करती है; और ऊर्जा पैदा करने के लिए उसे जरूरत होती है ऑक्सीजन व भोजन की। ये दोनों चीजें शरीर की प्रत्येक कोशिका तक खून के ज़रिए पहुंचती हैं।
इसी तरह तंत्रिका तंत्र के बगैर मांसपेशियां काम नहीं कर सकती क्योंकि तंत्रिकाओं के द्वारा ही मांसपेशियों को संदेश मिलता है कि उन्हें सिकुड़ना है या फैलना, दाएं मुड़ना है या बाएं ...।
मनुष्य के शरीर की रचना से संबंधित किसी किताब में दिए हुए चित्रों में तुम देख सकते हो कि हमारे शरीर में किस प्रकार रक्त लाने, ले जाने वाली नलिकाओं और संदेश लाने, ले जाने वाली तंत्रिकाओं का जाल बिछा रहता है। मांसपेशी तभी काम कर सकती है जब उसे तंत्रिका के माध्यम से संदेश प्राप्त होता है। वैसे तंत्रिकाएं इनके अलावा एक और काम करती हैं। जब भी कोई चीज़ हमारे शरीर से छूती है अथवा हमें ठंड या गर्मी महसूस होती है - यह सब हमें तंत्रिकाओं के कारण ही पता चलता है। इसे संवेदना ग्रहण करना कहते हैं।
अगर खून को पहुंचना इतना ही जरूरी है तो सोचो, यदि किसी तंत्रिका को लंबे समय तक रक्त न मिले तो क्या होगा, यानी तंत्रिका की कोशिकाओं तक न तो ऑक्सीजन पहुंच पाए और न ही पोषण? ऐसी स्थिति में न तो यह तंत्रिका संदेश ले जा सकेगी और न ही संवेदना ग्रहण कर सकेगी।
तो जब हम लगातार किसी असुविधाजनक स्थिति में बैठे या लेटे रहते हैं और हमारे शरीर का कोई भाग जैसे हाथ या पैर, लंबे समय तक दबा रहता है तो उस भाग में रक्त के बहाव में रुकावट पैदा हो जाती है। इस रुकावट का नतीजा यह होता है कि उस अंग की पेशियों और तंत्रिकाओं को ऑक्सीजन और पोषण युक्त रक्त नहीं मिलता या कम मिलता है। ऐसी स्थिति में तंत्रिकाएं अपना काम ठीक से नहीं कर पातीं। जैसा कि हम ऊपर देख चुके हैं, यदि तंत्रिका अपना काम ठीक से न कर सके तो यह न तो बाहर से संवेदना को ग्रहण कर सकती है और न ही पेशी तक संदेश पहुंचा कर उसे हिलाडुला सकती। है। इसे ही हम बोलचाल की भाषा में सुन्न हो जाना कहते हैं।
जो अंग सुन्न हो जाता है उससे कोई चीज़ छूने पर न तो उस अंग को स्पर्श का अहसास होता है और न उसे ठीक से हिलाया जा सकता है। कभी-कभी इस स्थिति में झिनझिनी भी महसूस होती है क्योंकि तंत्रिका को कम रक्त मिलने पर उसमें कुछ प्रतिक्रिया या झनझनाहट होती है जो हमें झिनझिनी के रूप में महसूस होती। है। जब हम वापस सामान्य स्थिति में आ जाते हैं तब उस अंग में फिर से रक्त बहने लगता है और तंत्रिकाएं। फिर से काम करना शुरू कर देती हैं। इस वक्त भी तंत्रिकाओं में तेज झिनझिनी महसूस होती है।